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कोलकाता, पश्चिम बंगाल में एड्स जागरूकता रैली में भाग लेते कार्यकर्ता। 2007 के बाद से भारत में एचआईवी रोगियों की संख्या में 5 फीसदी गिरावट के बावजूद, हर वर्ष 86,000 नए संक्रमणों और 68,000 एड्स से संबंधित मौतों की रिपोर्ट दर्ज की गई है।

अक्टूबर 2014 से मार्च 2016 के बीच, अस्पतालों में रक्ताधान के माध्यम से कम से कम 2,234 लोग ह्यूमन इम्युनोडिफीसिअन्सी वायरस यानी एचआईवी के शिकार हुए हैं। यह जानकारी राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) द्वारा जारी आंकड़ों में सामने आई है लेकिन सरकार ने संसद को बताया कि इस संबंध में उसे कोई जानकारी नहीं थी।

यह जानकारी, सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत 2016 में कार्यकर्ता चेतन कोठारी द्वारा दायर की गई याचिका के जबाव में नाको द्वारा उपलब्ध की गई है।

16 अगस्त, 2016 को कांग्रेस सदस्य और पूर्व मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा यह पूछने पर कि क्या सरकार को जानकारी है कि देश भर में रक्त संक्रमण के ज़रिए एचआईवी के मारीज़ों की संख्या बढ़ रही है, तो स्वास्थ्य मंत्रालय – नाको स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत संचालित विभाग है – का जवाब “ना” था।

मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि “ब्लड बैंकों में एचआईवी के लिए रक्त इकाइयों के जांच के दौरान परिक्षण तरीकों की सीमित उपलब्धता के कारण रक्त आधान के दौरान एचआईवी संचरण की संभावना से पूरी तरह से इंकार नहीं किया जा सकता है।”

2015-16 में, भारत में आवश्यकता की तुलना में 9 फीसदी कम रक्त है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने हाल ही में बताया है। उद्हारण के लिए, बिहार में आवश्यकता की तुलना में 84 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 66 फीसदी कम रक्त है, जबकि चंडीगढ़ में नौ गुना अधिक और दिल्ली में तीन गुना अधिक रक्त की आपूर्ति की गई है।

नाको अपनी ही जारी आंकड़ों की विश्वसनीयता पर यह दावा करते हुए संशय करता है कि “यह एचआईवी के सेल्फ-रिपोर्टेड संचरण को संदर्भित करता है और किसी भी वैज्ञानिक तरीकों से यह पुष्टि नहीं होती कि पारेषण वास्तव में रक्त आधान के कारण है।”

ज़रीन भरूचा, पैथोलॉजिस्ट और बॉम्बे रक्त बैंकों के संघ के अध्यक्ष कहते हैं, “रक्ताधान से एचआईवी संक्रमित होने की संभावना ज्यादा है, बनिस्बत इसके कि कोई कैसी जीवनशैली जी रहा है।”

घट रही एचआईवी संक्रमण की दर है, लेकिन भारत में एचआईवी रोगियों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है

2015 नाको की इस रिपोर्ट के अनुसार, केवल दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया में एचआईवी मरीज़ों की संख्या भारत से अधिक है, जहां दो मिलियन से अधिक लोग संक्रमित हैं।

2007 के बाद से एचआईवी के रोगियों की संख्या में 5 फीसदी गिरावट के बावजूद, हर वर्ष 86,000 नए संक्रमणों और 68,000 एड्स से संबंधित मौतों की रिपोर्ट दर्ज हुई है।

एचआईवी मरीज़: निरंतर कमी

Source: India HIV Estimations 2015, National AIDS Control Organisation

दिसम्बर, 2015 में, लोकसभा को दिए जवाब के अनुसार,भारत में 95 फीसदी एचआईवी प्रसारण असुरक्षित यौन संबंध के कारण होता है।

लोकसभा जवाब में जारी आंकड़ों के अनुसार, एचआईवी संक्रमण के लिए रक्ताधान की 0.1 फीसदी हिस्सेदारी है लेकिन नाको के आंकड़ों के आधार पर इसकी हिस्सेदारी 1.7 फीसदी है।

बहरहाल, रक्ताधान के माध्यम से एचआईवी संक्रमण की संख्या शून्य होनी चाहिए : ऐसे मामलों की सूचना अमेरिका ने 2008 में, ब्रिटेन ने 2005 और कनाडा ने 1985 में दिया है।

अस्पतालों के लिए डोनर और रक्त दान के आधान - संचारित संक्रमण जैसे कि एचआईवी , हेपेटाइटिस बी और सी और मलेरिया का जांच करना अनिवार्य है। जो हमेशा नहीं किया जाता है और यही कारण है कि एचआईवी पॉजिटिव रक्त को 100 फीसदी दूर करना संभव नहीं है।

वायरस के संकुचन और रक्त में एचआईवी रोधी एंटीबॉडी के उत्पादन, जिससे जांच में वायरस का पता नहीं चलता है, उनके बीच दरीचा है। संवेदनशीलता और परीक्षण की विशिष्टता के आधार पर यह अवधि बदलती है।

भरूचा का कहना है, “रक्त संचरण मुख्य रूप से इस अवधि में होता है। अधिकांश ब्लड बैंक उस दरीचे को कम करने के लिए आधुनिक परिक्षण का इस्तेमाल करते हैं लेकिन यह परिक्षण काफी महंगा होता है इसलिए कई सरकारी अस्पतालों में इसका इस्तेमाल नहीं होता है।”

2001 में शुरु की गई,परमाणु एसिड प्रवर्धन परीक्षण से एचआईवी की समय अवधि कम हुई है जो सात और नौ दिनों के बीच पता नहीं चल पाता है।

फंडिंग में गिरावट, परीक्षण सुविधाएं अपर्याप्त, इसलिए रक्त की गुणवत्ता रहती है दांव पर

कुछ राज्यों में पर्याप्त एचआईवी परीक्षण सुविधाओं की कमी है। झारखंड में 24 जिलों में से 17 में परीक्षण सुविधाएं नहीं हैं, जैसा कि 2015 की इस इंडिया टुडे रिपोर्ट में कहा गया है।

देश भर में करीब 19,800 एकीकृत परामर्श और परीक्षण केन्द्र (आईसीटीसी) हैं, जोकि पिछले तीन वर्षों में 4,194 अधिक है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) के नियमों के अनुसार, हर जिले में कम से कम 1 आईसीटीसी होना चाहिए।

एनएसीपी के लिए सरकारी धन में विसंगति से सहायता नहीं मिली है: सरकार ने पिछले दो वर्षों की तुलना में वर्ष 2014-2015 में फंडिंग में 26 फीसदी की कटौती की है, फिर दो वर्षों में 31 फीसदी की वृद्धि की है। 2012-2013 की तुलना में 2016-17 के लिए एनएसीपी बजट अब भी 3 फीसदी कम है।

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के लिए फंड

Source: Union Budgets

परीक्षण सुविधाओं की कमी के कारण अस्पताल के स्टाफ "पूर्व दान इतिहास" पर भरोसा करना पड़ता है

भरूचा कहते हैं, “पूर्व दान इतिहास पर भरोसा करने का अर्थ है कि यदि दाता व्यक्तिगत इतिहास सही ढंग से नहीं देते हैं तो रक्त पर खतरा है।”

एक ऐसे देश में जहां अब भी एचआईवी पॉजिटिव होना सामाजिक कलंक माना जाता है - संक्रमित लोग को इस तथ्य को छिपाने की कोशिश करते हैं- वहां रक्त की जांच न करना और डोनर दांव पर होते हैं, जैसा कि "प्रतिस्थापन दाताओं" की अभ्यास का प्रयोग किया जाता है।

अस्पताल जहां रक्त की कमी है वहां अक्सर मरीज़ के रिश्तेदारों को डोनर लाने के लिए कहा जाता है। भरूचा कहते हैं, “सबके पास डोनर उपलब्ध नहीं होता है। ऐसे में रिश्तेदार पैसे दे कर डोनर की व्यवस्था करते हैं।” यहां तक ​​कि यदि भुगतान किए गए रक्त दान को मना करते हैं (सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में प्रतिबंध लगाया है), तो भी यह अभ्यास जारी रहेगा और जिससे एचआईवी पॉजिटिव होने की संभावना और बढ़ेगी।

भरूचा कहते हैं, “मुद्दे से निपटने के लिए जागरुकता आवश्यक है। समुदायों के इस अभ्यास से होने वाले खतरे के संबंध में पता होना चाहिए।”

(ग्रोसचेट्टीएक मल्टीमीडिया पत्रकार है और नेपियर विश्वविद्यालय, एडिनबर्ग से पत्रकारिता में बीए (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 6 सितंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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