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इस बार गणतंत्र दिवस समारोह में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा मुख्य अतिथि थे। परेड के दौरान रुस के बने टी-90 टैंक, राजपथ पर जहां शोभा बढ़ा रहे थे, वहीं आकाश में सुखोई-30 और मिग-29 जैसे लड़ाकू विमान गर्जना कर रहे थे। अमेरिकी राष्ट्रपति की मौजूदगी में रुस नीर्मित हथियारों का प्रदर्शन विचित्र संयोग था। लेकिन इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति को यह बात परेशान नहीं करने वाली थी। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसी परेड में एक संकेत भी छिपा था, वह यह था कि मिग को एस्कॉर्ट एक अमेरिका का बना पी-81 पोसीडॉन नौसेनिक लड़ाकू विमान कर रहा था। यहीं नहीं अब रुस की जगह संयुक्त राज्य अमेरिका भारत को सबसे बड़ा हथियार आपूर्ति करने वाला देश बन गया है। बराक ओबामा की यात्रा भारत औऱ अमेरिका के बीच मजबूत होते संबंधों का प्रतीक है। जो कि दिनो-दिन मजबूत होता जा रहा है।ओबामा के रुप में गणतंत्र दिवस पर पहली बार कोई अमेरिकी राष्ट्रपति मुख्य अतिथि बना। यहीं नहीं ओबामा ऐसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में दो बार भारत की यात्रा की है। यात्रा का मुख्य आकर्षण तो गणतंत्र दिवस समारोह था, लेकिन इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बराक ओबामा के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर नई ऊंचाइयों पर सहमति बनी। इसमें पर्यावरण परिवर्तन, नागरिक नाभिकीय सहयोग, द्विपक्षीय व्यापार और रक्षा सहयोग (इंडियास्पेंड की रिपोर्ट देखे) अहम मुद्दे रहे।

रक्षा मामलों में दोनो देश नई रणनीतिक फ्रेमवर्क के तहत जल्द ही नए समझौते कर सकते हैं। जो कि साल 2005 के समझौते की जगह लेगा। दस साल पुराना समझौता इस साल खत्म हो रहा है। नए समझौते में रक्षा तकनीकी के व्यापारिक उपयोग की पहल को भी जगह मिलेगी। जिससे भारत में रक्षा उत्पादन क्षमता का विस्तार होगा। रक्षा सहयोग का फ्रेमवर्क बेहद अहम समय पर तैयार हुआ है। अमेरिका ने हाल ही में रूस को पछाड़ कर भारत को सबसे ज्यादा हथियार आपूर्ति करने वाला देश बन गया है।

राज्य सभा के आंकड़ों के अनुसार साल 2011-12 और 2013-14 के बीच अमेरिका से भारत ने 32615 करोड़ रुपये (5.3 अरब डॉलर) के रक्षा उपकरण खरीदे। वहीं अमेरिका के बाद रुस का नंबर आता है। जिसने इस अवधि में 25364 करोड़ रुपये (4.1 अरब डॉलर) के रक्षा उपकरण भारत को बेचे। डिफेंस और सिक्योरिटी रिसर्च ग्रुप आईएचएस जेन्स के अनुसार इस दौरान भारत भी सऊदी अरब को पछाड़ कर अमेरिका से सबसे ज्यादा हथियारखरीदने वाले देश बन गया है।

रक्षा उपकरणों पर भारत द्वारा वित्त वर्ष 2012-14 में किया कुल आयात खर्च, करोड़ रुपये (बाएं) और फीसदी (दाएं)

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Source: Rajya Sabha

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट भारत द्वारा अमेरिका से हथियार खरीदना कोई हाल की घटना नही है। अमेरिका ने साल 1951-1952 में करीब 200 सेकेंड हैंड एम-4 शेरमैन टैंक भारत को बेचे थे। उस समय से रक्षा सौदे दोंनो देश के बीच हो रहे है। यह सिलसिला साल 1962 के भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के दौरान सीमित मात्रा में रक्षा सहयोग और बिक्री के रुप में चलता रहा। युद्ध के बाद भौगोलिक-राजनीतिक परिस्थतियों में हुए बदलाव के बाद हथियारों की खरीद रुक गई। यह वह समय था, जब भारत धीरे-धीरे सोवियत संघ के करीब हो रहा था। जहां से उसकी हथियारों की जरूरतें पूरी होने लगी थी। भारत और अमेरिका के रिश्तों के बीच एक गरमाहट एक बार फिर शीत युद्ध खत्म होने के बाद आई। साल 1992 में भारत ने अमेरिका से आर्टिलरी लोकेटिंग रडार (एएन-टीपीक्यू-37 फायरफाइंडर) और पेववे गाइडेड बम खरीदे।

हालांकि पोखरण-2 के रुप में भारत द्वारा किए गए न्यूक्लीयर परीक्षण के बाद अमेरिका ने अस्थायी रुप से रक्षा समझौतों पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन अमेरिका में 11 सितंबर के हमलों के बाद दोनो देशों के बीच बदली परिस्थितियों में फिर से संबंध मजबूत होने लगे। खास तौर से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के दौरान संबंध मजबूत हुए। इन दोनों के रिश्तों की वजह साल 2005 में रक्षा समझौते के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार हुआ। जिस पर भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी और अमेरिकी डिफेंस सेक्रेटरी डोनॉल्ड रम्सफील्ड ने हस्ताक्षर किए। दोनो देशों के बीच करीब 61 हजार करोड़ रुपये के रक्षा सौदे उस समय से हुए हैं।

अमेरिका से भारत को प्रमुख रक्षा सौदे (1950-2000)

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हाल ही में अमेरिका से भारत को प्रमुख रक्षा सौदे

Table 3 (Desktop)

लंबित रक्षा सौदे

Table 4 (Desktop)

Source: Stockholm International Peace Research Institute and East West Centre

भारत में अभी तक बेचे गए सबसे पूर्ण रक्षा सिस्टम में सबसे आधुनिक और महंगे 6 लॉकहीड मार्टिन सी-130 ट्रांसपोर्ट एयरक्रॉफ्ट और 10 सी-17ए ग्लोबेमास्टर-3 हैवी ट्रांसपोर्ट एयरक्रॉफ्ट थे। लॉकहीड का सौदा ज 6100 करोड़ रुपये औऱ ग्लोबेमास्टर का सौदा 25200 करोड़ रुपये में किया गया। इसी तरह 8 पी-81 पोसेडॉन समुद्री पैट्रोल एयरक्रॉफ्ट भी जल्द ही भारतीय नौ सेना में शामिल होने वाला है। यह सौदा भी करीब 2 अरब डॉलर (12,200 करोड़) रुपये में किया गया है। भारत का रक्षा सौदा या तो पूर्ण हथियार सिस्टम के साथ हुआ है या फिर उसमें घरेलू कंपोनेंट इस्तेमाल का सिस्टम है। भारत में बनने वाला तेजस हल्का कॉमबैक्ट एय़रक्रॉफ्ट में अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक का एफ-404 जेट इंजन लगा हुआ है। वहीं तेजस का अत्याधुनिक वर्जन में भी अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक का ही इंजन इस्तेमाल किया गया है।

इसी तरह भारतीय नौसेना के अत्याधुनिक शिवालिक स्टील्थ फ्रिगेट में जनरल इलेक्ट्रिक का एलएम-2500 गैस टरबाइन इंजन का इस्तेमाल किया गया है। इसी तरह विक्रांत एयरक्रॉफ्ट कैरिअर जिसका निर्माण किया जा रहा है। उसमें भी इसी इंजन का इस्तेमाल हुआ है। मनीपॉल विश्वविद्यालय में जिओपॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशंस विभाग के अमेरिका मामलों के विशेषज्ञ मोनीष तोरैंगबॉम के अनुसार भारत के लिए भले ही अमेरिका रुस का एक महत्वपूर्ण विकल्प बन गया है। लेकिन रक्षा सौदों में मूल रुप से विक्रेता और खरीदारा का ही संबंध होता है। भारत के प्रति अमेरिका की जो रुचि बढ़ी है, उसकी प्रमुख वजह व्यापार ही है। जब से भारत हथियार खरीद के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा आयात करने वाला देश बना है, अमेरिका के लिए इतने बड़े बाजार को नजरअंदाज करना आसान नहीं है। जबकि भारत को इससे यह फायदा है कि वह अमेरिका से उच्च तकनीकी प्राप्त कर सकता है। साथ ही अपनी रक्षा चिंताओं के लिए आकस्मिक जरुरतों को भी पूरा कर सकता है। रक्षा क्षेत्र में जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेक इन इंडिया अभियान को प्रोत्साहित कर रहे हैं, ऐसे में साथ मिलकर उत्पादन या फिर तकनीकी ट्रांसफर जैसे लक्ष्य भारत के होने चाहिए। यह भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। जिस तरह से ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल के लिए भारत और रुस ने मिलकर उत्पादन किया, ऐसा ही भारत और अमेरिका को मिलकर करने के दिशा में कदम उठाने चाहिए। अमेरिकी के विपरीत रुस ने भारत को मिग-21,सुखोई-30 एमकेआई एयरक्रॉफ्ट की तकनीक और हथियार सिस्टम के उत्पादन को भारत से ट्रांसफर करने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि कल-पुर्जों की आपूर्ति में विवाद की वजह से लागत में बढ़ोतरी हो गई थी।

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