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कैशलेस अर्थव्यवस्था की घोषणा से महादेव वंजारी कुछ खुश नहीं हैं। 50 वर्षीय महादेश भारत की वित्तीय राजधानी के पूर्वोत्तर क्षेत्र में शीट मेटल का काम करते हैं।

वंजारी और इंडियास्पेंड के बीच जो बातचीत हुई, वह यह बताने के लिए काफी है कि जिस कैशलेश अर्थव्यवस्था की हम बात करते हैं, उसे अमल में लाने में क्या-क्या दिक्कते हैं। बातचीत के कुछ अंश-

वंजारी: नहीं, यह (कैशलेस लेन-देन) संभव नहीं है। यहां तो चेक के माध्यम से भी लेन-देन कठिन है। पेटीएम और अन्य चीजें मुझे समझ नहीं आती हैं।

इंडियास्पेंड: लेकिन क्यों...इसके पीछे कारण क्या है?

वंजारी: क्योंकि मैं ये सब चीजे समझ नहीं सकता हूं।

इंडियास्पेंड: भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य बैंक पैसे के लेन-देन के लिए अब नया सॉफ्टवेयर और मोबाइल एप शुरू कर रहे हैं। क्या आपको लगता है कि आप उन्हें इस्तेमाल कर सकते हैं?

वंजारी: नहीं, मुझे इन एप के संबंध में जानकारी नहीं है। और जो भी मामला है, मेरे जैसे उद्योग श्रमिकों के लिए ये संभव नहीं। मैंने 10 वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। शायद पर्याप्त शिक्षा की कमी के कारण यह हमारे लिए कठिन है।

इंडियास्पेंड: लेकिन अगर आपको इसे उपयोग करने के लि प्रशिक्षित किया जाए तो क्या आप इस्तेमाल करेंगे?

वंजारी: ये तो बाद की बात है। फिलहाल ये असंभव है।

देश में 500 और 1,000 रुपए को अमान्य घोषित किए जाने को 23 दिन से ज्यादा बीच चुके हैं। इस बीच इंडियास्पेंड ने ठाणे के छोटी औद्योगिक इकाइयों का दौरा किया और वहां काम करने वाले कई लोगों से मुलाकात की। हमने पाया कि अधिकांशं लोग या तो प्रधानमंत्री के कैशलेस सोसाईटी बनाने के कदम से अनजान थे या फिर उसका पालन करने के लिए अनिच्छुक थे। 2,000 रुपए के नोट के साथ वे सब्जियां एवं अन्य जरुरी चीजें खरीदने के लिए छुट्टे पैसों के लिए संघर्ष करते दिखे। कुछ लोग, जिनके पास बैंक खाते थे, उन्हें भी जरुरत के पैसे निकालने के लिए प्रति सप्ताह आधे दिन का समय लग रहा है।

ये मजदूर, जो 1960 के दशक में एशिया की लघु औद्योगिक इकाइयों के सबसे बड़े केंद्र वागले औद्योगिक एस्टेट से हैं, राष्ट्रीय स्तर पर 20 मिलियन लघु उद्योग इकाइयों में 4500 लाख श्रमिकों के चेहरे हैं। इनके लिए इनके वेतन का दिन 7 दिसंबर से 10 दिसंबर 2016 के बीच है और इनकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। मालिक चेक में वेतन देने के लिए तैयार हैं, लेकिन प्रति माह 8,000 से 10,000 रुपए कमाने वाले ये श्रमिक कहते हैं कि उनके पास सक्रिय बैंक खाता नहीं है।

ये नहीं जानते कि इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग का इस्तेमाल कैसे होता है। सच यह भी है कि ये मजदूर इस तरह के बैंकिंग से जुड़ना भी नहीं चाहते हैं। अधिकांश श्रमिक जिनसे हमने बात की, वे अपना वेतन नकद में चाहते थे। लेकिन मालिकों के पास उतनी नकदी तक अब पहुंची नहीं है। कुछ श्रमिकों ने बताया कि उनके सहयोगी खाता खुलवाने के लिए बैंक गए थे। लेकिन हमें एक भी श्रमिक ऐसा नहीं मिला, जिसने पिछले तीन हफ्तों में बैंक खाता खुलवाया हो। कुछ श्रमिकों के पास पहले से बैंक खाते थे, जिनमें वे पैसे जमा करते हैं और जरुरत पड़ने पर निकलवाते हैं।

निखिल पाहवा मीडियानामा में अपने विश्लेषण में लिखते हैं कि लगभग 80 फीसदी भारतीय मोबाईल फोन का इस्तेमाल करते हैं लेकिन एक-चौथाई या उससे भी कम इंटरनेट से जुड़े हैं।

अनियमित क्षेत्र में, मोबाइल एप्लिकेशन के जानकारों को छोड़ कर , कम आय वाले 450 मिलियन श्रमिक कैशलेस या कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ेंगे, इसकी संभावना कम है।

वागले औद्योगिक एस्टेट से हमारे ट्वीट और वीडियो के जरिए वहां की दास्तान देखें और सुनें:

ठाणे के औद्योगिक क्षेत्र में हाईक्रोम इंडस्ट्रीज चलाने वाले मल्हार तालीम चेक द्वारा अपने 20 से ज्यादा श्रमिकों का भुगतान करते हैं। वह नोटबंदी का समर्थन करते हैं।

https://twitter.com/akwaghmare/status/804194339282911232

मारुति भागवत अरान वाहन चालक हैं। हर छठे दिन नकद में भुगतान पाते हैं। रोज की सब्जियां खरीदने में परेशानी है, लेकिन उन्हें सप्ताह में समय पर भुगतान का भरोसा है।

https://twitter.com/akwaghmare/status/804195937606320128

https://twitter.com/IndiaSpend/status/804199686378692608

https://twitter.com/akwaghmare/status/804196742061297664

https://twitter.com/IndiaSpend/status/804206906294214656

https://twitter.com/akwaghmare/status/804203694984138752

https://twitter.com/akwaghmare/status/804204782579777536

https://twitter.com/IndiaSpend/status/804223684873330688

https://twitter.com/akwaghmare/status/804212610187034624

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https://twitter.com/akwaghmare/status/804244290423623681

https://twitter.com/akwaghmare/status/804249845498335232

https://twitter.com/IndiaSpend/status/804251288036773888

https://twitter.com/IndiaSpend/status/804267215885201409

ठाणे में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के औद्योगिक एस्टेट शाखा के ब्रांच मैनेजर विवेक कुलकर्णी कहते हैं, प्रति सप्ताह 24,000 रुपए की निकासी सीमा एक औसत मध्यवर्गीय परिवार के लिए पर्याप्त है और ग्राहकों को कोई शिकायत नहीं है।

https://twitter.com/akwaghmare/status/804271916412452864

भारतीय स्टेट बैंक के शाखा प्रबंधक कहते हैं; आरबीआई ने आश्वसन दिया है कि लोगों के रोजमर्रा के खर्च के लिए पर्याप्त पैसे हैं।

सप्ताह में 24,000 की निकासी सीमा मध्यम वर्ग परिवार के लिए पर्याप्त है।

नोटबंदी से श्रमिक वर्गों को अल्पकालिक परेशानी हो रही है। नोटबंदी के बाद बड़े खर्चे मुश्किल हैं, लेकिन यह अस्थायी है।

हमें हर रोज 4-5 खाता खोलने का अनुरोध मिलता है। 20 नवंबर के बाद कई लोग पीओएस एम / सी के बारे में जानकारी लेने आ रहे हैं।

हाल ही में सुरक्षा गार्ड उपलब्ध कराने वाली एक कंपनी ने अपनी टीम के लिए 20 बैंक खाता खोला है।

(वाघमारे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 02 दिसम्बर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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