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संसद के सेंट्रल हॉल, नई दिल्ली में 6 मार्च, 2016 को महिला विधायक के राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र में एक समूह तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

Factly.in, एक डाटा- पत्रकारिता पोर्टल के अनुसार वर्तमान में लोकसभा में 12 फीसदी महिला सांसद हैं। गौर हो कि 1951 में संसद में महिला सांसदों की संख्या 5 फीसदी थी।

इन वर्षों में संसद में महिलाओं की संख्या, पूर्ण संख्या एवं प्रतिशत दोनों में स्थिरतापूर्वक वृद्धि हुई है।

वर्ष 1951 में पहली लोकसभा में 22 महिला सांसद थीं। वर्तमान लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 66 है। 54 वर्षों एवं 16 लोकसभा चुनावों के दौरान, लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई है।

लोकसभा में महिला सांसद, 1951-2014

निर्वाचित निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मुद्दा सामने पिछले वर्ष आया था जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के मंत्रिमंडल कोई महिला नहीं थी, जिससे महिलाओं की संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों पर बहस पुनर्जीवित हुआ था। निर्वाचित निकायों के तीसरे स्तर, पंचायतों में अब महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण अनिवार्य है।

आधी आबादी का प्रणालीबद्ध तरीके से राजनीतिक भागीदारी , प्रतिनिधित्व और निर्णय लेने से बाहर रहने के तथ्य के अलावा इन वर्षों में यह संख्या लोकसभा में महिला प्रतिनिधित्व के संबंध में और क्या बताती हैं?

राज्य विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधित्व केवल 9 फीसदी

महिला सांसदों की संख्या में होती वृद्धि में उल्लेखनीय अपवाद 1977 में 6 वीं लोकसभा, 1989 में 9 वीं लोकसभा, और सबसे हाल ही में, 2004 में 14 वीं लोकसभा के दौरान देखी गई है जहां महिलाओं सांसदों की संख्या में कमी देखी गई है।

1991 के आंकड़ों से पता चलता है कि, पिछले लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 5 फीसदी से बढ़ कर 7 फीसदी तक पहुंचा था और तब से इनकी संख्या में स्थिरतापूर्वक वृद्धि (केवल 2004 को छोड़ कर) देखी गई है।

महिला सांसदों की मौजूदा औसत प्रतिनिधित्व (12.15 फीसदी) राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधियों के राष्ट्रीय औसत की तुलना में अधिक है, जोकि 9 फीसदी है।

हालांकि, पिछले वर्षों में संख्या में वृद्धि हुई है,लेकिन लोकसभा में महिलाओं की प्रतिशत आज भी गर्व करने योग्य नहीं है, विशेष कर जब आदर्श संख्या कम से कम 33 फीसदी होनी चाहिए।

महिलाएं राजनीति में प्रवेश करना चाहती हैं ; 59 वर्षों में प्रतियोगियों में 15 गुना से अधिक वृद्धि

लोकसभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के सवाल पर सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा महिलाओं का राजनीति में प्रवेश की इच्छा है।

हालांकि यह आम धारणा हो सकती है कि महिलाओं की थोड़ी संख्या ही राजनीति में प्रवेश की इच्छुक हैं लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहते हैं।

1957 (इस वर्ष से आंकड़े उपलब्ध है) और 2015 के बीच , महिला प्रतियोगियों की संख्या 45 से बढ़ कर 668 हुई है, यानि 15 गुना वृद्धि हुई है; पुरुषो के लिए यह आंकड़ो 1,474 से 7583 तक हुए हैं यनि पांच गुना वृद्धि हुई है।

विभिन्न लोकसभा चुनाव में प्रतियोगी

पुरुषों के मुकाबले महिलाएं हैं राजनीति में अधिक सफल

पिछले कई वर्षों में महिलाओं की सफलता की दर पुरुषों की तुलना में अधिक है। 1971 में, पुरुषों के लिए सफलता की दर 18 फीसदी दर्ज की गई थी जोकि, महिलाओं की सफलता दर (34 फीसदी) का आधा था।

लोकसभा उम्मीदवारों की सफलता दर

वर्तमान लोकसभा में पुरुषों की सफलता दर 6.4 फीसदी है, जबकि महिलाओं की सफलता दर 9.3 फीसदी है। इसके दो अर्थ हो सकते हैं: या तो महिलाओं के जीतने की संभावना अधिक होती है या तो उन्हीं महिलाओं को टिकट दी गई जिनकी जीतने की संभावना अधिक थी।

हालंकि आंकड़े एक व्यापक लेकिन महत्वपूर्ण प्रवृत्ति की ओर इशारा करते हैं, आगे निर्वाचन क्षेत्र स्तर तक के आंकड़ों का विश्लेषण अनौपचारिक सम्बन्ध स्थापित कर सकता है।

सामान्य महिला राजनेताओं की तुलना में सफल महिला राजनेताओं जो राजनीतिक परिवारों से आती हैं, उनकी प्रतिशत कितनी है?

बहरहाल, महिलाएं स्पष्ट रूप से और अधिक राजनीति में प्रवेश करने के लिए उत्सुक हैं, और पहले से कहीं अधिक सफल हो रही हैं। नई पार्टियों के आने के साथ जो परिवारों के राजनीतिक संरक्षण, धन और बाहुबल पर भरोसा नहीं करती हैं, आधी आबादी के लिए महिलाओं का अधिक से अधिक राजनीति में आना उनकी स्थिति को बेहतर बना सकेगा।

यह आंकड़े भारत निर्वाचन आयोग के सांख्यिकीय रिपोर्ट से factly टीम द्वारा जुटाए गए हैं

(राव GenderinPolitics, की सह-निर्माता हैं। यह एक परियोजना है जो महिलाओं के प्रतिनिधित्व और शासन के सभी स्तरों पर भारत में राजनीतिक भागीदारी का ट्रैक रखती है।)

(यह लेख पहले Factly.in पर एवं 8 मार्च 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।)

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