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30 दिसंबर, 2016 को राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से आकस्मिक मृत्यु और भारत में आत्महत्याओं पर जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में किसानों के आत्महत्या के मामलों में 42 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि खेतिहर मजदूरों द्वारा किए गए आत्महत्या के मामले में 32 फीसदी की गिरावट हुई है। हम बता दें कि वर्ष 2015 लगातार सूखे का दूसरा साल है।

किसानों द्वारा आत्महत्या का मुख्य कारण ऋण रहा है जबकि खेतिहर मजदूरों के लिए ‘पारिवारिक समस्याएं’ एक बड़ी वजह है।

किसानों और खेतिहर मजदूरों द्वारा की गई आत्महत्याओं में संयुक्त रुप से 2 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2014 में आत्महत्या की संख्या 12,360 थी जो कि 2015 में बढ़ कर 12,602 हुआ है।

वर्ष 2015 में, खेतिहर मजदूरों की तुलना में किसानों ने ज्यादा आत्महत्याएं की हैं। आंकड़ों के देखें को किसानों के आत्महत्या करने की संख्या 8007 (64 फीसदी) और खेतिहर मजदूरों की संख्या 4595 (34 फीसदी) रही है।

वर्ष 1995 के बाद से 300,000 से अधिक भारतीय किसान आत्महत्या कर चुके हैं। हम बता दें कि 1995 से ही एनसीआरबी ने खेती पर आधारित लोगों की आत्महत्याओं के आंकड़ों का संग्रह शुरु किया है।

2015 में खेतिहर मजदूरों की तुलना में किसानों ने अधिक आत्महत्या की

Source: Report on Accidental Deaths and Suicides, NCRB 2015

नवीनतम कृषि जनगणना के अनुसार, पिछले 15 वर्षों में जोत में 20 फीसदी की गिरावट हुई है। 1995 में 1.41 हेक्टेयर से गिर कर यह 2010 में 1.15 हेक्टेयर हुआ है, जैसा कि एक डेटा पत्रकारिता पोर्टल Factly.in ने दिसंबर 2015 में विस्तार से बताया है।

ये आंकड़े संकेत देते हैं कि संभावित किसान और खेत मजदूर के बीच अंतर को धुंधला करते हुए सीमांत किसान खेत मजदूर के रुप में भी काम करते हैं।

चार साल से वर्ष 2013 तक आंकड़ों में 32 फीसदी गिरावट, किसानों की आत्महत्या में फिर से वृद्धि

वर्ष 2009 से 2013 के बीच किसानों की आत्महत्या में 32 फीसदी की गिरावट हुई है। यह अवधि ‘अच्छे मानसून’ का साल था। लेकिन इसके बाद हर साल आंकड़ों में वृद्धि हुई है। वर्ष 2009 में कम से कम 17,368 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की थी। वर्ष 2009 देश भर में सूखे का साल था।

आत्महत्या की संख्या वर्ष 2013 में गिर कर 11,772 हुई है। वर्ष 2014 में इसमें 5 फीसदी की वृद्धि हुई है और आंकड़ा 12,360 हुआ है जबकि वर्ष 2015 में 8 फीसदी की वृद्धि हुई और यह आंकड़ा बढ़ कर 12,602 हो गया।

लगातार सूखा वर्षों में किसान आत्महत्याओं में वृद्धि

Source: Historical reports on Accidental Deaths and Suicides in India, NCRB 2015

लगातार सात सालों से महाराष्ट्र में किसान सबसे ज्यादा कर रहे हैं खुदकुशी

लगातार सात वर्षों से (2008 से पहले के आंकड़े एनसीआरबी की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं हैं), किसी भी अन्य राज्य की तुलना में महाराष्ट्र में किसानों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या की है। वर्ष 2014 में महाराष्ट्र के लिए यह आंकड़े 4,004 थे। वर्ष 2015 में इसमें 7 फीसदी की वृद्धि हुई है और यह संख्या 4,291 हुई है। कर्नाटक के लिए ये आंकड़े 1,569 और तेलंगाना के लिए 1,400 रहे है। वर्ष 2015 में 1,569 आत्महत्याओं के साथ कर्नाटक में 100 फीसदी की वृद्धि हुई है।

कर्नाटक में किसान आत्महत्या की संख्या में वृद्धि, गुजरात, राजस्थान में सुधार

Source: Report on Accidental Deaths and Suicides in India, NCRB 2015

गुजरात, केरल, राजस्थान और तमिलनाडु उन बड़े राज्यों में से है कि जिन्होंने किसानों की आत्महत्या में गिरावट की सूचना दी है। गुजरात में किसान और खेतिहर मजदूरों की आत्महत्या के मामले आधे हुए हैं। वर्ष 2014 में ये आंकड़े 600 थे, जबकि वर्ष 2015 में यह गिर कर 301 हुआ।

वर्ष 2015 में फसलों में हुए नुकसान ने ली 1,500 किसानों की जान

कर्ज किसानों में आत्महत्या का मुख्य कारण है, लेकिन फसलों में नुकसान की वजह से भी किसान करते हैं खुदकुशी। आंकड़ों के अनुसार, विभिन्न बिमारियों के कारण कम से कम 842 किसानों ने आत्महत्या की है, जबकि 330 किसानों ने ड्रग्स और शराब के कारण आत्महत्या की है।

दिवालियापन के कारण होने वाले आत्महत्या के मामले दोगुने से ज्यादा हुए हैं। वर्ष 2014 में दिवालियपन के कारण होने वाले आत्महत्या के 1,163 मामले दर्ज हुए हैं जबकि वर्ष 2015 में ये आंकड़े बढ़ कर 3,097 हो गए। फसल में नुकसान के बाद आत्महत्या के मामले में 60 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस मामले में आंकड़े 969 से बढ़ कर 1,562 हुए हैं।

29 राज्यों में से केवल चार राज्यों (1,293 साथ महाराष्ट्र, 946 के साथ कर्नाटक, 632 के साथ तेलंगाना और 154 के साथ आंध्र प्रदेश) ने कर्ज के कारण 100 से ज्यादा किसानों के आत्महत्या करने की सूचना दी है।

12,602 किसान और मजदूर, जिन्होंने आत्महत्या की है उनमें से 92 फीसदी यानी 11,584 पुरुष थे, जबकि 1,018 महिलाएं थीं।

महिला किसानों द्वारा आत्महत्या करने का दूसरा प्रमुख कारण "परिवारिक समस्याएं" रही हैं। पारिवारिक समस्याओं के कारण होने वाली आत्महत्याओं की हिस्सेदारी 18 फीसदी रही है। खेतिहर मजदूरों द्वारा 896 या 20 फीसदी और किसानों द्वारा 899 यानी 11 फीसदी आत्महत्याएं 'अन्य कारणों' से हुई हैं।

(वाघमारे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 02 जनवरी 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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