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भारत में, दस्त को रोकने में प्रगति और चिकित्सा उपचार के प्रसार के बावजूद, पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का दूसरा प्रमुख कारण अब भी दस्त ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा मई 2017 की एक फैक्टशीट के मुताबिक, वर्ष 2015 में, दस्त से करीब दर दिन 321 बच्चों की मौत हुई है।

साफ-सफाई और सुरक्षित पीने के पानी के माध्यम से आसानी से रोके जा सकने वाले रोग दस्त के न रूक पाने की वजह से साफ है कि भारत अभी भी अपने नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए संघर्ष कर रहा है।

डब्ल्यूएचओ फैक्टशीट के मुताबिक जीवाणु, वायरल और ज्यादातर मल-दूषित पानी से फैलने वाले परजीवी संक्रमणों के कारण होने वाले इस रोग से दुनिया भर में साल 2015 में 525,000 बच्चों की मौत हुई है।

दस्त का परिणाम निर्जलीकरण के रुप में होता है, जिससे जान को भी खतरा हो सकता है। दस्‍त रोग से बार-बार प्रभावित होने वाले बच्‍चे कुपोषित हो जाते हैं जिससे उनका शारीरिक विकास धीमा हो जाता है। सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, 132 देशों में से, स्टंटिंग के संदर्भ में भारत 114वें स्थान पर है और यह कुपोषण का संकेत है। हम बता दें कि स्टंट का अर्थ उम्र के अनुसार कम कद होना है।

बार-बार दस्त की घटनाओं से बच्चों की वृद्धि और क्षमता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है और यह गरीबी के चक्र में भी योगदान करता है, जैसा कि भारत में स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर काम कर रही गैर-लाभकारी संस्था ‘पाथ’ के प्रोग्राम हेड नीरज जैन ने इंडियास्पेंड को ई-मेल के माध्यम से बताया है।

दस्त के कारण होने वाले बच्चों की मौत की संख्या में गिरावट

Source: Global Health Observatory Data

दस्त से मौत एक कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली का संकेत

डब्ल्यूएचओ फैक्टशीट के अनुसार, दस्त का इलाज साधारण ओरल रिहाइड्रेशन साल्ट (ओआरएस) और जिंक गोलियों के साथ किया जा सकता है। ‘ओआरएस ’ स्वच्छ पानी, नमक और चीनी का मिश्रण है, जो कि छोटी आंत में अवशोषित हो जाता है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक जिंक की खुराक से दस्त की घटनाओं में 25 फीसदी गिरावट और स्टूल मात्रा में 30 फीसदी की कमी होने की संभावना होती है।

‘पाथ’ के प्रग्राम लीडर, नीरज जैन कहते हैं, “एक अन्य हस्तक्षेप जरूरी है। ‘साबुन से हाथ धोना’ एक शक्तिशाली, सरल और सस्ता उपाय है जो दस्त का जोखिम लगभग आधा कम कर सकता है। और देखभाल करने वालों और बच्चों को यह बताया जाना चाहिए कि अपने हाथों को कब और कैसे धो कर साफ रखें? ”

दस्त का उपचार आसानी से किया जा सकता है, लेकिन सर्वेक्षण से दो सप्ताह पहले तक 2015-16 में केवल आधे भारतीय बच्चों ने ‘ओआरएस’ प्राप्त किया था। यह निश्चित रुप से भारत की बदतर स्वास्थ्य प्रणाली का संकेत है।

वर्ष 2015 में, म्यांमार में पांच साल से कम उम्र के 3,573 बच्चों की मौत दस्त के कारण हुई है। यह आंकड़े पांच साल से कम कुल बच्चों की मौत का 7 फीसदी है। जबकि केन्या में 5,442 बच्चों ( 7 फीसदी ) और पाकिस्तान में 39,484 ( 9 फीसदी ) की मौत दस्त से हुई है। भारत की तुलना में इन तीनों देशों की प्रति व्यक्ति आय कम है। दस्त से पंजीकृत मौतों पर भारत सरकार के आंकड़ों के आधार पर यूनिसेफ के अनुसार भारत में, पांच वर्ष से कम उम्र के 117,285 बच्चों ( 10 फीसदी ) की मौत दस्त के कारण हुई है।

तुलनात्मक जीडीपी प्रति व्यक्ति के साथ, अन्य देशों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में दस्त के मामले

Source: UNICEF, World Bank

आज अधिक बच्चों को ओआरएस प्राप्त, दस्त से मृत्यु की घटनाएं कम

फिर भी, भारत ने पांच साल से कम उम्र के बच्चों की दस्त से होने वाली मौत की घटनाओं को रोकने में सफलता पाई है। ये आंकड़े वर्ष 2010 में 167,000 थे। वर्ष 2015 में करीब 117,000 हुए हैं।

इस प्रगति का मुख्य कारण अब अधिक बच्चों को ओआरएस घोल प्राप्त होना है। यह वर्ष 2005 में शुरु किए गए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अंतर्गत मुफ्त में प्रदान किया जाता है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 (एनएफएचएस -4) के अनुसार, वर्ष 2015-2016 में, दस्त वाले भारतीय बच्चों में से 2 में से 01को (50.6 फीसदी) ओआरएस प्राप्त हुआ है। वर्ष 2005-2006 की तुलना में यह आंकड़े 24.6 प्रतिशत अंक ज्यादा हैं। वर्ष 2005-06 में, 4 में से 1 बच्चे ( 26 फीसदी ) को ओआरएस प्राप्त हुआ है।

वर्ष 2015-16 में दस्त के साथ लगभग 20 फीसदी बच्चों को जिंक प्राप्त हुए हैं। जिंक इस्तेमाल पर वर्ष 2005-06 के लिए आंकड़े अनुपलब्ध है। वर्ष 2015-2016 में इलाज के लिए लगभग 68 फीसदी दस्त वाले बच्चों को स्वास्थ्य सुविधा केंद्र ले जाया गया है। वर्ष 2005-06 में ये आंकड़े 61.5 फीसदी थे।

‘ओआरएस’ का इस्तेमाल अभी भी सार्वभौमिक नहीं है, क्योंकि अब भी कई परिवारों को इस संबंध में जानकारी कम है। ‘पाथ’ संस्था के जैन कहते हैं कि इसके पीछे का एक कारण डॉक्टरों द्वारा अक्सर दस्त के बच्चों के इलाज के दौरान एंटीबायोटिक्स का चुनाव करना भी है। जैन आगे कहते हैं, “डॉक्टरों द्वारा इलाज के दौरान ओआरएस और जिंक पर विश्वास मजबूत किया जाना चाहिए.... ओआरएस के लाभ के बारे में देखभालकर्ता को भी सूचित किया जाना चाहिए। ”

नीरज जैन ने ‘रोटावायरस’ के लिए टीके की सिफारिश की है। ‘रोटावायरस’ छोटे बच्चों में गंभीर दस्त का प्रमुख कारण है। टीकाकरण से इसे रोका जा सकता है। नीरज जैन के अनुसार रोटावायरस के कारण होने वाले दस्त को जरूरी ध्यान देने की आवश्यकता होती है, जो अक्सर जरूरतमंद लोगों के लिए अनुपलब्ध रहता है।

सरकार के अनुसार, एनआईएम ने एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम के माध्यम से दस्तों के प्रकोप का पता लगाने के लिए निगरानी गतिविधियों की भी शुरूआत की, जिसके तहत 675 जिलों में जिला निगरानी इकाइयों की स्थापना की गई है।

एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार, दस्त की घटनाओं का दर और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच

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Source: National Family Health Survey-4; National Family Health Survey-3

Note: *Data not available

राज्यों में अब भी स्वच्छता सुविधाओं की कमी

डब्लूएचओ फैक्टशीट के अनुसार, बेहतर स्वच्छता ही दस्त को रोकने का महत्वपूर्ण उपाय है। वर्ष 2016 में, देश भर में आधे से अधिक घरों (51.6 फीसदी) ने बेहतर स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग नहीं किया है, जैसा कि इंडियास्पेंड के इस रिपोर्ट में बताया गया है।

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी वेबसाइट के मुताबिक, वर्ष 2017-18 के 3.5 मिलियन के लक्ष्य के मुकाबले शहरी इलाकों में 3.1 मिलियन (88 फीसदी) घरेलू शौचालय बनाए गए हैं।

इसके अलावा, 204,000 के लक्ष्य की तुलना में 115,786 (56 फीसदी) समुदायिक शौचालय बनाए गए हैं। फिर भी, शहरी क्षेत्रों में केवल 36.8 फीसदी वार्डों ने समुदाय और सार्वजनिक शौचालय के लिए एक उचित तरल अपशिष्ट निपटान प्रणाली सूचना दी है, जैसा कि 2016 स्वच्छता की स्थिति की रिपोर्ट के आधार पर इंडियास्पेंड ने मई, 2017 में विस्तार से बताया है।

जैन कहते हैं, "इसके बिना (मल-सामग्री के उचित निपटान) स्वच्छता की कमी से संबंधित, दस्त जैसी कई अन्य बीमारियों को रोकना संभव नहीं।"

वर्ष 2015-2016 में, झारखंड, बिहार, ओडिशा जैसे राज्य, जहां केवल क्रमश: 24 फीसदी, 25 फीसदी और 29 फीसदी घरों में बेहतर स्वच्छता सुविधाओं का इस्तेमाल किया गया है, दस्त से पीड़ित पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का उच्च अनुपात पाया गया है। एनएफएचएस-4 के आंकड़ों के अनुसार, इन तीन राज्यों में पांच वर्ष से कम आयु के दस्त पीड़ित बच्चों के लिए आंकड़े क्रमश: 7 फीसदी, 10 फीसदी और 10 फीसदी रहे हैं।

बेहतर स्वच्छता सुविधाओं का अर्थ पाइप या फ्लश मल-जल निकास व्यवस्था, सेप्टिक टैंक में फ्लश, एक हवादार सुधारित पिट या बायोगैस शौचालय, स्लैब के साथ एक गड्ढा शौचालय का इस्तेमाल करना है।

सुधारित स्वच्छता सुविधाओं का इस्तेमाल करने वाले परिवारों का दर

Source: National Family Health Survey-4

NOTE: *In the last 2 weeks preceding the survey

(इब्राहीम और मार्बियनग विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 29 जुलाई 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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