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कम आय वाले घरों में बैंक खाते के उपयोग के सर्वेक्षण के दौरान उत्तर प्रदेश के लखनऊ के पास ऋण संग्रह के लिए एक बैठक में भाग लेती महिलाओं की ली गई तस्वीर। ग्रामीण फाउंडेशन इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रभात लाभ के अनुसार, “बैंकिंग के लिए व्यक्तिगत प्राथमिकताओं तक सीमित होने की बजाय, वित्तीय समावेशन और इससे होने वाले लाभ को अनौपचारिक क्षेत्रों में सभी लोगों तक पहुंचाने की आवश्यकता है।”

वॉशिंगटन-डीसी के ‘माइक्रोफाइनांस नॉन प्रॉफिट ग्रामीण फाउंडेशन’ की देश शाखा ग्रामीण फाउंडेशन इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, प्रभात लाभ की सलाह है कि वित्तीय समावेशन को व्यक्तिगत ग्राहकों की बजाय संपूर्ण अनौपचारिक क्षेत्र में ले जाने की जरूरत है।

ग्रामीण उत्तर प्रदेश और शहरी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में मई और नवंबर, 2016 के बीच, गुजरात के ‘इन्स्टटूट ऑफ रुरल मैनेजमेंट’ द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार कम आय वाले परिवारों के लिए बैंक खाते की इच्छा उनके पेशे से कम मायने रखता है क्योंकि औपचारिक बैंकिंग में भाग लेने का फैसला करते समय नकदी की आवश्यकता होती है।

उत्तर प्रदेश में गरीबों की संख्या सबसे ज्यादा है। साथ-साथ ही प्रधान मंत्री जन धन योजना के तहत खोले गए बैंक खातों की संख्या भी सबसे ज्यादा है। यहां शून्य बैलेंस खाते की शुरुआत अगस्त, 2014 में की गई थी, जिससे अधिक लोगों को आकर्षित किया जा सके। 27 सितंबर, 2017 तक राज्य की कुल पीएमजेडीवाई (प्रधान मंत्री जन धन योजना) खातों की संख्या 4.719 करोड़ या 15.6 फीसदी थी।

12 सितंबर, 2017 को ग्रामीण फाउंडेशन इंडिया द्वारा प्रकाशित सर्वेक्षण के मुताबिक, "बैंक खाते के उपयोग की गुणवत्ता को मजबूत करने के लिए कम आय वाले परिवारों के दृष्टिकोण से मांग को शामिल करने की आवश्यकता है। "

"जब बैंकिंग की बात आती है तो इसके लिए दो विकल्पों पर नज़र डालना जरूरी है । जिसका सामना हर कम आय वाले घर को करना पड़ता है। क्यों और कब एक बैंक खाता खोलना है, और एक खाता खोलने के बाद इसे कब और कैसे उपयोग करना सबसे अच्छा है। "

यह सर्वेक्षण जे. पी. मॉर्गन द्वारा वित्त पोषित था, जो न्यूयॉर्क स्थित दुनिया की शीर्ष वित्तीय सेवा कंपनियों में से एक है।

44 वर्षीय विकास विषेषज्ञ प्रभात लाभ को एशिया, अफ्रीका और उत्तरी अमरीका में काम करने का अनुभव दो दशकों से ज्यादा का है। वह भोपाल के भारतीय वन प्रबंधन संस्थान से स्नातक है। खाली समय में उन्हें कैंपों में जाना पसंद है। उन्हें वॉलीबॉल और बैडमिंटन खेलने में भी दिलचस्पी है।

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प्रभात लाभ, मुख्य कार्यकारी, ग्रामीण फाउंडेशन इंडिया

इंडियास्पेंड साथ एक ईमेल साक्षात्कार में प्रभात लाभ ने भारत की पारिस्थितिकी तंत्र के स्तर पर डिजिटल वित्तीय समावेश के बारे में सोचने की जरूरत पर चर्चा की। पेश हैं बातचीत के कुछ अंशः

ग्रामीण उत्तर प्रदेश और शहरी एनसीआर में कम आय वाले घरों द्वारा बैंक खाते के उपयोग पर किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि लोगों के लिए नकदी, बैंक खाते से ज्यादा मायने रखती है। क्या इसका मतलब यह है कि ऐसे घरों में नकदी की ज्यादा अहमियत है और राज्य की ओर से जोर डाले बिना वे डिजिटल तंत्र पर स्विच नहीं करेंगे?

इन परिवारों ने अपने लिए जो वरीयता दिखाई है, वह उनके व्यवसाय, आजीविका और वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़ी हुई हैं, जिसमें वे काम करते हैं। एक लघु उद्यमी के लिए, जिसे आपूर्तिकर्ताओं, श्रमिकों और विक्रेताओं को नकदी में भुगतान करना पड़ता है, उनके लिए डिजिटल चैनलों में अपने प्रवाह को बदलना असुविधाजनक है और यह अतिरिक्त लागत की मांग करता है। डिजिटल चैनल में बदलाव पारिस्थितिकी तंत्र के स्तर पर होना चाहिए, न कि केवल बैंक खाते वाले व्यक्तियों के लिए।

सर्वेक्षण से पता चलता है कि व्यावसायिक प्रोफाइल खाते के उपयोग की तुलना में बैंकिंग के लिए प्राथमिकता का एक बड़ा निर्धारक है। उदाहरण के लिए, नमूने में बेरोजगारों की तुलना में कृषि श्रमिकों की 46 फीसदी ज्यादा बैंक खाते का उपयोग करने की संभावना रखते हैं, जबकि गैर-कृषि आकस्मिक श्रमिकों में बैंक खाते चुनने की संभावना 11.5 फीसदी कम थी। एक ग्रामीण रोजगार योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईएजी) के तहत पीएमजेडीवाई अकाउंट का उपयोग करने की 75 फीसदी अधिक संभावना थी। क्या हम लोगों को आर्थिक समावेशन से पहले वित्तीय समावेशन के लिए मजबूर कर रहे हैं?

वित्तीय समावेशन आर्थिक अवसरों तक पहुंचने और इसके परिणामों को साकार करने के लिए मार्ग है, जो कि एक व्यक्ति / परिवार / समुदाय का सुधार किया हुआ आर्थिक स्वास्थ है। दोनों को अग्रानुक्रम में काम करना है और इसे अलग से नहीं देखा जाना चाहिए।

इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण मनरेगा के लाभार्थियों का डेटा है, जो अपने खातों का उपयोग कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें प्रदान किए गए 'आर्थिक अवसर' औपचारिक बैंक खाते (पीएमजेडीवाई) के माध्यम से वित्त प्रबंधन करने के लिए जोर दे रहे हैं। इस तरह उन्हें औपचारिक वित्तीय सेवाओं में शामिल किया जा रहा है। वित्तीय समावेश को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों, कृषि और संबद्ध सेवाओं सहित सभी अनौपचारिक क्षेत्र के सभी प्रकार की सेवाओं को लक्षित करने के लिए व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

आपके सर्वेक्षण से पता चलता है कि महिलाओं को बैंक खाते पुरुषों से ज्यादा पसंद आते हैं। दूसरी ओर, आपके नमूने में महिलाओं के नाम पर खोले गए खाते के निष्क्रिय होने की संभावना अधिक थी। आप इसे किस तरह देखते हैं?

हमारी रिपोर्ट मौजूदा वास्तविकताओं के साथ-साथ पूरी नहीं हो पाई जरूरतों और वरीयताओं पर भी बात करती है, जो भविष्य के लिए एक डिजाइन और वित्तीय सेवाओं के वितरण के लिए संकेत हो सकती हैं। आज की तारीख में महिलाओं द्वारा आयोजित खाते में गतिविधि का निम्न स्तर एक वास्तविकता है। हालांकि, औपचारिक स्रोतों के माध्यम से बैंक के लिए उनकी आकांक्षा और प्राथमिकताएं एक ऐसी अंतर्दृष्टि है, जिस पर हम उम्मीद करते हैं कि प्रासंगिक हितधारकों द्वारा बाजार के हिसाब से उपयोग हो। हालांकि जैसे ही चेंज एजेंटों को घरेलू स्तर पर सकारात्मक परिणामों का एहसास होता है, महिलाएं अधिक प्रभावी हो जाती हैं । हम, देश के विभिन्न हिस्सों में पायलट को डिजाइन करने के लिए निश्चित रूप से इस अंतर्दृष्टि का उपयोग कर रहे हैं।

महिलाओं द्वारा कम खाता उपयोग की बात की जाए तो इस समस्या को अधिक गहराई में देखना चाहिए। सर्वेक्षण किए गए केवल 7 फीसदी घरों में महिलाएं प्राथमिक कमाई वाली सदस्य थीं। श्रम-बल में उनकी हिस्सेदारी कम है और इसलिए उनके परिवार के वित्तीय प्रबंधन पर नियंत्रण सीमित है। यहां तक ​​कि एक प्राथमिक उद्देश्य के रूप में बचत के साथ बैंक को प्राथमिकता देने के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं हैं।

आपके सर्वेक्षण से पता चलता है कि खाते के कम-उपयोग होने की संभावना 28 फीसदी है और खाते में बैलेंस शेष न होने की 80 फीसदी संभावना है। इसका मतलब यह है कि व्यापार मॉडल विफल हो गया है?

इसके विपरीत, यह अध्ययन वास्तव में व्यापार के लिए एक दिशा देता है। यह सर्वेक्षण उत्तरदाताओं के घरों और बैंकिंग संरचनाओं के बीच की दूरी के संबंध में उनकी धारणाओं को मापने के लिए डिज़ाइन किया गया था। विचार बैंकों से लोगों के मनोवैज्ञानिक दूरी को जो कि उत्तरदाता पीएसयू / निजी / ग्रामीण बैंकों के संबंध में अनुभव करते हैं।

हमने वास्तव में इन दूरी को मैप नहीं किया है, लेकिन इस धारणा की खुद में बताने के लिए कहानी है। बैंकिंग अनुभव के आसपास एकत्र डाटा, जो खराब ग्राहक सेवा, थकाऊ प्रलेखन और जटिल प्रक्रियाओं को दर्शाती है, कुछ ऐसे कारण हैं जो कम आय वाले क्षेत्रों में बैंकिंग रोकते हैं। यह पहुंच अब भी एक बड़ी चुनौती है जो शारीरिक दूरी के कारण नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक असंबंधन के कारण भी है।

इस प्रकार की दूरी को भरने और औपचारिक बैंकिंग में अधिक से अधिक शामिल करने के लिए एजेंट नेटवर्क एक शक्तिशाली उपकरण हैं। हमारा मानना ​​है कि उच्च गुणवत्ता वाला एजेंट नेटवर्क बनाने में निवेश की जरूरत है, जो सेवा की गुणवत्ता पर ध्यान दे और और ग्राहक के अनुभवों पर अच्छा असर छोड़े । जैसे कि कोई एक बैंक की शाखा से अपेक्षा कर सकता है कि वह घर के करीब हो।

यह भरोसे का कारोबार है। कोई ग्राहक बैंक का इस्तेमाल करे, इसके लिए उसके दिल में बैंक पर भरोसा होना चाहिए। पेरेंट बैंकों को ग्राहकों के अनुभव को सुखद बनाने और विश्वास को बनाए रखने के लिए एजेंट के प्रशिक्षण पर उचित ध्यान,सुसंगत और पूर्वानुमानित प्रक्रिया प्रबंधन, ब्रांडिंग आदि में निवेश करना चाहिए।

ग्रामीण लर्निंग प्लेटफॉर्म (जीलीप) जिसे हमने फ्रंटलाइन श्रमिकों के प्रशिक्षण के लिए विकसित किया है, एक शक्तिशाली और कम लागत वाला उपकरण हो सकता है, जिसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर बैंककर्मियों और ग्राहकों के बीच के सह-संबंध को मजबूत करने में किया जा सकता है। इससे ग्राहकों के अनुभव में सुधार हो सकता है और विश्वास को मजबूत किया जा सकता है।

प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) का उद्देश्य कम आय वाले घरों में बैंक खाते के उपयोग में वृद्धि करना था। आपके नमूने में 50 फीसदी ग्रामीण परिवार और 75 फीसदी शहरी परिवारों के लिए ग्रामीण (972 प्रति व्यक्ति प्रति व्यक्ति) और शहरी (प्रति व्यक्ति प्रति माह 1,407 रुपये) के लिए गरीबी रेखा से नीचे के साथ कम आय वाले परिवारों का वर्चस्व है, जैसा कि 2014 में भारत के केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व राज्यपाल सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा परिभाषित किया गया है – 35 फीसदी पिछले तीन महीनों में और पिछले छह महीनों में 21 फीसदी ने अपने खातों को संचालित नहीं किया था। डीबीटी और बैंक खातों के बीच लापता संबंध क्या है?

डीबीटी कम आय वाले परिवारों के लगातार अपने बैंक खाते से जुड़ने के लिए मजबूत प्रोत्साहन के रूप में कार्य करते हैं। उपयोग किए जाने वाले डीबीटी के सबसे लोकप्रिय रूप में से एक, मनरेगा के माध्यम से है। जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है, किसी क्षेत्र में इस योजना से औपचारिक बैंकिंग के साथ लोगों की भागीदारी करने की संभावना 32 फीसदी की वृद्धि हुई है।

इसके अलावा, मनरेगा के तहत काम करने वाले श्रमिकों की पीएमजेडीवाई के तहत खाता चुनने की 75 फीसदी ज्यादा संभावना है। भुगतान प्राप्त करने के लिए इस तरह के खाते का उपयोग करने के बाद, उसी कर्मचारी की बचत खाते के लिए विकल्प चुनने की अपेक्षा 39 फीसदी अधिक थी।

यह नियमित लेनदेन से परे बैंक खातों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए इस डीबीटी उपकरण द्वारा निभाई गई भूमिका के चलते प्राथमिकताओं में एक स्पष्ट बदलाव है। इस उदाहरण में, डीबीटी ने आजीविका और कम आय वाले क्षेत्रों की लेन-देन संबंधी आवश्यकताओं को एक साथ बांधा है, जिससे व्यवहार में बदलाव देखे गए। बस डीबीटी तक पहुंचने से निरंतर बैंक खाता उपयोग सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। इन खातों को बेहतर वित्तीय प्रबंधन से ही संभाला जा सकता है।

हालांकि, बैंक खाता उपयोग में लिंग अंतर ग्रामीण ( 72 फीसदी पुरुष और 62 फीसदी महिलाएं ) और शहरी ( 61 फीसदी पुरुष और 52 फीसदी महिलाएं) में समान है। लेकिन पुरुषों और महिलाओं दोनों में देखा जाए तो ग्रामीण आगे हैं। क्यों?

एक कारण निश्चित रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा की पहुंच है, जिस कारण बैंक खातों का अधिक से अधिक उपयोग हुआ है। ग्रामीण इलाकों में, उर्वरक भुगतान जैसे अन्य पात्रता कार्यक्रम हैं, जिन्हें डीबीटी के तहत तेजी से लाया जा रहा है। पिछले कुछ दशकों से कृषि ऋण पर जोर का यह भी मतलब है कि खेती में शामिल लोग बैंक से रिश्तों पर निर्भर हैं।

शहरी इलाकों में समस्या यह है कि बड़ी प्रवासी जनसंख्या के कारण, जिनमें से कुछ मौसमी प्रवास भी है, शहरी गरीब बहुत अधिक संख्या में अधिकार और लाभ कार्यक्रमों से बाहर रह जाते हैं। जब कोई झोपड़पट्टी और निर्माण स्थलों के आसपास या अतिक्रमण / अनधिकृत कॉलोनियों में रहती है, तो भी उन पर अधिकारों को प्राप्त करने की क्षमता और बैंक खाते का उपयोग करने की प्रवृत्ति पर एक प्रभावशाली प्रभाव पड़ सकता है। इस नतीजे को इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि उस समय ये डेटा एकत्र किए गए थे, जब पीएमजेडीवाई कैंपों के माध्यम से बैंक खाते में ग्रामीण आबादी का ध्यान केंद्रित करने के लिए कुछ प्रयास किए जा रहे थे।

नवीनता कारक के कारण, ग्रामीण इलाकों में बैंक खातों के उपयोग की सीमांत उपयोगिता अधिक थी। इस बिंदु को पुष्ट करने के लिए आगे अध्ययन और अनुसंधान की आवश्यकता है।

(विवेक विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह साक्षात्कार मूलत: अंग्रेजी में 15 अक्टूबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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