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एक नए वैश्विक अध्ययन में पाया गया है कि दुनिया भर में पिछले चार दशकों में 05 से 19 साल के बच्चों के बीच में मोटापे में दस गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 1975 से 2016 तक के आंकड़ों पर किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि यदि मौजूदा रुझान जारी रहेंगे तो वर्ष 2022 तक कम वजन वाले बच्चों की तुलना में अधिक बच्चे मोटापे से ग्रसित होंगे।

फिर भी, भारत दुनिया के कुछ हिस्सों में से एक है, जिसमें कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक है। अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2016 में 97 मिलियन बच्चे मध्यम से गंभीर रूप से कम वजन वाले थे। इस श्रेणी में, दुनिया के किसी भी हिस्से की तुलना में यहां की संख्या सबसे ज्यादा है।

29 देशों में कम वजन वाले बच्चों की संख्या 1 फीसदी से कम है, लेकिन यह दक्षिण एशिया में उच्च और भारत में सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2016 में भारत में पांच लड़कियों में से एक (22.7 फीसदी) और तीन लड़कों में से एक (30.7 फीसदी) लड़का कम वजन के मध्यम से गंभीर श्रेणी के भीतर है।

कुपोषित बच्चों की बड़ी आबादी वाले अन्य देश नाइजर, सेनेगल, बांग्लादेश, म्यांमार और कंबोडिया ऐसे राष्ट्र हैं जो आर्थिक रूप से भारत की तुलना में कमजोर हैं।

मेडिकल जर्नल लैनसेट में प्रकाशित अध्ययन का नेतृत्व लंदन के ‘इंपीरियल कॉलेज’ और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने किया था। इसने 05 वर्ष की आयु से ऊपर के 130 मिलियन से अधिक बच्चों के बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का विश्लेषण किया है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान तीन रैंक नीचे गिरा है और अब 119 देशों में 100वें स्थान पर है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी अपनी रिपोर्ट में बताया है। सूचकांक में कहा गया है कि भारत में बच्चों में सबसे ज्यादा वेस्टेड (21 फीसदी) घटनाओं में से एक है।

भारत में, केवल 10 में से 1 बच्चा अच्छी तरह पोषित हैं

48.2 मिलियन के आंकड़ों के साथ ( कोलम्बिया की जनसंख्या के बराबर ) विश्व में भारत में स्टंड बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस संबध में इंडियास्पेंड ने जून, 2017 में अपनी विशेष रिपोर्ट में बताया है। केवल 10 बच्चों में से एक को पर्याप्त पोषण मिलता है, यह हमने मई 2017 की रिपोर्ट में बताया था।

एक गैर-लाभकारी संस्था ‘सेव द चिल्ड्रेन’ के सीनियर टेकनिक्ल एडवाइजर राजेश खन्ना ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा कि, “भारत के प्रभावी नीति में नहीं बल्कि इसके कार्यान्वयन में कमी है। ”

उन्होंने कहा कि महिलाओं और बाल विकास और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण जैसे सरकारी विभाग एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) संचालित करते हैं, और यह सुनिश्चित करने के लिए कोई राजनीतिक इच्छा भी नहीं है। लोगों के काम न करने का कारण जानने के लिए नीतियों की कोई निगरानी नहीं है।"

‘इंटरनेशनल फूड पॉलीसी रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के वरिष्ठ शोध कर्मी पूर्णिमा मेनन ने बताया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम, मातृ एवं बाल स्वास्थ्य और आईसीडीएस पर काम करती है ) की पहुंच अधिक हो सकती है। इंडियास्पेंड के साथ बात करते हुए उन्होंने बताया कि "यहां तक ​​कि जन्म के समय की देखभाल की तरह के मामले का भी, जो पोषण हस्तक्षेप को एकीकृत करने के लिए बड़ा प्लेटफॉर्म है, उनका कवरेज उतना नहीं है जितना होना चाहिए।

मेनन कहती हैं, यदि इन कार्यक्रमों को लागू किया जाता है तो कुपोषण को और अधिक प्रभावी ढंग से और तेजी से हल किया जा सकता है, क्योंकि समस्या ( लिंग मानदंड, बहिष्कार और गरीबी ) के समाहित सामाजिक-आर्थिक कारकों को संबोधित करते हुए अधिक ठोस प्रयासों की आवश्यकता होगी।

2016 में 6 फीसदी लड़कियां, 8 फीसदी लड़के मोटापे से ग्रस्त

वर्ष 1975 में, विश्व के केवल 1 फसदी बच्चे ( 5 मिलियन लड़कियां और 6 मिलियन लड़के ) मोटापे से ग्रस्त थे। वर्ष 2016 तक, यह संख्या 50 मिलियन से अधिक लड़कियों और 74 मिलियन लड़कों तक पहुंच गई, जैसा कि अध्ययन में बताया गया है। यह 05-19 वर्ष की श्रेणी में 6 फीसदी लड़कियां और 8 फीसदी लड़कों को चिन्हित करता है।

इसका मतलब यह है कि 2016 में मोटापे से ग्रस्त बच्चों की संख्या 1975 से 11 मिलियन से बढ़कर 124 मिलियन हो गई है। दुनिया में 213 मिलियन अधिक वजन वाले बच्चे हैं जो मोटापे श्रेणी से नीचे हैं।

भारत और विश्व में मोटापे से ग्रस्त और कम वजन वाले बच्चे

वैश्विक स्तर पर

  • 6 फीसदी लड़कियां और 8 फीसदी लड़के मोटापे से ग्रस्त
  • 8.4 फीसदी लड़कियां और 12.4 फीसदी कम वजन वाले लड़के मध्यम से गंभीर श्रेणी में

भारत में

  • 2 फीसदी से कम लड़कियां और 1 फीसदी से कम लड़के मोटापे से ग्रस्त
  • 22.7 फीसदी लड़कियां और 30.7 फीसदी कम वजन वाले लड़के मध्यम से गंभीर श्रेणी में

भारत में बच्चों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। 2015 में यह संख्या 14.4 मिलियन थी। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडीसिन में 2017 के अध्ययन के अनुसार, यह आंकड़े केवल चीन (15.3 मिलियन) से कम हैं। डब्ल्यूएचओ के एक बयान में इंपीरियल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रमुख लेखक मजीद इजीती ने कहा है कि उच्च आय वाले देशों में मोटापा दर स्थिर हुआ है और निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह बढ़ रहे हैं।

इजीती कहती हैं, “ये चिंताजनक रुझान दुनिया भर में खाद्य विपणन और नीतियों के प्रभाव को दर्शाते हैं, गरीब परिवारों और समुदायों के लिए स्वस्थ पौष्टिक खाद्य पदार्थ बहुत महंगा हैं। यह प्रवृत्ति बच्चों और किशोरावस्था की एक पीढ़ी की मोटापा बढ़ रही है और मधुमेह जैसी बीमारियों का अधिक खतरा बढ़ रहा है। हमें अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों से बच्चों की सुरक्षा के लिए घर और स्कूल में स्वस्थ, पौष्टिक भोजन,विशेष रूप से गरीब परिवारों और समुदायों, और नियमों और करों में उपलब्ध बनाने की ज़रूरत है। ”

भारत में कम वजन से मोटापे की ओर तेजी से संक्रमण खतरनाक

रिपोर्ट कहती है कि, भारत में, 2016 में 5 से 19 वर्ष के आयु वर्ग के बीच मोटापे का प्रसार 2 फीसदी से भी कम था। हालांकि, भारतीय बच्चों में उम्र बढ़ने के साथ वजन बढ़ता है। और विशेषज्ञों के अनुसार, 8 से 14 फीसदी भारतीय किशोरावस्था में मोटे होते हैं।

एक रिसर्च इंस्टीट्यूट ‘ द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया’ के कार्यकारी निदेशक विवेकानंद झा ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि, “शुरुआती ज़िंदगी में अल्प-पोषण के साथ बाद में मोटापे संक्रमण विशेष रूप से घातक है। इससे ​​वयस्कता के दौरान गैर-संचारी रोग विकसित होने का खतरा है। हस्तक्षेप मातृ एवं बचपन के पोषण में सुधार लाने और किशोरों में अधिक वजन या मोटापे का कारण बनने वाले जोखिम कारकों पर ध्यान केंद्रित करने पर केंद्रित होना चाहिए।"

भारतीय वयस्कों में, मोटापे एक स्पष्ट रूप से बढ़ती प्रवृत्ति है। 2005 में, 15-49 वर्ष आयु वर्ग में 12.6 फीसदी महिलाएं और 9.3 फीसदी पुरुषों का वजन अधिक था। 2015 तक, यह 20.7 फीसदी और 18.6 फीसदी हुआ है। यानी महिलाओं के लिए 8.1 प्रतिशत अंकों की और पुरुषों के लिए 9.3 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है।

अध्ययन के लेखक कहते हैं, कम वजन से अधिक वजन और फिर मोटापे का संक्रमण तेजी से हो सकता है, जो एक अस्वस्थ संक्रमण है और जो देश की स्वास्थ्य प्रणाली और स्थिति से निपटने की अपनी क्षमता को प्रभावित कर सकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि, “मोटे तौर पर, एक अस्वास्थ्यकर पोषण संक्रमण में, बद्तर पोषक तत्व, ऊर्जा-घने खाद्य पदार्थ में वृद्धि बच्चों, किशोरावस्था और वयस्कों में वजन बढ़ने के साथ सीढ़ीदार वृद्धि हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप बीएमआई के उच्च स्तर और जीवनशैली में बदतर स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं।”

लेखकों ने सुझाव दिया है कि उनमें दोनों का मुकाबला करने के लिए, कम पोषण और मोटापा दोनों को एकीकृत करने के तरीके को व्यापक रुप में देखा जाना चाहिए।

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 13 अक्टूबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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