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हालांकि, पहले की तुलना में उच्च शिक्षा के नामांकन में अब तक युवा महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है – और स्पष्ट रुप से, पुरुषों की तुलनाम 10 वीं बोर्ड की परीक्षा पास करने में अधिक सफल हैं – लेकिन या तो उनकी शादी कम उम्र में हो रही है या फिर वे रोज़गार की तलाश नहीं कर रहीं या उन्हें रोज़गार नहीं मिल रहा है। यह जानकारी विभिन्न आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा की गई विश्लेषण में सामने आई है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा 2015 में किए गए अध्ययन के अनुसार, उच्च शिक्षा में लड़कियों का नामांकन 2007 में 39 फीसदी से बढ़ कर 2014 में 46 फीसदी हुआ है लेकिन भारत के श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी 1999 में 34 फीसदी से गिर कर 2014 में 27 फीसदी हुआ है।

करीब 1.2 करोड़ महिलाओं ने स्नातक पाठ्यक्रम में दाखिला लिया है लेकिन इनमें से कुछ ही व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए पढ़ाई रखती हैं; 2013 में, नवीनतम वर्ष जिसके लिए आंकड़े उपलब्ध हैं, 600,000 महिलाओं ने डिप्लोमा पाठ्यक्रम में नामांकन लिया है। यहां तक ​​कि कुछ ही महिलाएं पीएचडी में नामांकन कराती हैं; केवल 40 फीसदी पीएचडी छात्र महिलाएं हैं।

2016 में, जैसा कि हमने कहा, लड़कों की तुलना में, राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड की 10 वीं की परीक्षा पास करने में, लड़कियां अधिक सफल रही हैं, एक प्रवृति जो पिछले सात वर्षों से चल रही है।

सीबीएसई के आंकड़ों के अनुसार, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की 10 वीं की परीक्षा में 428443 लड़कियों ने हिस्सा लिया जिसमें से 379,523 लड़कियां सफल रही हैं यानि कि पास प्रतिशतता 88.5 फीसदी रही है। यदि तुलनात्मक रुप से देखा जाए तो 564213 लड़कों ने परीक्षा में हिस्सा लिया था जिसमें से 444,832 लड़के सफल रहे थे, यानि कि 79 फीसदी की पास प्रतिशतता रही है।

सीबीएसई बोर्ड परिक्षा रिजल्ट – 2016

Source: Central Board of Secondary Education

लड़कियों पर कम उम्र में शादी का दवाब जारी

लेकिन, बोर्ड परीक्षा के बाद क्या होता है इन लड़कियों का?

राष्ट्रीय स्तर पर, कई बोर्डों में से एक सीबीएसई है, लेकिन लड़कों को पीछे छोड़, लड़कियों की आगे जाने की प्रवृति हर जगह दोहराई जा रही है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यह प्रवृति उलट हो जाने के लिए क्या ज़िम्मेदार हो सकती है और युवा महिलाएं जो रोज़गार में जगह नहीं बना पाती उन पर शादी के लिए दवाब बनाया जाता है।

हालांकि शादी की औसत उम्र बढ़ी है, लेकिन अब भी उम्र कम होना जारी है: 2011 की जनगणना के अनुसार, 2011 में महिलाओं के लिए शादी की उम्र 19.2 (2001 में 18.2 से ऊपर) हुई है। 2011 में औसतन, पुरुषों के लिए विवाह की उम्र 23.5 हुई जबकि 2001 में यह आंकड़े 22.6 थे।

2015 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी की गई, उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण के मुताबिक, 2014-15 में, उच्च शिक्षा में 3.33 करोड़ नामांकन होने का अनुमान किया गया है, जिसमें से 1.79 करोड़ पुरुष थे और 1.54 करोड़ महिलाएं हैं।

उच्च शिक्षा में हुए कुल नामांकन में, युवा महिलाओं की 46 फीसदी हिस्सेदारी है, जो वर्ष 2012-13 में 44.3 फीसदी के आंकड़े से सुधार का संकेत हैं।

2014-15 में, भारत में, उच्च शिक्षा में, सकल नामांकन अनुपात (जीईआर, सकल नामांकन का सामान्य अनुमान लगाने के लिए नामांकित किए गए छात्रों की कुल संख्या तथा संबंधित आयु-समूह के व्यक्तियों की कुल संख्या का अनुपात ज्ञात किया जाता है।) 23.6 था, वर्ष 2012-13 में 20.8 के आंकड़े से ऊपर है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, यह आंकड़े 27 के वैश्विक औसत से कम है, और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे कि चीन (26) और ब्राजील (36) की तुलना में कम है।

2014-15 में, जबकि युवा पुरुषों के लिए जीईआर 24.5 था, वहीं युवा महिलाओं के लिए जीईआर 22.7 था, जोकि वर्ष 2012-13 में 17.9 के आंकड़ों से सुधार का संकेत था।

उच्च शिक्षा में नामांकन, 2014-15

Source: Ministry of Human Resource Development

2014-15 में, उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लिए गए युवा पुरुषों की संख्या 13 फीसदी बढ़कर 1.79 करोड़ हुआ है, जबकि वर्ष 2012-13 में यह आंकड़े 1.58 करोड़ थे और उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लिए गए युवा महिलाओं की संख्या 21 फीसदी बढ़ी है, 1.26 करोड़ से बढ़कर 1.53 करोड़ हुआ है।

स्नातक की पढ़ाई के बाद, पुरुषों की संख्या में वृद्धि, महिलाओं की संख्या में कमी

महिलाओं के सर्वोच्च एकाग्रता स्नातक के नीचे पाठ्यक्रमों में देखी गई है, 1.24 करोड़, पोस्ट ग्रैजुएशन के लिए यह आंकड़े 0.19 करोड़ है। डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए केवल 0.06 करोड़ महिलाओं ने नामांकन लिया है।

कम से कम 1.4 करोड़ लड़कों ने स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिला लिया है (लड़कियों की तुलना में करीब 17.5 फीसदी अधिक), पोस्ट ग्रेजुएशन में लड़कों की संख्या 0.18 करोड़ है जोकि लड़कियों की तुलना में 6.1 फीसदी कम है, और स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम में लड़कों की संख्या 0.16 करोड़ है जोकि लड़कियों की तुलना में 61 फीसदी अधिक है।

एम.फिल, स्नातकोत्तर और सर्टिफिकेट कोर्स को छोड़ कर, हाई स्कूल के बाद से लगभग हर स्तर पर महिलाओं की तुलना में अधिक युवा पुरुषों की प्रवृत्ति स्पष्ट है। एम.पिल, स्नातकोत्तर और सर्टिफिकेट कोर्स में महिला नामांकन, पुरुष नामांकन की तुलना में थोड़ी अधिक है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों, 49 फीसदी पुरुष और 51 फीसदी महिलाएं हैं।

उच्च शिक्षा नामांकन दर

Source: Education statistics, Ministry of Human Resource Development; figures in %)

महिलाओं का रुख ह्यूमैनिटीज़ की ओर केंद्रित रहता है, बैचलर ऑफ आर्ट्स (बीए) में 38 फीसदी महिलाओं ने नामांकन लिया है, इसके बाद विज्ञान और वाणिज्य विषयों में महिलाओं के नामांकन लेने की संख्या अधिक रही है; बीए पाठ्यक्रम के लिए 28 फीसदी पुरुषों ने दाखिला लिया है। जहां तक बैचलर ऑफ एजुकेशन की बात है, महिलाओं की संख्या (2.8 फीसदी) एक बार फिर पुरुषों (1.8 फीसदी) की तुलना में अधिक है।

करीब 8 फीसदी युवा पुरुष इंजीनियरिंग के स्नातक पाठ्यक्रमों का चयन करते हैं। यह आंकड़े महिलाओं की संख्या (4.1 फीसदी) से दोगुनी है। प्रौद्योगिकी के स्नातक पाठ्यक्रमों में पुरुष (9 फीसदी) और महिलाओं (4.5 फीसदी) के आंकड़े समान हैं।

उच्च शिक्षा में महिलाओं के नामांकन में वृद्धि के बावजूद श्रमबल में महिलाओं की संख्या में कमी

उच्च शिक्षा में जब लिंग समानता सूचकांक - या जीपीआई , पुरुष छात्रों की तुलना में महिला- छात्रों की अनुपात – की वृद्धि होती है, तो महिला श्रम शक्ति की भागीदारी दर में वृद्धि होनी चाहिए, जो आमतौर पर कामकाजी उम्र महिला आबादी के एक हिस्से के रूप में, महिलाओं के रोजगार या काम की तलाश में महिलआओं की हिस्सेदारी के रूप में मापा जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा 2015 के एक अध्ययन के अनुसार, श्रम इनपुट में वृद्धि के अलावा, परिणामस्वरूप मानव पूंजी संचय क्षमता के उत्पादन को बढ़ावा देने चाहिए। लेकिन भारत के कार्यबल में महिलाओं की प्रतिशत घट रही है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मार्च 2015 में बताया है।

2015 आईएमएफ अध्ययन के अनुसार, भारत की महिला श्रम शक्ति की भागीदारी में गिरावट हुई है, 1991 में 35 फीसदी से गिर कर 2014 में 27 फीसदी हुआ है, जो कि 50 फीसदी की वैश्विक औसत और लगभग 63 फीसदी की पूर्व एशियाई औसत से नीचे की दर है।

जैसे आय में वृद्धि होती है, महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी अक्सर गिर जाता है, और इसमें केवल तभी वृद्धि होती है जब महिला शिक्षा स्तर में सुधार होती है; अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की अध्ययन कहती है, नतीजतन, श्रम बाजार में महिलाओं का महत्व बढ़ता है। यह भारत में नहीं हो रहा है।

(सालवे इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 27 जुलाई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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