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एक विचार मंच विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार संसदीय कानून को अस्तित्व में आने में औसतन 261 दिनों का समय लगता है।

इस रिपोर्ट में वर्ष 2006 से वर्ष 2015 के बीच संसद द्वारा पारित 44 कानूनों का विश्लेषण किया गया है। कानून पर राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त होने और इसके अस्तित्व में आने के औसत दिनों की गणना की गई है।

विश्लेषण में पाया गया है कि आधे से ज्यादा कानून को लागू होने में छह महीने का समय लगा है।

यहां बता दें कि विधेयक एक प्रारूप संविधि है जो संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित होने तथा राष्ट्रपति द्वारा सहमति दिए जाने के पश्चात् कानून बन जाता है। राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त होने के बाद, कानून के कार्यान्वयन होने के लिए दो और कदम की आवश्यकता होती है। पहला, सरकार को इसे सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से अस्तित्व में लाना होता है। दूसरा कदम आवश्यक तो नहीं है, लेकिन कानून को व्यवहार में लाने के लिए यह जरूरी है और वह है नियमों का निर्धारन। ज्यादातर कानून को, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत होने के पहले विधायिका द्वारा मंजूर होना जरूरी है

तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरुर ने इंडियास्पेंड द्वारा किए गए एक ई-मेल साक्षात्कार में कहा, “कानून को लागू किए जाने के लिए नियमों को तैयार करने में कितना समय लगता है, इस बात से ज्यादातर सांसद अनजान हैं। हालांकि नियमों पर संसद में चर्चा की अपेक्षा तो की जाती है, लेकिन इन पर कभी बहस नहीं होती है। इसलिए मंत्रियों के मेज पर रखी इन कागजों पर किसी की नजर नहीं जाती। ”

16 दिसंबर 2016 को मौजूदा लोकसभा के 10 वें सत्र के दौरान लोक-सभा विघटन के 92 घंटे की लागत 144 करोड़ रुपए थी, जैसा कि इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2016 में विस्तार से बताया है।

थरुर कहते हैं, “कानूनों को लागू करने में देरी से जनता की उम्मीदें तो ध्वस्त होती ही हैं, एक मुद्दा करदाता के पैसे बर्बाद करने का भी है।”

साक्षात्कार में थरुर ने इंडियास्पेंड के सामने बड़ी महत्वपूर्ण बात रखी।उन्होंने कहा, “मीडिया की रिपोर्टिंग में जनता देखती है कि एक कानून पारित किया गया है या बदला गया है । स्वाभाविक रुप से जनता इसे लागू देखना चाहती है, लेकिन इसके लिए जनता को लगभग 261 दिनों का इंतजार कराना गलत है। ”

Source: Vidhi Centre for Legal Policy

काले धन कानून को लागू होने में लगा 300 दिनों का समय

ब्लैक मनी (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) और कर अधिनियम 2015 को लागू करने में 311 दिनों का समय लगा है, यानी करीब 10 महीने का समय। लोकसभा द्वारा यह विधेयक 11 मई 2015 और राज्यसभा द्वारा 13 मई 2015 को पारित किया गया था।

इस अधिनियम के तहत कम से कम 644 अघोषित विदेशी आय और संपत्ति की घोषणाएं की गई थी और 2,428 करोड़ रुपए कर के रूप में जमा किया गया था। संग्रह का 90 फीसदी, 5 फीसदी घोषणाओं से आया था, जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने जुलाई 2016 की रिपोर्ट में बताया है

एक अन्य महत्वपूर्ण विधेयक, आधार अधिनियम, 2016 (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं के लक्षित वितरण), संसद के बजट सत्र ( मार्च 2016 ) में पारित किया गया था, लेकिन इसके प्रावधानों की अधिसूचना सितंबर में जारी हो पाई, जब भरतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को वैधानिक समर्थन प्राप्त हुआ और अधिनियम के तहत नियमों को अधिसूचित किया गया।

यूआईडीएआई 2009 में गठित किया गया था, लेकिन यह तत्कालीन योजना आयोग द्वारा जारी किए गए एक कार्यकारी अधिसूचना के माध्यम किया गया था। इसे वैधानिक समर्थन आधार अधिनियम-2016 के पारित होने के बाद ही प्राप्त हुआ है।

यह विधेयक भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) द्वारा धन विधेयक के रुप में पेश किया गया था, जिससे विपक्षी दलों के बीच काफी आक्रोश देखा गया था।

संविधान के अनुच्छेद 109 के उपबंधों के अनुसार धन विधेयक के संबंध में राज्य सभा के पास सीमित शक्तियां होती हैं। किसी धन विधेयक के लोक सभा द्वारा पारित होने तथा राज्य सभा के पास इसकी सिफारिशों के लिए भेजे जाने के पश्चात् इसे राज्य सभा द्वारा प्राप्ति की तारीख से चौदह दिनों की अवधि के भीतर सिफारिशों सहित या सिफारिशों के बिना ही लोक सभा को वापस भेजा जाना होता है। लोक सभा राज्य सभा की सभी या किसी सिफारिश को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है। यदि लोक सभा राज्य सभा की किसी सिफारिश को स्वीकार करती है तो धन विधेयक को राज्य सभा द्वारा अनुशंसित और लोक सभा द्वारा स्वीकृत संशोधनों के साथ दोनों सभाओं द्वारा पारित माना जाता है। यदि लोक सभा राज्य सभा की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है तो धन विधेयक को राज्य सभा द्वारा अनुशंसित किसी संशोधन के बिना ही लोक सभा द्वारा पारित रूप में संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित माना जाएगा

मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने ‘किशोर न्याय अधिनियम- 2015’ को लागू करने में देरी के लिए सरकार की आलोचना की थी। न्यायमूर्ति लोकुर ने समाचारपत्र ‘द हिन्दू’ को बताया, “ जब आप किसी अधिनियम के साथ आते हैं तो इससे पहले उसके नियम तैयार होंगे। और यह तरीका किसी भी तरह के कानून के लिए लागू होता है। ”

लागू होने में सबसे ज्यादा समय लगने वाले पांच कानून में से सड़क मार्ग अधिनियम 2007 को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति मिलने और नियमों का पहला सेट निर्धारित करने के बीच 1,249 दिनों का समय लगा है।

यह संसद में दिसंबर 2005 में पेश किया गया था लेकिन एक संस्था पीआरएस लेजिस्लेटिव के अनुसार लोक सभा और राज्य सभा से मंजूरी सितंबर और अगस्त 2007 में ही मिल पाई है।

Source: Vidhi Centre for Legal Policy

नियम बनाने की समय-सीमा के भीतर केवल 34 फीसदी ही कानून बने

भारत में संसदीय प्रक्रिया के मैनुअल में नियमों को तैयार करने के लिए, सरकारी राजपत्र में अनुमोदन के प्रकाशन के बाद 15 दिन की समय सीमा की सिफारिश की गई है।

इस तरह के नियम को अधीनस्थ विधान कहा जाता है और नियम, विनियम, उपनियम, आदेश और अधिसूचना कहा जाता है।

हालांकि, केवल 34 फीसदी (44 से 15 कानूनों के विश्लेषण के अनुसार) में ही समय सीमा का पालन किया गया है। जबकि 49 फीसदी कानून को लोकसभा में 15-60 दिन लगे हैं ।

प्रत्येक सदन के समक्ष नियम पेश करने में लगने वाले समय की गणना राजपत्र में प्रकाशित किए गए थे ।

थरुर कहते हैं, “एक बार विधेयक पारित कर दिए जाने के बाद, राजनीतिक नेता इस तरह के मुद्दे अधिकारियों के भरोसे छोड़ कर अगले जरुरी मुद्दों पर लग जाते हैं। यह संभव है कि नौकरशाह जिन पर नियमों के लेखन की जिम्मेदारी सौंपी गई है, उन पर पहले से काम का बोझ हो ( मैं नहीं जानता ) लेकिन अगर ऐसा है तो उनकी संख्या बढ़ाने का काम होना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस तरह के काम प्राथमिकता के आधार पर पूरा हों। ”

दो नियमों (बाल अधिकार नियम का संरक्षण, 2006 और विज्ञान और इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड के नियम ) को 174 और 166 दिनों की देरी का सामना करना पड़ा है।

(साहा स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह ससेक्स विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़ संकाय से वर्ष 2016-17 के लिए जेंडर एवं डिवलपमेंट के लिए एमए के अभ्यर्थी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 07 फरवरी 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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