जून, 2015 के गर्मी भरे एक दिन में दिल्ली में एक पुराने क्वार्टर के पास पसीना पोंछता एक व्यक्ति। रिपोर्ट के अनुसार, यदि वर्तमान दरों पर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन जारी रहता है, तो दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में मौसम की स्थिति मनुष्यों के लिए और बद्तर हो सकती है।

शताब्दी के अंत तक, उच्च तापमान के साथ उच्च आर्द्रता का स्तर होने से मौसम की स्थिति घातक हो जाने की आशंका है। ‘साइंटिफिक जर्नल साइंस एडवांस’ में प्रकाशित एक नए शोध के अनुसार, मौसम की खतरनाक स्थिति भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बड़े हिस्सों में लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि 21 वीं शताब्दी के अंत में जलवायु परिवर्तन से ऐसी स्थिति बार-बार पैदा होगी।

‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ (आईएमडी) गर्म तरंगों की विशेषता में आर्द्रता को नहीं लेता है। लेकिन आईएमडी की गर्मी की लहर की परिभाषा से नीचे गिरने वाला तापमान जब उच्च आर्द्रता के स्तर के साथ मिलता है, तो मनुष्य के जीवन के लिए खतरनाक हो जा सकता है।

वेट बल्ब टेम्परचर, नई मेट्रिक

अध्ययन के सह-लेखक और अमेरिका के ‘लॉयला मैरीमाउंट विश्वविद्यालय’ के जेरेमी पाल ने ई-मेल के जरिए इंडियास्पेंड को बताया कि " तापमान और आर्द्रता की एक खास स्थिति में कोई भी मानव जीवित नहीं रह सकता है।"

यहां प्रमुख मेट्रिक वेट बल्ब टेम्परचर (डब्ल्यूबीटी) है । आर्द्र मलमल की थैली में लिपटे वल्ब वाले थर्मामीटर द्वारा अंकित तापमान, जो वाष्पन में होने वाली ऊष्मा-क्षति के कारण, सामान्य तापमापी द्वारा मापे जाने वाले ताप की अपेक्षा कम होता है।

यह तापमान और आर्द्रता को मापने का एक संयुक्त उपाय है, जो वेट बल्ब टेम्परचर (डब्ल्यूबीटी) के विपरीत मानव शरीर की असुविधा महसूस करता है। यह हवा के तापमान को मापने का एकमात्र उपाय है, जिसकी घोषणा आधिकारिक मौसम सेवाएं करते हैं।

जब तापमान अपेक्षाकृत कम है, तब भी डब्ल्यूबीटी उच्च हो सकता है। उदाहरण के लिए, इस कैलकुलेटर के अनुसार, यदि तापमान 30 डिग्री सेल्सियस (डिग्री सेल्सियस) और सापेक्षिक आर्द्रता 90 फीसदी है, तो गीला बल्ब तापमान बहुत ही असुविधाजनक 29 डिग्री सेल्सियस के बराबर है। अमेरिकी राष्ट्रीय मौसम सेवा 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर डब्लूबीटी को बेहद खतरनाक समझते हैं।

हमारा अस्तित्व हमारे शरीर पर रहने वाले निरंतर तापमान पर निर्भर करता है। आम तौर पर, हमारा मूलभूत तापमान ( सिर के ऊपर से मध्य छाती तक, मस्तिष्क, फेफड़े और छाती को शामिल करते हुए ) 37 डिग्री सेल्सियस पर विनियमित है और 35 डिग्री सेल्सियस पर हमारी त्वचा विनियमित है। पसीने से हमें अतिरिक्त गर्मी को रोकने में मदद मिलती है – पसीना त्वचा शांत करता है, और पसीने के वाष्पीकरण गर्मी से छुटकारा दिलाता है और संतुलन बहाल करता है।

थर्मोरॉग्युलेशन की यह प्रक्रिया कुशलतापूर्वक तब होती है, जब परिवेश वायु हमारे लिए अनुकूल होती है। जब तक यह संतृप्त न हो तब तक हवा में सीमित मात्रा में पानी हो सकता है। अधिक पानी की मात्रा के बिना सूखी हवा में, आपका पसीना जल्दी से वाष्पीकरण करता है, जिससे ठंडक होती है। आर्द हवा में, जहां पहले से बहुत अधिक नमी है, पसीने आसानी से नहीं वाष्पित हो पाते और शरीर में अत्यधिक गर्मी का अनुभव होता है।

डब्लूबीटी गर्मी सूचकांक के समान है, जिसे स्पष्ट तापमान कहा जाता है, और यह दर्शाता है कि यह वास्तव में कैसा गर्म है।

पाले इसे विस्तार से समझाते हैं, "एक लाइन पर लटके गीले कपड़े गर्म नम हवा की तुलना में गर्म सूखी हवा में बहुत जल्दी सूख जाएगा। मानव शरीर के साथ भी यही होता है। गर्म और आर्द हवा की तुलना में यदि हवा गर्म और सूखी है, तो शरीर अधिक कुशलता से पसीना निकालता है और ठंडा होता है। यही कारण है कि सूखे की तुलना में आर्द्रता में उसी तापमान में ज्यादा गर्मी महसूस होती है। "

उच्चतम दैनिक अधिकतम वेट बल्ब टेम्परचर का स्थानिक वितरण, 1979-2015

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The distribution of the maximum six-hour wet-bulb temperature ever recorded, according to observations in modern record (1979-2015).Source: Science Advances

जलवायु परिवर्तन से उच्च डब्ल्यूबीटी

“यदि डब्लूबीटी मानव शरीर की त्वचा के तापमान 35 डिग्री सेल्सियस (जो शरीर के मुख्य तापमान से 2 डिग्री सेल्सियस नीचे है) से अधिक है, तो पसीना शीतलन तंत्र के रूप में कार्य नहीं कर सकता । ऐसे में शरीर जल्द गरम हो जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु तक हो सकती है,” पाल कहते हैं, “ 35 डिग्री सेल्सियस मानव के जीवित रहने की ऊपरी सीमा है।”

पाल कहते हैं कि, "अगर डब्ल्यूबीटी छह घंटे से अधिक के लिए 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया तो कोई भी इंसान जीवित नहीं रह पाएगा, चाहे वह शारीरिक रुप से कितना भी तंदुरुस्त क्यों न हो। पूरी आबादी एक सप्ताह तक इसे नहीं झेल सकती है।"

अध्ययन के एक अन्य सह-लेखक और जल विज्ञान और जलवायु अमेरिका के ‘मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ के विशेषज्ञ, एल्फातिह एलिताहिर ने ई-मेल के जरिए इंडियास्पेंड को बताया, “गंगा और सिंधु नदी घाटियों के घनी आबादी वाले कृषि क्षेत्रों को जलवायु परिवर्तन के कारण तीव्र खतरों और तीव्र भेद्यता के ओवरलैप के कारण गर्मी तरंगों के लिए सबसे अधिक जोखिम के रूप में पहचाना जाता है। ”

अध्ययन में बताया गया कि यह क्षेत्र 1 बिलियन से ज्यादा लोगों का घर है, जिनमें से ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान, खेत मजदूर, निर्माण मजदूर और प्रवासी श्रमिक हैं, जो सड़क पर काम करते हैं और एयर कंडीशनिंग तक उनकी पहुंच नहीं है।

यदि मनुष्य वर्तमान दरों पर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जारी रखता है, तो मनुष्यों के लिए अधिकतर बाहरी और अंदर के जगहों बिना एयर कंडीशनिंग के रहना संभव नहीं है।

2015 की गर्मी में उच्च डब्ल्यूबीटी

मृत्यु से बचने के लिए डब्ल्यूबीटी को 35 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने देने से रोकने की जरूरत है और अब तक इस क्षेत्र में ऊपरी सीमा तक नहीं पहुंचा है।

हालांकि, भारत, पाकिस्तान और ईरान में 2015 की गर्मी में, डब्लूबीटी 35 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता हुआ देखा गया है। अध्ययन कहता है कि डब्लूबीटी 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर हो तो भी कुछ लोगों की जान जा सकती है।

भारत में, मई 2015 में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से बढ़कर 47.2 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया और इससे कम से कम 2,300 लोगों की मौत हुई है। इनमें से ज्यादातर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में थे। ओडिशा भी प्रभावित हुआ था। समुद्र तट पर रहने वाले लोगों के लिए, नम हवा ने उच्च तापमान असहनीय बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप कमजोर, बुजुर्ग, गरीब और बहुत युवा लोगों की मृत्यु हुई है।

उदाहरण के लिए, 2015 गर्मी लहर के दौरान आंध्र प्रदेश के काकीनाडा में डब्लूबीटी लगभग 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया।

अधिकतम और न्यूनतम दैनिक डब्लूबीटी, काकीनाडा, आंध्र प्रदेश

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The plots show the daily maximum and minimum wet-bulb temperatures (WBTs) for Kakinada, Andhra Pradesh, in 2015. The highest WBTs of the latest heat wave have peaked around 86°F (30°C). There are days when the WBT did not fall below 82°F (27.777°C).Source: Robert Kopp, Rutgers University

वे वैज्ञानिक, जिन्होंने भारत में वर्ष 2015 में उष्णकटिबंधीय का अध्ययन किया है, उनका निष्कर्ष है कि इस क्षेत्र में हर 100 वर्षों में एक बार की बजाय हर 10 सालों में एक बार तीव्र गर्मी की घटनाएं होंगी। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 21 जून, 2017 में विस्तार से बताया है।

अब आगे क्या?

यह पेपर दक्षिण पश्चिम एशिया पर केंद्रित एक अध्ययन का विस्तार है, जिसे एल्तिरिर और पाल ने वर्ष 2016 में ‘साइंटिफिक जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज’ में प्रकाशित किया है।

अध्ययन ‘साइंटिफिक जर्नल प्रोसिडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ऑफ अमेरिका’ (पीएनएएस) में वर्ष 2010 में प्रकाशित एक अध्ययन से प्रेरित था।

पहले अनुमान किया गया था कि चरम तापमान और आर्द्रता यानी डब्लूबीटी, जो वर्तमान में 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं है, अगर ग्लोबल- वार्मिंग की वजह से उसमें लगभग 7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाए तो पूरी आबादी पर संकट आ जाएंगे।

जलवायु परिवर्तन चरम सीमाओं का सबसे अच्छा वर्तमान-व्यावहारिक अनुमान बनाने के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन जलवायु मॉडल का उपयोग करते हुए दक्षिण एशिया पर केंद्रित करते हुए, वर्तमान अध्ययन के लेखकों ने दो संभावित परिदृश्यों की जांच की है।

'लेट्स-फिड्डल-वाइल-रोम बर्न्स' परिदृश्य और 'लेट्स-वी सीन-टू-बी-डूइंग-समथिंग' परिदृश्य। (इनमें पेरिस जलवायु समझौते के तहत उन समान उपायों को लिए गए हैं।)

पहले मामले में, जैसा कि अध्ययन में बताया गया है, डब्लूबीटी ऊपर बढ़ा और कुछ मामलों में गंगा नदी घाटी, पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश, भारत के पूर्वी तट, छोटा नागपुर पठार, उत्तरी श्रीलंका और पाकिस्तान की सिंधु घाटी सहित, दक्षिण एशिया भर में 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर हुआ।

अध्ययन के मुताबिक, 2 मिलियन से अधिक आबादी वाले लखनऊ और पटना जैसे प्रमुख शहरी केंद्रों में डब्ल्यूबीटी जीवित रहने की सीमा से अधिक हो जाएंगे।

पाल कहते हैं, "35 डिग्री सेल्सियस सीमा रेखा हर बीस साल या उससे अधिक के बाद होने की संभावना है, हालांकि, क्षेत्र के आधार पर, 30 डिग्री सेल्सियस औसत पर हर दूसरे वर्ष या उससे अधिक हो जाएगा। यहां तक ​​कि 35 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक की डब्ल्यूबीटी के तहत अच्छी तरह से वायुकृत छायादार स्थितियों में भी स्वस्थ इंसान नहीं रह सकते हैं।"

दूसरे परिदृश्य में, हालांकि तापमान मानव जीवित रहने की ऊपरी सीमा, 35 डिग्री सेल्सियस तक नहीं पहुंचते, लेकिन 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर घातक स्थिति हो सकती है।

एल्तिरिर कहते हैं, " नीचे के इलाकों मानसून और सिंचाई, डब्लूबीटी को फैलाते हैं”। वह आगे कहते हैं, भारत को राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वच्छ ऊर्जा नीति अपनानी चाहिए और उत्सर्जन में कटौती के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से आगे बढ़ना चाहिए।

आईएमडी गर्मी तरंगों में नमी को शामिल नहीं करता है। आईएमडी की गर्मी की परिभाषा से नीचे आने वाले तापमान, जब आर्द्रता के साथ मिलते हैं तो मानव के जीवित रहने के लिए डब्ल्यूबीटी की ऊपरी सीमा तक पहुंचते हैं। पिछले 23 वर्षों में गर्म लहरों से होने वाली मृत्यु की संख्या में 23 गुना वृद्धि हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 20 अप्रैल, 2016 की रिपोर्ट में बताया है।

जाहिर है, यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां सक्षम नीतियों की जरूरत है।

(वर्मा स्वतंत्र पत्रकार हैं और आंध्र प्रदेश में रहते हैं। वे विज्ञान पर लिखते हैं । जलवायु विज्ञान, पर्यावरण और पारिस्थितिकी में उनकी विशेष रुचि है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 19 अगस्त 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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