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सरकार के ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में असंगठित क्षेत्र, जो कि रोजदार देने का सबसे बड़ा जरिया है, वहां पर नौकरियों की संख्या में 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट में संगठित क्षेत्र में नौकरियों की संख्या में आई कमी का उल्लेख किया गया है। यह दोनो रूझान काफा चिंताजनक है। खास तौर से असंगठित क्षेत्र का सबसे ज्यादा प्रतिकूल असर होगा, जो कि 72 फीसदी नौकरियां देता है। असंगठित क्षेत्र के तहत काम करने वाले ज्यादातर ऐसे लोग हैं, जिनके पास किसी तरह की कोई सामाजिक सुरक्षा नही है। इनमें 10 में से 9 व्यक्ति बिना किसी लिखित कांट्रैक्ट के काम कर रहे हैं।

कुल 47.2 करोड़ लोगों में से 34 करोड़ लोगों के पास साल 2011-12 में असंगठित क्षेत्र के जरिए रोजगार था। एक अनुमान के मुताबिक सालाना 1.2 करोड़ लोग नौकरी की तलाश करते हैं, जिसमें से 1.16 करोड़ लोग ही रोजगार हासिल कर पाते हैं। साल 2004-05 के आंकड़ों के अनुसार भारत का 78 फीसदी श्रम असंगठित क्षेत्र से रोजगार प्राप्त करता था। जो कि साल 2009-10 में कम होकर 71 फीसदी पर आ गया। वहीं साल 2011-12 में बढ़कर 72 फीसदी पर पहुंच गया।

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वन मंत्रालय के राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय की ताजा रिपोर्ट के अनुसार असंगठित क्षेत्र के तहत ज्यादातर कारोबारी प्रोपराइटरशिप या पार्टनरशिप के तहत कारोबार करते हैं। जो कि कोऑपरेटिव, ट्रस्ट और नॉन प्रॉफिट संस्थान के रूप में होते हैं। इसके अलावा कृषि संबंधित गतिविधियां और गैर कृषि क्षेत्र के लोग इसके तहत आते हैं। जिसमें फसल उत्पादन शामिल नहीं है।

चार्ट—साल 2011-12 में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाला श्रम

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Source: MOSPI

असंगठित क्षेत्र के तहत गैर कृषि क्षेत्र ग्रामीण इलाकों में 86 फीसदी और शहरी क्षेत्र में 98 फीसगदी रोजगार देता है। इनमें से शहरी क्षेत्र में 95 फीसदी महिलाएं और 99 फीसदी पुरूष रोजगार में शामिल हैं। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्र में 94 फीसदी पुरूष और 63 फीसदी महिलाएं रोजगार में शामिल हैं। इन आकंड़ो में साफ है कि गैर कृषि क्षेत्र तेजी से रोजगार पाने का जरिया बन रहा है। खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पुरूषों के लिए यह प्रमुख जरिया है। गैर कृषि क्षेत्र प्रमुख रूप से मैन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, थोक और खुदरा ट्रेड, ट्रांसपोर्टेशन और भंडारण में रोजगार देता है।

चार्ट 2.वित्त वर्ष 2011-12 में असंगठित श्रम साधन फीसदी में (ग्रामीण पुरूष-महिला)

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चार्ट 3. वित्त वर्ष 2011-12 में असंगठित श्रम साधन फीसदी में (शहरी पुरूष-महिला)

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Source: MOSPI

साल 2011-12 के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में मैन्यूफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा करते हैं। इसमें से कंस्ट्क्शन क्षेत्र में पुरूष सबसे ज्यादा काम करते हैं। वहीं 36 फीसदी महिलाएं मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्रमें काम करती हैं।

इसी तरह शहरी क्षेत्र में रिटेल सेक्टर 28 फीसदी के साथ सबसे ज्यादा रोजगार देता है। जिसके बाद मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का नंबर आता है। जो कि शहरी क्षेत्रों में 31 फीसदी पुरूषों और 43 फीसदी महिलाओं को रोजगार देता है।

लिखित कांट्रैक्ट, पेंशन और स्वास्थ्य बीमा के लाभ से दूर

असंगठित क्षेत्र के तहत काम करने वाले ज्यादातर कामगार को किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं मिलता है। इसमें भी जो अस्थायी कर्मचारी होते हैं, वह सबसे ज्यादा नुकसान में रहते हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कुल कर्मचारियों में से 97 फीसदी कर्मचारियों के पास नौकरी का कोई लिखित कांट्रैक्ट नहीं होता है। इसी तरह 93 फीसदी के पास पेंशन या स्वास्थ्य बीमा का लाभ नहीं है।

चार्ट- साल 2011-12 में बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के काम करने वाले श्रमिक (फीसदी में)

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Source: MOSPI

आइए असंगठित क्षेत्र के लाभ पाने वाले श्रमिकों का सेक्टर के आधार पर ब्यौरा देखते हैं।

चार्ट- साल 2011-12 में सेक्टर के आधार पर असंगठित क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले श्रमिक

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चार्ट- साल 2011-12 में सेक्टर के आधार पर असंगठित क्षेत्र के शहरी इलाकों में काम करने वाले श्रमिक

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Source: MOSPI

सामाजिक सुरक्षा देने के मामले में सबसे बुरा रिकार्ड कंस्ट्रक्शन सेक्टर का है। जहां ग्रामीण क्षेत्रों में 50 फीसदी से ज्यादा लोग बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के काम कर रहे हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के 25 फीसदी से ज्यादा श्रमिक बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के काम कर रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अर्थशास्त्री सी.पी.चंद्रशेखर के अनुसार जब हम रोजगार के स्तर पर देखते हैं, तो असंगठित क्षेत्र अभी भी सबसे ज्यादा रोजगार देने का जरिया है। जो कि भारत में फसल उत्पादन के बाद सबसे बड़ा जरिया है। ऐसे में इन कामगारों की सुरक्षा के लिए श्रम सुधारों की बेहद जरूरत है।

महिलाओं के प्रति भेद-भाव का नजरिया सबके सामने है। शहरी क्षेत्रों में असंगठित क्षेत्र के तहत पुरूषों को जहां औसतन प्रतिदिन 258 रुपये वेतन मिलता है, वहीं इसी काम के लिए महिलाओं को प्रतिदिन केवल 194 रुपये दिए जाते हैं। इसी ग्रामीण क्षेत्र में पुरूषों को 194 रुपये और महिलाओं को 121 रुपये प्रतिदिन वेतन मिलता है।

इंडियास्पेंड पहले यह रिपोर्ट कर चुका है, कि भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को रफ्तार देने के लिए मेक इऩ इंडिया अभियान को बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन ताजा आंकड़े दो अहम रूझानों को दर्शाते हैं। पहला तो यह है कि संगठित क्षेत्र में लगातार रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। जो कि भारत के कुल श्रम साधन का 12 फीसदी ही इस्तेमाल करता है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार साल 2012-13 में चार लाख से ज्यादा लोगों ने नौकरियां इस क्षेत्र में गंवाई है। भारतीय कंपनियां ज्यादातर ऑटोमेशन पर जोर दे रही है। जिससे उन्हें कम लोगों की जरूरत पड़ रही है।

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