नई दिल्ली: भारत ने कोयले का खनन अधिक किया है, अधिक पावर प्लांट का निर्माण किया है, और वितरण कंपनियों ने चार साल से 2019 तक लाखों घरों को ग्रिड से जोड़ा है। लेकिन यही कंपनियां अब एक रिकॉर्ड ऋण के साथ बोझ बन गई हैं, जो एक सरकार के प्रमुख वादे में बाधा डाल रही है।

"24x7 बिजली" सरकार की प्राथमिकता है, जैसा कि भारत के नए बिजली मंत्री राज कुमार सिंह ने 30 मई, 2019 को कहा है। उनके पूर्ववर्ती मंत्री, पीयूष गोयल ने दो साल पहले कहा था कि भारत में "बिजली सरप्लस" है, और एक गवर्मन्ट डैशबोर्ड का कहना है कि 99 फीसदी ग्रामीण घरों (10 भारतीय घरों में से 7 में ) अब ग्रिड पावर है।

लगभग सार्वभौमिक विद्युतीकरण, ‘सरप्लस बिजली’ और भारतीय घरों में इसे आपूर्ति करने में असमर्थता के बीच के विरोधाभासों के पीछे कर्ज है, जो देश भर में राज्य स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) पर बोझ डालती हैं और बिजली ग्रिड और उपकरण बनाने और उसके रखरखाव करने की क्षमता को बिगाड़ती है।

बिजली बिलों में वृद्धि करने में राज्य सरकारों की अक्षमता या इससे इनकार (हम बाद में इस पर चर्चा करेंगे ) अधिक उधार लेने और बिजली की कमी का कारण बन रहा है और उपलब्ध बिजली खरीदने के लिए डिस्कॉम को अनिच्छुक बना रहा है। इसका सीधा मतलब है निरंतर ब्लैकआउट और अनिश्चित बिजली की आपूर्ति।

मार्केट रिसर्च एजेंसी क्रिसिल के एक मई 2019 के अध्ययन के अनुसार, 2020 तक यह ऋण 2.6 लाख करोड़ रुपये ($ 37 बिलियन) तक पहुंच जाएगा। यह कुछ 2015 के ऋण की तरह ही होगा, जब सरकारी कार्यक्रम, उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना ( उदय ) शुरु किया गया था।

बेंगलुरु स्थित ऊर्जा समाधान कंपनी, रीकनेक्ट के निदेशक विभव नुवाल ने इंडियास्पेंड को बताया,“ देश में सिंचाई और ग्रामीण परिवारों के लिए वितरित किए जाने वाले मुफ्त बिजली की बड़ी मात्रा पर विचार करना, आज की सबसे बड़ी जरूरत(डिस्कॉम अक्षमताओं के अलावा) है। उन्होंने कहा कि अगर इस बिजली को मीटर किया जाए और बिल किया जाए तो डिस्कॉम के घाटे में कमी आएगी।

हमने भारत के बिजली मंत्रालय में उदय के निदेशक, विशाल कपूर से टिप्पणी मांगी और दो सप्ताह से अधिक समय तक फोन कॉल करते रहे, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। उनके कार्यालय ने हमें समय देने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। यदि अब कोई प्रतिक्रिया मिलती है, तो हम इस स्टोरी को अपडेट करेंगे।

2.6 लाख करोड़ रुपये का डिस्कॉम ऋण, केंद्र के संयुक्त 2017-18 के उस खर्च से अधिक होगा जो राजमार्ग; राष्ट्रीय रेलवे; मेट्रो-रेल प्रणाली; राष्ट्रीय खाद्य सब्सिडी; राष्ट्रीय सामाजिक-सुरक्षा योजनाओं (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) के लिए नकद हस्तांतरण; खाना पकाने के गैस पर सब्सिडी; रक्षा सेवाओं के लिए पूंजीगत व्यय; अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, अनुप्रयोग और उपग्रह पर हुआ है।

सरकार को सलाह देने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था, प्रयास द्वारा मई 2018 के एक पेपर में चेतावनी दी गई, है कि बिजली वितरण क्षेत्र के प्रबंधन के लिए भारत का ‘पारंपरिक मॉडल’ पतन के कगार पर है, जिसका मतलब है कि भारत में बिजली लाभ को खतरा है।

प्रयास के पेपर में कहा गया है, "महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां सिर्फ डिस्कॉम की किस्मत दांव पर नहीं है-क्योंकि विद्युतीकरण में तेजी है और लाखों नए विद्युतीकृत घर ग्रिड में शामिल हो रहे हैं,बल्कि सभी छोटे, ग्रामीण और कृषि उपभोक्ताओं का भाग्य भी दांव पर है।”

उदय से पहले स्तरों पर डिस्कॉम ऋण की वापसी उदय की विफलता को इंगित करती है, लेकिन यह उधार लिया गया धन, भारत को और अधिक बिजली संयंत्र बनाने और भारत के बिजली नेटवर्क का विस्तार करने की अनुमति देता है, यही कारण है कि कई राज्यों में अब बिजली ‘सरप्लस’ है, जैसा कि विशेषज्ञ कहते हैं।

विस्तार लागत की भरपाई हो सकती थी, अगर उदय ने इसे अपने अन्य उद्देश्यों के लिए रखा होता, जैसे कि राज्यों में 2019 तक चार साल के लिए बिजली बिल में 6 फीसदी की वृद्धि करना। लेकिन इस अवधि में औसत वृद्धि आधी थी, और घाटे की आपूर्ति अक्टूबर 2018 तक 15 फीसदी के बजाय 25 फीसदी था, और ऐसा ही मार्च 2019 तक चलने वाला था।

हमने सात सरकारी स्वामित्व वाले डिस्कॉम्स का एक मंच ‘उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ की मैनेजिंग डायरेक्टर, अपर्णा यू से ई-मेल और फोन के जरिए टिप्पणी की मांग की और दो सप्ताह तक इंतजार किया। लेकिन हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। यूपी डिस्कॉम के अन्य अधिकारियों ने भी टिप्पणी से इनकार कर दिया। अगर हमें कोई प्रतिक्रिया प्राप्त होती है तो हम इस स्टोरी को अपडेट करेंगे।

क्या भारत के पास सरप्लस बिजली है?

भारत के सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (सीईए) ने जुलाई 2018 में भविष्यवाणी की थी कि मार्च 2019 के अंत तक, भारत में 4.6 फीसदी ‘सरप्लस बिजली’ और ‘पीक पॉवर’ होगी - अधिकतम बिजली की मांग - 2.5 फीसदी का सरप्लस।

कुछ राज्यों में सरप्लस और गोयल के 2017 के दावे के बावजूद,भारत आधिकारिक तौर पर एक पावर-सरप्लस देश नहीं है, हालांकि 2016 से तीन साल बाद इसके ऐसा होने की उम्मीद थी।

भारत में ‘पॉवर डेफिसिट’ ( बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर ) शून्य नहीं है। मार्च 2019 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में भारत में बिजली की कमी 0.6 फीसदी थी, और " पीक पॉवर डेफिसिट’ ( एक वर्ष में अधिकतम बिजली की मांग में कमी ) 0.8 फीसदी थी।

दिल्ली स्थित थिंक-टैंक, ‘काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर’ (सीईईवी), में बिजली क्षेत्र के विशेषज्ञ प्रतीक अग्रवाल कहते हैं, "बिजली की कमी मुख्य रूप से ऋण से ग्रस्त राज्यों में डिस्कॉम के द्वारा अधिक बिजली खरीदने में अनिच्छा के कारण होती है।”

लगभग 177 गीगावाट की जबरदस्त मांग के खिलाफ, भारत में वर्तमान में स्थापित उत्पादन क्षमता लगभग 356 गीगावाट ( जीडब्लू ) है।

समस्या का सार: जब तक डिस्कॉम अपने बकाये का भुगतान नहीं करते, बिजली उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता है।

अग्रवाल कहते हैं, “यह गणना करना भी मुश्किल है कि भारत को 24x7 वादों के लिए कितनी बिजली की जरूरत है, “क्योंकि अधिकांश ग्रामीण और कृषि कनेक्शनों की मीटर नहीं की जाती है, और भारत को वास्तव में यह पता नहीं है कि सभी जुड़े घरों को 24x7 बिजली की आपूर्ति करने के लिए कितनी जरूरत है।"

उदय के बावजूद, अंधेरा

2014 में जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना पहला कार्यकाल शुरू किया, तब भारत के 70 फीसदी घर ग्रिड से जुड़ चुके थे। उनकी सरकार ने उस कार्यक्रम को गति दी और 16 महीने से दिसंबर 2018 तक 2.6 करोड़ और अधिक घरों को जोड़ा।

लेकिन हजारों भारतीय गांवों में एक दिन में 12 घंटे या उससे कम बिजली मिलती है (डिस्कॉम अक्षमताओं के कारण, जैसा कि हमने कहा) और भारत की प्रति व्यक्ति बिजली की खपत अमीर देशों की औसत प्रति व्यक्ति खपत का 14 फीसदी है, जिसमें ‘ऑर्गनिजैशन फॉर ईकनामिक कोआपरेशन एंड डेवलपमेंट’ (ओईसीडी) शामिल हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 3 नवंबर 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

2015 में, भारत की डिस्कॉम ने सामूहिक रूप से अपनी परिचालन लागत का 80 फीसदी से कम वसूला, जैसा कि हमने रिपोर्ट किया था। मार्च 2015 को, डिस्कॉम का घाटा लगभग 4.3 लाख करोड़ रुपये तक चला गया था।

इसलिए, डिस्कॉम ने अपनी लागत को कवर करने के लिए बैंकों से-14-15 फीसदी के उच्च ब्याज दरों के साथ-पैसे उधार लिए। नुकसान के इस चक्र ने भारत के अन्य दूसरे लाभों को खत्म कर दिया- अधिक कोयला, अधिक बिजली संयंत्र और अधिक ट्रांसमिशन लाइन, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 13 अप्रैल, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

उदय के तहत, बिजली मंत्रालय, राज्य सरकारों और डिस्कॉम ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया कि राज्य सरकारें डिस्कॉम ऋणों का 75 फीसदी ( सितंबर 2015 तक का बकाया )

10-15 वर्षों की परिपक्वता अवधि वाले बांडों के माध्यम से प्राप्त करेगी।

डिस्कॉम को लक्ष्य दिए गए थे: बिजली और ब्याज की लागत को कम करना, ट्रांसमिशन के नुकसान और बिजली की चोरी को कम करना और दोषपूर्ण मीटर को ठीक करना। अधिक चार्ज करके, डिस्कॉम को 2018-19 तक आपूर्ति की लागत और औसत राजस्व के बीच के अंतर को मिटा देना था।

15 राज्यों में, जो नेशनल ऐग्रिगट टेक्निकल एंड कमर्शियल (एटीएंडसी) घाटे का 85 फीसदी हिस्सा है,कर्ज उतारने के बावजूद, उदय विफल रहा, जैसा कि क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है।

अक्टूबर 2018 को ‘नेशनल एटी एंड सी’ नुकसान 25.41 फीसदी था या 10 प्रतिशत से अधिक अंक ज्यादा था, जितना मार्च 2019 तक होना था और हर साल 5-6 फीसदी की दर से बढ़ोतरी के बावजूद 15 राज्यों ने 3 फीसदी बिल बढ़ाए, जैसा कि क्रिसिल के अध्ययन में कहा गया है।

सफलता असफलता की ओर

डिस्कॉम को अधिक लाभदायक बनाने में उदय क्यों नहीं मदद कर सका?

विशेषज्ञों ने कहना है, इसका जवाब भारत के विद्युतीकरण अभियान की सफलता में निहित है।

उदय के शुरू होने के एक साल बाद, 2016 में, भारत सरकार ने सभी गांवों और घरों को ग्रिड से जोड़ने और उन्हें हर समय बिजली प्रदान करने के लिए एक और प्रमुख कार्यक्रम शुरू किया।

सीईईडब्लू के अग्रवाल कहते हैं, "विद्युतीकरण ड्राइव के समयबद्ध उद्देश्य और उदय कुछ पहलुओं पर अभिसरण और रूपांतरण कर रहे थे,जिसके परिणामस्वरूप डिस्कॉम जैसे कार्यान्वयन एजेंसियों के लिए एक विषम स्थिति उत्पन्न हुई। ”

16 महीने में जनवरी 2019 तक 99.93 फीसदी विद्युतीकरण प्राप्त करने के लिए सरकार ने 2.63 करोड़ ग्रामीण परिवारों का विद्युतीकरण किया। यह एक बड़ा काम था, जिसके कार्यान्वयन ने डिस्कॉम के लिए समस्याएं पैदा कीं। उच्च लागत और नए जुड़े घरों से राजस्व कम हो गया, ज्यादातर ग्रामीण कम या बिल का भुगतान नहीं कर रहे थे, जैसा कि अग्रवाल ने बताया।

अग्रवाल आगे बताते हैं कि अब ब्लैकआउट मुख्य रूप से जारी है, क्योंकि डिस्कॉम अधिक बिजली खरीदने के लिए अनिच्छुक हैं, क्योंकि या तो उनके पास पैसे नहीं हैं या वे डरते हैं कि उपभोक्ता भुगतान नहीं करेंगे।

आपके बिल लागतों को प्रदर्शित नहीं करते

एक और कारण, क्यों उदय डिस्कॉम को समान्य टैरिफ बढ़ोतरी में सहायता नहीं दे सकता था?

थिंक टैंक ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ में ग्लोबल सब्सिडिज इनिशिएटिव के एक वरिष्ठ ऊर्जा विशेषज्ञ विभूति गर्ग ने कहा,“उपभोक्ता शुल्क अभी भी कॉस्ट रिफ्लेक्टिव नहीं हैं। "

भारत की बिजली नियामक एजेंसी डिस्कॉम को उच्च बिलों के माध्यम से उपभोक्ता से ‘बाद के चरण’ में नियामक परिसंपत्तियों (बिजली की खपत की लागत) को पुनर्प्राप्त करने की अनुमति देता है।

छिटपुट टैरिफ बढ़ोतरी के कारण, 31 मार्च, 2019 तक डिस्कॉम का भारत के उपभोक्ताओं पर 76,963 करोड़ रुपये बकाया है, तब से डिस्कॉम को टैरिफ बढ़ाने की अनुमति नहीं थी।

बीजेपी शासित तीन राज्यों में डिस्कॉम ( उत्तर प्रदेश, झारखंड और महाराष्ट्र ) बकाया राशि के 87 फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं, जैसा कि मार्केट रेटिंग एजेंसी, ‘इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च’ ने 20 मई, 2019 के अध्ययन में कहा है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने 27 मई, 2019 को रिपोर्ट में कहा कि डिस्कॉम द्वारा बिलों की वसूली में असमर्थता सरकार के लिए लंबे समय से चली आ रही एक चिंता है, जो राज्य के नियामकों को घाटे में कटौती के लिए टैरिफ नहीं बढ़ाने को दोषी ठहराती है।

डिस्कॉम अव्यवस्था अक्सर लोकलुभावन उपायों के कारण होता है। कई राज्यों में, डिस्कॉम को खतरे में रखते हुए, सरकारों ने राजनीतिक लाभ के लिए बिजली की कीमतें कम रखी हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 2 अप्रैल 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

गर्ग ने कहा कि बेहतर मीटर से भी मदद मिलेगी।

अग्रवाल कहते हैं, “ अगर डिस्कॉम को आर्थिक रूप से स्थिर बैलेंस शीट की दिशा में प्रगति करना है तो विभिन्न बिजली श्रेणियां (ज्यादातर घरेलू और कृषि उपभोक्ता) के खराब मीटर स्तर, कम बिलिंग और संग्रह क्षमता, जिसका परिणाम डिस्कॉम के लिए सीमित फंड प्रवाह के रुप में होता है, को ठीक करना होगा।”

सरकार क्या कर सकती है?

अगर सरकार “24x7 बिजली” के अपने वादे को पूरा करना चाहती है, तो विशेषज्ञों का कहना है कि इसे सभी घरों में बिजली के मीटर लगाने की प्रक्रिया में तेजी लानी चाहिए। दोषपूर्ण मीटरों को बदलना चाहिए। अवैतनिक बिलों का भुगतान करना होगा और बिजली की चोरी को खत्म करना होगा-यह सब करना आसान है, जैसा कि 9 जून, 2019 को एक यूपी पुलिस अधिकारी ने पाया।

2010 के बाद से, भारत ने 573 गीगावाट पावर प्लांट के निर्माण के प्रस्तावों को रद्द कर दिया है ( 1.5 गुना वर्तमान राष्ट्रीय क्षमता ), जैसा कि ग्लोबल कोल प्लांट ट्रैकर की 2018 की रिपोर्ट से पता चलता है।

रिपोर्ट में इस ‘वित्तीय तनाव’ के प्रमुख कारणों में से एक ‘दीर्घकालिक बिजली खरीद समझौतों’ की कमी का हवाला दिया गया था।

(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 17 जून 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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