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महाराष्ट्र को 2019 तक सूखा मुक्त बनाने की महत्वकांक्षी योजना के तहत सरकार ने यवतमाल के पूर्वी जिले में वासुदेव लोखंडे के कुएं की ओर पानी की पूर्ति (ऊपर आउटलेट देखें) के लिए मोटे तौर पर 10,000 रुपये खर्च किए हैं। लेकिन यह काम नहीं आया है। लोखंडे को उसकी काली मिट्टी पर कपास और अरहर के खेतों की सिंचाई के लिए 500 मीटर दूर एक तालाब से पानी खींचने के लिए पाइप लाइन औऱ पंप को ठीक करने के लिए तीन गुना अधिक पैसे खर्च करना पड़ा है।

यवतमाल/बीड़/वाशिम (महाराष्ट्र): सूखे से प्रभावित किसानों के जीवन को स्थायी रुप से बदलने की सरकार की महत्वकांक्षी योजना के एक लाभभोक्ता वासुदेव लोखंडे हैं, लेकिन लोखंडे मिलने वाले इस लाभ से संतुष्ट नहीं हैं।

भारत के सबसे औद्योगीकृत राज्य के एक कृषि प्रधान पूर्वी कोने में, लोखंडे – सिलवटदार भूरे पैंट, धूल से भरे सफेद शर्ट और सैंडल पहने – एक छोटे से पाइप की ओर इशारे से दिखाते हैं जिसे उसकी उपजाऊ काली मिट्टी के खेत तक पत्थर की दिवार के माध्यम से निकाला गया है।

यह पाइप बारिश के पानी को ज़मीन में सोखने के बजाए कुएं में डालने के लिए बनाए गए नहर का आउटलेट है। यह जलयुक्त शिवर अभियान का एक हिस्सा है जिस पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली सरकार ने, महाराष्ट्र को सूखा मुक्त बनाने के लिए पहले चरण में (वर्ष 2015 में) 1,400 करोड़ रुपए खर्च किया है।

लोखंडे को सरकार की इस योजना से विशेष लाभ नहीं हुआ है। इंडियास्पेंड ने तीन सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों का दौरा किया है। पिछले दो वर्षों में कम बारिश होने के साथ कुएं में बहुत कम पानी भरा है। कई अन्य स्थानीय किसानों की तरह, उसे भी अपने खेतों तक आधे से एक किलोमीटर दूर प्राकृतिक तालाब से पानी लाने के लिए पाइपलाइन एवं पंप लगाने के लिए 30,000 रुपए का खर्च करना पड़ा है।

लोखंडे कहते हैं, “मैं पाइपलाइन और मोटर का खर्च वहन कर सकता हूं लेकिन मेरे गांव के अधिकांश किसान यह नहीं कर सकते हैं।”

इंडियास्पेंड की कार्यक्रम की जांच से पता चलता है कि सूखा प्रभावित किसानों तक पहुंचने की सरकार की प्रयास धीमी रफ्तार से चल रही हैं। लोखंडे का गांव, घोडखिंडी अब उन 34 गांवों में से एक है जिसका नाम कपास समृद्ध पूर्वी जिले में, यवतमाल तालुका में जलयुक्त शिवर अभियान के लिए सूचीबद्ध है।

नाम न बताने की शर्त पर एक कृषि अधिकारी ने इंडियास्पेंड को बताया कि “जब इस योजना की शुरुआत हुई थी तब सबसे अधिक प्रभावित गांवों का चुनाव किया गया था। बाद में हमें उन सभी गांवों को योजना में शामिल करने को कहा गया जहां, अब पीने का पानी टैंकर द्वारा पहुंचाया जाता है।”

हालांकि राज्य के जल आपूर्ति विभाग के साप्ताहिक टैंकर आंकड़े पानी की पूर्ति के लिए किसी भी टैंकर का वर्ष 2015 में यवतमाल तालुका जाने का रिकॉर्ड नहीं दिखाते हैं लेकिन जिला कलेक्टर कार्यालय के अनुसार 2015 की गर्मियों में 10 टैंकर वहां पहुंचे हैं। साथ ही 3, 1 एवं 11 टैंकर 2014, 2013 एवं 2012 में पहुंचने की भी सूचना देते हैं।

मूल सरकारी आदेश में प्रति तालुका पांच गांव अनिवार्य किया गया है, जिससे गांवों की कुल गिनती 1,800 होती है। नाम न बताने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी के अनुसार संकट के फैलने के साथ ही, यह संख्या 2500 से 3000 के बीच हो गई है।

इंडियन एक्सप्रेस की इस रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित मराठवाड़ा क्षेत्र के आठ ज़िलों से वर्ष 2015 में कम से कम 1,109 किसानों ने अपना जीवन समाप्त किया है।

इंडियास्पेंड ने जिन तीन सबसे अधिक सूखा प्रभावित ज़िलो (मराठवाड़ा और विदर्भ में) का दौरा किया वहां पिछले दो वर्षों में हुई वर्षा 20वीं सदी की तुलना में न्यूनतम के बराबर है।

भारत के 29 राज्यों में से 9 राज्यों - उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र , बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक , तेलंगाना , ओडिशा और पश्चिम बंगाल – को सूखा ग्रस्त घोषित किया गया है एवं सहायता के रुप में केंद्र से 20,000 करोड़ रुपए की मांग की गई है। केंद्र ने महाराष्ट्र को 3049 करोड़ रुपए की उच्चतम कृषि सहायता दी है।

देश के 640 ज़िलों में से कम से कम 302 ज़िले सूखे से प्रभावित हैं। महाराष्ट्र के सूखा मुक्त कार्यक्रम की सफलता - या असफलता - अन्य राज्यों द्वारा अनुसरण करने की संभावना है।

वर्षा की कमी से नवंबर में कुएं भी सूखे

जलयुक्त शिवर का उदेश्य अत्यंत पानी की कमी के समय में सिंचाई में सहायता प्रदान कराना है। अब, राज्य के अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि कम वर्षा होने के कारण कार्यक्रम प्रभावित हो रहा है।

महाराष्ट्र की स्थिति – इसकी कृषि उत्पादन भारत की दूसरी सबसे अधिक है – 2015 में 40 फीसदी से कम वर्षा के साथ सार्वभौमिक जटिल है। यह बारिश की कमी का तीसरा वर्ष था। (वर्ष 2014 में 30 फीसदी वर्षा की कमी दर्ज की गई है, 2012 में 20 फीसदी एवं औसत से पर 2013 में दर्ज की गई है।)

महाराष्ट्र के भारत में सिंचाई का सबसे बड़ा भंडार है: देश के बड़े बांधों का 35 फीसदी एवं उत्तर प्रदेश के बाद, दूसरा सबसे बड़ा वार्षिक जल-संसाधन जिसकी पुन: पूर्ति की जा सकती है।

लोखंडे के गांव घोडखिंडी को यदि ठीक से देखा जाए तो पता चलता है कि क्यों यहां जलयुक्त शिवर योजना का संघर्ष जारी है। गांव में 40 लघु सिंचाई परियोजनाएं हैं, जिसमें से तालुका कृषि विभाग 15 पूरा करने का दावा करती है।

जनगणना के अनुसार गांव में रहने वाले परिवारों में से एक तिहाई हिस्सा (230 में से 89) पूर्ण रुप से खेती पर निर्भर हैं जबकि 42 फीसदी लोग खेतिहर मजदूर हैं (1135 में से 471)।

विशेषज्ञों और किसानों ने इंडियास्पेंड को बताया कि जलयुक्त शिवर क्रम से पद्धति का इस्तेमाल करता है जोकि पारंपरिक जलग्रहण प्रणालियों के भूवैज्ञानिक आधार के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। यह दो समस्याएं पैदा करता है: इससे कुछ ही लोगों को लाभ मिलने के कारण योजना कमज़ोर होती है एवं सूखे से मुक्त बनाने के लिए दीर्घकाल उपाय देने की बजाए यह एक अस्थायी राहत प्रदान करती है।

अब पहले की अपेक्षा में कम वर्षा होती है, इस बात से सहायता नहीं मिलती है। लेकिन महाराष्ट्र की पट्टी के लिए अब यह कोई खबर नहीं है।

कई क्षेत्रों में अब सूखे जैसी स्थिति में रहते हैं

पिछले चार वर्षों में, मध्य महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में बीड, जो एक समय में हैदराबाद के शुष्क अधिराज्य के निजाम का हिस्सा था, वहां सूखे जैसी स्थिति हो गई है। 18 साल की वर्षा डेटा से यह पता चलता है:

गेरोई तालुका, बीड में वर्षा, 1998 से 2015 (एमएम)

विदर्भ में दो तालुकों - यवतमाल (जिला यवतमाल) और करंजा (जिला वाशिम) के आंकड़े भी वर्षा में कमी का संकेत देते हैं।

यवतमाल तालुका में वर्षा, 1998 से 2015 (एमएम)

करंजा तालुका में वर्षा, 1998 से 2015 (एमएम)

विशेषज्ञों के मुताबिक, वर्षा की यह कमी पिछले 20 वर्षों में सबसे बड़ी कमी है। अनियमित, बेमौसम वर्षा – भारत की अस्थिर कृषि, अर्थव्यवस्था और राजनीति – असामान्य नहीं है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।

भारतीय और वैश्विक क्लच अध्ययन के अनुसार मध्य भारत में अधिक वर्षा की घटनाएं, जो मानसून प्रणाली का मूल है, बढ़ रही हैं एवं स्थानीय और विश्व मौसम में जटिल परिवर्तन के रुप में मध्यम वर्षा कम हो रही है।

महाराष्ट्र में लगातार वर्षा की कमी के कारण भूजल स्तर में गिरवाट एवं प्राकृतिक धाराएं सूखने के रास्ते पर है।

जलयुक्त शिवर अभियान महाराष्ट्र के ग्रामीण पेयजल संकट की भयावहता के साथ सामना करने के लिए संघर्ष कर रहा है। इससे जुड़े कुछ मामलों की चर्चा हम कल करेंगे। कार्यक्रम की सफलता और असफलता इशारा करता है कि किस प्रकार इस कार्यक्रम पर फिर से काम करने की आवश्यकता है।

(वाघमारे इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं।)

दो श्रृंखला लेख का यह पहला भाग है।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 23 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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