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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यापक राष्ट्रीय नीति के तहत कौशल विकास और उद्यमिता के लिए भारी जोड़ दिया है जो कि कई नई योजनाओं के साथ कौशल भारत पहल के हिस्से के रूप में शुरु किया गया था। व्यापक पैमाने में महत्वाकांक्षी इस योजना के तहत वर्ष 2022 तक 40 करोड़ से अधिक भारतीय को प्रशिक्षित करना है यानि कि प्रति सप्ताह लगभग एक मिलियन लोगों को प्रशिक्षित करना होगा।

परिप्रेक्ष्य के लिए : 2014 में केवल 7 मिलियन भारतीयों को प्रशिक्षित किया गया है एवं राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2012 कहती है कि 5 फीसदी से भी कम भारतीयों ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

सफलता पाने के लिए इस योजना को उपयुक्त लक्ष्य को पहचानने एवं उन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जिन्हें कौशल प्रशिक्षण दी जाए। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि वर्तमान भर्ती रणनीतियों इन मोटी लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए पर्याप्त हैं कि नहीं। किस प्रकार साक्ष्य भारत की कौशल प्रयासों को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है? और यह सुनिश्चित कैसे की जाए कौन से लोग प्रशिक्षण में सबसे अधिक रुचि रखते हैं और संभवतः किन्हें सबसे फायदा पहुँच रहा हैं ?

नीति डिजाइन के लिए साक्ष्य में, हमने सिर्फ ये सवाल पूछा है। हमने 2011-2012 राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण ( एनएसएस) के आंकड़ों का विश्लेषण किया और हमारे विश्लेषण को प्रशिक्षण एजेंसियों, सरकारी भागीदारों, और संभावित और पूर्व प्रशिक्षुओं के साथ बातचीत से बटोरे अंतर्दृष्टि के साथ सम्मिलित किया है। इनमें से हमने, उच्च प्राथमिकता और उच्च संभावित आबादी पर नई नीति के प्रयासों को ध्यान केंद्रित करने के लिए, हमने तीन अनुभवजन्य अंतर्दृष्टि की पहचान की है।

पहला: कौशल प्रशिक्षण से किसे मिलेगा फायदा?

फायदा हर किसी को मिलेगा, लेकिन विशेष रूप से महिलाएं एवं कम शिक्षा प्राप्त युवाओं को। अन्य देशों में हुए अध्ययन से रोजगार के परिणामों पर, विशेष कर महिलाओं के लिए, कौशल के सकारात्मक प्रभावों का पता चलता है। हालांकि भारत में करणीय साक्ष्य की कमी है, नीचे दिए गए टेबल से पता चलता है कि व्यावसायिक प्रशिक्षण उच्च श्रम शक्ति की भागीदारी के साथ जुड़ा है। बिना इस पर ध्यान दिए कि व्यक्ति की शिक्षा स्तर क्या है, श्रम शक्ति की भागीदारी कौशल वाले लोगों के लिए अधिक है एवं समग्र मंझला शिक्षा के स्तर के साथ वाले लोगों के लिए अंतर काफी मजबूत है। वे लोग जिंहोने व्यावसायिक प्रशिक्षण पूरा कर लिया है, अकुशल व्यवसायों की तुलना में अर्द्ध कुशल व्यवसायों में भाग लेने के लिए उनकी संभावना अधिक है - और यह संबंध कम शिक्षा के स्तर वाले लोगों के लिए और मजबूत प्रतीत होती है।

Participation in Labour Force, By Education Level
Education LevelNo SkillingCompleted SkillingDifference: (Trained - Untrained)
Below Primary53%83%30%*
Primary (1st-4th)56%87%31%*
Middle (5th-8th)48%86%38%*
Secondary (9th-10th)42%80%38%*
Higher Secondary (11th-12th)38%70%32%*
Diploma/Certificate63%79%16%*
Graduate and above63%81%18%*

Source: National Sample Survey; * denotes statistical significance at .01 level

और लिंग के मामले में, पुरुषों की तुलना में कौशल प्रशिक्षण प्राप्त महिलाओं श्रम शक्ति 30 फीसदी अधिक है। पुरुषों के लिए इन आंकड़ों का अंतर 16 फीसदी है।

लिंग एवं शिक्षा अनुसार श्रम बल में भागीदारी

हालांकि यह सब कौशल से होने वाले परिवर्तन के कारणों के साक्ष्य नहीं हैं, यह कौशल प्रशिक्षण और श्रम शक्ति की भागीदारी में वृद्धि के बीच महत्वपूर्ण सह-संबंध स्थापित करता है।

दूसरा : कौशलता का लक्ष्य कौन होने चाहिए?

संक्षिप्त में एक बार फिर इसका उत्तर, मध्यम शिक्षित युवाएं और महिलाएं हैं। हालांकि 18 से 35 वर्ष के बीच की श्रम भागीदारी दर हर जगह कम ही पाई गई है, 11 वीं या 12 वीं पास शिक्षा के साथ युवाओं के श्रम बल में होने की संभावना कम ही है ( उपर दिए गए ग्राफ देखें )। 42 फीसदी युवाओं ( 18 से 35 वर्ष उम्र ) के पास 9वीं या 10 वीं तक शिक्षा प्राप्त है, जबकि केवल 27 फीसदी युवाओं के पास 11वीं या 12 वीं तक शिक्षा है। कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों को अपना लक्ष्य, इन आबादी पर अधिक रखना चाहिए जिन्होंने उच्च माध्यमिक विद्यालय से स्नातक नहीं किया है।

इसके अलावा, महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी दर पुरुषों की तुलना में काफी कम है: 83 फीसदी पुरुषों की तुलना में केवल 23 फीसदी 18 से 35 वर्ष की महिलाएं श्रम शक्ति में सक्रिय रुप से भागीदार हैं। और माध्यमिक शिक्षा प्राप्त महिलाएं कम सक्रिय हैं। इस वर्ग की केवल 15 फीसदी महिलाएं श्रम शक्ति में सक्रिय रुप से भागीदार हैं। इसके विपरीत, अशिक्षित और प्राथमिक स्तर पर शिक्षा प्राप्त महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी दर लगभग दोगुनी है।

लेकिन आंकड़े बताते हैं कि, इन महिलाओं में से एक बड़ा हिस्सा काम करना चाहती हैं एवं कौशल विकास से इन महिलाओं को नौकरियां मिलने का बेहतर अवसर मिल सकता है। 70 फीसदी महिलाएं जो श्रम शक्ति का हिस्सा नहीं हैं, वे मुख्य रूप से घरेलू कामों में सक्रिय हैं। इनमें से 30 फीसदी महिलाओं कहती हैं कि यदि अवसर मिला तो वह काम करना पसंद करेंगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि, इनमें से आधी से अधिक महिलाएं मानती हैं कि श्रम शक्ति का हिस्सा बनने के लिए उनके पास कौशल नहीं है। इस के निहितार्थ पर्याप्त हैं : कुशल महिलाओं के पास अधिक आर्थिक उपयोग और स्वतंत्रता ही नहं होगी बल्कि एक बड़े श्रम बल का एक परिणाम के रूप में घरेलू उत्पादन की संभावनाओं के दायरे का भी विस्तार होगा।

तीसरा : स्किल इंडिया के तहत भर्ती रणनीतियों पर फिर से ध्या केंद्रित करने से मिल सकते हैं बेहतर परिणाम

एनएसएस के आंकड़े और प्रशिक्षण एजेंसियों के साथ हमारी बातचीत दोनों से ही स्पष्ट होता है कि कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों में 12वीं पास शिक्षा प्राप्त युवाओं पर अधिक केंद्रित है (और कुछ ट्रेडों उच्च शिक्षा के स्तर की भी आवश्यकता होती है ), एवं महिलाओं की तुलना में पुरुषों की प्रशिक्षण में भागीदार दर काफी अधिक है। यहां अब तक के पेश हुए साक्ष्यों से पता चलता है कि कम शिक्षित युवाओं एवं महिलाओं में प्रशिक्षण की मांग काफी अधिक है जबकि अन्य आबादी की तुलना में यह कौशल अपेक्षाकृत बड़ी लाभों का आनंद लेते हैं।

इन वर्गों पर अधिक आक्रामक तरीके लक्षित करने से सरकार ने अपने कौशल विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिल सकेगी। कौशल कार्यक्रमों उनके वर्तमान भर्ती रणनीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए एवं इन उच्च संभावित आबादी को लामबंद करने के लिए बेहतर प्रक्रियाओं को लागू करनी चाहए। यदि सरकार अपनी महत्वाकांक्षी लक्ष्य की ओर वास्तविक प्रगति करना चाहती है तो प्रशिक्षु आबादी लक्ष्य को चौड़ा करना सबसे पहला कदम होना चाहिए।

( मूर EPoD भारत के निदेशक है और कई तरह की अनुसंधान - नीति साझेदारी के लिए कार्य करते हैं जिनका उदेश्य सार्वजनिक क्षेत्र की नीतियों पर सहन करने के लिए डेटा और अनुसंधान से अंतर्दृष्टि लाना है। प्रिल्लामैन, हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र हैं एवं लिंग एवं भारतीय ग्रामीण विकास पर पढ़ाई कर रहे हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 23 दिसंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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