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चेन्नई: जी रमेश* 12 वर्ष के थे, जब 1994 में वह पहली बार अपने पिता के साथ तमिलनाडु में एक निर्माण स्थल पर गए थे। उस पूरे दिन उन्होंने सिर पर ईंट और पत्थर ढोने, औजार लाने और सीमेंट कंटेनरों की सफाई करने का काम किया था। यह सब एक सहायक के काम होते हैं, जो निर्माण कार्य में सबसे निचले स्तर के होते हैं। काम के एवज में दिन के अंत में उन्हें 35 रुपये मिले।

कोयंबटूर जिले के पेरियानाइकन-पलायम शहर पंचायत में गणुवार गांव के रमेश की उम्र अब 32 वर्ष है। वह कहते हैं, "हालांकि मैं स्कूल में अच्छा प्रदर्शन कर रहा था, लेकिन मैंने अपने सभी गर्मी की छुट्टियों के दौरान अपने पिता के साथ निर्माण स्थलों पर काम किया।"

आगे चल कर रमेश राजमिस्त्री बना। मुख्य मिस्त्री जो निर्माण की देखरेख करता है, आमतौर पर उनकी निगरानी में दस लोगों की टीम काम करती है। रमेश की तरह, ज्यादातर मिस्त्री पर अपने परिवार के बड़ों के साथ काम करते हुए अपना काम सीखते हैं। हालांकि, राजमिस्त्री बनना एक कौशल का काम है, जिसे पारिवारिक व्यापार के रूप में सीखा जा सकता है। कुछ पहलुओं, विशेष रूप से स्वच्छता प्रणालियों के निर्माण के लिए औपचारिक प्रशिक्षण की आवश्यकता हो सकती है। उचित और पर्यावरण के दृष्टिकोण से सुरक्षित संरचनाओं के बिना, भूजल और सतह के पानी के रिसाव और प्रदूषण की संभावनाएं हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम और पर्यावरण प्रदूषण बढ़ सकती है।

स्वच्छता या स्वच्छता मूल्य श्रृंखला का चक्र चार चरणों में पूरा होता है - शौचालयों तक पहुंच, सुरक्षित रोकथाम, हस्तांतरण और अंत में, उपचार और निपटान। स्वच्छता प्रणाली या तो ऑनसाइट सिस्टम हो सकती हैं, जैसे सेप्टिक टैंक और गड्ढे या नेटवर्क, भूमिगत स्वच्छता प्रणाली (सीवरेज)। सीवरेज सिस्टम के विपरीत, जो ज्यादातर डिजाइन, निर्माण और सरकार द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं, साइट सिस्टम बिल्डर्स, डेवलपर्स और मेसन्स यानी राजमिस्त्री द्वारा बनाए जाते हैं। यह देखते हुए कि भारत में लगभग 50 फीसदी शहरी परिवार अभी भी किसी तरह के ऑन-साइट सिस्टम पर निर्भर हैं, राजमिस्त्री स्वच्छता मूल्य श्रृंखला की प्रमुख कड़ी हैं। उनके द्वारा निर्मित रोकथाम संरचना शौचालयों की सुरक्षा निर्धारित कर सकती है। फैकल स्लज मैनेजमेंट (एफएसएम), या साइट सिस्टम के सुरक्षित प्रबंधन, भारत में सुरक्षित स्वच्छता और लागत प्रभावी ढंग से सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

राजमिस्त्री की एक प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान प्रदर्शित रोकथाम संरचनाओं के मिट्टी के मॉडल। भारत में लगभग 50 फीसदी शहरी परिवार अभी भी किसी न किसी तरह के ऑन-साइट सिस्टम पर निर्भर हैं। राजमिस्त्री स्वच्छता मूल्य श्रृंखला की प्रमुख कड़ी हैं। उनके द्वारा निर्मित रोकथाम संरचना शौचालयों की सुरक्षा निर्धारित कर सकती है।

इस प्रकार, यह आवश्यक है कि राजमिस्त्री स्वच्छता प्रथाओं और आवश्यक मानदंडों का पालन करे। लेकिन इन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण के अलावा और कुछ नहीं मिलता, जैसा कि तमिलनाडु शहरी स्वच्छता सहायता कार्यक्रम (टीएनयूएसएसपी) द्वारा किए गए और भारतीय मानव संसाधन संस्थान (आईआईएचएस) द्वारा समर्थित इस मूल्यांकन से पता चलता है।

सरकार की ओर से पांच साल का स्वच्छता कार्यक्रम ‘स्वच्छ भारत मिशन’ भारत में खुले शौचालय को खत्म करने पर केंद्रित है। इस मिशन के चार साल पूरे हो गए हैं। मिशन के तहत बड़ी संख्या में शौचालय ऑनसाइट सिस्टम पर हैं, ऐसे में यह सुनिश्चित करना कि राजमिस्त्री प्रशिक्षित हैं, मिशन की सफलता की कुंजी हो सकती है। हालांकि इस अध्ययन का आयोजन तमिलनाडु में किया गया था। निर्धारित मानकों के प्रति जागरूकता की कमी और देश के अधिकांश हिस्सों में गैर-अनुपालन आम है।

राजमिस्त्री बनना एक पारिवारिक पेशा, इसमें औपचारिक प्रशिक्षण नहीं

इस मूल्यांकन के लिए,कोयंबटूर जिले के तीन स्थानों से सत्तर राजमिस्त्रियों का साक्षात्कार किया गया है। पाया गया कि 30 से 60 वर्ष के आयु वर्ग के किसी भी राजमिस्त्री या कोठानार के पास में कोई औपचारिक तकनीकी प्रशिक्षण नहीं थी। हो सकता है कि औपचारिक प्रशिक्षण की कमी उनके राजगीरी कौशल को प्रभावित नहीं करते हैं, लेकिन यह हो सकता है कि वे सुरक्षा मानदंडों और सरकार द्वारा निर्धारित मानकों को समझ न पाएं। तमिलनाडु में एक निर्माण परियोजना में मिस्त्री की नेतृत्व में कोठानार (कुशल मिस्त्री), मैनवेटियालस (अकुशल पुरुष श्रमिक) और चितल (अकुशल महिला श्रमिक) की एक टीम शामिल है। ठेकेदार इस श्रृंखला के बाहर हैं और निर्माण परियोजना के दौरान मिस्त्री के साथ संवाद रखते हैं। पेरियानिकेन-पलायम के एक राजमिस्त्री मुरुगन ने कहा, " यहां किसी के पास राजमिस्त्री सिखाने का समय नहीं है। आप अपने बड़ों को देखकर सीखते हैं। कभी-कभी, आपका पर्यवेक्षक आपको सुझाव देता है, लेकिन अंतत: आपको स्वयं ही सीखना है।"

अध्ययन के लिए साक्षात्कार किए गए राजमिस्त्रियों में से 60 फीसदी से अधिक मुख्य राजमिस्त्री और 41 फीसदी अन्य मिस्त्रियों ने बताया कि उन्होंने राजगीरी को पारिवारिक व्यापार के रूप में लिया था। हालांकि पुराने मुख्य राजमिस्त्रियों के मुकाबले कुशल राजमिस्त्री अधिक शिक्षित थे, लेकिन उनमें से केवल 31 फीसदी ने हाईस्कूल पूरा किया था। मुख्य राजमिस्त्रियों में, केवल 18 फीसदी ने हाईस्कूल पूरा किया था। जिनसे बातचीत की गई, उनमें से मुख्य राजमस्त्रियों में से एक चौथाई के पास औपचारिक शिक्षा नहीं थी और केवल एक ठेकेदार ने पॉलिटेक्निक प्रशिक्षण लिया था। एक-तिहाई मुख्य राजमिस्त्रियों ने पांच साल तक कुशल मिस्त्रियों के रुप में काम किया था, जबकि एक चौथाई ने मुख्य राजमिस्त्री की स्थिति तक आने से पहले 6-10 साल काम किया था। रमेश जैसे भी कुछ थे जिन्होंने अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए राजमिस्त्री का काम शुरु किया। हालांकि उनके पास अन्य योग्यताएं भी थीं। इलेक्ट्रॉनिक्स में आईटीआई (इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट) डिप्लोमा रखने वाले रमेश ने कहा, "जब मेरे पिता बीमार पड़ गए तो मुझे यह काम उठाना पड़ा। यहां आसानी से समायोजित होना आसान था क्योंकि मैं काम से परिचित था।" उसका छोटा भाई, जो हाईस्कूल स्नातक है, अब एक कोठानर है।

कुछ शौचालय, सेप्टिक टैंक सुरक्षा मानदंडों का पालन करते थे...

हालांकि लगभग केवल 3 फीसदी राजमिस्त्रियों में अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों का निर्माण करने का अनुभव था, उन्होंने नियमित रूप से शौचालयों का निर्माण किया था । जमीन से ऊपर की सुपर-स्ट्रक्चर और उप-संरचना या रोकथाम संरचनाएं जैसे 'जुड़वां पिट' और तथाकथित 'सेप्टिक टैंक', दोनों के निर्माण का उनको अनुभव था।

ऑन-साइट सिस्टम का निर्माण करने वाले निर्देशों को तकनीकी मानकों के अलावा अन्य कारकों द्वारा तय किया गया था। जगह की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण कारक (91 फीसदी) था, इसके बाद संरचनाओं के निर्माण और रखरखाव की लागत (77 फीसदी) थी।

तमिलनाडु शहरी स्वच्छता सहायता कार्यक्रम द्वारा कार्यशाला के दौरान प्रदर्शित किया गया ट्विन-पिट संरचना का मिट्टी मॉडल।

साइट की स्थितियों, परिवार के आकार, पानी की उपलब्धता और सांस्कृतिक मान्यताओं जैसे अन्य कारकों पर भी शौचालयों का निर्माण निर्धारित होता है। आमतौर पर स्वच्छता के फैसले में राजमिस्त्रियों के मुकाबले घर के मालिकों के कहने को ज्यादा महत्व दिया गया और ये अक्सर पूरी तरह उपलब्ध बजट पर आधारित होता है। अक्सर राजमिस्त्रियों की तकनीकी सलाह को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है। सर्वनन ने कहा, "हम केवल सुझाव दे सकते हैं, लेकिन निर्णय घर के मालिक द्वारा किया जाता है।" सर्वनन त्रिची में पिछले 15 वर्षों से राजमिस्त्री के रूप में काम कर रहे हैं। करीब 47 फीसदी राजमिस्त्री ने निर्माण की अनुमति देने पर इमारत से दूर उप-संरचनाओं बनाने की सूचना दी, जबकि 40 फीसदी ने उन्हें अंदर बनाने की सूचना दी है। केवल 4 फीसदी ने शौचालय के नीचे उप-संरचनाएं बनाने की सूचनी दी है। यह दर्शाता है कि जगह की बाधाएं उनके स्थान पर निर्णायक कारक बनती रहती हैं। एक मिस्त्री ने बताया कि कभी-कभी वास्तु, पारंपरिक हिंदू प्रणाली के आधार पर डिजाइन के सिद्धांत, स्थान के लिए एक निर्णायक कारक थे। एक अन्य मिस्त्री ने बताया कि कस्बों में घर के अंदर उप-संरचनाएं थीं, जबकि गांवों ने उन्हें स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधित सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण बाहर रखा था।

सफाई लागत के कारण सेप्टिक टैंक बड़े आकार का

टीमघरेलू आकार के आधार पर ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्डस (बीआईएस) द्वारा सेप्टिक टैंक के निर्माण के लिए विनिर्देश उल्लेखित है। लेकिन इन निर्णयों को आम तौर पर घर के मालिकों द्वारा लिया जाता था, और सुरक्षा के लिए आवश्यक नियमित सफाई की आवर्ती लागत से बचने के लिए, मिस्त्रियों को बड़े आकार का टैंक बनाने के लिए कहा जाता है। जब मिस्त्रियों को पांच के परिवार के लिए उपयुक्त सेप्टिक टैंक बनाने के लिए कहा गया तो 80 फीसदी ने पांच सदस्यीय परिवार के लिए 5 फीट x 2.5 फीट x 3.4 फीट टैंक संरचनाए खींची जो बीआईएस मानक की तुलना में अधिक है। केवल 20 फीसदी मिस्त्रियों ने कहा कि वे बीआईएस द्वारा निर्दिष्ट शौचालय प्रणाली के 'सही डिजाइन' के बारे में आश्वस्त थे।

सुरक्षा मानदंडों और निर्धारित मानकों को समझने की जरूरत

बीआईएस को टैंक से निकलने वाले तरल प्रदूषण के बहिर्वाह के प्रावधानों के लिए भी टैंक की आवश्यकता होती है, जिसे सूखे गड्ढ़े के लिए स्थानांतरित करने की आवश्यकता है। जबकि ज्यादातर राजमिस्त्रियों ने इस बहिर्वाह के प्रावधानों की सूचना दी, आउटलेट हमेशा सूख गड्ढे से जुड़े नहीं थे। 40 फीसदी मिस्त्रियों ने खुले नाले से सेप्टिक टैंक आउटलेट जुड़े होने की सूचना दी, यह एक ऐसा एक अभ्यास है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक और पर्यावरण के लिए प्रदूषण फैलाने वाला है। सफाई के लिए पहुंच एक और समस्या थी। बीआईएस नियमों के अनुसार, सेप्टिक टैंक को हटाने योग्य कंक्रीट स्लैब के साथ कवर किया जाना चाहिए और एक सफाई वाहन द्वारा संग्रह के लिए सड़क तक पहुंच होनी चाहिए, जैसा कि बीआईएस नियमों में बताया गया है। लेकिन करीब आधे मिस्त्रियों ने सीलबंद कंक्रीट स्लैब द्वारा कवर सेप्टिक टैंक बनाने की सूचना है, जो स्वच्छता श्रमिकों के लिए गंभीर सुरक्षा मुद्दों का कारण बनता है। ये सभी त्रुटियां ऑनसाइट सिस्टम और साइट प्रथाओं के निर्माण के मानकों के बीच महत्वपूर्ण अंतर को दिखाते हैं। सेप्टिक टैंक बनाने के तरीके पर मिस्त्रियों की जानकारियों में भी अंतर था - लगभग 32 फीसदी ने सही डिजाइन निष्पादित करने में सक्षम होने के बारे में आत्मविश्वास की कमी व्यक्त की। उनमें से 20 फीसदी ने कहा कि वे इस जानकारी के लिए इंजीनियरों पर निर्भर थे।

राजमिस्त्रियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता

यह अंतर मौजूद न हों और ऑन-साइट सिस्टम मानकीकृत हों, यह सुनिश्चत करने के लिए प्रशिक्षण आवश्यक है। सर्वेक्षण के दौरान, साक्षात्कार किए गए 70 मिस्त्रियों में से 60 ने प्रशिक्षित होने में रुचि व्यक्त की। इसके बाद, टीएनयूएसएसपी द्वारा संचालित कार्यशालाओं में करीब 126 मिस्त्री प्रशिक्षित किए गए।

तमिलनाडु शहरी स्वच्छता सहायता कार्यक्रम द्वारा संचालित एक कार्यशाला के दौरान प्रशिक्षण सत्र में भाग लेते राजमिस्त्री।

इन कार्यशालाओं में, राजमिस्त्रियों को एफएसएम का एक सिंहावलोकन दिया गया था, और मौजूदा निर्माण मानकों पर प्रशिक्षित किया गया था, विशेष रूप से सेप्टिक टैंक और जुड़वां गड्ढे के संबंध में। स्वच्छता प्रणाली में मिस्त्रियों के महत्व पर भी जोर दिया गया था। प्रशिक्षण में कक्षा सत्र और साइट पर दोनों प्रदर्शन शामिल थे और राजमिस्त्रियों का मूल्यांकन तकनीकी शर्तों के उनके ज्ञान और मानकों के आधार पर सिस्टम तैयार करने की क्षमता पर किया गया था।

तमिलनाडु शहरी स्वच्छता सहायता कार्यक्रम द्वारा एक कार्यशाला के दौरान राजमिस्त्रियों को सेप्टिक टैंक बनाने के लिए दिया गया ऑन-साइट प्रदर्शन

सत्र में, यह पाया गया कि राजमिस्त्रियों को बीआईएस मानकों के संबंध में बताने से उन्हों घर के मालिकों को तकनीकों रूप से उपयुक्त विकल्पों का चयन करने के लिए राजी कराने में मददगार साबित हो सकता है। ऑन-साइट सिस्टम, जो निर्धारित मानदंडों के लिए नहीं बनाए गए हैं, एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम है। खुले में शौचालय मुक्त गांवों को सुनिश्चित करने के लिए शौचालयों का निर्माण स्वच्छ भारत मिशन के कुछ प्रचारित पहलुओं में से एक है, FactChecker ने पाया है कि कुशल सीवेज और सेप्टेज निपटान के लिए अपर्याप्त ध्यान दिया गया है। यह मूल्यांकन दर्शाता है कि निर्माण में शामिल लोग - घर के मालिक, ठेकेदार, बिल्डर्स - सभी प्रशिक्षित राजमिस्त्री के महत्व को समझें, और सुरक्षित और प्रभावी स्वच्छता संरचना सुनिश्चित करने के लिए उनकी बात सुनें।

* इस रिपोर्ट में सभी नाम बदल दिए गए हैं।

(यह आलेख तमिलनाडु शहरी स्वच्छता सहायता कार्यक्रम (टीएनयूएसएसपी) द्वारा लिखा गया है, जो भारतीय मानव संसाधन संस्थान, बेंगलुरू में स्थित है। टीएनयूएसएसपी का उद्देश्य तमिलनाडु में स्वच्छता के पूर्ण चक्र के साथ सुधार लाना है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 02 अक्टूबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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