नोटबंदी के बाद छोटे दुकानदारों का संघर्ष जारी, लेकिन मोदी के समर्थकों की कमी नहीं
मुंबई से सटे ठाणे जिले के भिवंडी-वाडा रोड पर 62 वर्षीय अंबिका कुंभर अपनी 34 वर्षी बहू के साथ एक किराने की दुकान चलाती हैं। देश की आर्थिक राजधानी में इंडियास्पेंड द्वारा में किए गए सर्वेक्षण में नोटबंदी के बाद कुंभरों द्वारा चलाए जाने वाली किराने की दुकान से होने वाली अपनी कमाई में 62 फीसदी गिरावट की पाई गई है।
मुंबई: देश की आर्थिक राजधानी। मुंबई से सटे ठाणे जिले में भिवंडी-वाडा सड़क पर 'श्री स्वामी समर्थ' नाम की 100 वर्ग फुट की एक दुकान है। यहां कोल्ड ड्रिंक्स, तली हुई नमकीन, बर्तन और कई अन्य सामान बेची जाती हैं। अंदर एस्बेस्टस की तीन शीट, ईंटों और लोहे से बनी दुकान पर 62 वर्षीय अंबिका कुंभर पैसों के गल्ले के सामने बैठी हैं। कुंभर की नजर सड़क पर आने जाने वाहनों पर इस उम्मीद के साथ टिकी हैं कि शायद वे उनकी दुकान पर रुक जाएं।
लगभग एक साल पहले, कुंभर के परिवार ने 4,000 रुपए से कम की बचत के साथ पैसा-पैसा जोड़ कर महाराष्ट्र राज्य राजमार्ग 35 पर ये दुकान खरीदी थी। दुकार का आकार दो टैनिस टेबल की तुलना में थोड़ा सा बड़ा है। कुंभर पारंपरिक रूप से कुम्हार हैं, जो महाराष्ट्रीय हिंदू जाति में सबसे निचले स्तर पर आता है।
जब वे मिट्टी के बर्तन बनाते और ईंट भट्टों में पकाते थे, तो कभी-कभी अच्छे दिनों में उनकी कमाई 150 रुपए से 200 रुपए तक हो जाती थी।
लेकिन जब इन्होंने अपना पारम्परिक काम बदल कर दुकान चलानी शुरु की तो इनकी कमाई में भी बदलाव आया। अब ये प्रति सप्ताह 700 रुपए से 800 रुपए तक कमाने लगे।
लेकिन यह स्थिति 8 नवंबर 2016 के पहले तक ही थी, जब प्रधानमंत्री ने 500 और 1,000 रुपए के नोटों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। हम बता दें कि इस घोषणा से भारतीय बैंकों में, मूल्य अनुसार प्रचलित 86 फीसदी नोटों या 14.8 लाख करोड़ रुपए (217 बिलियन डॉलर) पर रोक लगाई गई थी।
कुंभर कहती हैं, “हमने टीवी पर मोदीजी की घोषणा सुनी। हम कुछ खास चिंतित नहीं हुए, क्योंकि हमारे पास शायद ही कुछ नकद में होता है। हम जो भी कमाते हैं, उनमें से ज्यादातर दैनिक खर्च में चला जाता है। लेकिन हमारे व्यापार पर इसका प्रभाव पड़ा है।”
वर्तमान में, 'श्री स्वामी समर्थ' की कमाई में 62 फीसदी की गिरवाट हुई है। अब कुंभर प्रति सप्ताह 200 से 300 रुपए तक कमाती हैं। कुंभर कहती है, “हमें बिजली का बिल भरने में भी परेशानी हो रही है। अब यहां पहले की तरह कारें नहीं रुकती हैं।”
इंडिया रिटेल फोरम के साथ एक संस्था प्राइस वाटर हाउस कूपर्स द्वारा वर्ष 2015 की इस रिपोर्ट के अनुसार देश भर में कम से कम 1.2 करोड़ से 1.4 करोड़ किराने की दुकानें हैं । ये सारी दुकानें नोटबंदी से हुए नुकसान की चपेट में हैं। मोटे तौर पर फ्रांस या थाईलैंड के बाराबर की आबादी अपने जीवन यापन के लिए इन दुकानों पर निर्भर हैं।
नोटबंदी की घोषणा के छह दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम दिए गए संदेश में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए 50 दिन (30 दिसंबर, 2016 तक) देने का अनुरोध किया था
नोटबंदी के 54 और 55 दिन के बाद छोटे खुदरा दुकानों पर नोटों के रोक के प्रभाव का आकलन करने के लिए इंडियास्पेंड ने मुंबई और, अर्द्ध शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 24 छोटे दुकानों का दौरा किया है। मुंबई महानगर क्षेत्र के पालघर, ठाणे और मुंबई जिलों में हमने पाया:
- सवालों का जवाब देने वालों में से करीब 80 फीसदी लोगों ने 50 से 60 फीसदी या ज्यादा के नुकसान होने की बात कही।
- सभी दुकानों में से 38 फीसदी से कम (मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में स्थित) ने प्वाईंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीनों या मोबाइल-बटुए को अपनाया है, जबकि ग्रामीण इलाकों में किराना दुकानें अभी भी केवल नकदी पर निर्भर करते हैं।
- सर्वेक्षण में आधे दुकानों ने नोटबंदी का समर्थन किया, जबकि एक बड़ा अनुपात (58 फीसदी) मोदी के विचारों का समर्थन करते दिखाई दिए।
मुंबई के महानगरीय क्षेत्र में किराना की दुकानों की अपनी दुनिया है
खुदरा व्यापार भारत में रोजगार का एक बड़ा साधन है और मुबंई इसका केंद्र है।
वर्ष 2016 की डेमोग्राफिक वर्ल्ड अर्बन एरियाज रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई महानगर क्षेत्र 1.83 करोड़ लोगों का घर है, जो दुनिया की छठी सबसे बड़ी शहरी आबादी है। भारत के रिटेलर्स एसोसिएशन के साथ अंतरराष्ट्रीय संपत्ति सलाहकार नाइट फ्रैंक द्वारा वर्ष 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, इन 1.83 करोड़ लोगों का अनुपात भारत के 12 करोड़ लोगों में से 1.5 फीसदी से ज्यादा नहीं है, लेकिन भारत के खुदरा खर्च में इनकी लगभग एक तिहाई (29 फीसदी) की हिस्सेदारी है। दूसरे और तीसरे स्थान पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (25 फीसदी) और बेंगलुरू (15 फीसदी) है।
वर्तमान में भारत का खुदरा बाजार 60000 करोड़ डॉलर का है। 5.8 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से विस्तार के साथ इसे "दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते प्रमुख विकासशील खुदरा बाजार" के रूप में माना जाता है। एक अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकारी संस्था ए टी कर्नी की वर्ष 2015 की रिपोर्ट के अनुसार ‘ग्लोबल रिटेल विकास सूचकांक’ में भारत 15वें स्थान पर है। वर्ष 2013 की योजना आयोग की रिपोर्ट कहती है कि खुदरा क्षेत्र 8 फीसदी या 3.5 करोड़ लोगों का कार्य स्थल है और कृषि और निर्माण के बाद रोजगार का देश में तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है।
यह सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15 फीसदी का योगदान है और असंगठित किराना दुकानें 94 फीसदी उद्योग का गठन करते हैं। वर्ष 2014 की डेलॉइट अध्ययन के अनुसार, खाद्य और किराना आधे से अधिक पर फैला हुआ है।
भारत का खुदरा व्यापार क्षेत्र
Source: Planning Commission, 2013
नाइट फ्रैंक के अनुसार विशेष रुप से दैनिक जरूरतों के खुदरा बाजार के लिए मुंबई महानगरीय क्षेत्र की क्षमता वर्ष 2036 की आबादी तक लगभग 50 फीसदी तक पहुंच जाने की संभावना है। अभी इस बाजार की क्षमता 13.5 फीसदी है।
शहरी क्षेत्रों में धीमी गति से सुधार, ग्रामीण क्षेत्रों में थोड़ा सा परिवर्तन
महाराष्ट्र के कोंकण डिवीजन में किराना स्टोर मालिकों के साथ बात करने पर इंडियास्पेंड ने पाया कि सर्वे में शामिल करीब 80 फीसदी दुकानदारों को 50 से 60 फीसदी या उससे ज्यादा का नुकसान हुआ है। नटबंदी के बाद से मुंबई, ठाणे और पालघर जिलों में कम से कम 10 फीसदी के नुकसान की सूचना है।
नोटबंदी के बाद से नुकसान
मुंबई जिला और गोबंदर के परिधीय क्षेत्रों और ठाणे जिले के मीरा-भायंदर के 60 फीसदी उत्तरदाताओं के जवाब से निष्कर्ष निकलता है कि व्यापार में अब धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।पालघर जिले के विरार और वसई के बीच अर्ध-शहरी और पेरी शहरी क्षेत्रों के कम से कम 75 फीसदी उत्तरदाताओं ने बताया कि अब तक कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है।
क्या आपको लगता है कि स्थिति सुधारी है?
ठाणे और पालघर जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों के जिन किराने के दुकानों का हमने दौरा किया, उनका कहना था कि नोटबंदी के बाद से उनके व्यापार में गिरावट हुई है और तब से यह सुस्त ही चल रहा है।
वाडा और मुंबई के उत्तर-पूर्व विक्रमगढ़ के बीच 203 दुकानों के किराने की आपूर्ति का प्रबंधन करने वाले व्यापारी संतोष जाधव कहते हैं कि, “अब किसी के पास पैसा नहीं है। पूरी श्रृंखला टूट गई है।”
42 वर्षीय योगेश प्रजापति होलसेल विक्रेता संतोष जादव के ग्राहक हैं। योगेश भिवंडी-वाडा रोड पर 150 वर्ग फुट के एक किराना दुकान के मालिक हैं। वह कहते हैं, “पहले मुझे हर घंटे कम से कम एक ग्राहक मिलता था। लेकिन अब बिक्री हुए भी कई दिन निकल जाते हैं। ” पांच सदस्य के परिवार में प्रजापति अकेले कमाऊ सदस्य हैं। प्रजापति कहते हैं कि नवंबर के बाद से उसके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वे बच्चों के स्कूल की फीस दे सकें या दुकान का किराया दे सकें। वह कहते हैं, “मैं इस महीने के बाद ही पैसे दे पाने में सक्षम हो पाऊंगा जब मेरे दुकान के बगल वाली फैक्ट्री एकमुश्त में समान खरीदेंगी और चेक में भुगतान करेंगी। सौभाग्य से स्कूल और मेरे मकान मालिक मेरी परेशानी को समझ रहे हैं।”
नोटबंदी के बाद ज्यादातर दुकान के मालिकों के लिए सबसे बड़ी परेशानी 2000 रुपए का छुट्टा देना ही है।
किवाड के पास भिवंडी जिले में वघवाली गांव के आदिवासी इलाके के पास 30 वर्षीय ललिता पाटिल की दुकान है। पाटिल पिछले दो सालों से दुकान चलाती हैं। पाटिल कहती हैं कि, “मैं आपूर्तिकर्ताओं से अधिक माल खरीदने के लिए मजबूर हूं, क्योंकि वे छुट्टे देने से मना कर देते हैं। लेकिन मैं अपने रोज के ग्राहकों के साथ ऐसा कैसे कर सकती हूं। मेसे ज्यादातर ग्राहक दैनिक मजदूर हैं।”
Lalita Patil,30, owns this 2yr-old shop attached to her home in Vishipatta village near Kawad, an adivasi settlement pic.twitter.com/dlmAXA6fFF
— Alison (@bexsaldanha) January 3, 2017
"I'm forced to buy more goods as suppliers refuse to return change. Can't treat my customers the same as they're daily wage labourers."
— Alison (@bexsaldanha) January 3, 2017
We storified our tweets from IndiaSpend's visit to kirana stores. You can read them all here.
व्यापार करने के लिए कोई अन्य साधन न होने के साथ, सभी दुकानदारों ने कहा कि नोटबंदी के कारण हुए प्रारंभिक संकट से निबटने के लिए अपने प्रयास से वे अभी भी नियमित रूप से आने वाले ग्राहकों के लिए ‘क्रेडिट लाइन’ का विस्तार कर रहे हैं।
42 वर्षीय कमलाकर पाटील दुगाड गांव में एक किराने की दुकान चलाते हैं। पाटील कहते हैं, “मैं दो महीने से अधिक समय से पूरे गांव को उधार पर माल दे रहा हूं – या तो उनके पास नकद नहीं है या फिर उन्हें छुट्टे देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं है।” 9 नवंबर 2016 के बाद से पाटील ने अपने व्यापार में 50 फीसदी नुकसान होने की बात कही है।
कैशलेस की राह में भटके हुए हैं शहरी किराना दुकानें, ग्रामीण लोगों को जानकारी नहीं
सरकार की कैशलेस होने पर जोर देने के जवाब में शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्रों में केवल 8 फीसदी दुकानदारों ने चेक लेने की बात स्वीकार की है। लेकिन सिर्फ अपने नियमित ग्राहकों से। 17 फीसदी ने कहा कि अब वे अपनी दुकानों में पीओएस मशीन का इस्तेमाल कर रहे है, जबकि 21 फीसदी का कहना था कि उन्होंने बैंकों में डिवाइस के लिए आवेदन दिया है या देंगें।
क्या आपके पास पीओएस मशीन है?
20 फीसदी दुकानदार, जिनके पास ‘मोबाइल-बटुआ’ की सुविधा, उन्होंने बताया कि ज्यादातर ग्राहक इसे इस्तेमाल करने के लिए अनिच्छुक हैं।
ठाणे के गोदबंदर में एक दुकान के मालिक थनाराम चौधरी कहते हैं, “ मैंने मोबाइल बटुआ खोला है, लेकिन मेरे अकाउंट में अब भी शून्य बैलेंस है। ” नोटबंदी के बाद से चौधरी के व्यापार में 55 से 60 फीसदी की नुकसान हुआ है।
चौधरी, जो बैंक से अपने पीओएस मशीन के आने का इंतजार कर रहे हैं, खरीद के लिए हर कार्ड स्वाइप पर लगाए गए शुल्क के संबंध में भी आपत्ति जताई। वह कहते हैं, “इससे मेरे थोड़े से मुनाफे के मार्जिन में सेंध लगती है। यही कारण है कि हम नकद में बिक्री करना ज्यादा पसंद करेंगे।”
"Took a PayTM a/c over a month ago. The balance remains nil as nobody pays through it." : Thanaram Choudhari (1/2) pic.twitter.com/sJkgE97UkV
— Alison (@bexsaldanha) January 2, 2017
#NoteBandi hasn't caused too much difficulty but extra charges on cashless transactions are eating our profits. Prefer cash sales any day.
— Alison (@bexsaldanha) January 2, 2017
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1,000 रुपए और 500 के नोट, समाप्त करने के बाद एक महीने बाद केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि 2,000 रुपए तक डेबिट और क्रेडिट कार्ड लेनदेन की सेवा कर वसूली से मुक्त होगा, जैसा कि दिसम्बर 2016 की द हिन्दू की इस रिपोर्ट में बताया गया है।
खजूर के पेड़, और पुर्तगाली शैली में बने विला और चर्चों वाला इलाका वसई, जो अब रियल एस्टेट उद्योग से चलता है, वहां 40 वर्षीय मंजीत पटेल की किराना की दुकान में कम से कम पिछले सात सालों से पीओएस मशीन है। पटेल कहते हैं कि, “नोटबंदी के बाद मशीन का इस्तेमाल चार गुना बढ़ा है, लेकिन व्यापार में नुकसान 60 फीसदी रहा है। कई लोगों को पता नहीं है इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कैसे करते हैं और 2,000 रुपए के छुट्टे के बिना मेरे व्यापार में अच्छी-खासी गिरावट हुई है।”
ग्रामीण ठाणे और पालघर इलाके में, जिन भी दुकानों का सर्वेक्षण इंडियास्पेंड ने किया, वहां पाया कि किसी भी दुकानदार के पास पीओएस डिवाइस या मोबाइल बटुआ नहीं है और न ही वे इसे रखने की इच्छा रखते हैं। साक्षात्कार किए गए 50 फीसदी उत्तरदाताओं ने कैशलेस मोड के संबंध में नहीं सुना था। विरार में दुकान के मालिक रामेश्वर गुप्ता ने कहा कि, “एटीएम कार्ड और मोबाइल बटुआ के साथ वाले लोग किराने की दुकान में खरीददारी नहीं करते हैं, वे सुपरमार्केट जाते हैं। न तो मैं मोबाइल-बटुआ का इस्तेमाल करना जानता हूं और न ही मेरे ग्राहक।”
पालघर जिले में भारी औद्योगिक क्षेत्र तालुका वाडा के खुपरी गांव में 34 वर्षीय श्याम जादव की छोटी सी दुकान है। जादव कहते हैं कि वे कैशलेस की व्यवस्था करेंगे यदि उनके ग्राहक इसकी मांग करेंगे। वह कहते हैं, “लोगों के पास यहां बैंक खाते नहीं हैं। मैं ऐसी प्रणाली कैसे ला सकता हूं, जब यहां के लोगों के पास इसे इस्तेमाल करने की क्षमता नहीं है। यहां के लोग अनपढ़ हैं, और सब कुछ नकदी पर चलता है, तो ऐसे में कैशलेस का क्या औचित्य हैं।”
वाडा क्षेत्र में एक खुदरा आपूर्तिकर्ता संतोष जाधव कहते हैं, “मैं हरेक दुकानदार से चेक नहीं लेना चाहता हूं, क्योंकि इसके बाद मैं अगर किसी बड़े व्यापारी को चेक देता हूं तो वे चेक की प्रक्रिया समाप्त होने तक वितरण के लिए उत्पाद जारी नहीं करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में बहुत धन और समय व्यर्थ होता है।”
Goods supplier Santosh Jadhav: From Wada to Vikramgad, supply chain to 203 Kiranas has broken down. Nobody has money pic.twitter.com/WCvgsiIR7b
— Alison (@bexsaldanha) January 3, 2017
I don't take cheques from every store owner & companies refuse to give me goods till these cheques clear in the banks. (2/2)
— Alison (@bexsaldanha) January 3, 2017
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बातचीत में जितने भी दुकानदार शरीक हुए, उन सभी दुकानदारों में हमने पाया कि करीब 60 फीसदी एक ही विचार से सहमत हैं – या तो उनके दुकान बहुत छोटे थे और मोबाइल बटुए या पीओएस मशीन के लिए बहुत कम मूल्य की खरीद होती है या उनके ग्राहक इतने शिक्षित नहीं हैं कि वे कैशलेस हो सकें।
क्यों किराना दुकानदार कैसलेस होने के इच्छुक नहीं?
सभी 24 उत्तरदाताओं ने यह स्वीकार किया कि पिछले कुछ सालों में सुपरमार्केट और आधुनिक खुदरा दुकानों के आ जाने से छोटी किराना दुकानों का महत्व खोता जा रहा था और नोटबंदी के बाद इसमें तेजी आई है।
नोटबंदी के बाद नीति में उतार-चढाव (इंडियन एक्सप्रेस में दिसंबर 2016 की इस रिपोर्ट के अनुसार 50 दिनों में भारतीय रिजर्व बैंक ने 74 अधिसूचनाएं जारी की हैं) पर विरार के एक दुकानदार कहते हैं, “हम बहुत चिंता में हैं। हर दिन एक नया नियम बनाया जा रहा है। हमें समझ नहीं आता कि हम क्या करें। अगर हम मोबाइल बटुआ या पीओएस मशीन ले भी लें तो इससे सुपरमार्केट की ओर ग्राहकों का जाना बंद नहीं होगा।”
क्या संगठित खुदरा का मतलब कैशलेस है?
वर्ष 2015 में टी कर्नी की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 तक , 1.3 ट्रिलियन तक पहुंचने के लिए भारत का खुदरा बाजार अपने मौजूदा आकार की तुलना में लगभग दोगुना हो जाएगा। रिपोर्ट में भारत के खुदरा बाजार के मतजबत बिकास की बात स्वीकार की गई है-“प्रधानमंत्री जिस ढंग से व्यवसाय की प्रगति के लिए लगे हुए हैं और व्यवसाय को मौजूदा 142वें रैंक से 50वें तक लाने लक्ष्य रखा गया है, का उससे लगता है कि सरकार को न सिर्फ उपभोक्ताओं के हित का ध्यान है, बल्कि निवेशकों की भावना का भी ख्याल रखा जा रहा है।”
संगठित खुदरा व्यापार का अर्थ है व्यापारिक गतिविधियां, जो लाइसेंस खुदरा विक्रेताओं द्वारा किए जाते हैं। यह विक्रेता करों का भुगतान करते हैं, चाहे वो बिक्री कर हो, आयकर, वैट, और अब, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) हो।
दूसरी ओर असंगठित खुदरा बिक्री कम लागत खुदरा बिक्री के परंपरागत स्वरूप को संदर्भित करता है - उदाहरण के लिए, परिवारिक रुप से चलाने वाले किराना दुकान, पान / बीड़ी की दुकानों, सुविधा स्टोर, हाथ गाड़ी और फुटपाथ विक्रेताओं, जो लेनदेन के लिए उचित रसीदें जारी नहीं करते हैं और करों का भुगतान नहीं करते हैं।
पांडिचेरी विश्वविद्यालय से वर्ष 2014 के इस शोध पत्र के अनुसार, सदियों से भारत के खुदरा व्यापार का मुख्य आधार ये छोटी दुकानें हैं, जो आजीविका का स्रोत रहे हैं और शिक्षित बेरोजगार और अर्द्ध शिक्षित बेरोजगारों को शरण दे रहे हैं। ये दुकानें मुश्किल से 500 वर्ग फुट से अधिक होती हैं। शोध के अनुसार इनकी लागत और मार्जिन दोनों कम होती हैं। वह करों का कम भुगतान करते हैं और अपने ग्राहकों को जानते हैं।
नाम न बताने की शर्त पर एक आर्थिक विशेषज्ञ ने कहा कि जीएसटी इसमें बदलाव ला सकता है, यदि आपूर्ति श्रृंखला अनौपचारिक प्राप्तियों के साथ प्रोत्साहित किया जाए तो...। विशेषज्ञ कहते हैं, “संगठित होने के बावजूद, फुटकर बिक्री नकद भुगतान स्वीकार कर सकते हैं। फुटकर विक्रेता द्वारा भुगतान के तरीके स्वीकार किए जाने का फुटकर बिक्री का असंगठित या संगठित होने से कोई मतलब नहीं है।”
वर्ष 2015 पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में, 17 फीसदी -या, 204 मिलियन भारतीय स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, जिनमें से 54 फीसदी (110 मिलियन) से ज्यादा डिजिटल खरीद के लिए फोन का उपयोग नहीं करते हैं। विशेषज्ञ का कहना है कि, “भुगतान डिजिटल रूप से प्राप्त करना उनके (किराना दुकानों) पक्ष में हो सकता है, क्योंकि यह उन्हें औपचारिक ऋण की पहुंच की अनुमति देगा। किसी भी लेन-देन विवरण या दस्तावेज व्यापार खातों के अभाव में बैंक उन्हें उधार देने के लिए उत्सुक नहीं दिखाई देते हैं।”
घाटे के बावजूद नोटबंदी और मोदी के समर्थन में लोग
परंपरागत रूप से, छोटे व्यापारी और परिवारिक रुप से किराना दुकान चलाने वाले लोग मोदी के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए एक मजबूत वोट बैंक हैं।
वर्ष 2006 में, भारत में 51 फीसदी तक विदेशी निवेश के लिए एकल ब्रांड खुदरा क्षेत्र खोला गया था। वर्ष 2012 में इसे हटा दिया गया लेकिन बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश पर 51 फीसदी की सीमा से दृढ़ बनता है कि भाजपा के इस तरह के कदम छोटे, स्वतंत्र दुकानों को चोट पहुंचेगी, जैसा कि सितंबर 2016 की इकोनॉमिक टाइम्स की इस रिपोर्ट में बताया गया है।
पार्टी के रुख में से एक में परिवर्तन का संकेत देते हुए मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कहा था कि छोटे व्यापारियों को प्रौद्योगिकी में भरोसा जताना होगा।
फरवरी 2014 में, मिंट में उद्कृत इस रिपोर्ट के अनुसार, “अगर किताबें ऑनलाइन उपलब्ध हैं, तो किसी को भी दुकान का दौरा करने के लिए कोई वजह नहीं है।”
हालांकि, नोटबंदी से विपरीत परिस्थितियां आई हैं। लेकिन शहरी अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वेक्षण किए गए दुकानदारों में से आधे ने नोटबंदी के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है। वे मानते हैं कि "अमीर दोषी को दंडित" करने की राह में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और यह देश के भले के लिए किया जा रहा त्याग है।
दुगड गांव के दुकानदार, पाटिल कहते हैं, “हम गरीब वैसे भी नियमित रूप से किसी न किसी प्रकार पीड़ित रहते हैं। अगर अमीर भी भुगतान करने के लिए मजबूर हो रहे हैं तो हम थोड़ा और सह सकते हैं।”
भिवंडी तालुका के वजरेश्वरी शहर में एक सुविधा की दुकान के मालिक सनी पाटकर (27) को उम्मीद है कि काले धन का मुद्दा हल करने के अलावा नोटबंदी से अन्य लाभ भी होंगे। वह कहते हैं, “इससे अधिक लोगों को कर प्रणाली में प्रवेश करने में मदद मिलेगी और जो सरकार ज्यादा कमाएगी उससे शायद हमें प्रोत्साहन / लाभ और बेहतर विकास मिले।”
जैसा कि हमने बताया 58 फीसदी उत्तरदाता प्रधानमंत्री का समर्थन करते नजर आए। लगभग 21 फीसदी ने समर्थन करने वाले राजनीतिक दल पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। बाकी 21 फीसदी ने कहा कि उन्होंने वोट नहीं दिया या चुनाव की परवाह नहीं है।
भिवंडी तालुका में हिवाली गांव की 28 वर्षीय मेघा पाटिल उनमें से हैं, जिन्होंने नोटबंदी पर टिप्पणी नहीं दी हैं। इनका मानना है कि वे अपने गांव को लाभ दिलाने में असफल रहे थे। वे कहती हैं, “हम अब ज्यदा समय खेत पर देते हैं क्योंकि दुकान पर अब कमाई नहीं होती है।” पाटिल कहती हैं, “नोटबंदी से हुई परेशानी के बावजूद हमारा गांव मोदी जी का समर्थन करता है। हम बस इतना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री उन गरीबों की ओर और ध्यान दें जो किसान नहीं हैं।”
"Business is down so we work on the farm more," Megha Patil, Hivali village, Bhiwandi Taluka pic.twitter.com/p9U5krQ8X8
— Alison (@bexsaldanha) January 3, 2017
"Everyone in our village supports Modi despite #Notebandi difficulty. Just wish PM would pay more attention to the poor-not only farmers."
— Alison (@bexsaldanha) January 3, 2017
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गांव से एक अन्य दुकानदार, वसंत बोहिर ने स्वीकार किया कि कुछ लोग ऐसे हैं जो मोदी को समर्थन देने के संबंध में दोबारा सोच रहे हैं। “उनकी सोच के लिए आप उन्हें दोषी नहीं ठहरा सकते हैं। हालांकि कई लोग बोलते हैं कि यह देश की भलाई के लिए है। लेकिन इससे हम जैसे लोगों को काफी परेशानी हुई है।”
वाड़े के खुपारी गांव के किराना दुकान के मालिक जाधव का मानना है कि मोदी को सलाह देने वाले अच्छे लोग हैं। जाधव कहते हैं कि, "मेरा केवल एक ही डर है कि सरकार अमीर लोगों के यहां काले धन की जमाखोरी पकड़ रही है। लेकिन ऐसे भी कई लोग हैं, जिन्होंने बड़ी मात्रा में काले धन को सफेद कर लिया है।'
अगर हम फिर से अंबिका कुंभर और उनकी बहू की बात करें तो उनका मानना है कि अमीरों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा है। वह कहती हैं कि, “हो सकता है कि सरकार द्वारा 31 दिसंबर को की गई घोषणा से गरीबों को लाभ मिलेगा। लेकिन बीच में केवल हम जैसे लोग पीड़ित रहते हैं।”
(सलदनहा सहायक संपादक हैं और इडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 16 जनवरी 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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