2016 में जंगलों में लगने वाली आग में 30% वृद्धि
वर्ष 2016 के पहले चार महीनों में, जंगलों में लगने वाली आग में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है। गौर हो की 21 अप्रैल 2016 तक जंगलों में लगने वाली आग के 20,667 मामले दर्ज किए गए हैं जबकि 2015 में यह आंकड़े 15,937 दर्ज किए गए थे। यह आंकड़े 26 अप्रैल, 2016 को लोक सभा में पेश किए गए हैं।
7 अप्रैल 2016 को हिमाचल प्रदेश के जंगल में लगी आग लगी थी और अब तक 4,500 हेक्टर आग की भीषण चपेट में आ चुका है। यह फरवरी 2016 में उत्तराखंड में 3,185 हेक्टर में फैली आग की तुलना में 40 फीसदी अधिक है।
इसी तरह, जम्मू कश्मीर के राजौरी ज़िले के बथुनी के जंगली इलाकों में 1 मई 2016 को आग लगी थी।
वर्तमान में जब भारत पानी की कमी की समस्या से जूझ कर रहा है, ऐसे में उत्तराखंड सरकार को आग बुझाने के लिए दो एमआई -17 हेलीकाप्टरों का इस्तेमाल करते हुए प्रति लीटर पानी के लिए 85 रुपए खर्च करना पड़ा है।
इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वन 701,673 वर्ग किलोमीटर या 21.34 फीसदी तक फैला है। 2011 से 2015 के बीच, चार वर्षों में वन क्षेत्र में 9646 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है।
2011 से अब तक, जंगलों में आग लगने की कम से कम 117,369 घटनाएं दर्ज की गई हैं। जंगलों में लगने वाली आग राष्ट्रव्यापी घटना है लेकिन वे तीव्रता और प्रकृति में भिन्न हैं; जंगलों में लगने वाली आग का मौसम फरवरी से जून तक है।
जबकि 54 फीसदी दर्ज की गई वन क्षेत्र में आग लगने की संभावना अधिक है, सालना केवल 6 फीसदी भारतीय जंगलों में गंभीर आग से नुकसान होने का खतरा है।
पिछले पांच वर्षों में जंगलों में लगने वाली आग
Source: Lok Sabha 1, 2; Figures for 2016 as on 21.04.2016.
मिजोरम के उत्तर- पूर्वी राज्य में जंगलों में लगने वाली आग के 2,468 मामले दर्ज किए गए हैं – यह आंकड़े 2015 में सबसे अधिक हैं। इस संबंध में 1,656 मामलों के साथ असम दूसरे, 1,467 के आंकड़ों के साथ ओडिशा तीसरे , 1,373 के साथ मेघालय चौथे और 1,286 के साथ मणिपुर पांचवे स्थान पर रहा है।
जंगलों में आग : टॉप पांच राज्य
Source: Lok Sabha 1, 2; Figures for 2016 as on 21.04.2016; Ranking based on 2015 figures.
2015 में पूरे देश के जंगलों में लगने वाली आग में इन टॉप राज्यों की हिस्सेदारी 52 फीसदी है।
2016 में छत्तीसगढ़ के पूर्वी राज्य में सबसे अधिक जंगलों में आग लगने की घटना दर्ज की गई है – अप्रैल 2016 तक 2,422 - ओडिशा में 2,349 और मध्य प्रदेश में 2,238 घटनाएं दर्ज की गई हैं।
95 फीसदी से अधिक आग लोगों की लापरवाही के कारण लगती है। शेष 5 फीसदी, प्राकृतिक कारणों जैसे कि बिजली और तापमान में अत्यधिक वृद्धि के कारण लगती है।
पर्यावरण और वन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 4 मई, 2016 को कहा “आग की घटनाएं नई नहीं हैं लेकिन इस बार गर्मी के कारण नमी का स्तर कम हो गया है जिस कारण कभी-कभार स्थिति उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसी हो जाती है।”
जंगलों में लगने वाली आग के प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि, उत्तराखंड के जंगल में लगी आग से ग्लेशियर तेजी से पिघल सकता है (धुंध और राख से निकला काला कार्बन उन्हें घेर रहा है जिससे उनके पिघलने का खतरा बढ़ रहा है।)
जंगल में लगने वाली आग पर्यावरण के क्षरण का मुख्य कारण होते है क्योंकि अनियंत्रित आग से वनस्पति और कार्बनिक पदार्थ की सतह जल जाती है एवं इससे मिट्टी का कटाव होता हैं और बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाता है।
जंगलों में लगने वाली आग से लकड़ी संसाधनों को हानि पहुंचने के साथ वन्य जीवन के पैटर्न और वास और जलवायु परिवर्तन में विघ्न उत्पन्न होता है।
वन आग आपदा प्रबंधन की रिपोर्ट के अनुसार, जंगलों में लगने वाली आग से होने वाली आर्थिक हानि करीब प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर 90,000 रुपए होने का अनुमान है।
दुनिया भर के जंगलों में लगने वाली आग
चाड, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत और कनाडा जैसे देशों में लगने वाली आग के कारण औसतन, सालाना एक मिलियन हेक्टर से अधिक जंगल जलते हैं।
इंडोनेशिया में,जंगल में लगने वाली घटनाएं मौसमी हैं जोकि कृषि स्लेश और जलाने के अभ्यास के कारण लगती है। पिछले वर्ष 130,000 से अधिक जंगल में आग लगने की घटनाएं हुई हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है। यह भी बताया गया है कि कैसे इंडोनेशियाई आग वैश्विक जलवायु प्रभावित कर रहे हैं।
इंडोनेशियाई सरकार ने वन और पीट-भूमि आग के परिणाम के कारण अपने 63 फीसदी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का अनुमान किया है।
( मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 11 मई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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