खाद का खेल: उचित उपलब्धता के सरकारी दावे और खाली हाथ लौटते किसान

रबी के सीजन में किसानों को गेहूं, आलू और सरसों की बुवाई करनी है, लेकिन किसान खाद की किल्‍लत से जूझ रहे हैं।

Update: 2021-11-29 10:08 GMT

यूपी के बाराबंकी ज‍िले के किसान सेवा केंद्र के बाहर खाद के ल‍िए जुटी किसानों की भीड़

लखनऊ। देश के कई राज्‍यों में खाद केंद्रों के बाहर किसानों की लंबी कतार देखने को मिल रही है। किसान डीएपी, एनपीके खाद के ल‍िए परेशान हैं। यह सीजन गेहूं, आलू और सरसों की बुवाई का है, लेकिन किसानों को सरकारी केंद्रों से पर्याप्‍त खाद नहीं मिल रही और किसान बाजार से महंगे दाम पर खाद खरीदने को मजबूर हैं।

उत्‍तर प्रदेश के बाराबंकी ज‍िले के नानमऊ गांव के रहने वाले बृजेश कुमार (43) ने आलू की खेती की है। बृजेश कहते हैं, "सरकारी संस्‍थाओं में खाद नहीं मिल रही। इसलिए मुझे प्राइवेट में रुपये 1,200 की डीएपी रुपये 1,320 में खरीदनी पड़ी। अगर महंगी खाद नहीं खरीदते तो बुवाई नहीं हो पाती।"

बृजेश ने 32 बैग डीएपी (डाई अमोनियम फास्फेट) रुपये 1,320 प्रति बैग में खरीदी है, जिसका सरकारी दाम 1200 रुपए है।

बृजेश का कहना है कि सरकारी सेंटर्स पर खाद के लिए सुबह से ही लाइन लग जाती है। लाइन में लगने के बाद भी एक या दो बोरी खाद मिलती है, जो कि जरूरत के हिसाब से बहुत कम है। उनके क्षेत्र के ज्‍यादातर किसान महंगे दाम पर खाद खरीदकर खेती कर रहे हैं। बृजेश के मुताबिक, "किसानों का पूरी तरह से शोषण हुआ है।"
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सरकार का दावा: खाद की कमी नहीं

एक ओर जहां खाद के ल‍िए किसान परेशान द‍िख रहे हैं वहीं सरकार का दावा है कि देश में खाद की कोई कमी नहीं है। केन्द्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया के मुताबिक, "देश में उर्वरकों की कमी नहीं है। नवंबर में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में यूरिया की मांग 41 लाख मीट्रिक टन है, इसके सापेक्ष 76 लाख मीट्रिक टन यूरिया की आपूर्ति की जाएगी। इसी तरह डीएपी की अनुमानित मांग 17 लाख मीट्रिक टन है, जिसके मुकाबले 18 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आपूर्ति की जाएगी। वहीं, एनपीके (नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम) की आपूर्ति 30 लाख मीट्रिक टन के आसपास रहेगी ज‍िसकी 15 लाख मीट्रिक टन की मांग है।"

मंडाविया की तरह ही उत्तर प्रदेश के अपर मुख्‍य सच‍िव देवेश चतुर्वेदी भी खाद की कमी को पूरी तरह से नकार देते हैं। उनके मुताबिक, प्रदेश में खाद की कहीं कमी नहीं है। कई जगह प्राइवेट में ज्‍यादा और सहकारिता में कम खाद होने के नाते वहां भीड़ लग जाती है, लेकिन इसे मैनेज किया जाता है।

चतुर्वेदी इंड‍ियास्‍पेंड को बताते हैं, "हमारे पास (यूपी) एनपीके और यूरिया पर्याप्त मात्रा में हैं। डीएपी की मांग ज्‍यादा है ऐसे में डीएपी जरूरत के ह‍िसाब से आ रही है और बिकती जा रही है। मार्च तक (रबी सीजन) 17 लाख मीट्रिक टन डीएपी की ड‍िमांड है। इसमें से अक्‍टूबर और नवंबर में 10 लाख मीट्रिक टन की ड‍िमांड होती है। हम करीब 8.5 लाख मीट्रिक टन डीएपी बांट चुके हैं। ढाई लाख मीट्रिक टन हमारे पास अलग-अलग जगहों पर पड़ी है। करीब एक लाख मीट्रिक टन ट्रांजिट में हैं।"

जरूरत के हिसाब से कम उपलब्‍ध हो रही डीएपी और यूरिया

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि देश में एनपीके तो पर्याप्‍त मात्रा में है, लेकिन डीएपी और यूरिया जरूरत के हिसाब से कम उपलब्‍ध हो रही है। मंत्रालय के अक्टूबर माह के बुलेट‍िन के मुताबिक, देश में डीएपी की मांग करीब 18.9 लाख मीट्र‍िक टन थी, ज‍िसके मुकाबले 9.7 लाख मीट्र‍िक टन ही उपलब्‍ध हो पाई और इसमें से भी 9.1 लाख मीट्र‍िक टन बिक पाई। इसी तरह अक्‍टूबर में 36.1 लाख मीट्र‍िक टन यूरिया की जरूरत थी, जिसमें से 26.2 लाख मीट्र‍िक टन यूरिया ही उपलब्‍ध हो पाया।

अक्‍टूबर माह में देश में खाद की उपलब्‍धता और बिक्री का ग्राफ। सोर्स: रसायन और उर्वरक मंत्रालय

डीएपी और यूरिया के उलट देश में एनपीके जरूरत के हिसाब से ज्‍यादा उपलब्‍ध हुआ है। अक्‍टूबर के मास‍िक बुलेट‍िन के मुताबिक, देश में 12.8 लाख मीट्र‍िक टन एनपीके की जरूरत थी। इसके सापेक्ष 14.8 लाख मीट्र‍िक टन एनपीके उपलब्‍ध हुआ, ज‍िसमें से 11.2 लाख मीट्र‍िक टन एनपीके की ब‍िक्री हुई।

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के आकड़ों से यह भी समझ आता है कि किसानों के बीच डीएपी की मांग ज्‍यादा है। बाराबंकी ज‍िले के इ्फ्को किसान सेवा केंद्र के ड‍िप्‍टी मैनेजर सुरेंद्र नाथ त्र‍िपाठी के मुताबिक, "डीएपी का दाम रुपये 1,200 है और एनपीके का दाम रुपये 1,450 है। दाम में कमी की वजह से किसानों का रुझान डीएपी की ओर ज्‍यादा रहता है। हालांकि एनपीके संपूर्ण खाद है और डीएपी से इसे अच्‍छा माना जाता है।"

बाराबंकी के इसी इफ्को किसान सेवा केंद्र के बाहर बड़ी संख्‍या में किसान खाद के लिए जुटे नजर आते हैं। कोई दो-तीन दिन से चक्‍कर लगा रहा है तो कोई 15 दिन से खाद के ल‍िए दौड़ रहा है। किसानों का कहना है कि सुबह 5 बजे से ही लाइन लग जाती है, इसके बाद भी न‍िराश होकर लौटना पड़ता है। ज‍िन्‍हें खाद म‍िल भी रही है वो उसे पर्याप्‍त नहीं बताते, क्‍योंकि उन्‍हें खेती के लिए ज्‍यादा खाद चाहिए और सेंटर से मात्र एक या दो बोरी खाद म‍िल पाती है।

बाराबंकी के मांसा गांव के रहने वाले व‍िनोद कुमार (38) को भी करीब दो हफ्ते चक्‍कर लगाने के बाद एक बोरी एनपीके खाद म‍िल पाई। व‍िनोद कहते हैं, "इसमें काम नहीं चलेगा, फिर से लाइन में लगना होगा। यह बहुत कम है, लेकिन खाद म‍िल गई यही बड़ी बात है।"

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