ग्राउंड रिपोर्ट: भारत की राजधानी नई दिल्ली में बद से बदतर होता जा रहा प्रदूषण, छोटे बच्चों के लिए चलेंगी ऑनलाइन क्लास
दिल्ली सरकार ने प्रदूषण के चलते छोटे बच्चों के स्कूलों को बंद कर ऑनलाइन क्लास चलाने का फैसला लिया है। राजधानी में प्रदूषण का स्तर दिवाली के बाद से बढ़ता जा रहा है और ऐसे में पारम्परिक दवाओं से इलाज करना मुश्किल हो रहा है। प्रदूषण से जुड़ी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए अब चिकित्सकों को एंटीबायोटिक का सहारा लेना पड़ रहा है।
नई दिल्ली: दिवाली के बाद से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर हद तेजी से बढ़ा है। स्थिति यहां तक पहुंची है कि 14 नवंबर को बाल दिवस के मौके पर दिल्ली सरकार को छोटे बच्चों के लिए स्कूल बंद करने का फैसला लेना पड़ा। इसके चलते CAQM यानी कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट ने दिल्ली के साथ साथ पूरे एनसीआर शहरों के लिए GRAP-3 लागू कर दिया।
नियमों के अनुसार, यह तब लागू होता है जब एक्यूआई का स्तर 401-450 की सीमा में गंभीर हो जाता है। इसके चलते दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने पांचवीं क्लास तक के बच्चों के लिए स्कूल बंद करने का आदेश जारी किया। आदेश में साफ तौर पर कहा है कि सरकारी, प्राइवेट और नगर निगम के सभी स्कूलों में पांचवीं क्लास तक के बच्चों को घर बैठे ऑनलाइन क्लास ली जाएगी। यह बिलकुल वैसा ही रहेगा, जैसे कोरोना और लॉकडाउन के समय स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास संचालित कीं।
दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग की निदेशक वेदिथा रेड्डा ने आदेश में कहा है कि यह आदेश प्रदूषण का स्तर कम होने और ग्रेप का तीसरा चरण हटने तक लागू रहेगा। यह आदेश 15 नवंबर से दिल्ली के सभी स्कूलों में लागू रहेगा। उधर देर शाम दिल्ली की मुख्यमंत्री अतिशी ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए पांचवीं क्लास तक के बच्चों के लिए स्कूल बंद करने की जानकारी दी।
दरअसल दिल्ली में दिवाली के बाद से प्रदूषण का स्तर लगातार गंभीर बना हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक दिवाली के बाद यानी एक से पांच नवंबर के बीच दिल्ली में प्रदूषण क्रमश: 339,316, 382, 381 और 373 तक दर्ज किया गया। वहीं छह से नौ नवंबर के बीच यह क्रमश: 352, 377, 380 और 352 रहा। यह स्थिति 10 से 12 नवंबर के बीच भी रही। बीते 10 नवंबर को दिल्ली में एक्यूआई का स्तर 334, 11 नवंबर को 352 और 12 नवंबर को 334 दर्ज किया गया लेकिन यह 13 नवंबर को 418 और 14 नवंबर को 424 तक पहुंच गया। इन दोनों दिन में दिल्ली का आनंद विहार क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रदूषित रहा जहां एक्यूआई का स्तर 700 से भी ऊपर रहा है।
दिल्ली में प्रदूषण का पीक, अगले कुछ दिन में होगा कम
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा, “इस सर्दी में दिल्ली पिछले दो दिन से भारी प्रदूषण से प्रभावित है। वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई 400 के पार पहुंच गया है। मौसम विभाग के विशेषज्ञों से जानकारी के बाद दो कारण सामने आए हैं जिसमें से एक पहाड़ों पर बर्फबारी से तापमान कम होना और दूसरा कारण हवा की गति धीमा होना है। मौसम विभाग ने यह भी बताया कि 15 नवंबर से दिल्ली की हवा की गति में बदलाव आएगा। धीरे धीरे यह 17 से 18 नवंबर तक तेज होगी और उसके चलते धुंध हटना शुरू होगी।”
उन्होंने बताया कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को लेकर ग्रेप कानून बना है। इसके अलग अलग चरण हैं। पहला चरण तब लगाया जाता है जब एक्यूआई का स्तर 200 से 300 यानी खराब स्थिति में रहता है। वहीं दूसरा चरण तब लागू होता है जब एक्यूआई 400 तक पहुंच जाता है। इससे ऊपर जाने पर ग्रेप का तीसरा और चौथा चरण लागू होता है। जब जब प्रदूषण का स्तर बदलता है, यह कानून खुद ब खुद लागू माना जाता है। अगर नियमों की मानें तो ग्रेप का तीसरा चरण लागू होने पर कई बड़ी पांबदियां लागू होती हैं। इनमें BS-3 पेट्रोल और BS-4 डीजल फोर व्हीलर गाड़ियों पर बैन के अलावा हल्के कमर्शियल गाड़ियों, डीजल ट्रकों की एंट्री पर रोक लग जाती है। गैर-जरूरी कंस्ट्रक्शन, तोड़फोड़ गतिविधियों के अलावा होटल-रेस्तरां में कोयले व लकड़ी के इस्तेमाल पर पाबंदी लग जाती है। सिर्फ इमरजेंसी के लिए ही डीजल जनरेटर को छूट है। इनके अलावा धूल को दबाने के लिए सड़कों की सफाई और पानी का छिड़काव शुरू होता है और प्राइमरी क्लास के बच्चों की ऑनलाइन क्लास शुरू होती हैं। इनमें से अभी तक सरकार ने केवल पांचवीं क्लास तक के बच्चों के लिए स्कूल बंद करने का फैसला लिया है।
कैसी रही स्थिति दिवाली के एक दिन पहले और बाद
किसी के चेहरे पर मास्क है तो कोई अपने हाथों से ही मुंह कवर करने की कोशिश में है। पास में बैठे दो बुजुर्ग खांसते जा रहे हैं जबकि एक नौजवान इंजीनियर कफ के चलते बार बार बाहर भाग रहा है। देखने में यह तस्वीर कोरोना काल जैसी लगी लेकिन वर्तमान में यह दिल्ली और एनसीआर की जहरीली हवा का असर है।
यह दृश्य देश की पहली प्रदूषण ओपीडी का है जिसे हाल ही में केंद्र सरकार ने नई दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल (आरएमएल) में शुरू किया है।केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक, इस साल एक जनवरी से 30 अक्टूबर के बीच कुल 304 में से 103 दिन दिल्ली और उसके आसपास के शहरों के लिए सबसे बुरी हालत रही है। इन 103 में से 60 दिन वायु प्रदूषण का स्तर 200 से 300 के बीच रहा है जिसे खराब श्रेणी में माना जाता है। 40 दिन यह स्तर 301 से 400 और तीन दिन यह आंकड़ा 401 पार कर गया जिन्हें क्रमश: अति खराब और जोखिम भरी श्रेणी में रखा गया है। यह तीन दिन 21, 22 और 27 अक्टूबर हैं जिसमें दिल्ली के अलावा आसपास के शहरों में नोएडा, गाज़ियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा सबसे ज्यादा प्रभावित रहे।
दिवाली से ठीक एक दिन पहले 30 अक्टूबर को सीपीसीबी ने दिल्ली के आनंद विहार, मुंडका, वजीरपुर,जहांगीरपुरी और अशोक विहार को हॉटस्पॉट घोषित किया जहां दिन भर प्रदूषण का स्तर 351 से 409 तक बना रहा। वहीं गाजियाबाद के वसुंधरा, संजय नगर, इंदिरापुरम में 248 से 268, फरीदाबाद के सेक्टर 11 और न्यू इंडस्ट्रियल टाउन में 203 और 239, ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क - वी में 249, गुरुग्राम के सेक्टर-51 में 241 और नोएडा के सेक्टर-62 व सेक्टर-116 में प्रदूषण का स्तर क्रमश: 273 और 257 रहा। इन सभी इलाकों को वायु प्रदूषण का हॉटस्पॉट घोषित किया है।
डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल (आरएमएल) ने साझा जानकारी में बताया कि यह प्रदूषण जनित रोग निदान केंद्र ओपीडी बीते 16 अक्टूबर से संचालित है। यहां श्वसन के साथ साथ नेत्र, नाक-कान-गला, त्वचा रोग और मनोरोग विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह दे रहे हैं। प्रत्येक विभाग से दो सीनियर प्रोफेसर और चार रेजिडेंट डॉक्टरों की टीम को तैनात किया है। 16 से 28 अक्टूबर के बीच यहां 315 मरीजों ने पंजीयन कराया है जिनमें से 80 मरीजों को एक ही सप्ताह में दूसरी बार विजिट करना पड़ा और उनके प्रिस्क्रिप्शन में बदलाव कर फिर से दवाएं दी गई।अस्पताल के भूतल पर कमरा नंबर तीन से सात प्रदूषण जनित रोग निदान केंद्र के लिए आरक्षित किए गए हैं। यहा हर सोमवार दोपहर दो से शाम चार बजे तक प्रदूषण से संबंधित मामलों को देखा जा रहा है। इन्हीं में से एक दिल्ली के राजेंद्र नगर में रहने वाले महेंद्र वर्मा (56 वर्ष) हैं जो बीते चार सप्ताह से घर के बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। पेशे से महेंद्र वर्मा केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) के सेवानिवृत्त अधीक्षक हैं। वह क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीज है। यह एक पुरानी बीमारी होती है जिसमें फेफड़ों में सूजन आ जाती है और वायु प्रवाह में बाधा आती है। इन्हे अक्सर दिवाली के आस पास जब दिल्ली में वायु की गुडवत्ता ख़राब हो जाती है तब इनका स्वास्थ्य और ख़राब हो जाता है।
इंडियास्पेंड हिंदी से बातचीत में महेंद्र वर्मा ने बताया, " दिल्ली में मेरा जीवन दिवाली के महीने में अपने ही घर की चारदीवारी में कैद हो जाता है। न मैं कहीं जा सकता हूं और न किसी से ठीक से बात कर पाता हूं। दिन भर खांसी और सांस अटकने जैसी परेशानी महसूस करता रहता हूं। तीन बार अलग अलग डॉक्टर से मिल चुका हूं लेकिन दवाएं खाने के बाद भी कोई असर नहीं हो रहा।"
अभी महेंद्र वर्मा अपनी परेशानी बता ही रहे थे कि तभी पास में बैठा एक नौजवान युवक तेजी से कमरे के बाहर दौड़ा। कुछ मिनट पहले भी वह इसी तरह बाहर गया था। पूछने पर उसने अपना नाम मनीष कुमार (27 वर्ष), निवासी लक्ष्मी नगर, पूर्वी दिल्ली बताया। इंडिया स्पेंड से बातचीत में मनीष कुमार ने कहा, "कभी कभी मुझे ऐसा लगता है कि कुछ दिन के लिए दिल्ली छोड़कर किसी छोटे शहर या दूर चला जाना चाहिए। मुझे अब यहां रहने में काफी चिड़न होती है। दो सप्ताह से मुझे इतना कफ आ रहा है जितना पहले कभी नहीं आया। पहले लक्ष्मी नगर और वहां यहां आकर सभी टेस्ट करा रहा हूं। स्थिति ऐसी है कि 15 में से नौ दिन मैंने ऑफिस का काम भी नहीं किया। मैं गुरुग्राम की एक आईटी कंपनी में कार्यरत हूं और कोविड के समय से वर्क फ्रॉम होम कर रहा हूं। अभी 2500 रुपये की दवाएं ले चुका हूं लेकिन आराम नहीं मिला है।"
मनीष बताते हैं कि सुबह उनकी नींद कफ के साथ खुलती है। जब जब वह बाहर जाते हैं तो उन्हें अपने गले में दर्द का महसूस होता है और यह परेशानी वह पिछले तीन साल से खासतौर पर अक्टूबर से दिसंबर के बीच झेलते आ रहे हैं। अब पुरानी दवाओं का असर भी नहीं हो रहा है जिसके चलते उन्हें घर से करीब 12 किलोमीटर दूर इस विशेष ओपीडी में आना पड़ा।
प्रदूषण जनित रोग निदान केंद्र के प्रमुख डॉ. अमित सूरी ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, "आपने जिन मरीजों से अभी बात की, वह सभी दूसरी या तीसरी बार यहां आए हैं क्योंकि उन्हें पहले सामान्य और पारंपरिक दवाएं दी गई लेकिन वह असरदार साबित नहीं हुई। यह सच है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण अब पहले जैसा नही है, खासतौर पर कोरोना महामारी के बाद। हमारे पास कई ऐसे पेशेंट हैं जिनमें कॉमन मेडिकल प्रोटोकॉल पूरी तरह से फेल रहा और हमें हेवी एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा लेना पड़ा। इसके पीछे हमें एक पैटर्न देखने को मिला है और वह यह है कि जिन लोगों को कोरोना के समय मध्यम या गंभीर लक्षणों के चलते अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा, उनमें श्वास से संबंधित परेशानी काफी लंबे समय तक है और प्रदूषण का स्तर रेड जोन में जाते ही उन्हें सीवियर अटैक आ रहा है जिसके चलते कॉमन प्रोटोकॉल भी फेल हो रहा है।"एक सवाल पर डॉ. अमित सूरी ने स्पष्ट कहा, "अभी हम जो अपनी ओपीडी में देख रहे हैं, मरीजों को समझ रहे हैं, उसके आधार पर यह कह सकते हैं कि दिल्ली का वायु प्रदूषण चिकित्सा तौर पर कंट्रोल से बाहर हो रहा है। यह स्थिति ठीक नहीं है और आगे चलकर गंभीर प्रभावों से इंकार नहीं कर सकते।"
दिल्ली के लोकनायक अस्पताल की डॉ. रीतू सक्सेना ने इंडियास्पेंड को बताया, "मेरी ओपीडी में हर दिन 10 से 15 केस ऐसे आ रहे हैं जिन पर कॉमन मेडिकल प्रोटोकॉल पूरी तरह से फेल हो रहा है। मुझे आरएमएल अस्पताल में खुली विशेष ओपीडी के बारे में जानकारी है। मेरा भी मानना यही है कि पहले की तुलना में अब प्रदूषण की चपेट में आने वाले रोगियों का उपचार थोड़ा मुश्किल हुआ है। हम पारंपरिक तरीके से सिर्फ लक्षण सुनते ही मरीज को दवाएं प्रिस्क्राइव नहीं कर सकते। हमें उसके आगे और पीछे की केस हिस्ट्री पर भी विचार करना जरूरी है।" डॉ. रीतू ने कहा कि इस तरह की परेशानी लगभग सभी अस्पतालों में देखने को मिल रही है। ऐसे में सबसे अहम यह भी है कि केंद्रीय स्वास्थ्य महानिदेशालय को इन दिशानिर्देशों में बदलाव करने चाहिए और पोस्ट कोविड की चुनौतियों को अपनाना चाहिए।दिपावली की रात में हालत नाजुक
केंद्र सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन एयर क्वालिटी अरली वार्निंग सिस्टम फॉर दिल्ली ने 31 अक्टूबर को दीपावली की रात करीब 12 बजे वायु प्रदूषण का नया डाटा लाइव किया जिसके तहत उस समय दिल्ली का प्रदूषण मीटर 400 का आंकड़ा पार कर गया। हालांकि दिन भर औसत प्रदूषण करीब 357 के आसपास दर्ज किया गया लेकिन साथ में यह चेतावनी भी दी है कि दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में दो नवंबर तक वायु गुणवत्ता 'बहुत खराब' श्रेणी में रहने की आशंका है। अतिरिक्त उत्सर्जन के मामले में यह 'गंभीर' श्रेणी में प्रवेश कर चुकी है। इसके लिए पटाखे, पराली और कचरे की आग को मुख्य कारण बताया गया।पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने बाकी शहरों से तुलना करते हुए बताया है कि अहमदाबाद में समग्र वायु गुणवत्ता 30 अक्तूबर को 144 के साथ मध्यम श्रेणी में देखी गई। यहां भी दो नवंबर तक स्थिति खराब श्रेणी में रहने की संभावना है। इसी तरह मुंबई में 30 अक्टूबर को एक्यूआई का स्तर 94 रहा जो संतोषजनक श्रेणी में है लेकिन यहां दो नवंबर तक वायु गुणवत्ता मध्यम श्रेणी में रहने की संभावना है। इनके अलावा पुणे में दीपावली से पहले 30 अक्टूबर को एक्यूआई 137 के साथ मध्यम श्रेणी में रहा जिसके दो नवंबर तक मध्यम श्रेणी में रहने की संभावना है।
दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी, दिपावली के अगले दिन ओपीडी फुल
दिल्ली में इस वक्त हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात हैं। दिपावली की रात एक्यूआई का स्तर 400 पार चला गया जिसका असर यह रहा कि अगले दिन एक और फिर दो नवंबर को दिल्ली के अस्पतालों में ओपीडी फुल रहीं। दिल्ली एम्स ने साझा जानकारी में बताया कि उनके यहां पटाखों और दीयों से झुलसने के कुल 48 मामले दिवाली की रात आए हैं जिनमें 12 मरीज आईसीयू में है। वहीं ओपीडी में मरीजों की भीड़ 120 फीसदी बढ़ी है। एक और दो नवंबर को यहां पल्मोनरी और मेडिसिन ओपीडी में 450 मरीजों का पंजीयन हुआ है जो कि अब तक सबसे बड़ा आंकड़ा है। दिल्ली के बाकी बड़े सरकारी अस्पतालों की बात करें तो आखिरी एक और दो नवंबर की दोपहर 12 बजे तक सफदरजंग अस्पताल में 280, डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में 267, लोकनायक अस्पताल में 215, जीटीबी में 315, हरी नगर स्थित डीडीयू अस्पताल में 169 और रोहिणी के बाबा भीमराव अंबेडकर अस्पताल में 157 मरीजों ने पंजीयन कराया है। यह सभी रोगी प्रदूषण से बीमारी ट्रिगर होने के चलते अस्पताल पहुंचे।
दिवाली पर दिल्ली-एनसीआर के 69% परिवारों परेशानी
लोकल सर्कल संगठन ने दिल्ली और पूरे एनसीआर के करीब 21 हजार परिवारों से बातचीत के बाद सर्वे जारी किया। इसमें बताया कि दिवाली की रात और उसके बाद करीब 69 फीसदी परिवारों ने गले में खराश, सांस लेने में तकलीफ, दम घुटने जैसी परेशानियां महसूस करने के बारे में जानकारी दी। इसी तरह का सर्वे 19 अक्टूबर को भी किया गया जिसमें केवल 36 फीसदी परिवारों ने इस तरह की परेशानी होने का दावा किया। लोकल सर्कल का कहना है कि दोनों सर्वे का अंतर दीपावली और दिल्ली की दमघोंटू हवा के परिणामों को साफ उजागर कर रही है।
पुराने मरीज की स्थिति और भी गंभीर
डॉ. अमित सूरी ने फोन पर इंडियास्पेंड को बताया, "शुक्रवार (दीपावली के ठीक अगले दिन) ओपीडी में मरीजों की संख्या के चलते हमें प्रदूषण जनित रोग निदान केंद्र की ओपीडी को संचालित करना पड़ा। सप्ताह में सिर्फ सोमवार और दोपहर दो से चार बजे तक रहने वाली यह ओपीडी दीपावली के बाद शुक्रवार और शनिवार को सुबह आठ से शाम आठ बजे तक संचालित करनी पड़ी। इस ओपीडी में हमारे पास 55 फीसदी मरीज ऐसे रहे जिन्हें पहले से कोई न कोई बीमारी है और फिलहाल दिल्ली के प्रदूषण की वजह से इसका उपचार हमारे लिए आउट ऑफ कंट्रोल हो रहा है। इन सभी मरीजों को हमने CTVS ब्लॉक की एक पूरी मंजिल में रोकना पड़ा।"
उन्होंने कहा, "मैं खुद 20 से 25 ऐसे मरीजों को देख रहा हूं उन्हें बीते दो दिन में चार अलग अलग तरह की दवाएं दी है। इसके बाद भी उनके सिम्टम्स मेरे या मेरी पूरी टीम के लिए एक चुनौती बन गए हैं। इस तरह के हालात में अक्सर हम अपने सीनियर और दिल्ली एम्स के साथी डॉक्टरों का सहयोग भी लेते हैं। आप यकीन नहीं करेंगे जब मैंने उन्हें फोन पर यह सब बताया तो उन्होंने अपने यहां भी ऐसे मरीजों की भरमार होने का हवाला दिया। सभी अपने अपने स्तर पर अलग अलग मेडिसिन के जरिए सिम्टम्स को कंट्रोल में लाने का प्रयास कर रहे हैं। फिलहाल मेरी और पूरी टीम की कोशिश जारी है।"
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) में जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीसीएचएच) के उपनिदेशक डॉ.रामेश्वर सोरोखैबम ने इंडियास्पेंड को जानकारी दी है कि वायु प्रदूषण से प्रभावित मरीजों और पोस्ट कोविड की चुनौतियों को लेकर उन्हें सूचना है। मेडिकल प्रोटोकॉल में संशोधन पर विचार किया जा रहा है। हालांकि यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत ही संभव है। उन्होंने कहा, "अक्टूबर 2023 में वायु प्रदूषण को लेकर एडवाइजरी जारी की गई। 23 पन्नों की इस एडवाइजरी में बेसिक से लेकर सीवियर केस प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गई है। इसमें पोस्ट कोविड को लेकर भी विशेषज्ञ समिति की सिफारिश भी शामिल हैं और साथ ही यह कि कैसे रोगाणुरोधी प्रतिरोध से बचते हुए किन मामलों में हैवी एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं? हालांकि संशोधन को लेकर नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के विशेषज्ञों से इनपुट मांगे गए हैं। इसमें थोड़ा वक्त लग सकता है लेकिन जल्द ही नए प्रोटोकॉल जारी होंगे।"
नई दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली (आईआईटी) के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज के प्रोफेसर साग्निक डे ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, "दीपावली के आसपास प्रदूषण के मुख्य कारणों में आतिशबाजी भी शामिल है लेकिन इन दो से तीन दिन को छोड़ दिया जाए तो बाकी समय दूसरे कारणों की वजह से दिल्ली की हवा प्रदूषित रहती है। हाल ही में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के मार्गदर्शन में, वायु प्रदूषण कार्रवाई समूह (ए-पीएजी) के साथ मिलकर हमने एक अध्ययन किया और उसके जरिए यह साबित किया है कि अगर टूटे फूटे फुटपाथ, खस्ताहाल सड़कें और धूल पर नियंत्रण पाया जाए तो 40% तक प्रदूषण कम कर सकते हैं। यह हमने करके दिखाया है तो ऐसा नहीं है कि वायु प्रदूषण को कम नहीं किया जा सकता।"
40% तक ऑपरेशन कम हुए, आईसीयू तक पहुंच रहे मरीज
दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉ. नीरज निश्चल ने इंडियास्पेंड को बताया कि दिल्ली के साथ साथ देश के काफी शहर और महानगर वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं। पीएम 2.5 और पीएम 10 धीरे धीरे लोगों के फेफड़ों को डैमेज कर रहे हैं। अगर अस्पताल की बात करें तो ओपीडी में काफी मरीज आ रहे हैं। साथ ही प्रदूषण की वजह से इलेक्टिव सर्जरी को भी टालना पड़ रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि पोस्ट ऑपरेटिव केयर में क्लीन एयर की भूमिका काफी अहम होती है ताकि मरीज को सांस लेने में कठिनाई न आए और उसकी रिकवरी आसानी से होती रही। एम्स में लगभग सभी विभागों के डॉक्टरों ने कुछ सप्ताह के लिए उन सर्जरी को आगे बढ़ाया है जिनके जीवन को जोखिम नहीं है। लोगों में सर्दी और वायु प्रदूषण की जागरूकता को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर दिल्ली एम्स वीडियो संदेश प्रसारित कर रहा है जिसमें डॉ. नीरज निश्चल ने दिपावली के समय खराब हवा के साथ साथ जीवनशैली को लेकर भी सतर्कता बरतने की सलाह दी है।
एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (इंडिया) के महानिदेशक डॉ. गिरधर ज्ञानी ने अनुमान लगाया है कि दिल्ली के सभी छोटे-बड़े और सरकारी-प्राइवेट अस्पतालों में बीते 10 से 30 अक्टूबर के बीच इलेक्टिव सर्जरी में तकरीबन 40 फीसदी तक की कमी आई है। उनका कहना है कि यह उन सभी मरीजों के हित में है उन्हें कुछ समय तक बिना सर्जरी के रखा जा सकता है और उनकी जान का जोखिम नहीं है। क्योंकि प्रदूषण की वजह से उनकी रिकवरी और पोस्ट ट्रीटमेंट काफी प्रभावित होता है।
इन सब के बीच दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के अधीन लोकनायक अस्पताल की डॉ. रीतू सक्सेना ने बताया कि उनके यहां 20 से 30 अक्टूबर के बीच दो मरीजों को वायु प्रदूषण की वजह से सीवियर अटैक आने के चलते आईसीयू में भर्ती करना पड़ा। इसी अवधि में दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में तीन मरीजों को आईसीयू में भर्ती किया है।
हवा इतनी जहरीली कि 1300% बढ़ा पीएम 2.5
दिल्ली की हवा इस कदर जहरीली हुई है कि दिवाली की रात कुछ इलाकों में पीएम 2.5 का स्तर 1300% से भी ज्यादा बढ़ा है। पूर्वी दिल्ली का विवेक विहार हरियाली वाला क्षेत्र है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रियल टाइम एयर क्वालिटी डाटा के मुताबिक, यहां 31 अक्टूबर की शाम छह बजे तक पीएम 2.5 का स्तर करीब 127 रहा जो आधी रात को बढ़कर 1853 तक पहुंच गया। इसी अवधि में पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज में पीएम 2.5 का स्तर 141 से 1505, ओखला फेज 2 में 156 से 1322 और करनी सिंह शूटिंग रेंज इलाके में 218 से बढ़कर 1240 तक पहुंचा। दिल्ली के पॉश दक्षिण जिला के नेहरू नगर में पीएम 2.5 205 से बढ़कर 1527 तक पहुंचा। दिल्ली एम्स के डॉ. नीरज निश्चल का कहना है कि पीएम 2.5 में प्रदूषकों का आकार बहुत छोटा होता है और उसमें कई तरह के रसायन मिश्रित होते हैं जो सीधे तौर पर सांस के जरिए हमारे शरीर में पहुंचते हैं और रक्त में घुलने के बाद कई तरह की परेशानियां पैदा करते हैं। साथ ही सांस लेते समय यह हमारे पूरे श्वसन तंत्र को भी नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति पहले से अस्थमा, सीओपीडी या फिर अन्य श्वास संबंधी बीमारी से ग्रस्त है तो उसके लिए यह और भी ज्यादा घातक है। ऐसे लोगों को दिल्ली छोड़ने की सलाह दी जा सकती है।
मास्क हटाते ही उखड़ रही मेरी सांस
नोएडा निवासी श्यामा कांत दुबे ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, इस समय हालात काफी नाजुक बने हुए हैं। पिछले कुछ सप्ताह से मुझे काफी परेशानी हो रही है लेकिन 30 अक्टूबर से मेरी परेशानी और गंभीर हुई है। मैं तब से सिर्फ रात को सोते समय मास्क हटा पा रहा हूं। अगर बीच में कभी मास्क हटाता हूं तो मेरी सांसें उखड़ने लगती है। एक दिन में मुझे दो से तीन बार अपना मास्क बदलना पड़ रहा है। यह स्थिति आगे कब तक रहेगी, मुझे नहीं पता, लेकिन मेरे लिए अभी की हवा एक जहर के समान महसूस हो रही है जो मुझे हर मिनट और सेकंड तड़पा रही है।