अवैध पक्षी व्यापार के गढ़: कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद फल-फूल रहे पारंपरिक बाजार

उत्तर भारत के कई बड़े शहरों, विशेष रूप से लखनऊ और पटना जैसी राजधानियों में पारंपरिक पक्षी बाज़ार अब भी सक्रिय हैं। इन बाज़ारों में भारतीय तोते, मुनिया समेत कई संरक्षित प्रजातियों की अवैध खरीद-फरोख्त जारी है। पालतू जानवरों के व्यापार में पक्षियों की अहम भूमिका है, और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इनकी बढ़ती मांग इस व्यापार को और बढ़ावा दे रही है। इसके चलते जंगली पक्षियों की आबादी तेजी से घट रही है। जिससे जैव विविधता पर भी गंभीर असर पड़ रहा है।;

Update: 2025-04-09 09:16 GMT

पटना की मिर्शिकार टोली की ज्यादातर दुकानों में में हलके लाल रंग के सीने वाले तोते (Red-breasted Parakeet) के जोड़े रखे हुए मिले। ये भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियिम के तहत शेड्यूल-1 में संरक्षित जीव हैं।

पटना/लखनऊ/दिल्ली: अवैध वन्यजीव व्यापार की एक अहम कड़ी पालतू पक्षी हैं और यह कारोबार पूरी तरह से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इनकी बड़ी मांग पर टिका है। जंगल और इनके प्राकृतिक आवास की जगह पिंजरे में घरों के भीतर रखने के शौक ने इन पक्षियों की आबादी को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। अफ्रीकी ग्रे तोते, पीली कलगी वाले कॉकटू समेत पक्षियों की कुछ प्रजातियों को लुप्त होने की हद तक खतरे की जद में ला दिया है बल्कि वैश्विक जैव-विविधता पर भी खतरा मंडरा रहा है।

उत्तर भारत के तीन बड़े शहर पटना, लखनऊ और दिल्ली के पक्षी बाज़ारों की रिपोर्टर द्वारा की गई पड़ताल बताती है कि ये बाज़ार देश के भीतर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पक्षियों की तस्करी का एक अहम हिस्सा हैं। भारतीय वन्यजीव संरक्षण संशोधन अधिनियम 2022, वन्यजीव (संरक्षण) लाइसेंसिंग (विचार के लिए अतिरिक्त मामले) नियम 2024 समेत वन, पर्यावरण और जैव-विविधता से जुड़े सख्त कानून के बावजूद ये बाज़ार और इनका कारोबार बदस्तूर जारी है।

दिल्ली का कबूतर बाजार:

पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद पुलिस स्टेशन से चंद कदमों की दूरी पर ही दिल्ली का मशहूर कबूतर बाजार है। यहां की कुछ पांच-सात दुकानों में पिंजरों में रखे पक्षी देखे जा सकते हैं। एक के ऊपर एक रखे पिंजरों में कबूतरों (Columbidae) की कई किस्में, तोते (Psittaculidae) की देसी-विदेशी प्रजातियां, बत्तखें (Anatidae) और लव-बर्ड्स (Genus Agapornis ) जैसी छोटी चिड़ियां बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। लेकिन सिर्फ़ पिंजरों में ही नहीं, नायलॉन के रेशों से बने बेहद मज़बूत थैलों में भी पक्षियों को रखा गया है। यहीं एक नायलॉन के फटे थैले से एक छोटा पक्षी निकल गया, जिसे दुकानदार ने पकड़कर वापस थैले में डाला और थैला सिलने बैठ गया। रिपोर्टर ने तब देखा कि वहां ऐसे कई थैले रखे थे।

पिछले दो वर्षों में इस बाज़ार में पुलिस और वनविभाग की लगातार छापेमारी का असर था शायद। दुकानदार सतर्क नज़र आते हैं और इन पक्षियों की तस्वीर लेने की इजाज़त नहीं देते।

दिल्ली का कबूतर बाज़ार और पक्षियों की दुकानों के आगे जमा लोगों की भीड़।

पिछले दो वर्षों में दिल्ली के इस कबूतर बाज़ार में वन विभाग और पुलिस लगातार छापेमारी कर रही है और बड़ी संख्या में यहां से पक्षियों की बरामदगी की गई। जानवरों के अधिकारों की रक्षा और उनके प्रति क्रूरता समाप्त करने के उद्देश्य से कार्य कर रही संस्था पेटा इंडिया की सूचना पर ये छापेमारी की गई थी। संस्था के असोसिएट डायरेक्टर और पशु अधिकारों के लिए कार्यरत वकील मीत अशर आशंका जताते हैं, “पालतू पशुओं की दुकानें एक तरह के मुखौटे का काम करती हैं। इनके पीछे अवैध वन्यजीव व्यापार होता है। हमने दिल्ली पुलिस के साथ इस मुद्दे को उठाया। कबूतर बाज़ार की एक भी दुकान ‘पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण (पालतू जानवरों की दुकान) नियम, 2018’ के तहत रजिस्टर नहीं है”।

“लगातार छापेमारी के बावजूद कबूतर बाज़ार बंद नहीं हुआ। उन्होंने दुकानों और उनमें रखा जाने वाला पक्षियों का स्टॉक जरूर कम कर दिया,” अशर बताते हैं।

दिल्ली की इन दुकानों पर छापेमारी के दौरान बिहार से पक्षियों के लाने की जानकारी भी मिली। बिहार की राजधानी पटना में मिर्शिकार टोली बाज़ार दिल्ली के कबूतर बाज़ार से दो-तीन गुना अधिक बड़ा है और बेहद पुराना बाज़ार है।

मार्च में मिर्शिकार टोली की तकरीबन सभी दुकानों में एलेक्जेंड्रिन तोतों के चूजे, एक-डेढ़ महीने की उम्र के बच्चे और वयस्क एलेक्जेंड्रिन तोते बेचे जा रहे थे। ये पक्षी आईयूसीएन में निकट संकटग्रस्त और घटती आबादी वाले पक्षी के तौर पर दर्ज हैं।

बिहार की राजधानी पटना की मिर्शिकार टोली

दुनिया जीतने वाले सिकंदर महान के नाम पर रखे गए एलेक्जेंड्रिन तोतों के सैंकड़ों नन्हे चूजों जब पहली बार अपनी आंखें खोलते हैं तो उनके सामने खुला आसमान नहीं बल्कि एक बेहद तंग पिंजरा होता है। जन्म लेते ही इन नन्हें जीवों को अवैध वन्यजीव व्यापार की क्रूर दुनिया का हिस्सा बना दिया गया है।

नवंबर से अप्रैल के बीच एलेक्जेंड्रिन तोते (Psittacula eupatria) का प्रजनन का समय होता है। बिहार की राजधानी पटना के मिर्शिकार टोली बाज़ार में फरवरी-मार्च के महीने में एलेक्जेंड्रिन चूजे तकरीबन सभी दुकानों में देखे जा सकते हैं। इनके शरीर के रोएं भी अभी ठीक से नहीं उगे। एक-एक पिंजरे में 20-25 चूजे रखे गए हैं। नन्हे चूजे, एक-डेढ़ महीने की उम्र से लेकर युवा और वयस्क एलेक्जेंड्रिन तोते बाजार में बड़ी तादाद में मौजूद हैं।

मिर्शिकार यानी वे शिकारी जो कभी बादशाहों के शिकारगाह का प्रबंधन किया करते थे। मिर्शिकार टोली पक्षी व्यापार का गढ़ बन गई है।

मिर्शिकार टोली की तकरीबन 500 मीटर लंबी सड़क के दायरे में एक के बाद एक करीब 40 दुकानों पर पक्षियों की खरीद-बिक्री की जा रही थी। पक्षी बेचनेवाले व्यापारी इनकी कीमत के अलावा किसी और मुद्दे पर बात नहीं करते। लेकिन इस बाजार की ही एक दुकान पर बैठे उत्साही नौजवान कैफ (बदला हुआ नाम) से कुछ अहम जानकारी मिलती है। कॉमर्स स्ट्रीम से 12वीं कर रहे कैफ का उद्देश्य बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स की डिग्री लेना और पक्षियों के अपने पुश्तैनी कारोबार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना है। वह बताते हैं, “मेरे दादा-पिता, सभी पक्षी बेचने का ही काम करते आ रहे हैं। मैं और मेरे कुछ साथी मिलकर एक ऐप डेवलप कर रहे हैं। इस ऐप के ज़रिये अपना कारोबार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाएंगे। अभी ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म पर भी हमारी दुकान पिंजरों की दुकानों के तौर पर जुड़ी हुई हैं।”

ऑनलाइन पशु बिक्री के लिए पशु क्रूरता निवारण (पेट शॉप) नियम, 2018 के तहत संबंधित राज्य पशु कल्याण बोर्ड में पंजीकरण जरूरी है। इस नियम में पशुओं की बिक्री के लिए शर्तें तय की गई हैं, जिसमें पशुओं के लिए आरामदायक और बेहतर बुनियादी ढांचा, देखरेख और स्वास्थ्य सुविधाएं शामिल हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की भी जिम्मेदारी तय की गई है कि वे अपने पोर्टल पर अवैध पशु व्यापार की अनुमति नहीं देंगे।

अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क ट्रैफिक इंडिया के साथ एक दशक तक कार्य कर चुके और फिलहाल नेचर इनवायरमेंट वाइल्ड लाइफ सोसाइटी (न्यूज़) के साथ जुड़े अभिषेक (पहला नाम) मिर्शिकार टोली का इतिहास बताते हैं, "मिर्शिकार वे पारंपरिक शिकारी थे जो कभी राजाओं और नवाबों के शिकारगाहों का प्रबंधन किया करते थे। यही मिर्शिकार टोली समय के साथ पक्षी व्यापार का गढ़ बन गई। यहां के लोगों के पास पक्षियों को पकड़ने की पुश्तैनी दक्षता है। पक्षियों को पकड़ने, उनकी देखभाल करने, और उन्हें एकत्रित कर रखने की एक पूरी श्रृंखला इस समुदाय के भीतर विकसित हो चुकी है।" मिर्शिकार टोली पर कई रिपोर्ट्स भी लिखी जा चुकी हैं। बैक्स टु द वॉल: सागा ऑफ वाइल्ड लाइफ इन बिहार किताब में एसपी शाही ने भी मिर्शिकार टोली, यहां के शिकार और शिकारियों पर लेख लिखा है

कैफ की दिलचस्पी इस पुश्तैनी पेशे को छोड़कर किसी अन्य व्यवसाय में नहीं है। वह कहते हैं, "नौकरी में हमें ज्यादा से ज्यादा महीने के 40-50 हजार रुपए मिलेंगे। यहाँ इस छोटी-सी दुकान से भी हम हर महीने कम से कम 50-60 हजार कमा लेते हैं। पक्षियों के व्यापार में मुनाफा बहुत तगड़ा है”।

उनकी इस छोटी सी दुकान में देसी -विदेशी प्रजातियों के कम से कम 500 पक्षी पिंजड़ों में रखे थे। वह अपनी दुकान पर मौजूद स्थानीय प्रजातियों के पक्षियों की तस्वीरें नहीं लेने देते और एग्जॉटिक यानी विदेशी पक्षियों की तस्वीर से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। वह जानते हैं कि स्थानीय पक्षियों को रखना या बेचना गैरकानूनी है।

मिर्शिकार टोली की दुकानों में भारतीय मूल के तोते समेत पक्षियों की कई प्रजातियां दिखीं। भारतीय मूल के पक्षियों में, परों पर मैरून रंग के धब्बेवाले एलेक्जेंड्रिन तोते (Alexandrine Parakeet), हलके लाल रंग के सीने वाला तोते (Red-breasted Parakeet), बैंगनी और स्याही रंग के सिर वाले तोते (Plum-headed Parakeet),गर्दन पर गहरे गुलाबी छल्ले वाले रोज़-रिंग्ड पैराकीट (Rose-ringed Parakeet) और हिमालयी तोते थे। साथ ही विविध रंगों वाली मुनिया चिड़ियों की प्रजातियां बड़ी तादाद में थी। कुछ एक हरी मुनिया भी दिखी। हिमालयी मैना, बया, बुलबुल और फिंच चिड़िया (Indian Finch)भी बिक्री के लिए रखी गई थीं।

जबकि विदेशी पक्षियों में, तोते की कई विदेशी प्रजातियां और लव बर्ड्स बड़ी तादाद में थी। पीली कलगी वाले कॉकटू तोते, बजरीगर (Budgerigar), जावा स्पैरो, लॉरीकीट (Lorikeet) समेत रंग-बिरंगी छोटी चिड़ियां पिंजरों में कैद थीं। गंदे और बदबूदार पिंजरों में इन्हें ठूंस कर रखा गया था। कुछ चिड़ियों को देखकर लग रहा था कि वे बीमार हैं, इनके पंख झड़े हुए थे।

पालतू पशुओं के इस बाजार में कुत्ते, बिल्ली और खरगोश भी पिंजरे में रखे गए थे। एक दुकान पर चोरी-छिपे कछुए भी बेचे जा रहे थे।

मिर्शिकार टोली के नज़दीक रहने वाले पक्षी प्रेमी आदित्य शंकर बताते हैं, “तोते, मुनिया, लव बर्ड्स के साथ ही यहां कभी-कभी चील, बाज, बया, रॉबिन चिड़िया समेत गंगा नदी के किनारे पाए जाने वाले कछुए (Indian Roofed Turtle), इंडियन स्टार कछुए (Indian Star Tortoise), बंदर और नेवले भी बेचे जाते देखे हैं”।

स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स रिपोर्ट 2020 के अनुसार, देशभर में पक्षियों की तस्करी से जुड़ी 37 बरामदगियों से संकेत मिलता है कि तोते और मुनिया अवैध शिकार की गई प्रजातियों में सबसे अधिक थे। रिपोर्ट के अनुसार, जब्त किए गए प्रत्येक 10 पक्षियों में से 7 या 8 सिर्फ तोते और मुनिया थे।
ज्यादातर चिड़ियों की कीमत एक हज़ार रुपए जोड़े से लेकर 15 हज़ार रुपए जोड़े तक बताई गई। कुछ चिड़िया 200-300 रुपए जोड़े में भी मिल रही थीं। खरीदार बन पूछताछ करने पर कुछ दुकानदार बताते हैं कि इन पक्षियों को बिहार के अलावा, झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल से लाया जाता है।

कैफ के आकलन से देखें तो न्यूनतम 50,000 रुपए प्रति दुकान प्रति माह के लिहाज से मिर्शिकार टोली की 40 गिनी गई दुकानों का सालाना कारोबार करीब ढाई करोड़ का है। जबकि दुकानों की संख्या और अधिकतम कमाई इससे ज्यादा ही हैं।

सख्त कानून, कमज़ोर अमल

सभी वन्यजीव सरकार की संपत्ति होते हैं। वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2022 में भारतीय मूल के सभी वन्यजीवों को शेड्यूल-1 और शेड्यूल-2 के तहत कड़ी सुरक्षा दी गई है। शेड्यूल-1 और 2 के वन्यजीवों का शिकार, पकड़ना, पालना, प्रजनन या व्यापार करना प्रतिबंधित है। ये एक दंडनीय अपराध है। इसके लिए कम से कम 3 वर्ष की सज़ा और 25 हज़ार रुपए जुर्माने का प्रावधान है।

रेड-ब्रेस्टेड तोते और हरी मुनिया शेड्यूल-1 के तहत संरक्षित है जो मिर्शिकार टोली में बेची जा रही थी। इन पक्षियों की सुरक्षा के लिए वही प्रावधान किए गए हैं जो हमारे देश में बाघ या हाथी की सुरक्षा के लिए हैं। जबकि एलेक्जेंड्रिन, रोज़ रिंग्ड, प्लम हेडेड सहित तोते की 10 स्थानीय प्रजातियां, मुनिया, फिंच और अन्य भारतीय मूल के पक्षियों को शेड्यूल-2 के तहत सुरक्षा दी गई है।

विदेशी वन्यजीवों से जुड़े व्यापार को नियंत्रित करने के लिए वन्यजीव संरक्षण संशोधन अधिनियम-2022 में ‘वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ (CITIS- Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) में सूचीबद्ध वन्यजीवों को शामिल किया गया। 28 फरवरी 2024 में अधिसूचना के ज़रिये ऐसे वन्यजीवों को रखने वाले सभी व्यक्तियों को 6 महीने के भीतर भारत सरकार के परिवेश 2.0 पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया।

पटना के प्रभागीय वनाधिकारी गौरव ओझा बताते हैं कि उनके संज्ञान में मिर्शिकार टोली में पक्षियों की खरीद-बिक्री कर रही एक भी दुकान परिवेश पर रजिस्टर नहीं है। वह कहते हैं, “पक्षियों या वन्यजीवों के ट्रांसपोर्ट की सूचना मिलने पर हम कार्रवाई करते हैं। कई बार ट्रेन या बस से चिड़ियों के कनसाइनमेंट जब्त किए”। लेकिन मिर्शिकार टोली पर कार्रवाई को लेकर वह प्रतिक्रिया देने से इंकार करते हैं और जोड़ते हैं, “जब भी हमें कोई सूचना मिलेगी तो कार्रवाई करेंगे”।

प्रभागीय वनाधिकारी के मुताबिक बिहार वन्यजीवों की तस्करी के ट्रांजिट प्वांट के तौर पर काम करता है। “हमारा राज्य उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड यहां तक कि नेपाल से भी जुड़ा हुआ है। यहां से तस्करी की जा रही चिड़ियां जब्त की गई हैं। इनमें ज्यादातर भारतीय प्रजातियां ही होती हैं”।

वन्यजीवों की तस्करी की सूचना पर वन विभाग कार्रवाई करता है लेकिन मिर्शिकार टोली पर कार्रवाई विभाग के लिए भी आसान नहीं। वन विभाग के अधिकारी ये बात कहते हैं। वर्ष 2022 में मिर्शिकार टोली पर छापा मारने गई वन विभाग और स्थानीय पुलिस की टीम को टोली के व्यापारियों का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था।

लेकिन कोविड के दौरान वर्ष 2021 की छापेमारी उल्लेखनीय थी। तत्कालीन पटना डीएफओ और इस समय औरंगाबाद में तैनात रुचि सिंह बताती हैं, “हमें मिर्शिकार टोली के एक मकान में पक्षियों के गोदाम की सूचना मिली थी। उस समय कोविड के चलते बाज़ार बंद था तो हमें छापेमारी में ज्यादा दिक्कत नहीं आई। हमें वहां दो सौ से अधिक पैराकीट्स मिले। हिल मैना मिली। इसके साथ ही 3 सारस क्रेन पक्षी मिले, जो उत्तर प्रदेश से तस्करी कर लाए गए थे”।

रुचि बताती हैं, “तीनों ही सारस क्रेन पक्षी युवा थे। इनमें से एक का पैर टूटा हुआ था। जिसका तीन महीने तक इलाज किया गया लेकिन फिर उसने दम तोड़ दिया। बाकी दो पक्षियों को संजय गांधी जैविक उद्यान में पुनर्वास के लिए ले जाया गया। ये छापेमारी कोविड के दौरान हुई थी। उस समय किसी की गिरफ़्तारी नहीं हुई। मकान के मालिक को नोटिस भेजा गया लेकिन कोई जिम्मेदारी लेने सामने नहीं आया। मिर्शिकार में सारस पक्षी का मिलना बताता है कि यहां बाज़ार में आसपास के राज्यों से वन्यजीव लाए जाते हैं। वे ट्रेन और बस से अपने कनसाइनमेंट तस्करी कर लाते हैं”।

“तीनों ही सारस क्रेन पक्षी युवा थे। इनमें से एक का पैर टूटा हुआ था। जिसका तीन महीने तक इलाज किया गया लेकिन फिर उसने दम तोड़ दिया। बाकी दो पक्षियों को संजय गांधी जैविक उद्यान में पुनर्वास के लिए ले जाया गया। ये छापेमारी कोविड के दौरान हुई थी। उस समय किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। मकान के मालिक को नोटिस भेजा गया लेकिन कोई जिम्मेदारी लेने सामने नहीं आया,” रुचि के अनुसार ।

रुचि मानती हैं कि मिर्शिकार टोली संगठित अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार से जुड़ा है, “मिर्शिकार एक तरह के होलसेल मार्केट का काम करता है। कोलकाता और दिल्ली समेत अन्य जगहों से जुड़ा हुआ है। पक्षियों के अलावा वहां कछुए, बंदर समेत अन्य जानवर भी देखे हैं”।

लखनऊ के नक्खास पक्षी बाज़ार में विदेशी पक्षी ज्यादा दिखे। पिंजरे में बंद जावा गौरेया (Lonchura oryzivora), जिसे आईयूसीएन की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त (Endangered) श्रेणी के तहत सूचीबद्ध है। इसकी आबादी 10,000 से भी कम रह गई है। कानूनी सुरक्षा के बावजूद, आवास विनाश और पालतू व्यापार इनके अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का नक्खास पक्षी बाज़ार

मिर्शिकार टोली की तर्ज पर उत्तर भारत के तकरीबन सभी बड़े शहरों में पारंपरिक पक्षी बाज़ार वर्षों से चल रहे हैं। सख्त वन्यजीव संरक्षण कानूनों के बावजूद इन बाजारों में संरक्षित जीवों की खुलेआम खरीद-बिक्री जारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये बाजार संगठित अपराध और अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव तस्करी नेटवर्क की महत्वपूर्ण कड़ी बने हुए हैं।

लखनऊ का नक्खास पक्षी बाज़ार भी इनमें से एक है। अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क ट्रैफिक इंडिया के साथ एक दशक तक कार्य कर चुके और फिलहाल नेचर इनवायरमेंट वाइल्ड लाइफ सोसाइटी (न्यूज़) के साथ जुड़े अभिषेक (पहला नाम ही इस्तेमाल करना चाहते हैं) कहते हैं, “ट्रैफिक में काम करने के दौरान की गई एक छापेमारी में लखनऊ के नक्खास पक्षी बाज़ार में हमें 25 स्लेंडर लॉरिस (Slender Loris) मिले थे। तमिलनाडु में पाए जाने वाले इन रात्रिचर प्राइमेट को जंगल में ढूंढ़ना बहुत मुश्किल होता है। वे नक्खास बाज़ार में 25 हज़ार रुपए में बेचे जा रहे थे”। आईयूसीएन ने इन्हें लुप्तप्राय श्रेणी (Endangered) में सूचीबद्ध किया है, जबकि ये भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के शेड्यूल 1 के तहत सूचीबद्ध हैं।

वर्ष 2023 में लखनऊ के नक्खास पक्षी बाजार में छापेमारी कर 1,200 से अधिक तोते, मुनिया और विदेशी पक्षी जब्त किए गए थे। इसके बावजूद ये बाज़ार और इसका कारोबार दोनों चल रहा है। नक्खास की सड़क पर पिंजरों में कैद पक्षी अब भी देखे जा सकते हैं।

वन्यजीव संरक्षण के लिए कार्य कर रही संस्था वाइल्डलाइफ एसओएस के उपनिदेशक डॉ वसीम अकरम कहते हैं, “हमने कई केस देखे हैं जिसमें विदेश में बैठा खरीदार हमारे देश से वन्यजीव मंगवाता है। जीवित पक्षियों से लेकर सरीसृप, कछुए सबकी तस्करी की जाती है। हमारे देश में भी विदेशों से पक्षी मंगाए जाते हैं। हमारी संस्था के पास एयरलाइन्स के अधिकारियों से फोनकॉल आतीं हैं कि जीवित पक्षी बरामद हुए हैं। हम इन पक्षियों की देखरेख में मदद करते हैं ”।

वसीम कहते हैं, “वन्यजीव अपराध को लेकर जागरुकता बढ़ी है। कस्टम विभाग, डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस और बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स जैसी एजेंसियां भी अब पहले से अधिक सतर्क हैं। ड्रग्स और हथियारों की तस्करी की तरह ही वन्यजीव तस्करी पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है। यही कारण है कि वन्यजीवों की बरामदगी बढ़ी है। हालांकि ये जब्तियां वन्यजीव अपराधों की सिर्फ एक झलक भर हैं। इनके आधार पर हम अंदाजा लगा सकते हैं कि ये अपराध कितना फैला हुआ है और अरबों रुपए का है”।

संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) की वर्ल्ड वाइल्डलाइफ क्राइम रिपोर्ट 2024 में कहा गया है कि इस वन्यजीव अपराध का दायरा 160 से ज़्यादा देशों और क्षेत्रों में फैला हुआ है। जो जानवरों और पौधों की हज़ारों प्रजातियों को प्रभावित करता है। इन उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए बहुत ज़्यादा काम करने की ज़रूरत है।

इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 से 2021 के बीच जब्त की गई 1,652 स्तनधारी, उभयचर, सरीसृप और पक्षी प्रजातियों में से 40 प्रतिशत प्रजातियाँ आईयूसीएन रेड लिस्ट में संकटग्रस्त या निकट संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल हैं।

इस अवधि में जब्त किए गए सभी वन्यजीव प्रजातियों में पक्षियों की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत थी। जिसमें तोते और कॉकटू मुख्य रूप से शामिल थे।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर यानी आईयूसीएन वन्यजीवों को उनकी विलुप्तता से जुड़े खतरे के आधार पर श्रेणीबद्ध करती है। रेड लिस्ट इसी खतरे के प्रति आगाह करने की सूची है।

वन्यजीव विशेषज्ञों से बातचीत के मुताबिक वन्यजीव अपराध अक्सर बेहतर मुनाफे और कम जोखिम वाले अपराध माने जाते हैं। भारत में इन अपराधों के मामले में दोषसिद्धि दर (conviction rate) मात्र 2-3% है। ये गंभीर वित्तीय अपराध हैं फिर भी अधिकांश मामलों में वित्तीय जांच नहीं की जाती। नशा या हथियार तस्करी की तरह ही वन्यजीव तस्करी में भी एक संगठित आपूर्ति श्रृंखला है। UNODC की विश्व वन्यजीव अपराध रिपोर्ट के अनुसार इसमें शिकारी, दलाल, बिचौलिए, निर्यातक-आयातक, थोक व्यापारी और खुदरा विक्रेता सभी शामिल हैं।

डॉ वसीम अकरम कहते हैं “वन्यजीव अपराध पर अंकुश लगाने के लिए कई मोर्चों पर काम करना होगा। इनकी धर-पकड़, छापेमारी, जब्तियों के साथ इन मामलों में कठोर सजा भी बहुत जरूरी है। अभी मुश्किल से 2-3% मामलों में दोष सिद्धि हो पाती है। कई बार ऐसे मामलों को पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में डाल देते हैं और 500 रुपए का ज़ुर्माना लगाकर छोड़ देते हैं। क्या पता कोई करोड़ों का व्यापार कर रहा हो और 500 रुपए का जुर्माना तो कुछ भी नहीं है”।

मिर्शिकार टोली में पिंजरे में बीमार तोता। स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स रिपोर्ट में भी लिखा गया है कि तस्करी के दौरान पक्षियों की मृत्यु दर 90% तक होती है।

पिंजरे में कैद हर एक जीवित पक्षी के पीछे नौ पक्षी दम तोड़ चुके होते हैं!

वन्यजीवों की तस्करी से इनके विलुप्त होने का खतरा भी है। वसीम बताते हैं, “पक्षियों के बड़े-बड़े कनसाइनमेंट जब ट्रांसपोर्ट किए जाते हैं तो इनके जीवित बचने के आसार 10- 20 प्रतिशत ही होते हैं। इन्हें ऐसी परिस्थितियों में लाया जाता है जहां भोजन,पानी, रोशनी, हवा कुछ नहीं मिलता। कैद में लाए गए पक्षी इतने सदमे में होते हैं कि वे तनाव से ही मर जाते हैं। कई बार ये अंडों तक की तस्करी करते हैं। पक्षी पहली बार जब अपनी आंखें खोलता है तो खुद को पिंजरे में पाता है”।

स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स रिपोर्ट में भी लिखा गया है कि तस्करी के दौरान पक्षियों की मृत्यु दर 90% तक होती है। यानी पिंजरे में क़ैद हर एक जीवित पक्षी के पीछे नौ पक्षी दम तोड़ चुके होते हैं।

छापेमारी या तस्करी के दौरान जब्त किए गए पक्षियों के जीवित बचने की संभावना भी बेहद कम होती है। ज्यादातर जब्त किए गए पक्षी अनुभवहीन हाथों में, या अदालती सुनवाई के दौरान, और सही देखरेख न होने के कारण मर जाते हैं। भारत की समृद्ध जैव-विविधता को समझने और संरक्षित करने के कार्य कर रही वन्यजीव अनुसंधान संगठन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) की “लाइव बर्ड्स ट्रेड इन इंडिया” रिपोर्ट में भी इसका ज़िक्र किया गया है।

ये परिस्थितियां अब भी नहीं बदली हैं। बिहार वन विभाग की डीएफओ रुचि सिंह बताती हैं, “मिर्शिकार टोली से छापेमारी के बाद बरामद की गई ज्यादातर चिड़िया मर गईं। हम बहुत परेशान हुए। जब तक उन्हें मुक्त करने के लिए अदालत से आदेश नहीं मिला, हमने उन्हें भोजन देने की बहुत कोशिश की, एक्सपर्ट को भी बुलाया, लेकिन वे बहुत तनाव में थी। हमारे पास पक्षियों को रखने की कोई सुविधा भी नहीं थी”।

“आसमान में उड़ते तोतों और दूसरे पक्षियों को देखकर हमें लगता है कि वे कहीं नहीं गए हैं। अगर हम अपने पिता और दादा के बचपन से इनकी संख्या की तुलना करें तो पाएंगे कि ये पक्षी अब बहुत कम हो गए हैं। कुछ तो विलुप्त भी हो चुके हैं। पहले स्थानीय स्तर पर इनका अस्तित्व खत्म होता है और फिर धीरे-धीरे बड़े स्तर पर ये विलुप्ति की कगार पर पहुंच जाते हैं”, डॉ वसीम कहते हैं कि ये व्यापार जैव-विविधता के लिए भी बड़ा खतरा है।

हरी मुनिया (Green Avadavat) इस बढ़ते खतरे का उदाहरण है। अवैध व्यापार और पिंजरे में रखे जाने का शौक भी इनके अस्तित्व के संकट की प्रमुख वजहों में से एक है।

पक्षियों को पिंजरे में क़ैद करने का आधार हमारा पक्षी पालने का शौक है। वन्यजीव विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि हम इस शौक को छोड़ दें तो लाखों पक्षियों को उड़ने के लिए खुला आसमान मिल सकता है।

वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) में संयुक्त निदेशक रह चुके और वर्तमान में उत्तर प्रदेश वन विभाग में मुख्य वन संरक्षक एच वी गिरीश कहते हैं, “हमें लोगों की ओर से पालतू पक्षियों की मांग कम करनी होगी। इसके लिए जागरुकता की जरूरत है। सीमित संसाधनों के साथ डब्ल्यूसीसीबी ज्यादातर बड़े वन्यजीव अपराध पर ध्यान देता है। पारंपरिक पक्षी बाज़ार से जुड़े लोगों को वैकल्पिक आजीविका उपलब्ध कराए बिना इन बाजारों को बंद करना आसान नहीं होगा”।

बिहार वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) अरविंदर सिंह कहते हैं, “जिस तरह मछुआरे अपनी आजीविका के लिए मछली पर निर्भर करते हैं, वैसे ही पारंपरिक रूप से पक्षी व्यापार से जुड़े लोग पक्षियों पर निर्भर हैं। यही कारण है कि कार्रवाई के बावजूद वे इस व्यापार को पूरी तरह छोड़ नहीं पाते। यदि इन्हें वैकल्पिक आजीविका प्रदान करनी है, तो इसके लिए बिहार सरकार या भारत सरकार को एक व्यापक और प्रभावी योजना चलानी होगी”।

वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि पक्षियों के संरक्षण के लिए केवल सख्त कानून ही नहीं बल्कि मजबूत जनसमर्थन भी जरूरी है। अगर इनके आजीविका के विकल्प सुनिश्चित किए जाएं, मिर्शिकार टोली की पक्षी दुकान पर बैठे मोहम्मद सैफ़ जैसे युवा अपने पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल पक्षियों के कारोबार की जगह संरक्षण के लिए कर सकते हैं।

वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि अवैध पक्षी व्यापार को रोकने के लिए केवल कानून ही काफी नहीं हैं, हम इसे लागू कैसे करते हैं, दोषियों को सजा देने, जन जागरूकता, व्यवहार में बदलाव और वैकल्पिक आजीविका के अवसर देना, इन सभी पहलुओं पर एक साथ काम करने की जरूरत है। ताकि मोहम्मद सैफ़ जैसे युवाओं को अवैध कारोबार का हिस्सा बनने की जगह पक्षियों के संरक्षण से जोड़ा जा सके।


Similar News