"महामारी फैलने से बेहतर है कि निपाह वायरस के छिटपुट मामले ही सामने आएं"
निपाह वायरस के प्रकोप के बीच भी केरल इस बीमारी के बारे में अध्ययन करता रहा है। इसका फायदा ये हुआ कि उनका स्वास्थ्य तंत्र अब बीमारी को आसानी से पहचान पा रहा है और उस पर नजर रख पा रहा है।;
बेंगलुरु: केरल में एक बार फिर जानलेवा निपाह वायरस (NiV) के मामले सामने आने लगे हैं। जुलाई में दो मरीजों; मलप्पुरम में एक 18 वर्षीय महिला और पलक्काड में एक 57 वर्षीय व्यक्ति- की मौत हो गई। 571 लोग उस सूची में हैं जो निपाह वायरस से संक्रमित पाए गए लोगों के संपर्क में आए थे।
निपाह वायरस एक जूनोटिक बीमारी है, जो जानवरों से इंसानों में फैलती है - जिसे "स्पिलओवर" कहा जाता है। केरल राज्य में 2018 से निपाह वायरस के 10 "स्पिलओवर" की सूचना मिली हैं, जिनमें से चार तो सिर्फ इसी साल हुए हैं।
ये बीमारी दूषित खाने या फिर सीधे एक इंसान से दूसरे इंसान में भी फैल सकती है। टेरोपॉडिडी फैमिली के फ्रूट चमगादड़ निपाह वायरस के प्राकृतिक वाहक होते हैं। हालांकि इसकी पहचान पहली बार 1999 में मलेशिया में हुई थी, उसके बावजूद इसका फिलहाल कोई लाइसेंस प्राप्त इलाज या दवा नहीं है।
निपाह वायरस पर रिसर्च के सबसे बड़े वित्तपोषकों में से एक कोएलिशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (CEPI) के अनुसार, निपाह वायरस संभावित रूप से दुनिया भर में 2 अरब लोगों को संक्रमण के खतरे में डाल सकता है। हालांकि अगले साल बांग्लादेश में निपाह वायरस के दो टीकों का इंसानों पर ट्रायल शुरू हो जाएगा।
निपाह वायरस एक जानलेवा वायरस है, जिससे संक्रमित होने वाले 40% से 75% लोगों की मौत हो जाती है। इस खतरे को देखते हुए, सभी लैब में इसकी जांच नहीं की जा सकती है। यूरोपीय सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल नमूनों को संभालने के लिए अलग-अलग सुरक्षा स्तर निर्धारित करता है: बायोसेफ्टी लेवल-2 (बीएसएल-2): निष्क्रिय नमूनों पर नैदानिक आरटी-पीसीआर और सीरोलॉजी परीक्षण बीएसएल-2 स्तर की सुरक्षा में किए जा सकते हैं। वायरस को निष्क्रिय करने का काम बीएसएल-3 में किया जाना चाहिए। वायरस के प्रसार, अलगाव, परिमाणीकरण और उसे निष्प्रभावी करने के लिए बीएसएल-4 स्तर की सुविधाएं आवश्यक हैं - जिनमें उच्चतम स्तर की सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
2023 में, केरल के कोझिकोड के सरकारी मेडिकल कॉलेज में "निपाह रिसर्च एंड रेसिलिएंस" के लिए "वन हेल्थ सेंटर" खोला गया था। इस रिसर्च सेंटर के नोडल ऑफिसर और संक्रामक रोग विशेषज्ञ अनीश टी.एस. ने कहा, "... "इंडिपेंडेंट स्पिलओवर" (जानवरों से इंसानों में बीमारी का फैलना) होना "प्रकोप" (एक व्यक्ति से कई लोगों में बीमारी का फैलना) होने से बेहतर है। उन्होंने समझाया कि अगर "आउटब्रेक" होता है, तो इसका मतलब है कि एक व्यक्ति कई लोगों को संक्रमित कर सकता है, जो चिंताजनक होगा। और इसकी जांच करना जरूरी हो जाएगा।
अनीश ने बताया, "केरल में अब तक लगभग 36 मामले सामने आए हैं। उनमें से लगभग 60% लोगों को यह संक्रमण अस्पतालों से हुआ है, चमगादड़ों जैसे शुरुआती स्रोत से नहीं।" उन्होंने आगे कहा, "इसलिए अगर मामलों को कम करना है, तो अस्पतालों में ध्यान देना होगा। इसमें संक्रमण से बचने के लिए मास्क पहनना भी शामिल है।"
अनीश निपाह के लिए केरल राज्य चिकित्सा बोर्ड और डब्लुएचओ के पैरामिक्सो वायरस के लिए सहयोगी ओपन रिसर्च कंसोर्टियम के सदस्य हैं। उन्होंने कोविड-19 के लिए केरल के विशेषज्ञ समूह के महामारी विज्ञानी और संयोजक के रूप में और राज्य के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के स्वास्थ्य संबंधी आपदाओं पर जन स्वास्थ्य सलाहकार के रूप में भी काम किया है।
अपने एक साक्षात्कार में अनीश ने निपाह वायरस से जुड़ी चिंताओं, बार-बार निपाह के प्रकोप के स्रोत और कारणों का पता लगाने में आने वाली चुनौतियों और राज्य में स्वास्थ्य प्रणालियों की प्रतिक्रिया के बारे में बात की।
यहां उस साक्षात्कार के कुछ खास अंश दिए गए हैं:
निपाह रिसर्च के लिए वन हेल्थ सेंटर 2023 में स्थापित किया गया था। उसके बाद से ये बीमारी कई बार फैली है। अपने लक्ष्यों को पूरा करने के मामले में क्या काम हो रहा है और कैसे आगे बढ़ा है?
मौजूदा समय में वन हेल्थ सेंटर एक छोटी यूनिट है। इसकी शुरुआत 2023 में, निपाह के प्रकोप के दौरान हुई थी। ये पांचवां मौका है जब ये वायरस फैला है, लेकिन ये सेंटर पूरी तरह से 2024 तक चालू हो पाया था। हम निपाह से निपटने के लिए मौजूदा स्वास्थ्य प्रणालियों का सहयोग करते हैं। केरल में कई तरह के इन्फेक्शन फैलने का खतरा हमेशा बना रहता है, जिनमें निपाह जैसे खतरनाक वायरस भी शामिल हैं।
कुछ मामलों में, वायरस म्यूटेट होकर बड़े पैमाने पर फैल सकता है या महामारी बन सकता है। निपाह को ऐसी ही एक बीमारी के रूप में देखा जा सकता है। दूसरा उदाहरण है "उच्च रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा" (जिसे आमतौर पर बर्ड फ्लू कहा जाता है)। ये दुनियाभर के लिए एक चिंता का विषय है। बर्ड फ्लू के मामले को देखें तो, यह शुरुआत में पक्षियों तक ही सीमित था, लेकिन फिर यह जानवरों, खासकर मवेशियों में भी फैल गया। भारत ने 2021 में अपने पहले मानव संक्रमण की सूचना दी थी। कोविड की तरह, एवियन इन्फ्लूएंजा भी तेजी से बदलने वाला वायरस है, जिसके कारण यह अगली महामारी बन सकता है। केरल में तेजी से फैलने वाली तीसरी बीमारी " क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज" है। यह एक वायरल बीएसएल-4 डिजीज है और टिक्स (किलनी) के काटने से फैलती है। यह दो जिलों - वायनाड और मलप्पुरम में मौजूद है, हालांकि यह निपाह जितनी घातक नहीं है।
इन चिंताओं को देखते हुए, 2023 में कोझिकोड में इस संस्थान की स्थापना की गई, जो पश्चिमी घाट के करीब है। इसमें एक ऐसे संस्थान के रूप में विकसित होने की क्षमता है जो उच्च खतरे वाले संक्रमणों के महामारी विज्ञान और व्यवहारों का अध्ययन कर सके। फिलहाल, एक छोटी यूनिट के तौर पर, हम प्रकोप प्रबंधन में सहायता करते हैं। हमारा फोकस मुख्य रूप से अंतर-महामारी अवधि (महामारी के बीच का समय) पर है ताकि लोगों को सावधानी बरतने में मदद मिल सके, दिशानिर्देश बनाए जा सकें और उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिए जिला प्रशासन के साथ मिलकर काम किया जा सके। दरअसल हमारा काम मुख्य रूप से प्रकोपों के बीच किया जाता है। इस तरह, जब कोई बीमारी फैलती है, तो हमारे पास पहले से ही नियम और तरीके मौजूद होते हैं जिससे हालात को संभाला जा सके।
सेंटर के साथ कितने लोग जुड़े हैं?
मैं नोडल ऑफिसर हूं। केरल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (KCDC) का क्षेत्रीय ऑफिस भी यहीं है। KCDC के राज्य प्रोजेक्ट हेड कोझिकोड में हैं और वे हमारे इंस्टीट्यूट से जुड़े हैं। अभी हमारे पास और कोई स्टाफ नहीं है, लेकिन हम स्वास्थ्य सेवाओं और मेडिकल एजुकेशन से जुड़े लोगों की मदद लेते हैं। हमने कुछ रिसर्च के प्रस्ताव बनाए हैं और डब्लूएचओ और आईसीएमआर जैसी एजेंसियों से फंडिंग की मांग रहे हैं।
हम वन हेल्थ के अंतर्गत काम करने वाली अन्य एजेंसियों, जैसे इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड वायरोलॉजी, स्थानीय स्वशासन विभाग, पशुपालन, पर्यावरण एवं वानिकी, केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, केरल पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, के साथ भी सहयोग कर रहे हैं। हम विभिन्न जिलों में वन हेल्थ के अन्य कार्यक्रमों का भी हिस्सा हैं।
2018 से केरल में निपाह के प्रकोप की खबरें आ रही हैं। कोविड-19 का पहला मामला भी केरल में ही सामने आया था। एक संस्थान के तौर पर इन अनुभवों ने इस रिसर्च सेंटर के लिए आपके नजरिए को कैसे आकार दिया है? चुनौतियां क्या रही हैं?
केरल में लगभग 36 मामले सामने आए हैं। उनमें से लगभग 60% लोगों को यह संक्रमण अस्पतालों से हुआ, चमगादड़ों जैसे शुरुआती स्रोत से नहीं। इसलिए यदि मामलों को कम करना है, तो अस्पतालों में ध्यान देना होगा, जिसमें संक्रमण से बचने के लिए मास्क पहनना शामिल है। निपाह संक्रमण के प्रसार को कम करने के लिए यह बहुत जरूरी है।
अगर 60% संक्रमण अस्पतालों में हुए, तो लगभग 20% मामले परिवारों में फैले। इससे बचने का तरीका यही है कि अगर परिवार के किसी सदस्य को बुखार के साथ सिरदर्द है या सांस लेने में तकलीफ है, तो उसे अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए। वरना अगर लक्षण बढ़ गए, तो संक्रमण दूसरों में फैल जाता है। सिर्फ चमगादड़ों पर ही नहीं, बल्कि मानव व्यवहार पर भी ध्यान देना होगा और नजर रखनी होगी।
ये सब प्राकृतिक संक्रमणों के कारण होता है। इसलिए सबसे अच्छा तो यही होगा कि जानवरों से इंसानों में संक्रमण फैलने से रोका जाए, लेकिन स्रोत का पता लगाना मुश्किल है। हो सकता है कि 20-30% चमगादड़ सेरोलॉजिकल रूप से पॉजिटिव हों (मतलब उनके खून में एंटीबॉडीज हों), लेकिन उनमें वायरस शायद ही कभी मिलता हो। हमें यह नहीं पता कि किन हालातों में चमगादड़ में सक्रिय संक्रमण विकसित हो रहा है और किन हालातों में यह लोगों में फैलता है। हम जानते हैं कि चमगादड़ों और मनुष्यों में वायरस के बीच 100% समानता है, जो इस बात का आनुवंशिक प्रमाण है कि चमगादड़ ही इस वायरस के स्रोत हैं।
केरल में चमगादड़ों में कुछ खास तरह के बदलाव (म्यूटेशन) हैं और ये सालों से मौजूद हैं। हमारे पास इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि वायरस कैसे फैलता है और किन हालातों में; चाहे वो मल-मूत्र के ज़रिए हो, या दूसरे जानवरों जैसे किसी माध्यम से।
कुछ रुकावटें भी हैं। मसलन, इस पर रिसर्च करने के लिए बीएसएल-4 लैब की ज़रूरत होती है क्योंकि ये बहुत ही खतरनाक वायरस है और सिर्फ नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV), पुणे ही इस तरह की रिसर्च कर सकता है। हमें चमगादड़ों पर सीधे रिसर्च करने की इजाज़त नहीं मिलेगी क्योंकि उनमें वायरस हो सकता है।
[सीरोलॉजी टेस्ट खून में एंटीबॉडीज की मौजूदगी का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, जिससे पता चलता है कि कोई व्यक्ति वायरस या किसी दूसरे संक्रमण के संपर्क में आया है या नहीं। वायरोलॉजिकल टेस्ट वायरस और वायरस एजेंटों की जांच करता है।]
जब आप रिसर्च या टेस्ट नहीं कर पाते हैं, तो ऐसे में आपको किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी जानवरों में इस्तेमाल होने वाले सीरोलॉजिकल टेस्ट सहित कई तरह के शोध कर रहा है। सीरोलॉजिकल टेस्ट, जैसे कि एंजाइम-लिंक्ड इम्यूनोसॉरबेंट एसे (ELISA) (जो कि उपलब्ध कराया जाना है), का इस्तेमाल खून के नमूनों में एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए किया जाता है। अगर ELISA टेस्ट जानवरों के लिए इस्तेमाल करना है, तो उसे एक खास जानवर के लिए विकसित करना होगा।
केरल में वायरोलॉजिकल टेस्ट करने के लिए खास सेंटर बने हुए हैं। कोझिकोड मेडिकल कॉलेज में, सरकार एक पूरी तरह से काम करने वाली बीएसएल-3 फैसिलिटी बनाने की कोशिश कर रही है। भारत में सिर्फ दो बीएसएल-4 फैसिलिटी हैं; एक पुणे में इंसानों की बीमारियों के लिए और दूसरी भोपाल में जानवरों की बीमारियों के लिए। यह मुमकिन नहीं है कि किसी राज्य के संस्थान में बीएसएल-4 फैसिलिटी हो। निपाह के प्रकोप को देखते हुए, कोझिकोड और मंजेरी मेडिकल कॉलेज में बीएसएल-3 फैसिलिटी चालू हैं और ऐसी ही फैसिलिटी तिरुवनंतपुरम में इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड वायरोलॉजी में भी है।
अलप्पुझा में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की फील्ड यूनिट में एक पूरी तरह से काम करने वाली बीएसएल-3 लैब है, जो हाल ही में शुरू हुई है। इन सुविधाओं के अलावा, हम निपाह की जांच के लिए ट्रूनेट टेस्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं - ये कम खतरे वाले पॉइंट-ऑफ-केयर पीसीआर सुविधाएं हैं। जरूरत पड़ने पर ट्रूनेट छोटे लैब में भी किया जा सकता है। मुझे लगता है कि दूसरे राज्यों के मुकाबले केरल में निपाह टेस्टिंग करने के लिए सबसे ज्यादा डायग्नोस्टिक सुविधाएं हैं, जिसकी वजह से हम इंसानों में संक्रमण का पता लगा पाते हैं।
आमतौर पर, निपाह का पता लगाने के लिए हम आरटी-पीसीआर का इस्तेमाल करते हैं, जो सबसे भरोसेमंद तरीका है। इसलिए, किसी बड़ी लैब से कन्फर्मेशन लेना सिर्फ एक औपचारिकता होती है। जैसे ही हमारे यहां कोई टेस्ट पॉजिटिव आता है, वैसे ही कंट्रोल के लिए जरूरी काम शुरू कर दिए जाते हैं। दूसरे राज्यों को शायद नेशनल लैब में सैंपल भेजना पड़ता हो।
असल में, निपाह सेंटर को वायरोलॉजी सेंटर बनाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वो पहले से ही केरल में मौजूद है। हमारा मकसद है कि हम समुदाय आधारित रिसर्च के लिए एक रणनीति बनाएं जिससे संक्रमणों की संख्या कम हो सके। हम [पहले से मौजूद] सभी सुविधाओं को एक साथ लाने की कोशिश करते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पलक्काड में एक मृतक मरीज के बेटे का टेस्ट पॉजिटिव आया है, जो एक सेकेंडरी इंफेक्शन है। कई प्राइमरी इंफेक्शन भी रिपोर्ट किए गए हैं। ऐसा पहले केरल में हुए प्रकोपों में नहीं हुआ था। यह डेवलपमेंट कितना चिंताजनक है, यह देखते हुए कि निपाह को खास तौर पर टारगेट करने वाली कोई दवा या वैक्सीन नहीं है?
हमने मोबाइल फोन टावर के डेटा, सीसीटीवी फुटेज और इंटरव्यू का इस्तेमाल करके विश्लेषण किया है और लगभग निश्चित हैं कि ये कई प्राइमरी इंफेक्शन हैं। ये मुमकिन नहीं है कि वो उन आम लोगों को जानते थे जिनके जरिए संक्रमण फैला हो। निपाह वायरस से संक्रमित होने पर लोग बहुत बीमार हो जाते हैं और उनमें गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं। इस वजह से, यह संभावना कम है कि संक्रमित व्यक्ति समुदाय में घूमते हुए पाए जाएंगे और दूसरों में संक्रमण फैलाएंगे।
दूसरी बात, पलक्काड में दूसरी मरीज ज्यादातर अपने घर में ही रही थीं। मरीज का घर स्पिलओवर (जानवरों से इंसानों में संक्रमण फैलने) के लिए संवेदनशील है क्योंकि वहां बहुत बड़ा चमगादड़ों का बसेरा है।
मुझे लगता है कि मरीज के घर के पास चमगादड़ों का बसेरा सबसे बड़ा था जो मैंने आज तक कभी नहीं देखा - यह एक बसेरा नहीं, बल्कि एक कॉलोनी थी, जो रबर के बागान में मौजूद थी। पेड़ों और शाखाओं के आधार पर, अनुमान है कि लगभग 10,000 चमगादड़ वहां रहे होंगे। कॉलोनी के आकार के कारण, कई चमगादड़ एक साथ संक्रमित हो सकते हैं और संभव है कि वो अलग-अलग जगहों पर गए हों। एक फ्लाइंग फॉक्स चमगादड़ का औसत वजन लगभग 600-700 ग्राम होता है और यह लगभग आधा किलो फल और खाना खाता है। इसे 5,000 किलो भोजन की जरूरत होगी जिसके लिए इन्हें एक बड़े क्षेत्र में घुसपैठ करनी पड़ती होगी। इससे दूसरों में संक्रमण फैल सकता है।
भले ही इसकी संभावना काफी कम हो, लेकिन हम लगभग पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि हर एक व्यक्ति को अलग-अलग जानवरों से संक्रमण (इंडिपेंडेंट स्लिपओवर) हुआ है।
मुझे लगता है कि एक आउटब्रेक होने से बेहतर है कि तीन इंडिपेंडेंट स्पिलओवर हों। अगर आउटब्रेक होता है, तो इसका मतलब है कि एक व्यक्ति कई लोगों को संक्रमित कर सकता है, जिसके लिए यह जांच करनी होगी कि एक व्यक्ति से कितने संक्रमण हुए हैं। यह चिंताजनक होगा।
बड़ा सवाल यह है कि पहले कभी नहीं देखे गए तीन अलग-अलग निपाह वायरस के मामले क्यों सामने आ रहे हैं। माना जाता है कि निपाह का फैलना एक दुर्लभ घटना है। अगर तीन दुर्लभ घटनाएं हो रही हैं, तो इसका मतलब है कि यह अब दुर्लभ नहीं है। क्या यह वायरस फैलना आम होता जा रहा है या हमारी मजबूत निगरानी प्रणाली की वजह से इसके बारे में पता चल रहा है? अगर इसकी वजह हमारी मजबूत निगरानी है, तो समय के साथ ऐसे मामले कम हो सकते हैं। लेकिन इस मामले में, ऐसा होने की संभावना कम है।
क्या आपका मानना है कि जिले में दूसरी जगहों पर जो संक्रमण हो रहे हैं, उनका संभावित स्रोत भी वही चमगादड़ों की कॉलोनी है जिसके बारे में पहले बात हुई है?
यह कहना मुश्किल है, लेकिन इसकी संभावना ज्यादा है क्योंकि कॉलोनी की हवाई दूरी मरीज के घर से लगभग 7 किलोमीटर है। और हो सकता है कि इससे दूसरे छोटे बसेरे भी संक्रमित हुए होंं। एक बार जब चमगादड़ों का एक हिस्सा संक्रमित हो जाता है, तो उनमें हर्ड इम्युनिटी बन जाती है और उस इलाके में संक्रमण रुक जाएगा। लेकिन कुछ दूसरे बसेरे [जो] शायद इम्युनिटी न रखते हों, संक्रमित हो जाते हैं। यही वजह है कि निपाह पकड़ में नहीं आता है।
आप चमगादड़ों के बसेरे या कॉलोनी में संक्रमण और इम्यूनिटी के स्तर को कैसे समझते हैं?
बांग्लादेश में इस पर अध्ययन हुए हैं, लेकिन केरल में काफी कम है। बांग्लादेश में हुए अध्ययनों से पता चला है कि जब किसी चमगादड़ के बसेरे में संक्रमण होता है, तो सिरोप्रवैलेंस (निपाह वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी दिखाने वाले चमगादड़ों का प्रतिशत) कम होगा। जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, सिरोप्रवैलेंस अधिक होगा। केरल में, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने फरवरी-सितंबर 2023 में चमगादड़ों का एक सीरियल सर्वे किया। इससे पता चला कि फरवरी में यह सितंबर की तुलना में कम था। इस दौरान चमगादड़ संक्रमित हो रहे हैं, जिसके बाद इम्यूनिटी बनती है। यह एक चक्र है, जो इस अवधि के आसपास संक्रमण के फैलने का एक कारण हो सकता है।
यह माना जाता है कि अगर चमगादड़ों के बसेरे में इम्युनिटी है, तो स्पिलओवर की संभावना कम होती है क्योंकि चमगादड़ों में सक्रिय वायरल ट्रांसमिशन नहीं होता है। लेकिन इम्युनिटी कुछ सालों तक ही सीमित रह सकती है। दरअसल बूढ़े चमगादड़ों में अलग-अलग समय पर कई निपाह संक्रमणों के कारण इम्युनिटी बन सकती है, लेकिन छोटे, असंक्रमित चमगादड़ों के साथ, [बसेरे की] इम्युनिटी फिर से कम हो जाएगी।
एक भू-स्थानिक पैटर्न भी हो सकता है, जहां विशिष्ट स्थानों में पहले से इम्युनिटी होने के कारण संक्रमण एक खास दिशा में बढ़ता है। ऐसा केरल में हो सकता है जहां मामले उत्तरी भागों में सामने आए हैं और बाद के वर्षों में दक्षिण की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन ये सिर्फ सिद्धांत या अनुमान हैं, जो [प्रकोप के खिलाफ] सावधानियां बरतने में मदद कर सकते हैं।
निपाह के मामले में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का तरीका कोविड के मुकाबले कैसे अलग है, खासकर जब ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं?
निपाह की कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग दूसरी बीमारियों के मुकाबले आसान है। निपाह बीमारी के लक्षण दिखने से पहले नहीं फैलता, बल्कि सिर्फ तब फैलता है जब मरीज को गंभीर लक्षण आने लगते हैं (पांचवें या छठे दिन जब सबसे ज्यादा संक्रमण फैलने का खतरा होता है)। हालांकि आखिरी फेज संक्रमण रोकने के लिए जरूरी है, लेकिन मृत्यु दर अधिक होने की वजह से हम शुरुआती फेज में भी सावधानी बरतते हैं।
किसी व्यक्ति में लक्षण विकसित होने से पहले क्वारंटाइन या कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की कोई जरूरत नहीं होती है। इसलिए, मरीज में लक्षण विकसित होने के बाद लोगों को ट्रेस करने में संसाधनों को लगाना आसान होता है। आइसोलेशन में, व्यक्ति को इंट्यूबेट किया जा सकता है और आईसीयू में रखा जा सकता है जिसके लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वे संपर्क में नहीं आते हैं।
ज्यादातर मामलों में, इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन का होता है। लेकिन केरल में एक मामले में, मरीज के लक्षण 12वें दिन दिखाई दिए, लेकिन [स्वास्थ्य] प्रणाली को 17वें दिन इसका पता चला। इसलिए हमारे प्रोटोकॉल के अनुसार, हम एक व्यक्ति को 21 दिनों तक निगरानी में रखते हैं। हम केवल तभी टेस्ट करते हैं जब लक्षण दिखाई दें।
जब आप समुदाय के स्वास्थ्य या समुदाय के नेतृत्व वाली प्रतिक्रिया की रणनीति बनाते हैं, तो आप आमतौर पर किसे लक्षित करते हैं? केरल में, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) जो सामुदायिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण कड़ी हैं, वेतन/हक के लिए विरोध-प्रदर्शन कर रही हैं। इस मामले में आशा कार्यकर्ता क्या भूमिका निभाती हैं और डॉक्टर सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, निपाह जैसे गंभीर बार-बार होने वाले प्रकोपों पर समग्र रूप से कैसे प्रतिक्रिया करती है?
केरल में लगभग 27,000 आशा कार्यकर्ता हैं। उनमें से केवल 500 के आसपास हड़ताल पर हैं। कुछ विरोध कर रही हैं, लेकिन कई आशा कार्यकर्ता काम भी कर रही हैं। 2018 में, हमें निपाह के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उस समय, निजी अस्पतालों ने इसकी सूचना दी थी। तब से, स्वास्थ्य प्रणाली के जरिए मामले सामने आ रहे हैं।
2023 और 2024 में, शुरुआती प्रकोपों को आशा कार्यकर्ताओं ने पकड़ा था। उन्हें [स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों की रिपोर्ट करने के लिए] घर-आधारित सर्वेक्षण करने होते हैं। उन्हें जिन महत्वपूर्ण मुद्दों की रिपोर्ट करनी होती है, उनमें से एक है एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (AES)। एक आशा कार्यकर्ता ने 2024 में एक निजी अस्पताल में AES से मरने वाले एक मरीज की सूचना दी। जब जिला निगरानी अधिकारी को सूचित किया गया, तो मृतक मरीज के रक्त के नमूने उस निजी अस्पताल से लिए गए जहां उसकी मृत्यु हुई थी। शुरुआत में टेस्ट के दौरान मरीज की मौत की वजह डेंगू मानी गई। इससे पता चलता है कि निपाह की पहचान करना मुश्किल है क्योंकि ज्यादातर मामले सिंगल केस ही होंगे। भारत में, 5% से भी कम एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम का निदान किया जाता है। केरल में, यह 60% जितना अधिक है।
आपको ऐसा क्यों लगता है कि केरल में एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम की पहचान बाकी जगहों से बेहतर है?
अगर यह निपाह है, तो व्यक्ति को पहले दिन बुखार होता है और अगर एंटीवायरल ट्रीटमेंट उपलब्ध नहीं है तो 5वें दिन तक उसकी मृत्यु हो सकती है, जब तक कि [स्वास्थ्य] प्रणाली इसका पता न लगा ले। कई लोगों की अस्पतालों में मौत हो जाती है और हमें कारण नहीं पता होता है। आखिरकार, यह मामलों का निदान करने के लिए सिस्टम की दक्षता है।
तो, भले ही हम समुदाय स्तर पर पहचान कर रिपोर्ट कर दें, लेकिन बिना लैब डायग्नोसिस के निपाह की पुष्टि नहीं हो सकती। एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम का एक दुर्लभ कारण निपाह है। जब तक स्वास्थ्य प्रणाली विशेष रूप से निपाह की पहचान नहीं कर पाती, तब तक एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम का कारण पता नहीं चल सकता है।
भले ही टेरोपस चमगादड़ [फ्रूट चमगादड़ या फ्लाइंग फॉक्स] हर जगह पाए जाते हैं और भारत के अलग-अलग हिस्सों में उनमें वायरस देखा जाता है, लेकिन केरल में निपाह के मानव मामले क्यों सामने आ रहे हैं? यह एक बड़ा सवाल है और शायद यह हमारी मजबूत निगरानी तंत्र के कारण है।
आपने कहा कि निपाह के मामले में, लक्षण गंभीर या जानलेवा होने में ज्यादा समय नहीं लगता। 15 जुलाई तक, संपर्क सूची में 675 लोग थे। DHS के निपाह दिशानिर्देशों के अनुसार, नमूना केवल अस्पताल में भर्ती होने के बाद ही लिया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नमूना लेने वाला कर्मचारी संक्रमण नियंत्रण के नियमों का सही ढंग से पालन कर रहा हो। सवाल यह है कि अगर लोगों को बुखार आता है, तो स्वास्थ्य विभाग यह कैसे सुनिश्चित करता है कि निपाह की पहचान के लिए जरूरी टेस्ट किए जाएं या नहीं?
आमतौर पर जो लोग घर पर आइसोलेशन में होते हैं, उनका टेस्ट नहीं किया जाता क्योंकि 90% निपाह के मामलों में संक्रमण नहीं फैलता है। इसलिए बिना सबूत के इतने सारे लोगों का टेस्ट करने का कोई मतलब नहीं है। अगर किसी व्यक्ति में लक्षण दिखते हैं, जैसे कि बुखार, तो हम निपाह पीसीआर टेस्ट करते हैं। अगर टेस्ट पॉजिटिव आता है, तो उस व्यक्ति को अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती करना होता है। नहीं तो, व्यक्ति को 21 दिनों के लिए घर पर क्वारंटाइन किया जाता है।
मान लीजिए कि ज्यादा पॉजिटिव मामले आते हैं (जो कि मलप्पुरम और पालक्काड में नहीं है), तो इसका मतलब है कि जो पहला मरीज था, उससे संक्रमण फैला था। ऐसी स्थिति में, हम यह तय कर सकते हैं कि आइसोलेशन से निकलने से पहले हर किसी का टेस्ट होना चाहिए। आमतौर पर आइसोलेशन के बाद किसी व्यक्ति का टेस्ट नहीं होता, जब तक कि संक्रमण बहुत तेजी से न फैल रहा हो।
2023 में, पहले संक्रमित मरीज के संपर्क में आने वाले लोगों का निपाह के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट किया गया था। ट्रूनेट टेस्ट सिर्फ शुरुआती जांच (स्क्रीनिंग) के लिए है और उसका नतीजा जल्दी मिल जाता है। अगर कोई व्यक्ति आइसोलेशन में है, तो टेस्ट की जल्दबाज़ी से ज्यादा उसकी विश्वसनीयता जरूरी है।
यह देखते हुए कि यह एक जानलेवा बीमारी है, आप निपाह की रोकथाम के लिए समुदाय की प्रतिक्रिया का कैसे संभालते हैं? कोविड के दौरान भी, संपर्क ट्रेसिंग और कंटेनमेंट ज़ोन बनाए गए थे, लेकिन लोग उन पर लगाई गई पाबंदियों से खुश नहीं थे। निपाह या अन्य गंभीर बीमारियों के बारे में जानकारी समुदाय तक पहुंचाने की मुख्य जिम्मेदारी किसकी है?
कुछ चुनौतियां हैं। जो लोग सीधे तौर पर ज्यादा खतरे में हैं, या जो लोग लक्षणों के दिखने के बावजूद बिना सुरक्षा के मरीज के संपर्क में आए हैं, उनकी पहचान करके उन्हें क्वारंटाइन करना जरूरी है। यह मुश्किल है और स्वास्थ्य प्रतिक्रिया का एक हिस्सा है। यह बिना योजना के होता है और लोगों को मुश्किल लगता है। निपाह एक बहुत खतरनाक संक्रमण है, इसलिए हमारी एक सार्वजनिक जिम्मेदारी है।
वायरस के लिए संक्रमण म्यूटेट और मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली से संपर्क में आने का एक मौका होता है। जब यह फैलता है, तो चमगादड़ का प्राकृतिक वायरस नहीं फैलता है, बल्कि एक बदला हुआ (म्यूटेट) वायरस फैलता है। दूसरे व्यक्ति में, उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस को दबाने की कोशिश करेगी, जिससे वायरस पर विकास का दबाव बनेगा। वायरस के उन प्रकारों का प्राकृतिक चयन होगा जो व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली से बच सकते हैं। इसलिए, यह एक ऐसे वायरस को बना सकता है जिसमें महामारी बनने की क्षमता हो। शुरुआत में ही संक्रमण की पहचान करना बहुत जरूरी हो जाता है।
हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि संक्रमण किसी संक्रमित व्यक्ति से आगे न फैले, ताकि और ज्यादा संक्रमण को रोका जा सके। निपाह जैसे मामलों में, जिला प्रशासन की पावर का इस्तेमाल किया जाता है।