परदेस में पंख- पंजाब में महिलाओं के प्रवासन का बदलता चेहरा

छोटे देशों में अवसर तलाश करके, पंजाब की महिलाएं प्रवासन की कहानी को नया रूप दे रही हैं। उम्मीदों, जाति और सामाजिक अपेक्षाओं के जाल से बाहर आकर अपनी अलग पहचान बना रही हैं।;

Update: 2025-03-01 08:02 GMT

मोगा, पंजाब: पंजाब के दिल ‘मोगा’ की झुग्गियों में रहने वाली 22 वर्षीय जसप्रीत फिलहाल एक निजी अस्पताल में नर्स हैं और सिंगापुर जाना उनका एक बड़ा सपना है। उनकी आंटी दुबई में पैसा कमा रही हैं। उनको भी लगता है कि विदेश जाना अपने जीवन को बदलने और पैसे कमाने का एक अच्छा तरीका है।

उन्होंने कहा, "यहां सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक पूरी शिफ्ट में काम करने पर भी, मुझे महीने में सिर्फ 7,000 रुपये ही मिलते हैं। विदेश में एक घरेलू नौकर या केयर टेकर बनकर, मैं इससे चार से पांच गुना ज्यादा कमा सकती हूं।"

जसप्रीत विदेश जाने का सपना पूरा करने के लिए पैसे बचा रही है। एक लोकल इमिग्रेशन एजेंट के अनुसार, एजेंसी की फीस और काम दिलाने सहित इस पूरी प्रक्रिया में उसके 1.5 से 2 लाख रुपये लगेंगे। जसप्रीत कहती हैं, "मैंने थोड़ा पैसा बचा लिया है, लेकिन मुझे अभी और चाहिए।"

जब जसप्रीत 12वीं में थी, तो वो एयर होस्टेस बनना चाहती थी। उन्होंने बताया, "मेरे माता-पिता ने मना कर दिया, कहने लगे ये अच्छा काम नहीं है।" वह आगे कहती हैं, "उन्होंने मुझसे नर्स बनने के लिए कहा, क्योंकि आस-पास काफी सस्ते नर्सिंग इंस्टीट्यूट थे।" हालांकि उस समय जसप्रीत को बुरा लगा था, लेकिन अब नर्सिंग उनके लिए एक अच्छा भविष्य है। "एक बार मैं विदेश में जम गई, तो नर्सिंग का काम शुरू कर दूंगी, क्योंकि उसमें पैसे ज्यादा मिलते हैं। शुरू-शुरू में तो घरों में काम करना ही ठीक रहेगा।"

जसप्रीत की कहानी पंजाब के प्रवासन परिदृश्य में एक बड़े बदलाव को दर्शाती है। राज्य के प्रवासन का इतिहास बताता है कि 2016 और फरवरी 2021 के बीच लगभग दस लाख लोगों ने पंजाब और चंडीगढ़ को छोड़ विदेशों का रुख किया है। 2023 के एक अध्ययन से पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय प्रवासन में शामिल परिवारों के अनुपात में केरल के बाद पंजाब दूसरे नंबर पर है। पंजाब में, 13.34% ग्रामीण परिवारों का कम से कम एक सदस्य विदेश में रहता है।

अध्ययन में ऐसे 640 घरों के 831 व्यक्तियों के प्रवास पैटर्न का विश्लेषण किया गया, जो विदेशों में जाकर बस गए हैं। इनमें से 247 (30%) महिलाएं थीं, लेकिन प्रवास करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। 2016 और 2022 के बीच, जहां 70% पुरुषों ने दूसरे देशों में कदम रखा था, वहीं 80% महिलाओं ने इन वर्षों के दौरान प्रवासन किया है।

पंजाबी महिलाओं के लिए कनाडा पहली पसंद है, जहां 64% महिलाएं जा रही हैं। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया 13% पर है। बाहर जाने के लिए ज्यादातर महिलाओं ने स्टडी वीजा को चुना है। 64.4% पंजाबी महिलाओं ने स्टडी वीजा पर विदेशों की ओर रुख किया है, लेकिन उनका इरादा शिक्षा प्राप्त करने और घर लौटने का नहीं होता, बल्कि वर्क परमिट पाने और स्थायी निवास की ओर कदम बढ़ाना है। इसके बाद 15% महिलाएं, विदेश जाने के लिए स्पाउसल वीजा का इस्तेमाल कर रही हैं।

इसके साथ ही पंजाब में 'कॉन्ट्रेक्ट मैरिज' भी बढ़ी हैं। एक लड़की का IELTS स्कोर या योग्यता शादी के बाजार में एक कीमती चीज बन गई है। जिन परिवारों में कुंवारे लड़के हैं, वे अक्सर लड़की की विदेश में शिक्षा का खर्चा उठाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उनका बेटा स्पाउसल वीजा पर उसके साथ जा सकता है और हमेशा के लिए वहां बस सकता है।

छोटे देशों का आकर्षण

एक नए चलन के अंदर एक और नया चलन यह है कि जसप्रीत जैसी कई महिलाएं छोटे देशों में अवसर तलाश रही हैं। लगभग 9% पंजाबी महिलाएं अब दुबई, सिंगापुर, ओमान, कुवैत, बहरीन, दोहा, इराक, मस्कट, मलेशिया, सऊदी अरब, साइप्रस और अन्य क्षेत्रों की ओर रुख कर रही हैं।

जालंधर और एसबीएस नगर जिलों पर केंद्रित 2024 के एक अन्य अध्ययन ने इस प्रवृत्ति को रेखांकित किया: 32.7% महिलाएं एशियाई देशों में प्रवासन कर गईं, इसके बाद 27.3% अमेरिका या कनाडा और 17% यूरोप में गईं।

छोटे देशों में लंबे समय से पुरुषों का वर्चस्व रहा है- 42.12% पुरुष दुबई जैसे शहरों में जाना पसंद करते हैं। लेकिन अब ये देश महिलाओं को भी आकर्षित कर रहे हैं। इसकी कई वजहें हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की समाजशास्त्री और पंजाब में प्रवासन पर 2023 की रिपोर्ट की मुख्य लेखिका, शालिनी शर्मा ने बताया कि कम आय वर्ग वाली महिलाओं के लिए सस्ते प्रवास के रास्ते बढ़ रहे हैं। शर्मा ने कहा, "इन देशों में घरेलू काम, देखभाल और हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्रों में स्थिर नौकरियां मिल रही हैं और प्रवास की लागत भी बहुत कम हैं।" वह आगे कहती हैं, "पश्चिमी देशों में जहां प्रवास का खर्च बहुत ज्यादा है, इन जगहों पर महिलाएं कम कागजी कार्रवाई और कम पैसे खर्च करके आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकती हैं।"

चंडीगढ़ के सेक्टर 34 में स्थित 25 वर्षीय इमिग्रेशन सलाहकार शिवम शर्मा ने छोटे देशों और कनाडा जैसे देशों में जाने के खर्च में बड़ा अंतर बताया। उन्होंने कहा, "यूएई, बहरीन या ओमान जैसे देशों के लिए वर्क वीजा हासिल करने में लगभग 1.5-2 लाख रुपये खर्च होते हैं। जबकि, कनाडा जाने में 30-45 लाख रुपये तक लग सकते हैं।" उन्होंने आगे कहा, "जिन परिवारों के पास ज्यादा बचत या बेचने के लिए जमीन नहीं है, उनके लिए छोटे देशों में जाना ही एकमात्र रास्ता रह जाता है।"

कम खर्च के साथ-साथ मांग भी बढ़ रही है। चंडीगढ़ से कनाडा भेजने वाले इमिग्रेशन एजेंट पुनीत को 10 साल से ज्यादा का कार्य अनुभव है। उनके मुताबिक, छोटे देशों में देखभाल और घरेलू कामों के लिए महिला कर्मचारियों की मांग बढ़ रही है। उन्होंने समझाया, "इन देशों में नियोक्ता अक्सर अपने कल्चर के कारण ऐसे कामों के लिए महिलाओं को प्राथमिकता देते हैं।" यह कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के विपरीत है, जहां नौकरी का बाजार पहले से ही भरा हुआ है, खासकर पंजाब से आए हुए लोगों से।

पंजाब में सेल्फ-एम्प्लॉयड विमेंस एसोसिएशन भारत की एक कोऑर्डिनेटर, बबिट ने बताया कि एशियाई देशों में अवसर तलाशने का चलन सिर्फ पंजाबी महिलाओं तक सीमित नहीं है। बबिट ने समझाया, "उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से आए प्रवासी परिवार, जो पंजाब के विभिन्न शहरों में रह रहे हैं, उनकी महिलाओं में भी ऐसी ही उत्सुकता देखी जा रही है।" वह आगे कहती हैं, "इन महिलाओं से या तो एजेंसियां संपर्क करती हैं या वे खुद विदेश जाने के अवसर तलाशती हैं।"

शालिनी शर्मा के मुताबिक, पंजाब से विदेश में वर्क वीजा चाहने वाली महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो प्रवास के महिलाकरण की ओर एक प्रवृत्ति को दर्शाता है। उन्होंने समझाया, "कई पंजाबी महिलाओं के लिए, ये अवसर सिर्फ नौकरी नहीं हैं, बल्कि ये उन्हें आर्थिक रूप से आजाद होने का रास्ता दिखाते हैं और अपने परिवार का सहारा बनने और भविष्य के लिए पैसे बचाने का जरिया भी हैं।" शर्मा ने बताया कि इस बदलाव का कारण महिलाओं की सोच में आया बदलाव है। अब महिलाएं शादी या पढ़ाई के जरिए विदेश जाने के पुराने तरीकों के बजाय अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने और आगे बढ़ने को ज्यादा जरूरी मान रही हैं, भले ही उन्हें मुश्किल हालातों में ही काम क्यों न करना पड़े।"

बहरीन में काम करने वाली मोगा जिले की 26 साल की दलित सिख महिला गुरमीत ने बताया कि विदेश जाने के लिए उनकी सबसे बड़ी मुश्किल, परिवार को मनाना था। गुरमीत ने कहा, "मेरे माता-पिता शुरू में बिल्कुल राजी नहीं थे। लेकिन मैंने उनसे कहा कि मैं यहां (मोगा में) कुछ खास नहीं कर रही हूं। कम से कम बहरीन में काम करके, मैं अपनी शादी के लिए पैसे कमा सकती हूं और अपने दहेज के लिए भी कुछ बचा सकती हूं।" ये प्लान कामयाब रहा और डेढ़ साल पहले गुरमीत मोगा लौटी और उस आदमी से शादी कर ली जो पिछले आठ सालों से मलेशिया में काम कर रहा है।

गुरमीत को बहरीन में काम के अवसरों के बारे में सबसे पहले अपनी स्कूल की एक दोस्त से पता चला, जो पहले से ही वहां एक अरब परिवार में घरेलू कामगार के तौर पर नौकरी कर रही थी। गुरमीत ने बताया, "उन्हें एक कुक चाहिए था और वे टिकट सहिते मेरे सभी खर्च उठाने को तैयार थे। मुझे सिर्फ दिल्ली में मेडिकल चेकअप के लिए तकरीबन 8,000 रुपये देने पड़े थे।"

बहरीन में काम करना गुरमीत के लिए फायदेमंद साबित हुआ। वहां उसे हर महीने लगभग 20,000 रुपये मिलते थे। उसने इतने पैसे बचा लिए कि वह अपने परिवार का सहारा बन सकी और अपनी शादी का खर्चा भी निकाल लिया। अब गुरमीत अपने पति के पास मलेशिया जाना चाहती है।

पंजाब के मोगा जिले में सेल्फ-एम्प्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन (SEWA) की प्रमुख जसप्रीत कौर ने कहा, " महिलाओं के लिए, अपने परिवारों को समझाने का मतलब अक्सर विवाह के तर्क से पलायन को जोड़ना या ऐसे विकल्प तलाशना है जिनमें कम से कम खर्चा हो।" उन्होंने आगे कहा, "दलित महिलाओं या भूमिहीन परिवारों की महिलाओं के लिए, कनाडा जैसे देशों में प्रवास का खर्च बहुत ज्यादा होता है, जब तक कि कोई उनकी यात्रा को स्पॉन्सर न कर दे। ऐसे में छोटे देश ही एकमात्र संभव विकल्प बन जाते हैं। और सबसे बड़ी बात, पंजाब में लगभग हर कोई विदेश जाने का सपना देखता है।"

आर्थिक स्थिति और प्रवासन का बदलता पैटर्न

पंजाब में प्रवासन का पैटर्न जाति और आर्थिक स्थिति में मौजूद फर्क को दर्शाता हैं। पहले, जिनके पास ज्यादा पैसा था, जैसे कि जाट सिख और किसान परिवार, वही ज्यादातर विदेश जाते थे। लेकिन अब छोटे देशों में जाना सस्ता होने की वजह से गरीब और पिछड़े लोग भी धीरे-धीरे इस ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं।

उदाहरण के लिए, पंजाब के लोगों के लिए यूएई (UAE) एक पसंदीदा जगह है, जहां दलित (52%), भूमिहीन परिवार (41%) और सबसे कम जीवन स्तर वाले परिवार (72%) बड़ी संख्या में जाते हैं। वहीं दूसरी ओर, कनाडा जैसे महंगे देशों में अमीर परिवार जाना पसंद करते हैं।

आंकड़ों के अनुसार, कनाडा में गैर-दलित और गैर-ओबीसी (OBC) जातियां (17%), कम से कम 10 एकड़ कृषि भूमि वाले परिवार (25%) और उच्च जीवन स्तर वाले लोग (16%) सबसे ज्यादा जाना चाहते हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि अनुसूचित जाति के परिवारों के एक तिहाई से ज्यादा (33.68%) लोगों को प्रवास के लिए पैसे जुटाने के लिए अपनी संपत्ति बेचनी पड़ी।

कई महिलाओं के लिए छोटे देशों में जाना कनाडा या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में जाने का पहला कदम है। जालंधर के बस्ती गुजा की रहने वाली 23 साल की कमलजोत दुबई जाना चाहती है और इसलिए वो शहर में 6 महीने का मेकअप आर्टिस्ट का कोर्स कर रही है, ताकि विदेश में उसे नौकरी मिलने में आसानी हो। कमलजोत ने कहा, "बहरीन में काम करके जब मैं काफी पैसे बचा लूंगी, तो शायद मैं अपने पैसों से ऑस्ट्रेलिया या कनाडा जा सकूं। अगर वो नहीं हुआ, तो शायद इटली चली जाऊं।"

इसके अलावा, शिक्षा भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दुबई, बहरीन और कुवैत जाने वाले लोग आमतौर पर 10वीं पास होते हैं या उन्होंने 12वीं तक पढ़ाई की होती है, जबकि ज्यादा पढ़े-लिखे लोग ज्यादातर ग्लोबल नॉर्थ के देशों में जाना पसंद करते हैं।

चुनौतियां और चिंताएं

गुरमीत ने बहरीन में अपने दो साल के काम के अनुभव को अच्छा बताया। उन्होंने याद करते हुए कहा, "परिवार अच्छा था। वो अरब के थे और हम टूटी-फूटी अंग्रेजी में बात करते थे। धीरे-धीरे, मैंने उनके कुछ शब्द भी सीख लिए। उन्होंने हमारे साथ अच्छा व्यवहार किया।" गुरमीत वहां रहकर इतने पैसे बचाने में कामयाब रही कि उसने बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट करा लिया, जो उसके लिए एक बड़ी कामयाबी है।

लेकिन, गुरमीत की तरह सभी महिलाओं का अनुभव अच्छा नहीं होता। कई महिलाओं के पास काम करने की खराब परिस्थितियों, यौन उत्पीड़न, समय पर सैलरी न मिलने और बढ़ते कर्ज की कहानियां हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि कुछ महिलाओं को दिन में 16-17 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, उन्हें अपने परिवार से बात करने नहीं दिया जाता और अमानवीय परिस्थितियों में रहने को मजबूर किया जाता है। बहुत बुरे मामलों में, महिलाओं को स्थानीय एजेंटों द्वारा एक घर से दूसरे घर में बेच दिया जाता है, शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, या फिर जेल भी भेज दिया जाता है।

कर्ज का बोझ भी एक कड़वी सच्चाई है। ज्यादातर महिलाएं विदेश में नौकरी पाने के लिए 1 लाख से 2.5 लाख रुपये तक देती हैं, जिससे उनके परिवार कर्ज में डूब जाते हैं और बहुत तनाव में आ जाते हैं, खासकर तब जब उन्हें महीनों तक सैलरी नहीं मिलती।

जालंधर में एनआरआई विंग के स्टेशन हाउस ऑफिसर जोगिंदर सिंह का कहना है कि युवाओं में विदेश जाने की बढ़ती बेताबी की वजह से धोखेबाज एजेंट गलत तरीके से फायदा उठा रहे हैं।

सिंह ने एक उदाहरण देते हुए बताया कि एक महिला को उसकी एक सहेली की सिफारिश पर काम के लिए कुवैत भेजा गया। सिंह ने कहा, "उसकी इस सहेली को इस काम के लिए 10,000-15,000 रुपये का कमीशन मिला था। जब हमने उससे पूछताछ की, तो उसने बताया कि उसे नहीं पता था कि एजेंट यह सब करेगा। महिला को पहले दुबई भेजा गया, जहां से एक दूसरे एजेंट ने उसे कुवैत पहुंचाया। उसने सोचा था कि उसे किसी दुकान या फैक्ट्री में काम मिलेगा, लेकिन उसे घरेलू नौकरानी का काम मिला।" वह आगे कहते हैं, "दूतावास के दखल के बाद, वह वापस आने में सफल रही और बाद में उसने अपनी सहेली के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। बाद में आपसी सहमति के बाद शिकायत वापस ले ली गई।"

पंजाब ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन के चीफ लक्ष्मी कान्त यादव ने कहा कि बिना लाइसेंस वाले एजेंट राज्य के दूरदराज के इलाकों में काफी संख्या में हैं। यादव ने कहा, "उप-एजेंट, जो अक्सर दूर के रिश्तेदार होते हैं और महिलाओं की हालत जानते हैं, उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं और उन्हें बहला-फुसलाकर इन व्यवस्थाओं में ले आते हैं।"

जून 2023 में ओमान में फंसी महिलाओं के मामले में, पंजाब की 23 महिलाओं को बचाया गया, जिससे एक परेशान करने वाली बात सामने आई। बहुत सारी महिला एजेंट अपने पड़ोस, गांव या यहां तक कि दूर के रिश्तेदारों की गरीब महिलाओं को अच्छी नौकरी और आकर्षक सैलरी का झांसा देकर ओमान ले जा रही थीं। जालंधर में तीन महिला ट्रैवल एजेंटों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद - जिनमें से दो को गिरफ्तार कर लिया गया है - तस्करी नेटवर्क से जुड़े कम से कम छह और लोगों के नाम सामने आए हैं। इसी तरह, होशियारपुर में आठ एजेंटों पर मामला दर्ज किया गया है, जिनमें से छह महिलाएं हैं।

जालंधर की पुलिस अधीक्षक मंजीत कौर जिले के मामलों की निगरानी करने वाली नोडल अधिकारी हैं। उन्होंने कहा, "सिर्फ 10,000 रुपये के कमीशन के लिए, महिला एजेंट अपने परिवार के सदस्यों को भी शोषणकारी और अपमानजनक नौकरियों के लिए विदेश भेज देती हैं।"

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी ने अपनी 'मिशन होप' पहल के तहत सिर्फ पांच महीनों (मई से सितंबर 2023 तक) में ओमान से 82 महिलाओं को वापस लाने में कामयाबी हासिल की। साहनी कहते हैं, "लेकिन यह एक दुष्चक्र है। हम आश्रय घरों से जिन 10 महिलाओं को बचाते हैं, उनमें से छह उसी हफ्ते ओमान पहुंच जाती हैं। हमारे सामने एक लंबा रास्ता है।"

इस समस्या को और बढ़ाने वाली बात यह है कि अरब/छोटे देशों में यात्रा करने वाली महिलाओं की आधिकारिक संख्या के बारे में आंकड़े स्पष्ट नहीं हैं, क्योंकि कई महिलाएं दुबई के लिए टूरिस्ट वीजा लेकर जाती हैं। इससे वो सही वर्क वीजा लेने से बच जाती हैं। दुबई पहुंचने के बाद, एजेंट उनके लिए दूसरे देशों में जाने का इंतजाम कर देते हैं।

2023 में, पंजाब सरकार ने महिलाओं की मानव तस्करी, खासकर ओमान और सऊदी अरब जैसे अरब देशों में, से निपटने के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। एसआईटी के प्रमुख और पुलिस अधीक्षक रणधीर कुमार के अनुसार, जालसाज एजेंट अक्सर धोखा देने वाली तरकीबें अपनाते हैं, वर्क वीजा का वादा करते हैं लेकिन महिलाओं को टूरिस्ट वीजा पर विदेश भेज देते हैं।

विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वीजा आवेदनों की बारीकी से जांच करके दूतावास, तस्करी को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दूतावास किन बातों पर ध्यान रखते हैं, इस बारे में बात करते हुए MEA के एक अधिकारी ने कहा, "एक गरीब, अनपढ़ महिला दुबई में पर्यटक वीजा लेकर क्यों जाएगी?"

पंजाब से महिलाओं का विदेश जाना एक तरफ अवसर है तो दूसरी तरफ चुनौती भी है। ये महिलाओं को आर्थिक रूप से आजाद होने और अपनी मर्जी से जीने का रास्ता तो दिखाता है, लेकिन यह शोषण और सुरक्षा के बारे में चिंता भी पैदा करता है। शालिनी शर्मा के मुताबिक, "यह बदलाव का सफर है, जहां औरतें जाति, वर्ग और पैसे की तंगी जैसी पुरानी रुकावटों को तोड़कर अपना भविष्य खुद बनाना चाहती हैं।"



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