बिहार में आसमानी बिजली गिरने से होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ा, आखिर क्या है वजह?

बिहार में मानसून के दौरान आसमानी बिजली गिरने से होने वाली मौतों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है। सरकार ने 'इंद्रवज्र' ऐप लॉन्च कर लोगों को बिजली गिरने की पूर्व चेतावनी देने का दावा किया है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। किसानों और खेतिहर मजदूरों की मौतों पर सवाल उठ रहे हैं।

Update: 2024-08-14 06:08 GMT

सुपौल जिला स्थित सरायगढ़ प्रखंड क्षेत्र के शाहपुर पृथ्वी पट्टी पंचायत के रामनगर गांव वार्ड नंबर 10 में खेत में कुदाली चला रहे 40 वर्षीय ललन यादव की आसमानी बिजली गिरने से मौत हो गई थी। उनके परिवार के सदस्य। फोटो- राहुल कुमार गौरव

पटना: भारत के कई हिस्सों में आसमानी बिजली गिरने से लोगों की मौत की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। इसमें सबसे ज्यादा असर जिन राज्यों में हो रहा है उसमें बिहार सबसे आगे है। बीते 11 जुलाई 2024 को बिहार के सुपौल जिले में आसमानी बिजली गिरने की दो घटनाएं घटी, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई।

पहली घटना सरायगढ़ प्रखंड क्षेत्र के शाहपुर पृथ्वी पट्टी पंचायत के रामनगर गांव में हुई, जहां वार्ड नंबर 10 में खेत में कुदाली चला रहे 40 वर्षीय ललन यादव आसमानी बिजली की चपेट में आ गए। दूसरी घटना में, उसी दिन रामनगर गांव से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर निर्मली प्रखंड क्षेत्र के हरियाही गांव के समीप एनएच 57 के नजदीक खेत में काम कर रहे झिटकी गांव के विजय कुमार (30) की भी जान चली गई।

बिहार आसमानी बिजली गिरने के मामले में सबसे संवेदनशील राज्यों में से एक है, जहां हर साल बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं। NCRB रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, मध्य प्रदेश के बाद बिहार में आसमानी बिजली गिरने से सबसे अधिक मौतें हुई हैं। इंडिया: एनुअल लाइटिंग रिपोर्ट 2020-21 के मुताबिक, 2019-20 और 2020-21 के बीच देश में बिजली गिरने की घटनाओं में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस दौरान बिहार में इन घटनाओं में 168 % की वृद्धि दर्ज की गई।

बिहार में बिजली गिरने से होने वाली मौतों के आंकड़ों में काफी अंतर नजर आता है। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सोशल मीडिया साइट के मुताबिक, 11 जुलाई 2024 को सिर्फ चार लोगों की मौत हुई है। वेबसाइट पर सुपौल जिले में सिर्फ एक व्यक्ति की मौत का जिक्र है, जबकि वहां इस दिन दो लोगों की मौत हुई थी। वहीं तमाम स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो पिछले कुछ दिनों में वज्रपात से मरने वालों की संख्या में काफी अंतर नजर आता है। The Follow Up के मुताबिक 21 लोगों की मृत्यु हुई है वहीं प्रभात खबर के मुताबिक 24 लोगों की मौत हुई है। बिहार आपदा प्रबंधन विभाग की वेबसाइट और सोशल मीडिया साइट में आसमानी बिजली से मरने वालों की कोई जानकारी नहीं दी गई है। PTI न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि 1 जुलाई से 8 जुलाई के बीच राज्य में 42 लोगों की मौत हुई है।

पिछले कई दशकों में बिहार में बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ी हैं और इसके साथ ही बिजली गिरने से होने वाली मौतों में भी इजाफा हुआ है। बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में 139, 2019 में 253, 2020 में 459, 2021 में 280, 2022 में 400 लोगों की मौत बिजली गिरने से हुई है।

वज्रपात से सबसे ज्यादा किसानों की मौत

बिहार में बिजली गिरने से हुई मौतों के मामले में, ज्यादातर किसान और खेतिहर मजदूर हैं और घटना के वक्त खेतों में काम कर रहे थे। बिहार स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (बीएसडीएमए) की रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली गिरने से 86 फीसदी लोग ग्रामीण इलाकों में मारे गए हैं। खेती से जुड़े काम करने वाले लोग वज्रपात से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इंडिया: एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2020-21 में भी यही बताया गया है कि भारत में बिजली गिरने से होने वाली सभी मौतों में से 96 फीसदी ग्रामीण इलाकों से थीं और उनमें से 77 प्रतिशत किसान थे।

11 जुलाई को रामनगर गांव में जिस वक्त 40 वर्षीय ललन यादव की बिजली गिरने से मौत हुई थी, उसी वक्त खेत में उनके साथ काम कर रहे गांव के शंकर यादव भी बिजली की चपेट में आ गए थे। उनके शरीर पर कई जगह जलने के निशान हैं। शंकर यादव बताते हैं, “हम दोनों खेत में काम कर रहे थे, तभी बारिश शुरू हो गई थी। लेकिन हम काम करते रहे। आमतौर पर बारिश के साथ बिजली नहीं गिरती है, लेकिन उस दिन हमारी किस्मत खराब थी। बिजली गिरी और ललन वहीं खेत में मर गया। मेरे ऊपर भी बिजली गिरी थी, मेरा शरीर झुलस गया, लेकिन किस्मत से मैं बच गया।”

बिहार कृषि विभाग में लगभग 30 साल बतौर कृषि अधिकारी काम कर चुके अरुण कुमार झा कहते हैं “बिजली गिरने से ज्यादातर मौतें मानसून के मौसम और गांवों में होती है। यह कोई नई घटना नहीं है। लेकिन बारिश के पैटर्न में बदलाव होने की वजह से मानसून के बीच में लंबे ड्राई स्पेल होने से वज्रपात की घटनाएं बढ़ रही हैं।” बिहार आपदा प्रबंधन विभाग के मीडिया एग्जीक्यूटिव मनीष कुमार के मुताबिक मीडिया एवं सोशल मीडिया के जरिए विभाग लगातार बिजली गिरने से बचने की जानकारी देता रहता है और साथ अपने इंद्रवज्र ऐप के बारे में जागरूकता फैला रहा है।

आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से बिजली गिरने की घटनाओं से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को बिजली गिरने से पहले चेतावनी देने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग ने 'इंद्रवज्र' नामक ऐप तैयार किया है। इसके साथ ही अति संवेदनशील इलाकों में जल मीनारों और ऊंची इमारतों पर तेज ध्वनि विस्तारक यंत्र हूटर लगाकर लोगों को चेतावनी देने का काम भी किया जा रहा है। इन तमाम प्रयासों के बावजूद वज्रपात से होने वाली मौतों की संख्या में कोई खास कमी नहीं आई है।

ग्रामीण इलाकों में बिहार सरकार द्वारा वज्रपात को लेकर जो योजना बनाई गई है, वो कितनी मजबूत है? और वज्रपात से भारत के ग्रामीण इलाकों में होने वाली मौत को कैसे रोका जा सकता है?

नई दिल्ली स्थित क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग-सिस्टम प्रमोशन काउंसिल (CROPC) एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के साथ मिलकर वज्रपात की भविष्यवाणी और उससे होने वाली मौतों को रोकने की दिशा में काम करता है। इस संगठन के संस्थापक संजय श्रीवास्तव इस सवाल के जवाब में कहते हैं, “वज्रपात की जानकारी समय से देने के लिए बिहार सरकार ने इंद्रवज्र ऐप बनाया है। 23 जुलाई 2024 तक इंद्रवज्र ऐप को मात्र 1.25 लाख डाउनलोड मिले हैं, जबकि बिहार की अनुमानित जनसंख्या लगभग 12.92 करोड़ है और मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या 6.5 करोड़ है। समस्या और भी है। दरअसल इंद्रवज्रा की सटीकता सिर्फ 60-70 % है और इसके द्वारा की गई भविष्यवाणी के सत्यापन या पता लगाने की दक्षता (validation ya detection efficiency) का कोई रिकॉर्ड नहीं है।”

संजय श्रीवास्तव आगे कहते हैं, “बिहार में बिजली गिरने से होने वाली मौतों को रोकने के लिए सरकार को एक ठोस योजना बनानी चाहिए। साथ ही हर गांव में एक सुरक्षित जगह बनानी चाहिए जहां लोग बिजली गिरने के दौरान शरण ले सकें। लेकिन अभी बिहार सरकार के पास ऐसी कोई योजना नहीं है। वह सिर्फ घटना होने के बाद ही कुछ कदम उठाती है। ग्राम पंचायतों के जरिए गांवों में लोगों को बिजली गिरने के खतरों से जागरूक करना और सुरक्षा उपाय सिखाना बहुत ज़रूरी है। हम लोगों ने नवादा में CARITAS India के साथ मिलकर 30 गांवों में काम किया है और इन गांवों में बिजली गिरने से एक भी मौत नहीं हुई है। राजधानी पटना या जिला मुख्यालय से हटकर, समुदाय केंद्रित योजनाएं ग्राम पंचायत के जरिए चलानी होंगी। नजदीकी राज्य झारखंड में कांवड़ियों के लिए दुमका से देवघर तक वज्रपात सुरक्षित ग्रिड है। परंतु बिहार के अंदर कोई सुरक्षा नहीं। झारखंड सरकार ने 2012-2013 में देवघर में वज्रपात सुरक्षित ग्रिड की स्थापना की थी। इस वजह से वहां बिजली गिरने से मौतों में बहुत कमी आई है।”

इन घटनाओं से सिर्फ किसान ही पीड़ित नहीं है। 11 जुलाई 2024 को ही, बिहार के भोजपुर जिला स्थित तरारी प्रखंड में आकाशीय बिजली की चपेट में आने से 18 छात्राएं घायल हो गईं थी। भोजपुर जिला के स्थानीय निवासी और समाजसेवी रोहित सिंह राजपूत बताते हैं, “भोजपुर स्थित बड़कागांव के हाई स्कूल के नजदीक एक ताड़ के पेड़ पर बिजली गिरी और इसकी चपेट में आने वाली 10 छात्राओं को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करवाया गया था। वहीं 7 छात्राओं की स्थिति थोड़ी नाजुक थी, उन्हें जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल में भेजा गया। लेकिन अस्पतालों के हाल भी ठीक नहीं हैं। वहां बेड की भारी कमी थी।”

मुआवजे की स्थिति भी जान लें

सरकार की तरफ से ऐसी प्राकृतिक आपदा से होने वाली हर मौत पर चार लाख रुपये का मुआवजा दिया जाता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कई बार इसका जिक्र किया है। 11 जुलाई को सुपौल में हुई दो घटनाओं से हम इस योजना की पड़ताल कर सकते हैं-

सुपौल जिला स्थित सरायगढ़ प्रखंड क्षेत्र के शाहपुर पृथ्वी पट्टी पंचायत के रामनगर गांव के मृतक शंकर यादव के बड़े भाई प्रकाश यादव बताते हैं, “अभी तक सरकार की तरफ से उनसे कोई मिलने नहीं आया है। ग्रामीणों के कहने पर हमने अपने भाई का पोस्टमार्टम नहीं कराया। मुआवजे की राशि के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है।” वहीं पृथ्वी पट्टी पंचायत के रामनगर गांव में मृतक विजय कुमार का भी पोस्टमार्टम नहीं हुआ था। रामनगर गांव के ज्ञान चंद्र मंडल, मृतक विजय कुमार के पड़ोसी है। वह बताते हैं, “यहां इससे पहले भी बिजली गिरने के 2-3 मामले सामने आ चुके हैं। किसी को भी कोई मुआवजा नहीं मिला है। इस बार भी विजय की मौत के बाद कई अधिकारी और पत्रकार आए थे। उन्होंने पोस्टमार्टम के लिए कहा, लेकिन हमने इंकार कर दिया। जब कुछ मिलना ही नहीं है, तो इस सबका क्या फायदा है? वैसे भी अब इनके घर में कोई मर्द नहीं बचा है। बॉडी को लेकर कौन जाता?” दोनों घटना में किसी भी मृतक का पोस्टमार्टम नहीं हुआ है। सरकारी अधिकारी के मुताबिक बिना पोस्टमार्टम का मुआवजा नहीं मिल सकता है।

2023 में बिहार और बंगाल में बिजली गिरने से होने वाली मौतों को प्राकृतिक आपदा के रूप में शामिल करने का मांग उठ चुकी है। गौरतलब है कि वज्रपात को प्राकृतिक आपदा के रूप में शामिल हो जाने के बाद पीड़ित राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) से मुआवजा पाने के हकदार हों जाएंगे।

नाम न बताने की शर्त पर बिहार आपदा प्रबंधन विभाग के एक अधिकारी ने कहा “केंद्र सरकार वज्रपात को जल्दी प्राकृतिक आपदा घोषित नहीं करेगी। विज्ञान, शिक्षा और जागरूकता के जरिए इससे होने वाली मौतों को रोका जा सकता है। भारत के पास बिजली गिरने की पूर्व चेतावनी प्रणाली है और पूर्वानुमान पांच दिन से लेकर 3 घंटे पहले उपलब्ध हो सकता है। बस इसे ठीक ढंग से लागू करने की जरूरत है, तभी नुकसान में कमी आएगी।"

बिहार के समस्तीपुर स्थित राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा में रिसर्च एसोसिएट डॉ गुलाब सिंह कहते हैं, “बिहार की भौगोलिक स्थिति देश के कई राज्यों से अलग है। बिहार में मानसून धाराएं बंगाल की खाड़ी से बहुत अधिक नमी लाती है। जिस वजह से गरज की आवाज के साथ बारिश होती है। वहीं बिहार हिमालय की तलहटी के तराई क्षेत्र में स्थित है। यहां की ऊंचाई और जमीन की बनावट भी बिजली गिरने को बढ़ावा देती है। इसी कारण से वज्रपात की घटनाएं ज्यादा होती हैं। सरकार ने वज्रपात की पहले सूचना देने को लेकर कई उपाय किए हैं लेकिन अब तक इसमें सफलता नहीं मिली है।”



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