उत्तराखंड चारधाम यात्रा: दाव पर हिमालयी पर्यावरण, धारण क्षमता का अध्ययन कब?

उत्तराखंड की चारधाम यात्रा में उमड़ने वाली भीड़ को राज्य सरकार उपलब्धि के तौर पर लेती है लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञ इस पर चिंता जताते हैं। 30 जून को चारधाम यात्रा के 50 दिन पूरे होने तक लगभग 30 लाख तीर्थयात्री यहां दर्शन कर चुके थे। वर्ष 2023 में 68 दिनों में 30 लाख यात्री यहां पहुंचे। यानी इस बार यात्रियों की संख्या और अधिक बढ़ी। इंडियास्पेंड हिंदी की यह रिपोर्ट

Update: 2024-07-02 13:26 GMT

केदारनाथ मंद‍िर के कपाट 10 मई 2024 को खुले। फोटो क्रेडिट- उत्तराखंड सूचना विभाग

देहरादून: भीषण गर्मी के साथ ही उत्तराखंड चारधाम यात्रा के लिए पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या भी हर साल रिकॉर्ड बना रही है। पर्यटकों की बेतहाशा बढ़ती भीड़ और उच्च हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए भी चारों धाम की कैरिंग कैपेसिटी यानी धारण क्षमता का अध्ययन अब तक नहीं किया गया। वर्ष 2022 में दाखिल एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कैरिंग कैपेसिटी के अध्ययन के आदेश दिए थे। जो अब तक शुरू नहीं हो सका है।

वर्ष 2022 में रिकॉर्ड 40 लाख लोगों ने राज्य के चारों धाम के दर्शन किए थे। वर्ष 2023 में 56 लाख से अधिक यात्री पहुंचे। इस वर्ष1जुलाई तक केदारनाथ में 10 लाख से अधिक, गंगोत्री और यमुनोत्री में 9.73 लाख, बदरीनाथ में 8.29 लाख यात्री दर्शन कर चुके हैं। 30 जून को यात्रा के 50 दिन पूरे होने तक लगभग 30 लाख तीर्थयात्री यहां दर्शन कर चुके थे। वर्ष 2023 में 68 दिनों में 30 लाख यात्री यहां पहुंचे। यानी इस बार यात्रियों की संख्या और अधिक बढ़ी। राज्य सरकार इसे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानती है।

श्रद्धालुओं का सबसे ज्यादा जमावड़ा कपाट खुलने के एक महीने के भीतर होता है। 10 मई से शुरू हुई यात्रा में तीन हफ्ते के भीतर 14 लाख से अधिक लोग दर्शन कर लौट चुके थे।

उत्तराखंड सरकार पर्यटन को राज्य की आर्थिकी में बड़ी संभावना के तौर पर देखती है। उत्तराखंड पर्यटन नीति 2023 के मुताबिक राज्य में चार धाम सहित कुल पर्यटकों की संख्या 2014 में 22 मिलियन से बढ़कर 2019 में 39 (3.9 करोड़) मिलियन हो गई है और 11.97% की कंपाउंड वार्षिक बढ़ोतरी (CAGR) दर्ज की गई है।

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक उत्तराखंड की आबादी एक करोड़ से अधिक थी। जो अब करीब सवा करोड़ होने का अनुमान है। यानी राज्य की कुल आबादी से कहीं अधिक पर्यटक एक साल में राज्य में पहुंचते हैं।

पीपल्स फॉर एनिमल्स गैर-लाभकारी संस्था के साथ वर्किंग एनिमल्स प्रोजेक्ट के निदेशक के तौर पर जुड़े शशिकांत पुरोहित केदारनाथ के मुख्य पड़ाव सोनप्रयाग में पशुओं का शेल्टर संचालित करते हैं। वह बताते हैं “यात्रा जब चरम पर होती है केदारनाथ में 15-20 किलोमीटर लंबा ट्रैफिक जाम लगता है। लोगों को 12-12 घंटे तक इंतज़ार करना पड़ता है। कई बार भीड़ नियंत्रित करने के लिए यात्रियों को 30-40 किलोमीटर पहले चेक पोस्ट पर रोकने की नौबत आती है और फिर उन्हें वहीं गांवों में ठहरने के लिए शरण लेना पड़ता है। ऐसा इस वर्ष भी हुआ”।

अब तक कैरिंग कैपेसिटी का अध्ययन नहीं

इसी संस्था की ओर से उर्वशी शोभना कछरी ने अगस्त-2022 में यात्रियों और उनका सामान ढोने का कार्य करने वाले पशुओं के साथ क्रूरता को लेकर एनजीटी में जनहित याचिका दाखिल की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए ट्रिब्यूनल ने एक संयुक्त समिति गठित कर केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और हेमकुंड साहिब में यात्रा के दौरान पर्यावरणीय नुकसान का आकलन करने को कहा।

संयुक्त समिति ने 10 जनवरी 2023 को दाखिल अपनी रिपोर्ट में लिखा “हेमकुंड साहिब सहित चारों धाम में मानवीय गतिविधियों और घोड़े-खच्चरों की बड़ी संख्या के चलते ठोस कचरा, प्लास्टिक कचरा, तरल कचरे से प्रदूषण बढ़ा है। वर्ष 2022 में केदारनाथ से 900 किलो ठोस कचरा इकट्ठा किया गया। इसके साथ ही ट्रैक और घाटी के आसपास घोड़ों का मल मूत्र, ठोस और प्लास्टिक कचरा देखा गया। शौचालय कचरे से भरे हुए मिले। तीर्थयात्रियों के लिए सार्वजनिक शौचालय अपर्याप्त थे”।

संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में केदारनाथ ट्रैक पर प्रतिदिन यात्रियों की संख्या13,000, यमुनोत्री में 5,000, गंगोत्री में 8,000 यात्रियों की संख्या निर्धारित करने का सुझाव दिया।

साथ ही घोड़े-खच्चरों की अधिकतम संख्या केदारनाथ में 2250, गंगोत्री में 2250, यमुनोत्री में 875 और हेमुकंड साहिब में 2375 निर्धारित करने का सुझाव दिया।

8 फरवरी 2023 को एनजीटी ने इस मामले में तीर्थयात्रियों, घोड़े-खच्चरों और ठोस और तरल कचरा प्रबंधन को लेकर कैरिंग कैपेसिटी का आकलन करने का निर्देश दिया। सुनवाई में याचिकाकर्ता ने बताया कि केदारनाथ में 12-14 हजार घोड़े-खच्चर इस्तेमाल किए जा रहे हैं। हेमकुंड साहिब में 2-3 हजार, गंगोत्री में 200 और यमुनोत्री में 6-8 हजार घोड़े खच्चर इस्तेमाल किए जा रहे हैं। वहीं, यात्रियों की संख्या भी मई से जुलाई के बीच निर्धारित संख्या से कहीं अधिक रहती है। यह समिति के सुझावों से कहीं अधिक संख्या थी।

इस केस से जुड़ी याचिकाकर्ता की वकील एशा दत्ता इंडियास्पेंड हिंदी को बताती हैं “हमने पाया कि एनजीटी के आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है। जुलाई 2023 में इस मामले में संस्था की ओर से शशिकांत पुरोहित ने एनजीटी में एग्जीक्यूटिव एप्लीकेशन दाखिल की। अक्टूबर-2023 में एनजीटी ने एक बार फिर संबंधित अथॉरिटी को जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए”।

5 जनवरी 2024 को उत्तराखंड एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एंड पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने एनजीटी को दो महीने के भीतर कैरिंग कैपेसिटी रिपोर्ट दाखिल करने की बात कही। लेकिन ये रिपोर्ट तैयार नहीं हुई।

11 मार्च को एनजीटी ने बोर्ड ने एग्जीक्यूशन एप्लीकेशन दाखिल की। जिसमें कहा गया कि वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया-देहरादून (डब्ल्यूआईआई) और जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरनमेंट-अल्मोड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर और पर्यावरणीय मानकों के आधार पर कैरिंग कैपेसिटी का अध्ययन करेंगे। इसमें डेढ़ से दो वर्ष का समय लगेगा।

एशा बताती हैं “16 अप्रैल 2024 को इस मामले की सुनवाई करते हुए एनजीटी ने बोर्ड को एक महीने के भीतर एक तत्कालिक कैरिंग कैपेसिटी रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई 2024 को होनी है”।

वहीं, केदारनाथ धाम में इस वर्ष के अनुभव के आधार पर शशिकांत पुरोहित कहते हैं “ कपाट खुलने से लेकर जून के दूसरे हफ्ते तक निर्धारित संख्या की तुलना में यात्रियों कीअसल संख्या कहीं अधिक थी। रोजाना पहुंचने वाले यात्रियों के साथ वहां पहले से मौजूद लोग और वापस लौटने वाले लोग भी होते हैं। लोगों के चलने तक के लिए जगह नहीं होती। लोग अपने वाहन लेकर यहां पहुंच जाते हैं। जबकि ये एक डेड एंड है। इससे आगे कुछ भी नहीं। फिर चारों तरफ तरफ अराजक स्थिति बन जाती है”।

यात्रियों की भारी भीड़ पहुंचने से पैदा हुई चुनौतियों को देखते हुए उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अभिनव कुमार ने मई में बिना रजिस्ट्रेशन चार धाम यात्रा पर न आने की अपील की। साथ ही सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखकर वीआईपी को दर्शन के लिए न भेजने का अनुरोध किया।

राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी बिना रजिस्ट्रेशन यात्रा पर न आने की अपील करनी पड़ी। मई के आखिरी हफ्ते में ऑनलाइन और ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन बंद करने पड़े।

“जब इतनी भीड़ एक बेहद सीमित जगह में इकट्ठा होती है तो सारी व्यवस्थाएं कम पड़ जाती हैं”, पुरोहित कहते हैं, “इंसान हो या घोड़े-खच्चर, सबका मल-मूत्र बिना ट्रीट किए हुए सीधा नदियों में जाता है। प्लास्टिक कचरा जितना इकट्ठा किया जाता है उससे कहीं ज्यादा खाइयों और नदियों में फेंका हुआ मिलता है। मृतक जानवरों को नदियों के किनारे दफनाते या बहा देते हैं”।

हिमालयी वन्यजीव, जैव-विविधता, पर्यटक, सब पर है खतरा

उत्तराखंड सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिए चारधाम यात्रा प्रबंधन प्राधिकरण के गठन की तैयारी कर रही है। जून के पहले हफ्ते के बाद यात्रियों की संख्या में कमी आने पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यमुनोत्री की कैरिंग कैपेसिटी बढ़ाने को कहा ताकि वहां यात्रियों की संख्या बढ़ाई जा सके।

गढ़वाल विश्वविद्यालय में कार्यरत वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक डॉ एसपी सती इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हैं, “किसी भौगोलिक क्षेत्र की अपनी एक तय धारण क्षमता होती है। हम उसे घटा या बढ़ा नहीं सकते। सरकारी व्यवस्था कैरिंग कैपेसिटी को वहां रहने के लिए कमरों और पार्किंग की व्यवस्था के तौर पर देखती है। जबकि हमें वहां के प्राकृतिक संसाधन, पानी की उपलब्धता, जैव-विविधता पर पड़ने वाले असर, सब के लिहाज से इसका आकलन करना होगा”।

“उदाहरण के लिए, केदारनाथ के आसपास, सिर्फ हिमालयी क्षेत्र में पायी जाने वाली पेड़-पौधों की स्थानिक प्रजातियों पर इस पर्यटन का क्या असर पड़ रहा है। क्या वे पर्यटकों के जाने के बाद अपनी पहले की स्थिति में आ पाती हैं या नहीं”, डॉ सती आगे कहते हैं।

देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान डब्ल्यूआईआई ने चारधाम यात्रा में उमड़ने वाले लाखों पर्यटकों का वन्यजीवों और जैव-विविधता पर पड़ने वाले असर को लेकर कोई अध्ययन नहीं किया है। लेकिन केदारनाथ में हेलीकॉप्टर की आवाजाही से वन्यजीवों पर होने वाले असर को लेकर एक रिपोर्ट लिखी है। जिसमें हेलीकॉप्टर की जगह रोपवे का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है ताकि केदारनाथ वन्य जीव विहार समेत वन्यजीव बाहुल्य क्षेत्र की प्राकृतिक शांति बरकरार रहे।

निदेशक को लिखे ईमेल के जवाब में डब्ल्यूआईआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक और हैबिटेट इकोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ भूपेंद्र सिंह अधिकारी ने यह जानकारी दी। वह बताते हैं कि इस विषय पर अध्ययन के लिए राज्य सरकार को एक प्रस्ताव भेजा गया है, “इसके लिए हमें कम से कम एक साल के डेटा की ज़रूरत है। इससे अंदाजा मिलेगा कि पर्यटकों की बढ़ती आवाजाही उच्च हिमालयी क्षेत्र को किस तरह प्रभावित कर रही है। लेकिन किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए एक दीर्घकालिक अध्ययन की जरूरत है। हम देखते हैं कि खच्चरों के चरान से बुग्याल (alpine meadows) पूरा खत्म हो जाते हैं। ऐसे ही केदारनाथ के नजदीक चंद्रशिला या चोपता की तरफ पर्यटकों की आवाजाही बुग्यालों को नष्ट कर रही है”।

वहीं, जीबी पंत इंस्टीट्यूट के निदेशक को लिखे ईमेल के जवाब में बताया गया कि हिमालयी वन्यजीवों, जैव-विविधता और इकोसिस्टम पर पर्यटन के असर को लेकर अब तक कोई अध्ययन नहीं किया गया। जवाब में लिखा गया “हालांकि, हम इस जानकारी के महत्व और इसके मूल्य को समझते हैं। इस संबंध में आवश्यक जानकारी/डेटा इकट्ठा करने के लिए शोध की आवश्यकता है”।

राज्य में 14 टूरिज्म रिस्क हॉटस्पॉट की मैपिंग की गई है। इसमें केदारनाथ को भूकंप के लिहाज से (बेहद संवेदनशील), अचानक बाढ़ के लिए मध्यम और भूस्खलन के लिहाज से उच्च जोखिम वाले क्षेत्र के तौर पर चिन्हित किया गया है। पर्यटन के संबंध में इसके मायने हैं कि हर साल लाखों तीर्थयात्री इस जोखिम के संपर्क में आते हैं।

30 जून 2024 को केदारनाथ घाटी के ऊपरी छोर पर स्थित मेरु-सुमेरु पर्वत श्रृंखला के नीचे चौराबाड़ी ग्लेशियर में गांधी सरोवर के ऊपरी क्षेत्र में हिमस्खलन हुआ। उस समय भी केदारनाथ में भारी संख्या में तीर्थयात्री मौजूद थे हालाँकि इस बार अधिकारियों के मुताबिक़ किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ।

वर्ष 2013 में भी इसी जगह भारी बारिश के बीच चौराबाड़ी ग्लेशियर झील टूटने से भयावह केदारनाथ आपदा आई थी। केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर वर्ष 2014 में बनी कमेटी के सदस्य रहे और वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ग्लेशियर विशेषज्ञ रहे (रिटायर्ड) डॉ डीपी डोभाल कहते हैं “चारों धाम समुद्रतल से 10हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर, ग्लेशियर के मलबे पर बसे हैं। हज़ारों वर्ष पहले यहां ग्लेशियर हुआ करते थे। इसलिए यहां की धरती नीचे से ठोस नहीं भुरभुरी है। जिसमें बर्फ जमने और पिघलने की प्रक्रिया चलती रहती है”।

“जलवायु परिवर्तन के साथ ही ये पूरा क्षेत्र मानवीय गतिविधियों से भी प्रभावित हो रहा है। जहां कभी बर्फ गिरा करती थी या बेहद धीमी बारिश होती थी, उसकी जगह अब एक साथ भारी बारिश हो जा रही है। चारधाम यात्रा के समय जब भारी भीड़ यहां जुटती है तो खतरा बढ़ जाता है। 2010 लद्दाख आपदा, 2013 केदारनाथआपदा, 2021चमोली आपदाकाउदाहरणहमारेसामनेहै। प्रशासन और लोग दोनों ही हिमालयी संवेदनशीलता को लेकर सजगनहीं हैं। यहां बेहद सीमित संख्या में ही यात्रियों को आने की अनुमति देनी चाहिए”, डॉ डोभाल आगे कहते हैं।

पर्यटन की आर्थिकी

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2030 तक सालाना 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर और राज्य के जीएसडीपी में कम से कम 15% योगदान का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। पर्यटन और इसके जुड़े व्यवसाय से लगभग 10 लाख लोगों को रोजगार मिले।

प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से देखें तो राज्य के 13 जिलों में चारधाम यात्रा से जुड़े ज़िले रुद्रप्रयाग (केदारनाथ), उत्तरकाशी (गंगोत्री और यमुनोत्री) और चमोली (बदरीनाथ और हेमकुंड साहिब) निचले पायदान पर हैं।

दून विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर आरपी ममगाईं कहते हैं “इकोसिस्टम सर्विसेज से तुलना करें तो पर्यटन का मौजूदा स्वरूप घाटे का सौदा है। जबकि हम अपने पूरे प्रशासनिक तंत्र को यात्रा प्रबंधन में झोंक रहे हैं। हम पर्यटकों की संख्या के बढ़ते आंकड़े ज़रूर देख रहे हैं लेकिन इसका स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा। पर्यटन से होने वाली आमदनी पूंजी निवेश करने वाले उस धनाढ्य वर्ग को जाती है जो ज्यादातर राज्य के बाहर के हैं”।

प्रोफेसर ममगाईं टूरिज्म टैक्स या ग्रीन टैक्स लगाने की व्यवस्था का सुझाव देते हैं ताकि इसका लाभ स्थानीय निकायों को मिले। वह कहते हैं “हमें नियंत्रित और जवाबदेह पर्यटन मॉडल विकसित करने की जरूरत है”।

अमरनाथ यात्रा के रूप में हमारे पास संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में सीमित संख्या में तीर्थयात्रा का एक उदाहरण तो है। लेकिन यह भी एक बहुत आदर्श मॉडल नहीं है।

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