लोकसभा चुनाव 2024: पर्यावरणीय मुद्दों पर भाजपा और कांग्रेस का घोषणापत्र क्या कहता है?
इस साल भारत भीषण गर्मी और हीटवेव्स का सामना कर रहा है। इस भीषण गर्मी से निपटने और कोयले को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करने की योजना दो सबसे बड़ी पार्टियों के घोषणापत्र में शामिल नहीं है।
मुंबई: वायु प्रदूषण भारत के दो सबसे बड़े राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में एक प्रमुख स्थान रखता है, वहीं जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े कारणों में से एक कोयला इन दलों के घोषणापत्रों से गायब है।
यह तब है, जब भारत वैश्विक जलवायु वार्ताओं में एक प्रमुख आवाज बना हुआ है और उन्होंने कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर सहमति जताई है।
भारत फ़िलहाल एक और भीषण गर्मी के मौसम के चपेट में है, जो संभवतः ऐतिहासिक गर्मी के रिकॉर्ड को तोड़ सकती है। भारत में वर्तमान में आम चुनाव भी चल रहे हैं, लेकिन किसी भी पार्टी के एजेंडे में हीट एक्शन प्लान शामिल नहीं है। इसके अलावा शहरी बाढ़ और चक्रवातों से निपटने के उपाय भी इन घोषणापत्रों का हिस्सा नहीं हैं।
अप्रैल के महीने में देश के कई हिस्सों में लंबे समय तक लू और हीटवेव चली और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने मई में भी सामान्य से अधिक लू और हीटवेव वाले दिनों का पूर्वानुमान लगाया है। अगले महीने से देश को सामान्य से ऊपर मानसून की उम्मीद है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में फैसला सुनाया था कि लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने का मौलिक अधिकार है और यह अधिकार स्वाभाविक रूप से जीवन के अधिकार और समानता के अधिकार से आता है।
भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के वरिष्ठ वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा, "भारत पिछले कई वर्षों से लू की चपेट में है, इसके बावजूद चुनावी चर्चाओं और बातचीत में जलवायु परिवर्तन का कोई उल्लेख नहीं किया जा रहा है। हालांकि संबंधित अधिकारी पहले की तुलना में अपना श्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हमारे पास अभी भी ऐसी नीतियां नहीं हैं जो भीषण गर्मी को एक प्रमुख पैरामीटर के रूप में मानती हैं। अब हम ऐसी स्थिति में नहीं हैं, जहां हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नजरअंदाज कर सकें।”
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के घोषणापत्र में इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन पर जोर दिया गया है, वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के घोषणापत्र में ग्रीन इंवेस्टमेंट और फॉरेस्ट कवर असेसमेंट पर जोर है।
गरमागरम चुनाव
इस साल अप्रैल में दिन का तापमान 1901 के बाद से 11वां सबसे गर्म तापमान था। इसका प्रभाव पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में सबसे अधिक देखा गया, जहां 1901 के बाद से औसत तापमान सबसे खराब था। यहां तक कि दक्षिणी प्रायद्वीप में यह इस सदी का दूसरा सबसे गर्म अप्रैल था।
आईएमडी द्वारा जारी 1 मई की विज्ञप्ति के अनुसार अप्रैल के महीने में भारत के अधिकतर राज्यों में भीषण हीटवेव्स वाले दिनों की संख्या रिकॉर्ड रूप से बढ़ी। पश्चिम बंगाल में पिछले 15 वर्षों में सबसे अधिक हीटवेव और लू वाले दिन दर्ज किए गए, जबकि ओडिशा में पिछले नौ वर्षों का यह रिकॉर्ड था। 15 अप्रैल से ओडिशा, 17 अप्रैल से पश्चिम बंगाल, 24 अप्रैल से झारखंड, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल और रायलसीमा, 26 अप्रैल से केरल और बिहार, 27 अप्रैल से कोंकण और 23 अप्रैल से आंतरिक कर्नाटक में हीट वेव और गंभीर हीट वेव की स्थिति बनी हुई है।
लोकसभा चुनाव 19 अप्रैल को शुरू हुआ था और 13 मई को चौथे चरण का मतदान होने के बाद अभी तीन चरण बाकी हैं। भारत के चुनाव आयोग ने खराब मौसम को देखते हुए मतदाताओं के लिए ‘क्या करें और क्या न करें’ की एडवाइज़री जारी की थी।
वैश्विक स्तर पर भी अल नीनो के कारण जून 2023 के बाद से पिछले 10 महीने रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म रहे हैं। [एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) एक आवर्ती प्राकृतिक घटना है, जो भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र के तापमान में उतार-चढ़ाव के साथ-साथ वायुमंडल में होने वाले परिवर्तन के कारण होता है और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जलवायु पैटर्न पर एक बड़ा प्रभाव डालता है।]
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के कारण 1950 के दशक के बाद से हीटवेव की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि दर्ज हुई है। अतिरिक्त गर्मी से उनकी आवृत्ति और तीव्रता में और भी वृद्धि होगी।
घोषणापत्र में क्या है?
इस आम चुनाव के लिए भाजपा के घोषणापत्र में 2070 तक भारत को नेट जीरो (सभी कार्बन उत्सर्जन को शून्य) करने की बात की गई है, जिसके अल्पकालिक लक्ष्यों में गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा को बढ़ाने की बात है। भारत 2070 तक कार्बन तटस्थता हासिल करना चाहता है, जिसमें गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी 50% तक बढ़ाना, अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन तीव्रता को कम करना और 2030 तक कार्बन सिंक या वनों को बढ़ाने की बात शामिल है।
गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों में भाजपा ने अपने घोषणापत्र में ऊर्जा के क्षेत्र के लिए भारत की परमाणु क्षमता बढ़ाने की बात कही है, जैसा कि हाल के वर्षों में सरकार का जोर भी रहा है। नवीकरणीय ऊर्जा के संदर्भ में सत्तारूढ़ दल अपनी नई छत सौर योजना पर भरोसा कर रहा है, जिसने उन घरों के लिए सब्सिडी बढ़ा दी है जो छत पर सौर मॉड्यूल स्थापित करना चाहते हैं। इसके अलावा मेगा सोलर और विंड पार्क की योजनाएं भी सरकार के लिए महत्वपूर्ण हैं।
दिल्ली और उत्तर भारत का वायु प्रदूषण हर सर्दियों में एक गंभीर मुद्दा बन जाता है। भाजपा ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत 2029 तक 60 शहरों में राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने की भी बात कही है। इस शीतकालीन प्रदूषण से प्रभावित उत्तर भारतीय राज्यों में लोकसभा सीटों की अच्छी खासी संख्या है।
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में कहा है, "30 लाख से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन वर्तमान में सड़कों पर चल रहे हैं। हम इसकी संख्या को और बढ़ाएंगे व जगह-जगह पर ईवी चार्जिंग स्टेशन भी स्थापित करेंगे।"
पिछले कुछ वर्षों में सरकार की नीतियों में पेट्रोल और ग्रीन हाइड्रोजन में इथेनॉल मिश्रण पर जोर दिया गया है और इसे घोषणापत्र में भी शामिल किया गया है। लेकिन इथेनॉल मिश्रण भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए एक चुनौती हो सकती है और ग्रीन हाइड्रोजन अभी भी वास्तविकता से कई साल दूर है। इनके अलावा भारत को "सभी मौसमों के लिए तैयार" और "जलवायु स्मार्ट" बनाने के लिए भाजपा एक राष्ट्रीय वायुमंडलीय मिशन शुरू करना चाहता है, जिसे ‘मौसम’ कहा जाएगा।
पूर्वोत्तर में बाढ़ प्रबंधन, हिमालयी नदियों में बाढ़ के विनाशकारी प्रभावों को कम करने के उपाय, सभी प्रमुख नदियों के स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार, जल गुणवत्ता प्रबंधन, हरित अरावली परियोजना भाजपा के घोषणापत्र में किए गए कुछ अन्य वादे हैं।
कांग्रेस पार्टी नवीकरणीय ऊर्जा पर केंद्रित एक ग्रीन न्यू डील निवेश कार्यक्रम शुरू करना चाहती है, जिसमें टिकाऊ बुनियादी ढांचा तैयार करना और ग्रीन जॉब्स का निर्माण प्रमुख लक्ष्य है। यह एनसीएपी पर भी ध्यान केंद्रित करता है, साथ ही यह भारत के हरित संक्रमण और 2070 तक नेट जीरो के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक ग्रीन ट्रांजिशन फंड भी स्थापित करना चाहता है। भारत को अपनी जलवायु महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए खरबों डॉलर की आवश्यकता होगी।
जबकि दोनों घोषणापत्रों में वन अधिकारों और वन उपज तक पहुंच का उल्लेख है, कांग्रेस ने पिछले कुछ वर्षों में भारत में जंगलों के नुकसान को स्वीकार किया है।
2024 के कांग्रेस चुनावी घोषणापत्र के अनुसार, "ब्राजील के बाद भारत ने 2015 और 2020 के बीच वन क्षेत्र के सबसे बड़े नुकसान का अनुभव किया है। हम वन क्षेत्र को बढ़ाने, आधुनिक वैज्ञानिक मानकों के अनुसार 'वन' और 'वन आवरण' को फिर से परिभाषित करने और स्थानीय समुदायों को वनीकरण में शामिल करने के लिए राज्य सरकारों के साथ काम करेंगे।"
पार्टी यूके स्थित फर्म यूटिलिटी बिडर की एक रिपोर्ट का जिक्र कर रही है, जिसने पिछले 30 वर्षों में 98 देशों में वनों की कटाई के रुझान का विश्लेषण किया और कहा कि 2015 और 2020 के बीच भारत ने औसतन 668,400 हेक्टेयर जंगल खो दिए। हर दो साल में जारी होने वाली वन स्थिति रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत का वन आवरण वास्तव में 2017 और 2021 के बीच बढ़ा है, जिसका पर्यावरणविदों ने विरोध किया है और कहा है कि वन आवरण और वृक्ष आवरण की हमारी परिभाषा त्रुटिपूर्ण है। भारत के वन क्षेत्र का नुकसान ग्लोबल फ़ॉरेस्ट वॉच जैसे अंतर्राष्ट्रीय डैशबोर्ड में भी परिलक्षित होता है।
भाजपा ने देश के वन क्षेत्र में लगभग 9000 वर्ग किलोमीटर जोड़ने का अपना दावा छोड़ दिया है, जिसका उल्लेख उनके 2019 के घोषणापत्र में था।
इस चुनाव में 153 संसदीय क्षेत्र ऐसे हैं जिनके मूल में वन अधिकार हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में, इनमें से अधिकांश सीटें भाजपा ने जीती थीं और कई सीटों पर कांग्रेस उपविजेता रही थी।
जहां तक अन्य चुनावी वादों को छोड़ने का सवाल है, कांग्रेस पार्टी ने भी ग्रीन बजटिंग के अपने पहले के वादे को छोड़ दिया है। कांग्रेस के 2014 घोषणापत्र के अनुसार, “हम 2016-17 तक हरित राष्ट्रीय खाते लॉन्च करेंगे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पर्यावरणीय गिरावट भारत के राष्ट्रीय खातों में स्पष्ट रूप से दिखाई दे।” इसे कांग्रेस के 2019 घोषणापत्र में दोहराया भी गया था, लेकिन नवीनतम घोषणापत्र में इसका उल्लेख नहीं है।
कांग्रेस के 2024 के घोषणापत्र में पहाड़ी जिलों में भूस्खलन के मुद्दे का अध्ययन करना, इसे रोकने के उपाय विकसित करना, पर्यावरण मानकों की स्थापना, निगरानी व कार्यान्वयन के लिए एक स्वतंत्र पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन प्राधिकरण का गठन करना और राष्ट्रीय व राज्य जलवायु परिवर्तन योजनाओं को लागू करने जैसे कुछ अन्य वादे हैं। ।
सुधार की जरूरत
विशेषज्ञ इस बात पर बंटे हुए हैं कि पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मामले में राजनेताओं को बेहतर काम करना चाहिए या नहीं।
भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के शोध निदेशक और आईपीसीसी लेखक अंजल प्रकाश का मानना है कि दोनों राजनीतिक दलों ने अपने घोषणापत्रों में ठीक काम किया है।
प्रकाश ने कहा, "मैंने कांग्रेस और बीजेपी दोनों के घोषणापत्रों का विश्लेषण किया है और पाया है कि दोनों ने बहुत अच्छा काम किया है। जलवायु परिवर्तन के बड़े मुद्दे, जैसे- कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करना नीतिगत स्तर के मुद्दे हैं। मुझे नहीं लगता कि चुनाव इस आधार पर लड़े जाते हैं। हां, कृषि या हीट स्ट्रेस भी मुद्दे हो सकते थे, लेकिन दुर्भाग्य से ये राजनीतिक दलों के लिए ये केंद्रीय एजेंडा नहीं हैं। मुझे नहीं लगता कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के मुद्दे पर उतने वोट मिल सकते हैं, जितने अन्य मुद्दों पर, जिनके बारे में लोगों की स्पष्ट समझ है।''
क्लाइमेट एक्टिविस्ट हरजीत सिंह का मानना है कि पार्टियां इससे और बेहतर कर सकती थीं। उन्होंने कहा, "जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट के निर्विवाद प्रभावों के बावजूद ये जरूरी मुद्दे चुनावों के दौरान अधिकांश भारतीय राजनीतिक दलों के मुख्य एजेंडे से गायब हो जाती हैं। यह मतदाताओं के लिए खतरा है कि उनकी आजीविका, स्वास्थ्य और भविष्य को खतरे में डालने वाली संकटों को घोषणा पत्रों में दरकिनार कर दिया गया है।"