भूख और बीमारी का संगम : टीबी से जंग सिर्फ अस्पतालों की नहीं, रसोई और भोजन की भी लड़ाई

टीबी से लड़ने के लिए जितना जरूरी रोजाना दवाएं लेना है, उतना ही जरूरी मरीज संग पूरे परिवार को पोषण आहार देना है। हालांकि सच यह भी है कि भारत में अमीरों से ज्यादा ये बीमारी उन गरीबों को चपेट में ले रही है जिन्हें दो वक्त की रोटी मुश्किल से नसीब हो पाती है।;

Update: 2025-08-19 08:50 GMT

वेलियानूर स्थित अर्बन प्राइमरी हेल्थ सेंटर में नर्सिंग छात्राएं टीबी मरीज और परिवारों के लिए पोषण आहार की जानकारी देते हुए।

पुडुचेरी: अपने दोनों हाथ में वेज और नॉन वेज की थाली पकड़े नर्सिंग छात्र आम लोगों को पोषण आहार की ताकत बता रहे हैं। यह दृश्य पुडुचेरी जिले के विल्लियानूर ​स्थित अर्बन प्राइमरी हेल्थ सेंटर का है जहां पुदुचेरी मेडिकल कॉलेज के इन छात्र-छात्राओं को टीबी संक्रमण से बचने के लिए पोषण आहार के प्रति जागरूकता लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। किसी के हाथ में फ्रूट्स टोकरी है तो किसी के पास फिश (मछली) और एग (अंडे) का भोजन है। इनका कहना है कि टीबी संक्रमित मरीज के साथ साथ उसके पूरे परिवार को सुबह नाश्ते से लेकर रात के भोजन तक पोषण आहार का सेवन करना चाहिए। ताकि टीबी का बैक्टीरिया हमलावर न हो सके।

नर्सिंग छात्रों का यह फूड मॉडल भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के उस अध्ययन पर आधारित है जिससे प्रेरित होकर हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरी दुनिया के टीबी मरीजों के लिए दवा संग पोषण आहार अनिवार्य किया। शोधकर्ताओं का मानना है कि पोषण सुधार से न सिर्फ टीबी के मरीज को मौत से बचाया जा सकता है बल्कि उसके पूरे परिवार को संक्रमित होने से भी बचाया जा सकता है। इस तरह किसी भी देश के लिए टीबी का बोझ घटाना आसान हो सकता है।



टीबी मरीज और उनके परिवारों के लिए इस तरह वेज और नॉन वेज भोजन की जानकारी दी गई।


हालांकि भारत के लिहाज से टीबी मरीजों को पोषण आहार की सलाह देना काफी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि भारत में क्षय रोग (टीबी) असमान रूप से गरीबों को प्रभावित करता है और बहुआयामी गरीबी का अनुभव करने वालों में इसका प्रचलन काफी अधिक है। भारत की लगभग 29.3% जनसंख्या बहुआयामी रूप से गरीब मानी जाती है और इस समूह में टीबी का प्रसार उन लोगों की तुलना में काफी अधिक है जिन्हें गरीब नहीं माना जाता। उदाहरण के लिए, बीएमसी पब्लिक हेल्थ के अनुसार, बहुआयामी रूप से गरीब लोगों में टीबी का प्रसार प्रति 100,000 जनसंख्या पर 480 है, जबकि गैर-गरीब लोगों में यह प्रति 100,000 जनसंख्या पर 250 है।

इस बीमारी का पूरी दुनिया में सबसे बड़ा बोझ भारत पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2024 बताती है कि अकेले भारत में पिछले साल 26 लाख से अधिक नए मामले सामने आए। इनमें से करीब 3.73 लाख मामले सिर्फ कुपोषण की वजह से हुए। इसका मतलब स्पष्ट है कि टीबी और पोषण का रिश्ता केवल चिकित्सा विज्ञान का विषय नहीं है बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य ढांचे और सामाजिक असमानताओं की गहरी परतों को भी उजागर कर रहा है।



पांडिचेरी में टीबी रोगियों को हर माह मिलने वाला राशन।


सबूत: पोषण से कम हुआ टीबी का खतरा

टीबी संक्रमण यानी भूख और बीमारी का संगम। यह हकीकत भारत में हुए RATIONS (Reducing Activation of Tuberculosis by Improvement Of Nutritional Status) ट्रायल में सामने आई जिसमें पहली बार वै​श्विक स्तर पर यह देखा गया कि कैसे पोषण आहार में सुधार करने से टीबी का बोझ घटाया जा सकता है। 16 अगस्त 2019 से 31 जनवरी 2021 के बीच झारखंड में 10,345 परिवारों भारत के साथ साथ कनाडा के मैकगिल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया जिसे 19 अगस्त 2023 को मेडिकल जर्नल द लैंसेट ने प्रका​शित किया है।

करीब तीन साल तक झारखंड में चले इस ट्रायल में 2800 टीबी मरीज और 10,345 परिजन शामिल हुए। इस बीच मरीज और उनके घरवालों को खाद्य टोकरी और मल्टीविटामिन दिए गए। अध्ययन के नतीजा चौंकाने वाले मिले क्योंकि आहार में बदलाव करने के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि सिर्फ दो महीने में ही 5% वजन बढ़ने से टीबी संक्रमित मरीजों की मौत का जोखिम 60% तक घट गया। इतना ही नहीं, मरीज के परिवार को पोषण आहार देने पर पता चला कि घरवालों में टीबी होने के मामले में 39% की कमी आई है जबकि फेफड़े से जुड़े टीबी के मामले में यह कमी 48% तक दर्ज की गई। यानी अगर टीबी मरीज और उसके परिवार को पर्याप्त पोषण मिले तो बीमारी का चक्र तोड़ा जा सकता है।



विल्लियानूर स्थित अर्बन प्राइमरी हेल्थ सेंटर में इलाज कराता टीबी का संदिग्ध मरीज। फोटो: अलका बरबेले


इस अध्ययन के शोधकर्ताओं की टीम में येनेपोया मेडिकल कॉलेज मैंगलोर, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय क्षय रोग अनुसंधान संस्थान चेन्नई, विश्व स्वास्थ्य संगठन तकनीकी सहायता नेटवर्क रांची, राज्य टीबी प्रकोष्ठ झारखंड, स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग रांची, राष्ट्रीय क्षय रोग संस्थान बैंगलोर, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय नई दिल्ली और एम एस स्वामीनाथन अनुसंधान प्रतिष्ठान चेन्नई शामिल हैं।

नई दिल्ली ​स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, “इस ट्रायल के नतीजों का असर सीधे नीति पर पड़ा। सरकार ने निक्षय पोषण योजना (NPY) के तहत वित्तीय सहायता 500 रुपये से बढ़ाकर 1000 रुपये प्रति माह कर दी। 2018 से शुरू हुई इस योजना के तहत अब तक 3,202 करोड़ रुपये से ज्यादा सीधे लाभार्थियों को दिए जा चुके हैं।”

शोध दिखाते हैं कि जिन मरीजों को नकद सहायता नहीं मिलती, उनके इलाज बीच में छूटने का खतरा 2.5 गुना बढ़ जाता है। इसके अलावा निक्षय मित्र पहल के जरिए अब एनजीओ, कंपनियां और व्यक्ति भी टीबी मरीजों को खाद्य टोकरी, अतिरिक्त जांच और रोजगार सहायता जैसी मदद दे सकते हैं। 2024 में इसका दायरा बढ़ाकर मरीज के परिवार को भी इसमें शामिल किया गया।



मरीज के जरिए टीबी का प्रसार और फलों के बारे में जानकारी देती नर्सिंग छात्रा।


तमिलनाडु मॉडल: तेज पहचान और बेहतर नतीजे

ऐसा ही एक अन्य अध्ययन तमिलनाडु में शुरू हुआ जहां आईसीएमआर-राष्ट्रीय जानपदिक रोग विज्ञान संस्थान (एनआईई) शोधकर्ताओं ने साल 2022 में तमिलनाडु-कसनोई एरप्पिला थिट्टम (TN-KET) नामक ट्रायल शुरू किया।

इंडियास्पेंड से बातचीत में एनआईई के निदेशक डॉ. मनोज वी. मुर्हेकर ने कहा, "हमने टीबी मरीजों में जान का जो​खिम पता करने के लिए वै​श्विक स्तर पर तय 16 पैरामीटर की बजाय इस अध्ययन में सिर्फ तीन चीज गंभीर कुपोषण, सांस की तकलीफ और बिना सहारे खड़े न हो पाने, पर फोकस किया। इसके साथ साथ तमिलनाडु के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात गैर नर्सिंग स्टाफ को प्रशिक्षित कर ऐसे मरीजों की तुरंत पहचान करने और उन्हें तत्काल रेफरल करने की जिम्मेदारी सौंपी। यकीन मानिए हमारे लिए इस अध्ययन के नतीजे बेहद चौंकान्ने वाले मिले जिसके बाद हमने सभी राज्यों से इस तरह की प्रै​क्टिस पर ध्यान देने की अपील भी की है।"



तमिलनाडु मॉडल की जानकारी देते आईसीएमआर एनआईई के निदेशक डॉ. मनोज, सा​थ में अन्य वैज्ञानिक।


अध्ययन का नतीजा यह रहा कि शुरुआती दो महीने में जिन मरीजों को टीबी से मृत्यु का जोखिम सबसे ज्यादा था उनकी की संख्या 600 से घटकर 350 से भी कम हो गई। इसके अलावा सिर्फ नौ जिलों में ही मौत की दर 20-30% तक कम हो गई। यह दिखाता है कि अगर गंभीर कुपोषण की जल्दी पहचान हो जाए तो कई जानें बचाई जा सकती हैं।


मेघालय का ‘यूनिवर्सल निक्षय मित्र’ मॉडल

झारखंड और तमिलनाडु के अलावा भारत के पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में भी कुछ समय पहले टीबी संक्रमित मरीज और उनके परिवारों को लेकर एक खास मुहिम शुरू हुई। मेघायल के सचिव रामकुमार एस. ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, "टीबी की लड़ाई में पोषण आहार की भूमिका के बारे में जब हमें जानकारी मिली तो हमने सबसे पहले अपने राज्य में आगे बढ़ते हुए कॉम्प्रिहेंसिव टीबी केयर इनिशिएटिव शुरू किया। यहां मरीज और उनके परिवार को 2000 रुपये मूल्य का पोषण किट हर महीने दिए जाते हैं। साथ ही मुफ्त परिवहन, जांच और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। राज्य सरकार ने खुद 4500 से ज्यादा मरीजों को ‘गोद’ लिया है, जिससे मेघालय भारत का पहला “यूनिवर्सल निक्षय मित्र” राज्य बन गया।"



मेघालय में फ्री राशन एकत्रित करता एक परिवार, दूसरे में सचिव रामकुमार एस जानकारी देते हुए।


उन्होंने बताया कि मेघायल में प्रत्येक टीबी संक्रमित मरीज और उसके परिवार को प्रति माह 10 किलो चावल, तीन किलो दाल, दो किलो राजमा और 30 अंडे की ट्रे सहित 16 किलो राशन दिया जा रहा है जो केंद्र से मिलने वाली सहायता रा​शि से अतिरिक्त है।


भूख मिटाए बिना टीबी नहीं मिटेगी

मुंबई ​स्थित अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ शोधकर्ता गुरु वसिष्ठ ने कहा, “ सरकार ने भारत से टीबी उन्मूलन के लिए साल 2025 का लक्ष्य रखा है। तय समय पर इसे हासिल करने के लिए केंद्र और राज्य मिलकर एक बड़ी लड़ाई भी लड़ रहे हैं लेकिन सफलता सिर्फ दवाइयों से संभव नहीं होगी। जब तक टीबी मरीज और उनके परिवार की थाली भरपूर नहीं होगी, तब तक दवा का असर अधूरा रहेगा। भारत ने नीति और नवाचार दोनों स्तर पर RATIONS जैसे वैज्ञानिक सबूत, निक्षय योजनाएं, तमिलनाडु और मेघालय जैसे मॉडल अपनाए हैं जिन्हें अब देशभर में समान रूप से लागू करने की जरूरत भी है क्योंकि टीबी से लड़ाई सिर्फ अस्पतालों तक सीमित नहीं है, यह रसोई और भोजन की भी लड़ाई है।”



भारत में गरीबी और टीबी प्रसार की ​स्थिति बयां करता यह मानचित्र, स्त्रोत : BMJ


उन्होंने अपने अध्ययन में लिखा, हमने क्षय रोग और बहुआयामी गरीबी के बीच संबंध की भी जांच की जिसमें पाया कि भारत की लगभग एक-तिहाई आबादी बहुआयामी गरीब है और प्रत्येक राज्य में इसमें भारी भिन्नता भी है। उदाहरण के तौर पर बहुआयामी गरीबी बिहार राज्य में सबसे ज्यादा (55.6%) और केरल में सबसे कम (1.0%) पाई गई। टीबी का प्रसार पूर्वोत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड में सबसे ज्यादा पाया गया। दूसरा गरीबों में टीबी की व्यापकता आर्थिक और शैक्षणिक रूप से उन्नत केरल और दिल्ली के अलावा बिहार जैसे राज्यों में भी अधिक पाई गई। तीसरा, धूम्रपान, भीड़भाड़, धर्म, जाति और आयु सहित कई अहम कारक भी मिले क्योंकि कई अध्ययनों ने धूम्रपान को एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक के रूप में स्थापित किया है जो व्यक्तियों में टीबी के जोखिम को बढ़ाता है।



पुदुचेरी के विल्लियानूर स्थित अर्बन प्राइमरी हेल्थ सेंटर।


टीबी परिवारों में पोषण आहार के गवाह हैं हम

इंडियास्पेंड से बातचीत में पांडिचेरी के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. कविता वासुदेवन ने कहा, "हमने अलग अलग अध्ययन के जरिए टीबी मरीजों और उनके परिवारों पर पोषण आहार का काफी बदलाव देखा है। आसान शब्दों में कहें तो हम दवा संग पौ​​ष्टिक आहार के प्रभावों को देखने वाले गवाह हैं। आईसीएमआर ने तमिलनाडु में जो अध्ययन किया, उसमें पांडिचेरी भी शामिल है और हमने टीबी मरीजों में जान का जो​खिम काफी कम होते देखा है। पांडिचेरी प्रशासन ने जब उस मॉडल को अपने यहां लागू किया तब टीबी की मृत्युदर में एक साल बाद ही करीब 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।"



विल्लियानूर स्थित अर्बन प्राइमरी हेल्थ सेंटर में जानकारी देतीं स्वास्थ्य कर्मचारी।


इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. आनंद ने कहा, शुरुआती जांच, सही सलाह और उपचार में समुदाय की भागीदारी से टीबी के प्रसार पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इसे साबित करने के लिए एमबीबीएस छात्रों के लिए फैमिली अडॉप्शन प्रोग्राम और पोषण आहार मॉडल लागू किया और 2023 से अब तक टीबी के प्रसार और मृत्युदर दोनों में भारी ​गिरावट आई है।

हालांकि टीबी की बीमारी और भूखमरी के बीच कई सवाल बाकी हैं जिन पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से जानकारी मिली। मंत्रालय से पूछा है कि क्या हर राज्य में मरीजों का पोषण आकलन समान रूप से हो रहा है? क्या नकद सहायता और खाद्य टोकरी समय पर पहुंच रही है? पोषण काउंसलिंग और आहार विविधता को योजना का हिस्सा कैसे बनाया जाए? क्या पीएम-जय जैसी योजनाओं में टीबी मरीजों के अस्पताल खर्च भी कवर किए जा सकते हैं?

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