यूपी: पोषाहार की बाट जोह रहे आंगनवाड़ी के बच्चे
उत्तर प्रदेश सरकार ने पोषाहार बनाने का काम स्वयं सहायता समूहों को देने का फैसला किया है और जब तक ये व्यवस्था स्थापित हो तब तक आंगनवाड़ी के लाभार्थियों को सूखा राशन देने का इंतज़ाम किया है। मगर लाभार्थियों को ना तो ये सूखा राशन ठीक से मिल रहा है और ना पोषाहार से मिलने वाला पोषण।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में पीछे जाता दिख रहा है। जिसका कारण है, आंगनबाड़ी से जुड़े बच्चों और महिलाओं को सूखा राशन देने की नयी व्यवस्था, जो कि कई अनियमितताओं की शिकार है।
सितम्बर 2020 में सरकार ने आंगनबाड़ी के लाभार्थियों को मिलने वाले पोषाहार का टेंडर रद्द करते हुए ये काम स्वयं सहायता समूहों को देने का निर्णय लिया और इस व्यवस्था के स्थापित होने तक लाभार्थियों को सूखा राशन बांटने का प्रावधान किया गया। लेकिन पिछले 6 महीनों से ये राशन ना तो नियमित रूप से वितरित किया जा रहा है और ना ही इसकी मात्रा कुपोषण से निपटने के लिए पर्याप्त है।
उत्तर प्रदेश में आंगनवाड़ी पोषाहार योजना के तहत 2 साल के सोनू को आखिरी बार सितंबर 2020 में खाने को दलिया मिला था। इसके बाद से उसे दलिया या कोई अन्य पोषाहार नहीं मिला है। बीच में कुछ लाभार्थियों को अनाज जरूर बांटा गया था, लेकिन वो भी सोनू के परिवार तक नहीं पहुंचा। कोरोना और लॉकडाउन की वजह से सोनू के पिता की मजदूरी भी नहीं रही। जिसके कारण घर की आर्थिक स्थिति पहले से ज्यादा खराब हो गई है। ये कहानी है सोनू के परिवार की जो उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के जुग्गौर गांव रहता है।
सोनू की माँ, 31 वर्षीय सरोज कुमारी का कहना है कि ऐसे मुश्किल वक्त में अगर बच्चे को आंगनवाड़ी से मिलने वाला अनाज मिल पाता तो शायद उनकी मुश्किलें थोड़ी कम हो जातीं।
उत्तर प्रदेश में सरोज जैसी सैकड़ों महिलाएं इस बुरे दौर से गुजर रहीं हैं जब उनके बच्चों को आंगनवाड़ी पोषाहार योजना से पोषाहार या कोई अनाज नहीं मिल पा रहा है। इसकी मुख्य वजह है उत्तर प्रदेश में आंगनवाड़ी पोषाहार योजना का ट्रांजिशन पीरियड।
क्या है ट्रांजिशन पीरियड
उत्तर प्रदेश के आंगनवाड़ी केंद्रों पर पहले बच्चों को पुष्टाहार के रूप में अनाजों का मिश्रण, जिसे 'पंजीरी' कहा जाता है, दिया जाता था। इस पुष्टाहार के उत्पादन और वितरण में अनियमितताओं की शिकायतों के चलते प्रदेश के विकास एवं पुष्टाहार विभाग ने पंजीरी की आपूर्ति करने वाली कंपनियों का करीब 29 साल का एकाधिकार खत्म करते हुए सितम्बर 2020 में यह काम स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को सौंपने का फैसला लिया। चूंकि इस व्यवस्था को स्थापित करने में अनुमानित 2 वर्ष का लम्बा समय लगेगा, विभाग ने इस दौरान आंगनवाड़ी केंद्रों के लाभार्थियों को सूखा राशन जैसे चावल, दाल, गेहूं के साथ दूध पाउडर और घी आदि देने का फैसला किया।
लेकिन सितंबर 2020 में पुष्टाहार बंद होने के बाद यह सूखा राशन सिर्फ एक बार नवंबर में बांटा गया था, जो सभी लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाया। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने इंडियास्पेंड को बताया कि उनकी ओर से जितने लाभार्थियों की सूची भेजी गई थी उससे कम ही अनाज आया था। घी और दूध पाउडर भी कई जिलों में नहीं बंट सका है। अब हालत ये है कि पहले से चल रही एक व्यवस्था के बंद होने और नई व्यवस्था के लिए जमीन तैयार न होने की वजह से सरोज जैसी तमाम माताएं और सोनू जैसे बच्चे आंगनवाड़ी के पुष्टाहार की बाट जोह रहे हैं।
यूपी में 1.89 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों का संचालन
उत्तर प्रदेश में आंगनवाड़ी का दायरा कितना बड़ा है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राज्य में 1.89 लाख से ज्यादा आंगनवाड़ी केंद्र हैं। 23 सितंबर 2020 को लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों की मानें तो इन केंद्रों के माध्यम से बंटने वाले पुष्टाहार का लाभ 1.68 करोड़ से ज्यादा गर्भवती महिलाओं, धात्री महिलाओं और 6 साल तक के बच्चों को मिलता है। इसमें 6 साल तक के बच्चों की संख्या 1.31 करोड़ से ज्यादा है।ट्रांजिशन पीरियड में लाभार्थियों को मिलने वाला राशन इस प्रकार है-
- अति कुपोषित बच्चों को हर महीने 2.5 किलो गेहूं, 1.5 किलो चावल, 500 ग्राम दाल। साथ में हर तीन महीने पर 900 ग्राम देशी घी और 750 ग्राम स्किम्ड मिल्क पाउडर।
- 6 माह से 3 साल के बच्चों को हर महीने 1.5 किलो गेहूं, 1 किलो चावल, 750 ग्राम दाल। साथ ही हर तीन महीने पर 450 ग्राम घी और 400 ग्राम स्किम्ड मिल्क पाउडर।
- 3 साल से 6 साल के बच्चों को हर महीने 1.5 किलो गेहूं, 1 किलो चावल। साथ ही हर तीन महीने पर 400 ग्राम स्किम्ड मिल्क पाउडर। इस आयु वर्ग के बच्चों को दाल और घी नहीं दिया जाता।
- गर्भवती और धात्री महिलाओं को हर महीने 2 किलो गेहूं, 1 किलो चावल, 759 ग्राम दाल। साथ ही हर तीन महीने पर 450 ग्राम घी और 750 ग्राम स्किम्ड मिल्क पाउडर।
वैकल्पिक व्यवस्था के तहत राशन की मात्रा काफी कम
इंडियास्पेंड की जांच में ये पता चला कि पुष्टाहार बंद होने के बाद लाभार्थियों को दिया जाने वाला राशन अब तक सिर्फ एक बार नवंबर 2020 में बांटा गया था। इसके बाद से कोई राशन नहीं बंटा है। हालांकि एक बार जो सूखा राशन बांटा गया था, उसमें भी राशन की कम मात्रा थी। जिसे लेकर लाभार्थी और खुद आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी सवाल उठा रह हैं।
पोषक तत्वों को लेकर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के INTEGRATED CHILD DEVELOPMENT SERVICES (ICDS) SCHEME के निर्धारित मानक कुछ और ही हैं। इस स्कीम के तहत 2009 में जो मानक तय किए गए उसके मुताबिक, ऐसे बच्चों को दो भागों में बांटा गया है। प्राइमरी और अपर प्राइमरी।
प्राइमरी की बात करें तो इस आयु वर्ग के बच्चों को 12 ग्राम प्रोटीन के साथ 450 कैलोरी के लिए एक बच्चे को प्रतिदिन 100 ग्राम अनाज, 20 ग्राम दाल, 50 ग्राम सब्जी और 5 ग्राम तेल व घी चाहिए। इसी प्रकार से अपर प्राइमरी आयु वर्ग के बच्चों को 20 ग्राम प्रोटीन के साथ 700 कैलोरी के लिए 150 ग्राम अनाज, 30 ग्राम दाल, 75 ग्राम सब्जी और 7.5 ग्राम तेल व घी प्रतिदिन एक बच्चे को चाहिए।
इस हिसाब से देखा जाए तो ट्रांजिशन पीरियड में दिया जाने वाला राशन काफी कम है और वो भी हर महीने नहीं मिल रहा।
"पुष्टाहार के रूप में मिलने वाली पंजीरी की क्वालिटी खराब होती थी, उसे बंद कर दिया गया। अब जो अनाज बांटा जा रहा है वह बहुत ही कम है। क्या 1.5 किलो गेहूं और 1 किलो चावल पूरे महीने चल पाएगा? यह अनाज भी पांच महीने में सिर्फ एक बार मिला। ऐसे में तो बच्चे और कमजोर हो जाएंगे", गोरखपुर जिले के छितौनी गांव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता गीता पांडेय ऐसा कहती हैं।
अनाज की कम मात्रा को लेकर बाराबंकी के भिटौली कलां गांव की रहने वाली 27 वर्षीय सोनम यादव कहती हैं, "मेरे जुड़वां बच्चे हैं। दो बच्चों के हिसाब से मुझे नवंबर में तीन किलो गेहूं और दो किलो चावल मिला था। इसके बाद फरवरी में 1.5 किलो दाल मिली। यह अनाज हफ्ते भर भी नहीं चला। यह बहुत ही कम है। इसे बढ़ाना चाहिए।"
नवंबर में सोनम को एक बार अनाज मिला था। अगर यह व्यवस्था सुचारू रूप से चलती तो सोनम को दिसंबर, जनवरी और फरवरी में भी गेहूं और चावल मिलना चाहिए था, लेकिन कुछ भी नहीं मिला।
कुछ ऐसा ही हाल लखनऊ के जुग्गौर गांव की रहने वाली 25 साल की रेखा का भी है। रेखा को आंगनवाड़ी से एक बार अनाज मिला जो पांच-छह दिन में खत्म हो गया। इसके बाद से उन्हें आंगनवाड़ी से अभी तक कुछ नहीं मिला है। रेखा कहती हैं, "मुझे तीन बच्चों का राशन मिला था। महज पांच-छह दिन ही चल पाया। मेरे दो बेटे और एक बेटी हैं, जिनकी उम्र क्रमश: एक साल, तीन साल और पांच साल है।"
रेखा ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं। इससे पहले उन्हें सरकारी राशन की दुकान से अनाज मिलता था, लेकिन कुछ महीनों से उसका नाम कट गया है। ऐसे में बाहर से महंगे दाम पर अनाज खरीदकर खाना पड़ रहा है। रेखा के पति मजदूरी करते हैं और परिवार के लिए कमाने वाले अकेले व्यक्ति हैं। आंगनवाड़ी से बच्चों के लिए जो अनाज एक बार मिला था उसे भी परिवार के सभी सदस्यों ने खाया था।
बाराबंकी जिले के भिटौली कलां गांव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता नीलम देवी की मानें तो राशन बांटने में एक समस्या यह देखने को मिली कि नवंबर में सभी लाभार्थियों को अनाज नहीं मिला। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने जितने लोगों की सूची बनाकर भेजी थी उससे कम ही राशन आया था।
"नवंबर में जब राशन आया तो 9 से 10 महिलाओं का राशन नहीं आया था। इसके अलावा 3 से 6 साल के 15 बच्चों और 6 माह से 3 साल के करीब 20 बच्चों का राशन नहीं आया। मैंने आला अफसरों को यह जानकारी दी तो बाद में उन्हें राशन मिल पाया," नीलम देवी कहती हैं।
इसी तरह जुग्गौर गांव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ऊषा देवी कहती हैं, "85 बच्चों की लिस्ट भेजी थी, इसमें से सिर्फ 44 बच्चों का ही राशन मिल पाया। नवंबर में जो बच्चे छूट गए थे उनकी सूची तैयार करके मैंने भेजी दी है। जब राशन आएगा तो उन्हें दिया जाएगा।"
हालांकि गेहूं और चावल की जगह दाल अच्छी तरह से बंटी है। ऐसा इसलिए क्योंकि गेहूं और चावल विभाग की ओर से कोटे की दुकान पर भेजे गए थे, वहीं दाल की खरीद स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने खुद से की थी। ऐसे में उनके पास जितने लाभार्थियों की लिस्ट थी उस हिसाब से दाल खरीदकर बांटी गई।
सरोज बताती हैं कि उनका नौ लोगों का बड़ा परिवार है। शादी के बाद से ही वो और उनके पति परिवार से अलग चूल्हा जलाते रहे हैं। उनके तीन लोगों के परिवार का खर्च पति की कमाई से चलता है। इस कमाई का बड़ा हिस्सा सोनू की दवाई में लग रहा है, क्योंकि उसकी तबीयत अक्सर खराब रहती है। रसोई के लिए राशन भी खरीदना पड़ता है, ऐसे में जो कमाई होती है उसमें से कुछ बच नहीं पाता है। लॉकडाउन के बीच जब पति की कमाई नहीं हो पाती थी तो सास-ससुर ने काफी मदद की थी। थोड़ा बहुत उधार भी लेना पड़ा।
आखिर बच्चों तक कैसे पहुंचेगा पोषाहार?
ट्रांजिशन पीरियड में जो सूखा राशन दिया जा रहा है वह सीधे परिवार को मिलता है, बच्चों को नहीं। पहले जो पंजीरी दी जाती थी वह सीधे बच्चों को मिलती थी। कभी मिड-डे मील के तहत बच्चों को हर महीने तीन किलो गेहूं या चावल दिए जाने की व्यवस्था थी। इस अनाज का लाभ बच्चों को न मिलता देख सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि प्राइमरी स्कूलों में पका हुआ भोजन उपलब्ध कराया जाए। इस आदेश के बाद एक सितंबर 2004 से प्राइमरी स्कूलों में ही मिड-डे मील बनने लगा था।
अनाज का लाभ बच्चों को कैसे मिलेगा? इस सवाल पर बाल विकास और पुष्टाहार विभाग के अपर निदेशक अरविंद कुमार चौरसिया कहते हैं, "हम माताओं को बता रहे हैं कि यह राशन सिर्फ बच्चों के लिए ही है और उनके लिए ही उपयोग किया जाए। इसके अलावा मार्च 2021 से 3 से 6 साल तक के बच्चों के लिए सरकार हॉट कुक शुरू करने जा रही है। इसे मिड-डे मील के साथ जोड़ दिया गया है। इसके अलावा टेक होम राशन में भी कुछ बदलाव किए गए हैं। अब नेफेड की ओर से पोषक तत्वों से युक्त (फोर्टिफाइड फुड) चावल, चना, दाल और सरसों या सोयाबीन तेल सप्लाई किया जाएगा। ट्रांजिशनल पीरियड तक यह सामग्री लाभार्थियों को दी जाएगी।"
कुपोषण बढ़ने का खतरा: विशेषज्ञ
इंडियास्पेंड की 1 दिसंबर 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में पिछले साल सितंबर के महीने में मनाए गए पोषण माह के दौरान उत्तर प्रदेश में कुपोषित बच्चों की पहचान का अभियान चलाया गया था। इस दौरान राज्य में 6 साल तक के 15 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे पाए गए थे। इनमें से 13.4 लाख बच्चे कुपोषित और 1.88 लाख बच्चे अतिकुपोषित पाए गए थे। बावजूद इसके इन्हीं दिनों यूपी सरकार ने आंगनवाड़ी पोषाहार योजना के तहत बच्चों को दिए जाने वाले पोषणयुक्त आहार की व्यवस्था को बंद कर दिया। दो साल का ट्रांजिशन पीरियड तय कर सूखा राशन बांटने की व्यवस्था की गई वो भी बेहद लापरवाह तरीके से। इसका परिणाम बेहद भयावह हो सकता है।
ट्रांजिशन पीरियड की वजह से पुष्टाहार योजना में आई दिक्कतों को एक्सपर्ट गंभीर समस्या मानते हैं। "ट्रांजिशन में जाने से पहले कम से कम एक प्लान बनाया जा सकता था, जिससे योजना पर असर न हो। लोकल बॉडी जैसे पंचायत, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या बच्चों के अभिभावकों को मिलाकर एक समूह बनाया जा सकता था, जहां बच्चों के लिए खाना बन सके। यह वक्त ऐसा है कि लोगों की आर्थिक स्थिति पहले से ज्यादा खराब है। ऐसी स्थिति में पोषाहार योजना की दिक्कतों से काफी नुकसान होगा। आने वाले वक्त में इसका असर भीषण कुपोषण के तौर पर देखने को मिल सकता है", स्वास्थ्य अभियान की सह संयोजक डॉ. सुलक्षणा नंदी कहती हैं।
अब नेफेड से आएगा टेक होम राशन
टेक होम राशन में बदलाव करने का फैसला लेने के बाद बाल विकास और पुष्टाहार विभाग ने इससे संबंधित एक पत्र फरवरी की शुरुआत में नेशनल एग्रीकल्चरल को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (नेफेड) को भेजा था। यानी नवंबर में जो अनाज कोटे की दुकान के माध्यम से बंटा था, उसकी जगह नेफेड टेक होम राशन की सप्लाई करेगा। यह बदलाव क्यों किया गया? इस बारे में अरविंद कुमार चौरसिया का कहना है कि अनाज अलग-अलग मिल रहा था तो उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा था। अब एक पैकेट में सारी सामग्री होगी और उस पैकेट पर रेसिपी भी लिखी होगी।
हालांकि नई व्यवस्था में कितना चावल, दलिया, चना और दाल मिलेगा इसको लेकर फिलहाल कोई मानक तय नहीं है। "बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में बताया गया कि नेफेड के द्वारा अब टेक होम राशन मिलेगा। गेहूं और चावल अब नहीं बांटा जाएगा। इसमें कुछ बदलाव हुआ है। अभी जिले में इसकी आपूर्ति नहीं हुई है", कन्नौज जिले की प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी नीलम कटियार ने इस संबंध में इंडियास्पेंड को फोन पर बताया।
यूपी में टेक होम राशन बांटने का काम 67 हजार स्वयं सहायता समूह के माध्यम से किया जा रहा है। "स्वयं सहायता समूह को दाल खरीदकर बांटने की जिम्मेदारी दी गई थी। ऐसे में समूहों ने करीब 8.20 लाख किलो दाल खरीदी है", उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अदील अब्बास ने इंडियास्पेंड को इस बारे में बताया। अदील अब्बास राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के इंस्टिट्यूशन बिल्डिंग और कैपेसिटी बिल्डिंग को लीड करते हैं।
नई व्यवस्था कब तक ठीक होगी?
आंगनवाड़ी पोषाहार योजना की नई व्यवस्था सुचारू रूप से कब से काम करने लगेगी? इस सवाल के जवाब में अरविंद कुमार चौरसिया कहते हैं, "फतेहपुर और उन्नाव के पोषाहार यूनिट अगले महीने से चलने लगेंगे। यह दोनों बड़ी यूनिट हैं। इसके अलावा छह महीने में 18 अन्य जनपदों में काम शुरू हो जाएगा। हमारा टारगेट है कि एक साल के अंदर पूरे प्रदेश में स्वयं सहायता समूह के माध्यम से पुष्टाहार की व्यवस्था शुरू कर दी जाए।"
फतेहपुर और उन्नाव वो जिले हैं जहां यूएन वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के माध्यम से पुष्टाहार की बड़ी यूनिट लगाई जा रही है। दरअसल सितंबर 2020 में यूएन वर्ल्ड फूड प्रोग्राम और यूपी सरकार के बीच एक करार हुआ था। इसके तहत यह यूनिट स्थापित करनी थी। इस दौरान यूपी सरकार ने 18 जिले के 204 विकास खंड़ों में पुष्टाहार बनाने की यूनिट लगाने की बात कही थी। इन यूनिटों को स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा चलाया जाएगा।
पुष्टाहार बनाने की यूनिट जिन 18 जिलों में लगनी है उसमें कन्नौज भी शामिल है। कन्नौज के आठ विकास खंड़ों में यह यूनिट लगनी है।
"हमने यूनिट लगाने के लिए स्थान चिह्नित कर लिया है। इसके अलावा हमने महिलाओं का समूह भी बना दिया है। इनका बैंक खाता, पैन कार्ड भी बन चुका है। यह सारी प्रकिया करीब तीन-चार महीने पहले ही हो चुकी हैं। स्टेट से आगे का कोई निर्देश नहीं मिला है। जिला उद्योग में रजिस्ट्रेशन, एफएसएसएआई और जीएसटी का काम बाकी है। शुरुआत में काम तेज गति से हुआ था, लेकिन जब से राशन बंटने लगा है तब से इस दिशा में काम धीमा हो गया है", राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के जिला प्रबंधक राकेश मौर्य ने इस संदर्भ में इंडियास्पेंड को बताया,
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रणविजय सिंह लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं।