लोकसभा चुनाव: जब बिहार के मैदान पर लड़ी गई डिजिटल लड़ाई

Update: 2024-06-13 09:55 GMT

बिहार की राजधानी पटना में स्थित एक सोशल मीडिया कंसल्टेंसी में काम करते लोग

फोटो: लेमन डॉट मीडिया

पटना: लोकसभा चुनाव खत्म हुए और नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री चुन लिए गए। लेकिन इस बार के चुनावों में बिहार और उत्तर प्रदेश में काफी उलटफेर देखने को मिले। भारतीय जनता पार्टी को तगड़ा झटका मिला और वह अपेक्षित सीटों पर जीत हासिल नहीं कर पाई। अगर बात प्रचार प्रसार की करें तो इस बार तमाम राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए बड़ी संख्या में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और यूट्यूबर्स का सहारा लिया है और बिहार इसमें काफी आगे नजर आया है।

बिहार की राजधानी पटना में रहने वाले परम कुमार अपने यूट्यूब चैनल The Bihar Plus से लोकसभा चुनाव की सभी राजनीतिक गतिविधियों पर लगातार अपडेट देते रहे हैं। पिछले 6 सालों से अपने वेब पोर्टल पर काम करने वाले परम ने 2024 में लोकसभा चुनावों और 2025 में आने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया है। फिलहाल उनके यूट्यूब चैनल के लगभग 56000 फॉलोअर हैं।

परम इस बात से इंकार नहीं करते कि कई यूट्यूबर नैरेटिव सेट करने के लिए पैसा लेते हैं। वह कहते हैं “बिहार में कई राजनीतिक दल यूट्यूबर और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर पर काफी पैसा खर्च किया हैं। इसमें सभी पार्टियां शामिल है। कुछ ज्यादा पैसे देते हैं तो कुछ कम।" परम ने बताया कि चुनावी दिनों में उन्हें भी एक ऐसा ही ऑफर मिला था।

सहरसा के रहने वाले वेब पोर्टल पत्रकार धीरज को भी लगभग 2 महीने पहले राजनीतिक प्रचार के लिए +91 7838729** नंबर से फोन आया था। धीरज ने कहा, "उन्होंने मुझे अपना नाम आयुष बताया और मुझे कांग्रेस के समर्थन में पब्लिक बाइट देने के लिए कहा। उन्होंने मुझसे सीमांचल और कोसी क्षेत्र मे एक महीने में 70 वीडियो बनाने के लिए बोला और इसके लिए लगभग 90,000 की पेशकश की थी। लेकिन मैंने इससे ज्यादा की डिमांड की तो बात नहीं बन पाई।" धीरज उर्वाचंल दस्तक नाम से यूट्यूब चैनल चलाते हैं। उन्होंने एक स्थानीय उम्मीदवार के लिए प्रचार किया था। धीरज जैसे कई पत्रकार सोशल मीडिया के जरिए न्यूज वेबसाइट के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए प्रचार प्रसार का काम कर रहे हैं।

बिहार में कुल 40 लोकसभा सीटें हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए की तरफ से भाजपा 17 सीटों पर, जदयू 16 सीटों पर, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 5 सीटों पर, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा 1-1 सीट पर चुनाव लड़ी थी। वहीं इंडिया गठबंधन से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) 23 सीटों पर, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) पांच सीटों पर, कांग्रेस नौ सीटों पर और वामपंथी दल शेष 5 सीटों पर लड़ी थी।

इसमें एनडीए को 30 सीटें मिली है। भाजपा की 12, जदयू की 12, लोजपा (रामविलास) की 5 और हम (सेक्युलर) की 1 सीट शामिल है। वहीं इंडिया गठबंधन को 9 सीटें मिली है, जिसमें राजद को चार, कांग्रेस को तीन और सीपीआई माले को 2 सीट मिली है। जबकि 1 सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव ने जीत हासिल की है।

जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो नरेंद्र मोदी की नई सरकार के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किंगमेकर बनकर उभरे। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार मनोज पाठक बताते हैं कि बिहार भाजपा के स्थानीय नेता 2024 का लोकसभा चुनाव अकेला लड़ना चाहते थे। जब दिल्ली के आदेश पर नीतीश के साथ गठबंधन हुआ तो लोकल बीजेपी यूनिट की तरफ से खास रिएक्शन नहीं आया। यह बात तय है कि नीतीश कुमार के बिना भाजपा की स्थिति और भी बदतर रहती। यूपी, राजस्थान, बंगाल में भाजपा को काफी नुकसान हुआ है। मगर बिहार में एनडीए 30 तक पहुंच गया।

बिहार के रहने वाले केशव सिंह के इंस्टाग्राम चैनल "Sab lool hai" के दस लाख और अभिषेक सिंह के 2 लाख फॉलोअर्स है। अभिषेक और केशव के पास भी कई राजनीतिक दल प्रचार की मंशा से पहुंचे थे। केशव कहते हैं, "बहुत सारे राजनीतिक दलों ने अपना प्रचार करने के लिए मुझे अच्छी-खासी रकम का ऑफर दिया था। आपको काफी सारे ऐसे यूट्यूबर और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर मिल जाएंगे, जो राजनीतिक दलों के लिए इनडायरेक्टली काम करते हैं। लेकिन कोई भला, खुद से इसका खुलासा करने के लिए आगे क्यों आएगा?”

आखिर बिहार जैसे गरीब राज्य में, जहां 45 फीसदी लोगों के पास मोबाइल नहीं है, सोशल मीडिया पर इतना चुनाव प्रचार क्यों किया जा रहा है? इसका जवाब कुछ पुराने चुनाव नतीजों से मिल सकता है।

2020 की विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव के राजपूत के विरोध में दिए गए एक बयान को सोशल मीडिया पर खूब वायरल किया गया था। वहीं 2015 के विधानसभा चुनाव में मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान को सोशल मीडिया पर काफी उछाला गया। राजनीतिक टिप्पणीकार एवं ब्लॉगर रंजन ऋतुराज के मुताबिक दोनों वीडियो के वायरल होने का नुकसान भाजपा और राजद को हो चुका है।

राजेश ठाकुर बिहार के कई मुख्य समाचार पत्रों में काम कर चुके हैं। वह बताते हैं, “90 के दशक से ही राजपूत राजद को वोट देते आए हैं, क्योंकि राजद के कई बड़े नेता राजपूत है। 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी के राजपूतों के विरोध में दिए गए एक बयान को सोशल मीडिया पर खूब वायरल किया गया। जिसका असर कई विधानसभा सीटों पर देखने को मिला था।

इसी तरह मोहन भागवत के 2015 वाले आरक्षण पर दिए गए बयान को विपक्ष ने भुनाने का काम किया। इसे सोशल मीडिया के साथ मेनस्ट्रीम मीडिया में भी खूब उछाला गया था। इसका असर ये हुआ कि भाजपा को बहुत कम सीटों पर संतोष करना पड़ा था।”

9 साल और 4 साल पहले सोशल मीडिया पर हुए वायरल वीडियो के असर को देखते हुए ही इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी दलों ने सोशल मीडिया को प्रचार को एक बड़ा जरिया बना लिया। बिहार देश की सबसे युवा आबादी वाला राज्य है, जो सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है। शायद यही वजह रही कि 2024 के आम चुनाव के लिए प्रचार में नेता से ज्यादा यूट्यूब, वेब पोर्टल पत्रकार और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर प्रचार का बड़ा माध्यम बन गए।

'पॉलिटिकल मित्र' नाम की पॉलिटिकल कंसल्टेंसी बिहार के अलावा कई राज्यों का राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए काम कर चुकी है। उनके संस्थापक मुकुंद ठाकुर का कहना है, "2014 से पहले देश की ज्यादातर पार्टियां अपनी कार्यकर्ता के भरोसे चुनाव लड़ती थी। लेकिन अब पॉलीटिकल कंसल्टेंसी के जरिए सारे काम कराए जाते है, अब चाहे, इलाकों में सर्वे कराना हो, जनता से जुड़ने के लिए कार्यक्रम बनाना हो या नारे गढ़ना हो या फिर सोशल मीडिया से जुड़ना हो। कई बड़ी पार्टियों के पास खुद की प्राइवेट पॉलिटिकल कंसल्टेंसी फर्म हैं। बिहार में भाजपा और राजद इसमें सबसे ज्यादा एक्टिव है। ठीक वैसे ही जैसे भाजपा के साथ "नेशन विद नमो' और "वराह एनालिटिक्स" जैसी एजेंसी है। कई बड़े नेता क्षेत्रीय स्तर पर अपनी न्यूज वेबसाइट चलाते हैं, जो इनडायरेक्टली उनका प्रचार करती हैं। बिहार में यह सबसे ज्यादा होता है।"

द इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में छपे लेख 'द इमर्जेंस ऑफ पॉलिटिकल कंसल्टिंग' के अनुसार 2014 में पूरे देश में पॉलिटिकल कंसल्टिंग ने 350 करोड़ रुपये का बिजनेस किया था। एक अनुमान के मुताबिक, 2014 और 2018 के बीच पॉलिटिकल कंसल्टिंग फर्म की संख्या दोगुनी हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद पिछले एक साल में कई सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर से बातचीत और मुलाकात की है। 19 मई को पटना के चाणक्य होटल में उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की उपस्थिति में भाजपा ने इन्फ्लुएंसर्स मीट का आयोजन किया था। इन्फ्लुएंसर्स का फायदा उठाने की कोशिश सिर्फ भाजपा ही नहीं कर रही है। एक बड़ी राजनीतिक पार्टी के नैरेटिव टीम में काम करने वाले सक्षम मिश्रा कहते हैं, "सिर्फ बीजेपी नहीं बल्कि लगभग सभी पार्टियां इसका इस्तेमाल कर रही हैं। बिहार में बीजेपी और राजद पार्टी इसमें काफी आगे हैं।

बिहार भाजपा के प्रवक्ता सुमित बताते हैं, “मोदी सरकार देश में डिजिटल क्रांति लेकर आई है। इसका सकारात्मक असर "इन्फ्लुएंसर्स" के माध्यम से भी दिखता है। इसलिए भाजपा अपनी नीतियों और दस सालों में सरकार की उपलब्धियों के बारे में बताया।” वहीं कांग्रेस से जुड़े शशि वर्धन कहते हैं, “सोशल मीडिया पर वीडियो के जरिए हम विचारधारा से जुड़े लोगों तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश करते हैं।”

भाजपा कार्यालय में काम कर रहे एक शख्स ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा, “भाजपा के पास बिहार में कम से कम 500 से ज्यादा पत्रकार वेब पोर्टल और यूट्यूबर्स की लिस्ट है, जिसमें ज्यादातर को कुछ ना कुछ पैसे दिए जाते रहे हैं।” पटना यूनिवर्सिटी के सत्यम कुमार जदयू के साथ काम कर चुके हैं। उन्होंने कहा, “जदयू के मंत्री संजय झा सोशल मीडिया के काम पर सबसे ज्यादा पैनी नजर रखते हैं।”

सनसनी वीडियो और वायरल कंटेंट की वजह से एक नया चुनाव प्रचारक बना सोशल मीडिया

हाल ही में, बिहार के यूट्यूबर मनीष कश्यप भाजपा में शामिल हुए हैं। पश्चिम चंपारण के स्थानीय पत्रकार अमृत राज के मुताबिक, मनीष कश्यप अगर निर्दलीय चुनाव लड़ते तो पश्चिम चंपारण से भाजपा के उम्मीदवार नहीं जीत पाते, इसलिए भाजपा ने उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। मनीष कश्यप की आम पहचान एक यूट्यूबर की है। उनके जैसे कई यूट्यूबर और वेब पोर्टल पत्रकारों का खौफ स्थानीय नेताओं और अधिकारियों से कहीं ज्यादा है।

द इंटरव्यू इंडिया वेब पोर्टल चलाने वाले सन्नी बताते हैं, "दिन भर में न जाने कितने लोगों का फोन आता है, जो हमें अपनी समस्या बताते हैं। हम उनकी समस्याओं को यूट्यूब के जरिए सिर्फ उठाते नहीं है बल्कि संबंधित विभाग में जाकर सवाल भी पूछते है।" द इंटरव्यू इंडिया के फेसबुक पेज पर 1,44,000 फॉलोअर्स और यूट्यूब पर 1,14,000 सब्सक्राइबर्स हैं।

यही इन डिजिटल बाहुबलियों की ताकत है। तभी चुनाव के वक्त बड़े से बड़े नेता अपने क्षेत्र के युटयुबर्स और वेब पोर्टल पत्रकार को लुभाने की कोशिश करते हैं। बिहार के लगभग सभी जिले में मनीष कश्यप जैसे कुछ नाम है, जिनका ग्रामीण बिहार में दबदबा है। इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।

भाजपा समर्थकों का कहना है कि 'द इंटरव्यू इंडिया' वेब पोर्टल पर महागठबंधन के पक्ष में ज्यादा खबरें चलाई जाती हैं। इस सवाल पर सन्नी कहते हैं, "हमारा वेब पोर्टल सच दिखाता है। हमारा मकसद बहुजन और शोषितों की खबरें दिखाना है। ऐसे में लोगों की राय हमारे लिए मायने नहीं रखती है।"

एक लोकसभा क्षेत्र के लिए 10 लाख

लेमन डॉट मीडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बिहार में 15 उम्मीदवारों के लिए काम किया है। इसके संस्थापक मनीष कुमार बताते है, “एक लोकसभा क्षेत्र में एक उम्मीदवार अच्छा-खासा पैसा खर्च करता है, इसमें सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार के अलावा अपने लिए नेरेटिव बनवाना भी शामिल है। अभी कम से कम बिहार में दो हजार से ज्यादा ऐसे लोग हैं जो बतौर पॉलिटिकल कंस्लटेंसी, यूट्यूबर और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर उम्मीदवारों का प्रचार कर रहे हैं।”

मनीष आगे कहते हैं, "चुनाव आयोग के नियम के अनुसार पार्टी उम्मीदवार पर सिर्फ 5 लाख रुपए चुनाव में खर्च कर सकती है। इसलिए सोशल मीडिया पर खर्च किया गया पैसा पार्टी समर्थकों से दिलवाया जाता है, ताकि इसे चुनावी खर्चों से बाहर रखा जा सके। सो, इस तरह से भारत के चुनाव आयोग के नियमों का उल्लंघन भी नहीं होता है और ये अभियान प्रचार की समय सीमा खत्म होने के बाद भी चलता रहता है।"

इसी तरह की कंपनी में काम कर रहे एक शख्स ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “अचानक से किसी उम्मीदवार का पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है, अचानक से जाति का मुद्दा हावी हो जाता है। यह सब सोशल मीडिया टीम का ही तो कमाल है। सोशल मीडिया के जरिए दूसरे दलों के उम्मीदवारों की छवि भी खराब करने की कोशिश की जाती है। इसके लिए फेक आईडी का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है। एक उम्मीदवार 5 से 10 लाख रुपया चुनावी अभियान में खर्च करता है।”



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