पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 30% की गिरावट, लेकिन ये आंकड़े कितने विश्वसनीय?

नासा के आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2022 में पंजाब और हरियाणा में सितंबर के मध्य से नवंबर तक पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है। लेकिन विशेषज्ञ आंकड़े जुटाने की पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल उठा रहे हैं।

Update: 2022-12-13 01:30 GMT

मुंबई: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने 5 दिसंबर 2022 को बताया कि इस पिछले साल की तुलना में इस मौसम में (15 सितंबर से 30 नवंबर तक) पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 30% जबकि हरियाणा में 48% की गिरावट दर्ज की गई है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अकेले सैटेलाइट (उपग्रह) के आंकड़ों के आधार पर इस गिरावट को पूरी तरह से सही नहीं माना जा सकता। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन आंकड़ों की सटीकता मौसम संबंधी स्थितियों, तस्वीर गुणवत्ता और उस अवधि पर निर्भर करती है जब उपग्रह उस क्षेत्र की स्थिति को रिकॉर्ड कर रहा होता है।

सरकार ने कहा कि केंद्र, राज्य सरकारों और अन्य लोगों के प्रयासों से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के जिलों में पराली जलाने की घटनाएं 2021 में 78,550 से घटकर 2022 में 53,792 हो गईं। विशेषज्ञ कहते हैं कि 2022 में आसमान में बादल छाए रहे और कई जगह किसानों ने पराली का केवल कुछ हिस्सा ही जलाया। इसकी वजह से पराली जलाने की घटनाओं को कुछ ज्यादा ही कम आंका जा रहा।

पराली जलाना क्या है और इसकी निगरानी करना क्यों जरूरी है?

धान और गेहूं की कटाई के बाद खेतों में उनका कुछ हिस्सा बच जाता है। किसान अगली फसल लगाने के लिए मिट्टी में बचे इन अवशेषों को जला देते हैं। इसी प्रक्रिया को पराली जलाना कहते हैं।

पराली जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड और अधजले धुएं के कण हवा में निकलते हैं। जिससे इंसानी बालों से भी पतले (पीएम 2.5 और पीएम 10) प्रदूषक कण हवा में जुड़ जाते हैं। राष्ट्रीय राजधानी के वायु प्रदूषण में खेत की आग का योगदान कितना है, यह हवा की गति और दिशा के अलावा स्थानीय मौसम की स्थिति पर भी निर्भर करता है, जैसा कि हमने दिसंबर 2021 की में रिपोर्ट में देखा था। अक्टूबर और नवंबर 2022 के दौरान एक विश्लेषण के आधार पर 3 नवंबर को दिल्ली के दैनिक पीएम 2.5 के स्तर में खेतों की आग का योगदान 34% ही था। खराब हवा की गुणवत्ता के अलावा खेत की आग मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता को भी प्रभावित करती है, मिट्टी में माइक्रोफ्लोरा और अन्य जीवों को मारती है।

पराली जलाने की घटनाओं को कम करने के लिए सरकार ने बुवाई प्रक्रिया (इन-सीटू विधियों) के दौरान नई विधियों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे कि सुपर सीडर का उपयोग करना जो धान के पुआल को मिट्टी में मिलाकर गेहूं की फसल बोने में मदद करता है। सरकार दूसरे प्रयासों के तहत उद्योगों और बायोमास आधारित बिजली संयंत्रों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही जिससे पराली की मांग बढ़ सकती है। किसान इसकी आपूर्ति करेंगे। इसके बावजूद कुछ किसान ठूंठ को जलाने के लिए तेजी दिखा रहे हैं और अधिक किफायती तरीके का चयन कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अगली फसल की बुवाई की तैयारी के लिए बहुत कम समय मिल पाता है।

पराली जलाने को कैसे मापा जाता है?

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के प्रोटोकॉल के आधार पर MoEFCC ने 2021 से 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच धान की पराली जलाने के मौसम के दौरान खुली आग पर नजर रखने के लिए NASA के संसाधन प्रबंधन प्रणाली फायर इंफॉर्मेशन (FIRMS) का उपयोग किया।

2022 अक्टूबर-नवंबर: पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटना

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आग का पता लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले डेटा नासा के विजिबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट (VIIRS) और मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर (MODIS) से मिलते हैं। सुओमी नेशनल पोलर-ऑर्बिटिंग पार्टनरशिप (SNPP) उपग्रह पर स्थित VIIRS सेंसर का रिज़ॉल्यूशन 375 मीटर वर्ग है जिसका अर्थ है कि यह 375x375 वर्ग मीटर के क्षेत्र में आग का सटीक पता लग सकता है। यह एरिया लगभग 17 क्रिकेट मैदानों का आकार का है। इस क्षेत्र के भीतर आग की एक घटना को पूरे क्षेत्र के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा और इसी तरह इस क्षेत्र में एक से अधिक आग की घटना को एक घटना के रूप में ही गिना जाएगा। इसकी तुलना में पंजाब में एक खेत का औसत आकार 3.6 हेक्टेयर (36,000 वर्ग मीटर) है जिसका अर्थ है कि VIIRS SNPP उपग्रह का रिज़ॉल्यूशन पंजाब में एक औसत खेत के आकार का लगभग चार गुना है।

मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर (MODIS) एक्वा (Aqua) और टेरा (Terra) में तो ये रिजॉल्यूशन और ज्यादा लगभग 1 किलोमीटर का है। इससे यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि जली हुई कृषि भूमि का क्षेत्र कौन सा है। साथ ही इन खेतों में आग लगने की संख्या की सटीकता का अनुमान लगाना भी मुश्किल हो जाता है।

2022 में आग लगने की संख्या बादलों से प्रभावित

ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के एक शोधकर्ता एलएस कुरिंजी ने इंडियास्पेंड को बताया कि अकेले सैटेलाइट डेटा पिछले साल की तुलना में जमीनी बदलाव की स्पष्ट तस्वीर देने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। "हालांकि इस वर्ष खेतों में लगने वाली आग में कमी आई थी, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि जब आग लगने की घटनाएं बहुत ज्यादा हो रही थीं तब तीन दिन बादल छाए रहे। ऐसे में संभव है कि बादलों ने उपग्रहों को आग की घटनाओं का सही संख्या पता लगाने से रोका हो। इसलिए गिरावट उतनी नहीं हो सकती है जितनी रिपोर्ट की गई है।"

सके अलावा उन्होंने कहा इस साल एक हिस्से को जलने का प्रचलन अधिक था जहां किसान ठूंठ के ऊपरी हिस्से को जलाते हैं और फिर अगली फसल की बुवाई के लिए सुपर सीडर्स का उपयोग करते हैं। "यह मुख्य रूप से लागत को कम करने और इन-सीटू मशीनों का ठीक से प्रयोग करने के लिए किया गया था। हम वास्तव में उस क्षेत्र की सीमा को नहीं समझते हैं जहां ठूंठ के एक हिस्से को ज्यादा जलाया जा रहा। इसलिए क्षेत्र का अनुमान लगाना और तुलना करना मुश्किल है कि खेतों में आग की संख्या पिछले साल की अपेक्षा कितनी रही। ऐसे में एक हिस्से को जलाने की घटनाओं को जीत के रूप में नहीं माना जाना चाहिए और जोर शून्य-बर्न विकल्पों को अपनाने की ओर होना चाहिए।"

चूंकि एसएनपीपी उपग्रह हर 12 घंटे में वैश्विक कवरेज देता है। एक समय ऐसा भी होता है कि जब किसी क्षेत्र की निगरानी नहीं की जा रही होती है। "जैसे जंगल की आग जो एक बड़े क्षेत्र में लंबे समय तक जारी रहती है जबकि खेतों में आग की घटनाएं छोटी होती हैं। कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोइकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (CREAMS) के विनय के सहगल कहते हैं। "यह एक के बाद एक खेत में होता है और मुश्किल से 15-20 मिनट से लेकर आधे घंटे तक बना रहता है। इसलिए अगर इस समय उपग्रह नहीं है तो उन आग को नहीं पकड़ा जा सकता है।" वे आगे कहते हैं "कुछ किसानों ने समय के साथ सीखा है कि उपग्रह उनके क्षेत्र में कब काम पर होते हैं। वे ठूंठ जलाने का समय तब तय करते हैं जब उपग्रह उनके खेतों के ऊपर नहीं होता। "जमीनी रिपोर्ट के अनुसार यह इस एक मुद्दा बन गया है।" सहगल बताते हैं।

इन सीमाओं के अंदर CREAMS टीम आग की घटनाओं का पता लगाने के लिए सैटेलाइट फीड के थर्मल डेटा सेट के साथ एक अलग ऑप्टिकल डेटा सेट का उपयोग करती है। सहगल ने कहा, "हम जले हुए क्षेत्र का अनुमान लगाने के लिए 10 मीटर के ऑप्टिकल डेटा सेट रिजॉल्यूशन का उपयोग करते हैं जिसमें कई तारीखों पर काटे गए और नहीं काटे गए दोनों तरह के जले हुए खेतों का नक्शा तैयार किया जाता है।" इस बड़े डेटा सेट का विश्लेषण समय लेने वाला है और इस धान के मौसम के लिए जल्द ही उपलब्ध होगा।

गर्मियों के दौरान खेतों में आग

जहां धान की पराली जलाने का मौसम मध्य सितंबर से नवंबर के बीच होता है, वहीं किसान गेहूं की पराली को मार्च और अप्रैल में जलाते हैं। NASA FIRMS ओपन फायर डेटा से पता चलता है कि वर्ष के गर्मियों के महीनों के दौरान खेतों की आग के साथ-साथ जंगल की आग के अलावा ऐसी दूसरी घटनाओं की संख्या सबसे अधिक होती है। आंकड़े बताते हैं कि गेहूं के अवशेषों को जलाने की घटनाएं धान के अवशेषों को जलाने के बराबर ही हैं।

2022 में फसल अवशेष जलाने वाले शीर्ष 5 राज्य

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सामान्य परिस्थितियों में प्रदूषकों के साथ गर्म हवा अधिक ऊंचाई तक उठती है और बिखर जाती है, लेकिन सर्दियों के दौरान थर्मल उलटा प्रदूषकों को पृथ्वी की सतह के करीब फंसने का कारण बनता है। "लेकिन इस अवधि (गर्मियों) के दौरान आग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि इन आग से निपटना आसान होता है।"

वह बताते हैं कि किसानों धान की कटाई के बाद पराली इसलिए भी जलाने हैं क्योंकि उन्हें अगली फसल बोने के लिए कम समय मिलता है। लेकिन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गेहूं उगाने वाले अन्य राज्यों में किसानों के पास अगली फसल बोने के लिए दो महीने से अधिक का समय होता है। "इसके अलावा धान के अवशेषों के विपरीत गेहूं के अवशेषों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जा सकता है विशेष रूप से मई और जून के महीनों के दौरान।"


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