भदोही का कालीन कारोबार ट्रंप के टैरिफ में उलझा, नये ऑर्डर रुके, करोड़ों का माल फंसा, लाखों रोजगार पर संकट
कालीन नगरी भदोही के कालीन कारोबरी परेशान हैं। करोड़ों का ऑर्डर होल्ड पर जा चुका है। नये ऑर्डर मिल नहीं रहे। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित टैरिफ के बाद से कारोबारियों को डर है कि कहीं भदोही की पहचान, यहां की कारीगरी खत्म ना हो जाये। देखिए ये रिपोर्ट।;
भदोही। उत्तर प्रदेश का छोटा सा जिला भदोही जिसे पूरी दुनिया में कालीन नगरी के नाम से जाना जाता है। लेकिन कालीन से जुड़े कारोबारी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित टैरिफ के बाद से परेशान हैं। उन्हें डर है कि अगर इस व्यवसाय पर 50 फीसदी टैक्स लगा तो उन्हें बहुत नुकसान होगा और इससे जुड़े रोजगार पर नकारात्मक असर देखने को मिलेगा।
“टैरिफ के ऐलान ने इस पारंपरिक व्यवसाय की रीढ़ तोड़ दी है। नतीजा यह है कि कभी समृद्धि से चमकने वाला यह कारोबार अब बदहाली की ओर बढ़ रहा है। जहां पहले गोदाम खाली दिखाई देते थे, वहां आज माल अटका पड़ा है। ऑर्डर रुके हुए हैं और कारोबार से जुड़े लोगों की आंखों में चिंता साफ झलक रही है। मजबूर होकर व्यापारी अब सरकार से मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं।” कालीन कारोबारी असलम महबूब बताते हैं।
अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ (एकमा) के अनुसार लगभग 17 हजार करोड़ वाले इस व्यवसाय से जुड़े 20 लाख श्रमिकों के भविष्य पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भदोही-मिर्जापुर परिक्षेत्र से जुड़े कालीन निर्यातकों और मजदूरों पर पड़ेगा क्योंकि देश से निर्यात होने वाले कुल कालीन में भदोही की हिस्सेदारी 60 फीसदी से ज्यादा है। अमेरिकी टैरिफ से कालीन उद्योग में मंदी के आसार बन रहे हैं।
अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ के मानद सचिव और भारत सरकार द्वारा स्थापित एक गैर-लाभकारी संस्था कालीन निर्यात संवर्धन (CEPC) के सदस्य परिषद पीयूष बरनवाल ने बताया बताते हैं कि वर्तमान में देशभर में 1,500 करोड़ का माल रुका हुआ है। इसमें से 500 करोड़ का माल अकेले भदोही-मिर्जापुर क्षेत्र का है। कालीन उद्योग 95% निर्यात पर निर्भर है। नए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। इस कारण टैरिफ का असर तुरंत दिखने लगा है।
"कालीन उद्योग देश भर में करीब 30 लाख लोगों को रोजगार देता है। भदोही के तो लगभग हर घर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लोग इसमें जुड़े हैं। कालीन तैयार करने के लिए 20 चरणों से होकर गुजरना पड़ता है। इसमें कच्चे माल की खरीदारी से लेकर कालीन की फिनिशिंग तक के कार्य शामिल हैं।"
कालीन उद्योग पर उपजे संकट को लेकर 15 अगस्त को ऑल इंडिया कार्पेट मैन्युफैक्चरर्स एसोशिएशन और कार्पेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के प्रतिनिधियों ने वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह से मुलाकात की।
इस बारे में पीयूष बरनवाल बताते हैं कि बैठक में टैरिफ से होने वाले संभावित नुकसान और उसकी भरपाई के उपायों पर चर्चा की गई। हमने सरकार से मांग की है कि अगर हमें राहत पैकेज दिया जाये। अब आगे फैसला सरकार को ही करना है।
वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह से मुलाकात के बाद मांगों का ज्ञापन सौंपते भदोही कालीन कारोबारी।
"विदेश से कच्चा माल मंगाने के बाद छंटाई, लेफा, एक्सप्लोर से खरीदारी, मजदूरों से कताई, रंगाई, डिजाइनिंग, बुनकरी, आवश्यकता पड़ने पर मरम्मत, क्लिपिंग, धुलाई, फिर से क्लिपिंग, पेंचाई, सफाई, रंगकटा कार्य होते हैं। इसमें भी खुलाई, पेंचाई, लेफा और काती बुनाई का काम अधिकतर महिलाएं ही करती हैं। इससे उन्हें घर बैठे ही रोजगार मिल जाता है।" वे आगे बताते हैं।
एकमा अध्यक्ष रजा खां के मुताबिक प्रोडक्शन रोकना निर्यातकों की विवशता है। भदोही में तो शत प्रतिशत लोग अमेरिका से व्यवसाय कर रहे हैं। जबकि पूरे देश से निर्यात होने वाला कालीन लगभग 60% अमेरिका ही जाता है। अप्रैल में टैरिफ की घोषणा के बाद से ही नया ऑर्डर मिलना बंद हो गया है। पुराने ऑर्डर का माल घाटा सहकर भेजा जा रहा है। इसका भुगतान कब होगा और कैसे होगा यह स्पष्ट नहीं है। जब काम काज बंद है तो कर्मचारियों को बैठाकर कब तक वेतन दिया जाएगा। क्योंकि वर्तमान के साथ भविष्य भी खतरे में है।
“भदोही के कालीन उद्योग का 99% व्यापार विदेशी बाजारों पर निर्भर है, जिसमें से 60% अकेले अमेरिका को निर्यात होता है। पहले से ही चुनौतियों का सामना कर रहा यह उद्योग तब और मुश्किल में आ गया, जब अमेरिका ने अलग-अलग चरणों में टैरिफ बढ़ाना शुरू कर दिया। 2 अप्रैल को 10% शुल्क लगाया गया। इसके बाद 30 जुलाई को अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाया गया और इसके बाद 27 अगस्त से 50% तक टैरिफ लगाने की घोषणा की गई।” रजा खां आगे बताते हैं।
कारपेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (सीईपीसी) के प्रशासनिक सदस्य और कालीन कारोबारी असलम महबूब बताते हैं कि कालीन व्यवसाय से जनपद के पांच से छह लाख लोग जुड़े हैं। कालीन बुनाई के साथ काती रंगाई, कालीन धुलाई और फिनिशिंग, लेटेक्सिंग, टेढ़ा, पैकिंग आदि का कार्य करते हैं। गांव से लेकर शहर तक अधिकतर लोगों की रोजी रोटी कालीन व्यवसाय के माध्यम से चल रही है। देखा जाए तो कालीन इकाइयों में दो सौ से दो हजार तक आदमी काम करते हैं। कुछ बड़े कालीन निर्यातक एक से अधिक इकाइयों का संचालन कर रहे हैं। ऐसी फर्मों तीन से पांच हजार तक लोग काम करते है।
"ऐसे में अगर सरकार ने हमारी मदद नहीं की तो ये सभी लोग बेरोजगार हो जाएंगे। हम सरकार से बेलबाउट पैकेज की मांग की कर रहे हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हाथों की ये कारीगरी खत्म हो जायेगी।" वे आगे कहते हैं।
इस पूरे मामले पर उत्तर प्रदेश सरकार क्या कर रही है? सरकार का पक्ष जानने के लिए हमने विशेष सचिव सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME), उत्तर प्रदेश, शिशिर सिंहसे बात की। उन्होंने बताया, “पूरे मामले पर हमारी नजर है। लेकिन अभी हम कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। प्रदेश सरकार इस पर चर्चा कर रही है।”
देखिये ये वीडियो स्टोरी-