हिमाचल प्रदेश खनिज नीति 2024 - अवैध खनन और पर्यावरणीय क्षरण पर कितनी प्रभावी?

हिमाचल प्रदेश खनिज नीति-2024 के लागू होने के बाद राज्य की नदियां और पहाड़ मशीनों की और जद में आ चुके हैं। जहां सरकार इसे राजस्व सृजन और अवैध खनन पर नियंत्रण का उपाय बता रही है वहीं जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।;

Update: 2025-05-31 20:00 GMT

चक्की खड्ड के आसपास के क्षेत्रों में अवैध खनन।

कांगड़ा: कांगड़ा जिले की इंदौरा विधानसभा की गगवाल ग्राम पंचायत के 32 वर्षीय उप-प्रधान अशोक कपूर की आँखों में चिंता नहीं, अब पीड़ा दिखती है। वे कहते हैं, ‘हमारी जमीन जो कभी उपजाऊ थी, अब बंजर हो रही है। जहाँ पहले पच्चीस फीट पर पानी मिल जाता था, अब तो जो बोर निकल रहे हैं उनमें 300 फीट नीचे भी उम्मीद की एक बूंद नहीं मिलती। यह सब उस अंधाधुंध और बेकाबू खनन का नतीजा है, जिसने हमारी जमीन की साँसें छीन ली हैं।

हिमाचल प्रदेश सरकार ने 29 फरवरी 2024 को हिमाचल प्रदेश खनिज नीति 2024 को लागू किया। जिसका मूल उद्देश्य राज्य की खनिज संपदा का अन्वेषण कर उसका वैज्ञानिक दोहन इस से प्रकार करना है कि पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की समुचित सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा अवैध खनन पर लगाम लगाना, रोजगार के अवसर को बढ़ाने के लिए खनिज रियायतों और खनिज संसाधनों के बेहतर दोहन के जरिए राज्य को आर्थिक लाभ पहुंचाना इसके उद्देश्यों में शामिल है।

नियमों के वर्तमान प्रावधानों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश राज्य में खनिज पट्टे पर प्रदान की गई नदी/नालों की तलहटी से अधिकतम एक (01) मीटर गहराई तक ही लघु खनिजों के उत्खनन की अनुमति थी। जबकि हिमाचल प्रदेश से सटे सीमावर्ती राज्यों में यह गहराई तीन (03) मीटर तक वैध स्वीकृति है। इसलिए सरकार ने राज्यहित में, संबंधित नियमों में संशोधन कर खनिज पट्टे पर दी जाने वाली प्रदत्त नदी/नालों की तलहटी में उत्खनन की वैध गहराई को दो (02) मीटर तक बढ़ाया गया है।

इंड‍ियास्‍पेंड हिन्दी से बात करते हुए अशोक ने चक्की खड्ड के आसपास के इलाकों का हवाला देते हुए कहा कि मिनरल्स पॉलिसी में 2 मीटर की सीमा हाल-फिलहाल में तय हुई है, जबकि चक्की खड्ड इलाके में कहीं तो 2-5 मीटर से भी ज्यादा खनन हो चुका है। उनके द्वारा साल 2021 से लगातार शिकायतें करने के बावजूद खनन लगभग 90% तक बढ़ चुका है। जीटी रोड पर मिनरल्स ढोते वाहनों से दुर्घटनाएँ आम हो गई हैं, कई बार जानें तक जा चुकी हैं।

उन्होंने आगे बताया कि वे कई बार प्रशासन, माइनिंग विभाग और संबंधित जिम्मेदार अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं, कभी लिखित में, कभी व्यक्तिगत निवेदन के ज़रिए। लेकिन आज तक न किसी ने सुनी और न कोई हल निकला। ऐसा लगता है जैसे हमारी पुकारें बेजान दीवारों से टकराकर वापस लौट आती हैं। अब तो डर लगने लगा है कि अगर यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, तो अगली पीढ़ी को हम सिर्फ सूखी जमीन और सूने रास्ते ही सौंप पाएंगे।

राज्य सरकार की खनिज नीति के अनुसार हिमाचल प्रदेश की नदियाँ व खड्डें सीमावर्ती राज्यों - पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड में प्रवेश करती हैं, अतः प्रदेश की नदियां तलहटी से अधिक मात्रा में खनिज इन राज्यों की ओर परिवाहित हो रहा है, जिससे राज्य के राजस्व को भारी क्षति हो रही है।

इसके अलावा, पॉलिसी में मैन्यूफैक्चर्ड सैंड (M- Sand), जिसे कठोर पत्थरों को मशीनों से क्रश कर तैयार किया जाता है, के निर्माण को भी स्वीकृति दी गई है, जिसे पारंपरिक बालू के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। साथ ही, हाइड्रो प्रोजेक्ट्स या सड़क निर्माण परियोजनाओं के निकट स्टोन क्रशर स्थापित करने और उनके पंजीकरण की भी अब अनुमति दे दी गई है। जिसके साथ ही अब जेसीबी और पोकलेन जैसी भारी मशीनों को भी खनन कार्यों में इस्तेमाल करने की आधिकारिक अनुमति दे दी गई है। नई पॉलिसी में यह भी दावा किया गया है कि हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर खनन गतिविधियां फिलहाल प्रचलन में नहीं है।

हिमाचल प्रदेश सरकार ने खनन की परंपरा को प्राचीन काल से चली आ रही गतिविधि बताकर इसे सामान्य ठहराया है – नई खनिज नीति-2024 में उल्लेख है कि ‘खनन व उत्खनन हिमाचल में पाषाण युग से होते आए हैं, जिसके प्रमाण चंबा, कुल्लू और शिमला में मिले प्राचीन मंदिरों और धात्विक खनिज कार्यों में मिलते हैं।’ लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या आज का अव्यवस्थित, मशीनी और व्यावसायिक खनन भी उसी परंपरा का हिस्सा है?

अशोक कपूर बताते हैं कि अगर इसे अब नहीं रोका गया, तो क्षेत्र पूरी तरह बंजर हो जाएगा, पानी के लाले पड़ जाएंगे और लोग अपने ही घरों तक नहीं पहुँच पाएँगे। दुर्भाग्य से, इस सबके पीछे विभागीय मिलीभगत की आशंका भी गहराती जा रही है। यह मुनाफे की अंधी दौड़ अब जल, जिंदगी और जमीन को निगल रही है।

नई नीति, उलटा असर - एनजीटी की रिपोर्ट में खुलासा

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा संयुक्त समिति की दिसंबर 2024 में जारी रिपोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नूरपुर उपमंडल में अवैध और अनियमित खनन की गंभीर स्थिति को उजागर किया है। रिपोर्ट में विशेष रूप से कंडवाल-लोढ़वा-टिपरी क्षेत्र में चक्की नदी के किनारे हो रही अवैध खनन गतिविधियों की पुष्टि की गई है।

समिति के अनुसार, पिछले पांच वर्षों (2020–2024) के दौरान खनन विभाग ने कुल 292 अवैध खनन मामलों को दर्ज किया, जो मुख्यतः खनिजों के अवैध परिवहन और भंडारण से संबंधित थे। पुलिस विभाग ने इसी अवधि में 1,223 चालान जारी किए और 57.6 लाख रुपये से अधिक का जुर्माना वसूला जा चुका है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि निरीक्षण के दौरान कई स्थलों पर 2 मीटर से अधिक गहराई तक खनन पाया गया, जो नीति के खिलाफ है। स्टोन क्रशर इकाइयों द्वारा नदी में सिल्ट छोड़ा गया, जिससे नदी के प्रवाह और तटों पर कटाव हो होता है। चक्की नदी का प्रवाह मौसमी रूप से बदलता रहता है, और अधिक खुदाई के कारण यह प्रवृत्ति और अस्थिर हो गई है। कुछ स्थानों पर नदी की गहराई 5–6 मीटर तक हो चुकी है, जो अवैज्ञानिक खुदाई और बाढ़जनित कटाव का परिणाम है।

खनन कार्यालय नूरपुर द्वारा जिला कांगड़ा, हि.प्र. के कंडवाल-लोधवां-टिपरी क्षेत्र में पकड़े गए अवैध खनन मामलों का विवरण।

रिपोर्ट के ब्यौरे के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा स्थित नूरपुर खनन कार्यालय ने कंडवाल-लोधवां-टिपरी बेल्ट में वर्ष 2020-21 से लेकर 2024-25 तक अवैध खनन के कुल 305 मामले दर्ज किए गए। अवैध खनन को दो प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है—अवैध परिवहन (Under Rule 79) और अवैध खनन/भंडारण (Under Rule 72), अवैध परिवहन के अंतर्गत कुल 292 मामले सामने आए, जिनमें से 274 मामलों में नियमानुसार कंपाउंडिंग की गई और ₹17,20,600/- की जुर्माना राशि वसूली गई। वहीं, अवैध खनन/भंडारण के 13 मामलों में ₹5,70,000/- वसूला गया। इस प्रकार, दोनों श्रेणियों से कुल ₹22,90,600/- की कंपाउंडिंग फीस वसूल की गई है।

वर्ष 2020-21 में कुल 43 मामले दर्ज किए गए जो सभी अवैध परिवहन से संबंधित थे, और ₹3,13,300/- की कंपाउंडिंग की गई। उस वर्ष कोई भी अवैध भंडारण/खनन मामला दर्ज नहीं किया गया। वर्ष 2021-22 में 37 परिवहन व 5 भंडारण/खनन के मामले सामने आए, जिनमें ₹4,14,700/- की कुल फीस वसूली गई। 2022-23 में 53 परिवहन और 1 खनन मामला सामने आया, जिनसे ₹3,94,900/- की कंपाउंडिंग हुई है।

इसके अलावा, 2023-24 वह वर्ष रहा जब सबसे अधिक-73 परिवहन और 4 खनन मामलों - की रिपोर्टिंग हुई, जिससे ₹6,27,600/- की जुर्माना राशि प्राप्त हुई। वहीं 2024-25 में अब तक 86 अवैध परिवहन और 3 अवैध भंडारण/खनन के मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें ₹5,40,100/- की राशि जुर्माने के रूप में वसूली गई है। इसी साल अवैध परिवहन के सबसे अधिक मामले दर्ज हुए।

वित्त वर्ष 2020-21 से 2024-25 के बीच परिवहन शुल्क, संग्रहण शुल्क तथा कुल शुल्क का वार्षिक प्रस्तुतीकरण।

खनन रिकॉर्ड स्तर पर, चालान और जुर्माने में भी भारी बढ़ोतरी बढ़ोतरी

भारतीय खान ब्यूरो के नवीनतम आंकड़ों (31 मार्च 2023) के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में इस समय कुल 40 वैध खनन पट्टे सक्रिय हैं, जो 2,448.94 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं। पिछले तीन वर्षों के आंकड़े देखने पर यह स्पष्ट होता है कि प्रदेश में वैध खनन का दायरा लगभग स्थिर बना हुआ है। वर्ष 2021 में जहां 42 पट्टों के माध्यम से 2,459.78 हेक्टेयर क्षेत्र में खनन गतिविधियाँ संचालित हो रही थीं, वहीं 2022 और 2023 में पट्टों की संख्या घटकर 40 पर स्थिर रही, हालांकि क्षेत्रफल में मामूली उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया। इन आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि भले ही राज्य में वैध खनन का आंकड़ा स्थिर हो, लेकिन ज़मीनी स्तर पर अवैध खनन और पर्यावरणीय क्षरण को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं, वे कहीं अधिक गंभीर और व्यापक हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में अवैध खनन पर 1 जनवरी 2024 से 21 अप्रैल 2024 के बीच राज्यभर में 1.73 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला गया और 3,028 चालान जारी किए गए। यह पिछले साल की तुलना में एक उल्लेखनीय वृद्धि है, जब इसी अवधि में 1.23 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था और 2,099 चालान काटे गए थे। यह आंकड़े बताते हैं कि जुर्माने में 38.9 प्रतिशत और चालानों में 44 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

हिमाचल प्रदेश के जिन जिलों में अवैध खनन पर सबसे ज़्यादा जुर्माना और चालान हुए।

इसी रिपोर्ट के जिलावार आंकड़ों के अनुसार, चंबा अव्वल रहा जहां 42.39 लाख रुपये का जुर्माना वसूला गया और 995 चालान जारी हुए। इसके बाद बद्दी 31.36 लाख रुपये, 222 चालान, नूरपुर 24.11 लाख रुपये, 257 चालान और सिरमौर 17.49 लाख रुपये, 316 चालान जैसे खनन प्रभावित जिलों से वसूले गए।

राजस्व लाभ बनाम पर्यावरणीय कीमत

वर्ष 2013-14 से 2022-23 के बीच हिमाचल प्रदेश सरकार को खनिजों से प्राप्त रॉयल्टी में उल्लेखनीय उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। इस अवधि में प्रमुख खनिजों (जैसे चूना पत्थर, बैराइट्स, शेल, सिलिका सैंड) से सबसे अधिक रॉयल्टी वर्ष 2017-18 में 352.67 करोड़ रुपये प्राप्त हुई, जबकि अन्य वर्षों में यह आंकड़ा 66 करोड़ से 116 करोड़ रुपये के बीच रहा। लघु खनिजों (जैसे बिल्डिंग स्टोन, रेत, बजरी, शेल, स्लेट) से होने वाली आय धीरे-धीरे बढ़ती रही और 2022-23 में यह 101 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है।

वहीं, शुल्क, किराया, दंड और अन्य वसूली जैसे 'अन्य शुल्क' के अंतर्गत प्राप्त राशि भी समय-समय पर बढ़ती-घटती रही। कुल मिलाकर, राज्य को इस दस साल की अवधि में खनिजों से रॉयल्टी के रूप में हर साल औसतन 200 करोड़ रुपये के आसपास की आय हुई, जिसमें 2022-23 में सबसे अधिक 241.25 करोड़ रुपये की रॉयल्टी दर्ज की गई। लेकिन इसी दौरान नदियों के बहाव में परिवर्तन, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन और इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान में भी भारी वृद्धि देखी गई है।

वर्ष 2013-14 से 2022-23 तक प्रमुख खनिज, लघु खनिज और अन्य शुल्कों से राज्य सरकार को कितनी रॉयल्टी प्राप्त हुई।

खनन माफियाओं के खिलाफ बोलने वालों पर हमले

चक्की खड्ड के आसपास इलाके में अवैध खनन हाल।

अशोक कपूर ने बताया कि खनन माफिया भूमि समतल करने की अनुमति लेकर मिट्टी और रेत-बजरी को अवैध रूप से निकालते हैं और पठानकोट, डमटाल जैसे क्षेत्रों में बेचकर भारी मुनाफा कमाते हैं। कई जगहों पर बरसाती रास्ते तक उखाड़ दिए गए हैं, जो अब भूस्खलन की जद में हैं। रात के अंधेरे में ट्रैक्टरों और मशीनों से चक्की खड्ड का दोहन जारी है। उन्होंने इस संबंध में कई बार आपत्ति और शिकायतें भी करवाई है। इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप उन्हें खनन माफिया की ओर से जान से मारने की धमकियाँ मिलीं, जिसकी शिकायत उन्होंने डमटाल थाना में दर्ज करवाई थी।

खनन माफिया ने पूरे पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ कर रख दिया है। नदियां सूख गई हैं, वनस्पति खत्म हो गई है, और जीवन के प्राकृतिक आवास नष्ट हो चुके हैं। पूरा का पूरा क्षेत्र तबाही की चपेट में है और जल स्रोतों का अस्तित्व मिटता जा रहा है। यह कहना है, जिला कांगड़ा के देहरा गोपीपुर के रक्कड़ गांव के खनन माफिया के खिलाफ लंबे समय से संघर्षरत हिमाचल के पर्यावरण कार्यकर्ता 54 वर्षीय सूर्यवंशी ठाकुर का जो इंड‍ियास्‍पेंड हिंदी से बातचीत में बेहद भावुक हो उठे।

सूर्यावंशी जगबीर सिंह जग्गी, फोटो - फेसबुक। 

खनन न केवल नदी और आसपास के खेतों को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि वन्यजीव अभयारण्यों और वनभूमि को भी निगल रहा है, उन्होंने पोंग डैम झील (एक प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य है और भारत में रामसर सम्मेलन द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय आर्द्रभूमि स्थलों में से एक है) वाले क्षेत्रों में हो रही गतिविधियों के संदर्भ में कहा। अपने 14 वर्षों के अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा, अगर मेरा पूरा जीवन खनन माफिया से लड़ते-लड़ते गुजर जाए तो भी मुझे कोई अफसोस नहीं होगा, लेकिन यह विनाश अब किसी न किसी स्तर पर रुकना चाहिए। ठाकुर का दावा है कि 30-30 फीट गहराई तक अवैध खनन हो चुका है और सरकार इस सब से वाकिफ होने के बावजूद मौन है।

उन्होंने आगे बताया कि माफिया के खिलाफ काम करने के कारण उन्हें कई बार जान से मारने की धमकियाँ मिलीं, जानलेवा हमले हुए, लेकिन वे किसी भी कीमत पर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

जब उनसे राज्य सरकार की नई खनिज नीति में "मंदिर निर्माण के ऐतिहासिक खनन" के हवाले से दी गई सफाई पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्होंने तीखा तंज कसते हुए कहा, उस दौर में खनन मैन्युअल होता था, जो प्रकृति खुद रिकवर कर लेती थी। आज तो मशीनों से गहरे स्तर पर खनन हो रहा है, जिससे मिट्टी, जल और जैव विविधता सब कुछ नष्ट हो रहा है।

सरकार की यह दलील कि बारिश के दौरान खनिज बहकर दूसरे राज्यों में चले जाते हैं, को सूर्यवंशी ठाकुर ने पूरी तरह खारिज करते हुए कहा, यह बयान सरासर गुमराह करने वाला है। बारिश में अब पानी नहीं गिरता, बादल फटते हैं। तबाही होती है, घर उजड़ते हैं। लेकिन सरकार का ध्यान आम लोगों पर नहीं, अपने खजाने की भरपाई पर केंद्रित है।

पर्यावरण कार्यकर्ता सूर्यवंशी ठाकुर हाल ही में अस्वस्थता के चलते बालाजी अस्पताल में भर्ती थे और कुछ दिन पहले ही वहां से डिस्चार्ज हुए हैं, लेकिन उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं आई है। वे ब्यास नदी के तट पर स्थित एक मंदिर में रहते थे और वहीं से अवैध खनन के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ते थे।

जालंधर-हमीरपुर नेशनल हाईवे पर ब्यास नदी के ऊपर और नीचे सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर खनन की गतिविधियाँ चल रही हैं। पंजाब में रियल एस्टेट बूम आने के बाद इसने रफ्तार पकड़ ली। उनका कहना है कि स्थानीय ग्रामीणों ने अवैध खनन से अपनी फसलें खराब होने की कई शिकायतें कीं, लेकिन राजनीतिक संरक्षण प्राप्त खनन माफिया हर बार बच निकलता रहा, उन्होंने आगे बताया।

ऐसे ही दुस्साहस का एक और उदाहरण फरवरी 2025 में देखने को मिला, जब मंडी जिले के बिंद्रावणी क्षेत्र में ब्यास नदी किनारे अवैध खनन की जांच करने पहुँचे एसडीएम सदर एवं आईएएस अधिकारी ओमकांत ठाकुर पर खनन माफिया ने हमला कर दिया। हमले में अधिकारी के मुंह पर गंभीर चोटें आईं और उनका एक दांत टूट गया था।

आर्थिक योगदान के नाम पर भ्रम

हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र — जिसमें फसल उत्पादन, पशुपालन, वानिकी और लकड़ी काटना, मत्स्य पालन और खनन व उत्खनन जैसे उप-क्षेत्र शामिल हैं - की महत्वपूर्ण भूमिका है। वर्ष 2024–25 की स्थिर कीमतों के अग्रिम अनुमान के अनुसार, इस क्षेत्र से सकल मूल्य वर्धन (GVA) 3.2 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है।

लिहाजा, खनन और उत्खनन उप-क्षेत्र की बात करें तो वर्ष 2023–24 (AE) में इस क्षेत्र में 5.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि 2024–25 के अग्रिम अनुमान के आधार पर इसके 6.1 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है।

हालांकि राज्य की कुल कार्यशील जनसंख्या में 53.95 प्रतिशत लोग कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों में कार्यरत हैं (जबकि पूरे भारत में यह आंकड़ा 46.08 प्रतिशत है), परंतु राज्य के सकल मूल्य वर्धन में इस क्षेत्र का योगदान केवल 14.27 प्रतिशत है, जो कि राष्ट्रीय औसत 18.19 प्रतिशत से कम है।

वहीं, खनन और उत्खनन उप-क्षेत्र की हिस्सेदारी हिमाचल प्रदेश के सकल मूल्य वर्धन (GVA) में सिर्फ 0.47 प्रतिशत है, जबकि भारत के स्तर पर यह 2.00 प्रतिशत है। रोजगार के लिहाज़ से यह अंतर और भी गहरा है — हिमाचल में खनन क्षेत्र में केवल 0.03 प्रतिशत लोग कार्यरत हैं, जबकि भारत में यह आंकड़ा 0.23 प्रतिशत है। गौरतलब है, जो नुकसान हो रहा है, वह लाभ से कहीं अधिक भारी है।

वित्त वर्ष 2024-25 के लिए खनन व उत्खनन क्षेत्र का सकल मूल्य वर्धन (GVA), स्रोत: हिमाचल प्रदेश आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25।

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्‍वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. अम्बरीश कुमार महाजन (प्रोफेसर,, HPCU) ने बताया कि रिवर सिस्टम एक प्राकृतिक और संतुलित प्रक्रिया है, जो अपने बहाव, तलछट जमा होने और पुनर्भरण चक्र के जरिये एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती है। इसके साथ किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप, विशेषकर अवैज्ञानिक और अनियंत्रित रिवर बेड माइनिंग, प्राकृतिक संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। जब हम नदी के तल से रेत, बजरी और पत्थरों का अत्यधिक दोहन करते हैं, तो इससे न केवल नदी की प्रवाह दिशा और गहराई में अस्थिरता आती है, बल्कि आसपास के रिहायशी इलाकों के लिए बाढ़ और कटाव जैसे खतरे भी बढ़ जाते हैं।

नदी तल से यह सामग्री हटाने से तटों का कटाव होता है, भूजल पुनर्भरण में बाधा आती है, और जैव विविधता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। हिमालयी राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश में, जहां भौगोलिक बनावट पहले से ही संवेदनशील और अस्थिर है, वहां इस प्रकार की गतिविधियां भूस्खलन, जल स्रोतों के सूखने, और स्थानीय पारिस्थितिकी के विनाश का कारण बन सकती हैं।

इसके अतिरिक्त, रिवर बेड की मिट्टी और बजरी ग्राउंड वाटर रिचार्ज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब इन्हें हटा दिया जाता है, तो आसपास के क्षेत्रों में जलस्तर गिरने लगता है, जिससे सिंचाई, पेयजल और कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वहीं दूसरी ओर, नदी में रहने वाले जलीय जीवों और उनके प्रजनन क्षेत्रों को भी भारी क्षति होती है, जिससे जैव विविधता का संतुलन बिगड़ता है।

इसके अलावा इस मुद्दे पर अधिक जानकारी के लिए मैंने राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) और उद्योग निदेशालय को ईमेल किया है। हालांकि, स्टोरी लिखे जाने तक उनकी ओर से कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ था। जब भी जवाब मिलेगा, रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा।

मानसून के दौरान राज्य में भीषण आपदाएं

बीते वर्षों के मानसून सीजन में हिमाचल प्रदेश अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर चुका है। अगस्त 2022 में गिरे ब्रिटिश काल के रेलवे पुल के क्षतिग्रस्त होने के लिए चक्की खड्ड में हो रहे खनन को अशोक कपूर ने जिम्मेदार ठहराया है।

बीते मानसून ढ़ांगू रेलवे पुल माजरा सड़क के समीप बाढ़ की चपेट में आ गया था।

खनन गतिविधियों ने पहले ही क्षेत्र की भूगर्भीय स्थिरता को प्रभावित किया है, लेकिन इसका सबसे प्रत्यक्ष और विनाशकारी उदाहरण उस समय देखने को मिला जब चक्की-कंडवाल पुल बाढ़ की चपेट में आ गया। इस घटना ने न केवल पुल को क्षतिग्रस्त किया, बल्कि ढ़ांगू रेलवे पुल को भी भारी नुकसान पहुँचा। वहीं माजरा क्षेत्र का मुख्य मार्ग कई दिनों तक बंद रहा, जिससे स्थानीय जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। इस संपूर्ण आपदा के कारण सरकार को लाखों रुपये का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा, जो अवैध और अनियंत्रित खनन के खतरनाक परिणामों की एक और गवाही है, अशोक कपूर ने बताया।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को राज्य सरकार द्वारा दिसंबर 2023 में प्रस्तुत साल 2023 की तबाही के आलोक में तैयार रिपोर्ट हिमाचल प्रदेश में खनन से जुड़े पर्यावरणीय संकट की गंभीरता को उजागर किया था। रिपोर्ट के अनुसार, विशेषकर ब्यास नदी कैचमेंट क्षेत्र में अवैज्ञानिक और अनियंत्रित खनन गतिविधियों ने ढलानों की स्थिरता को कमजोर किया, जलधाराओं का प्रवाह बदला और बड़े पैमाने पर वृक्षावरण को क्षति पहुंचाई।

इसका प्रत्यक्ष प्रभाव भूस्खलन, भूमि धंसाव और बाढ़ जैसी आपदाओं के रूप में सामने आया। रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि स्टोन क्रशर इकाइयों का पर्यावरण पर विशेष दुष्प्रभाव है और इन्हें केवल पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त परिधि में ही संचालित किया जाना चाहिए। क्रशर इकाइयों की 500 मीटर परिधि में किसी भी प्रकार की खनन या डंपिंग गतिविधि के लिए सीधे पट्टाधारक को जिम्मेदार ठहराने की बात भी रिपोर्ट में दर्ज है।

क्या स्थानीय पंचायतें खनन रोकने में सक्षम है?

हिमाचल प्रदेश में खनिज नीति से जुड़ी प्रक्रियाओं को लेकर यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या राज्य सरकार को इसके बदलाव के लिए ग्राम पंचायतों से अनुमति लेनी चाहिए, और क्या पंचायतें खुद खनन गतिविधियों को रोक सकती हैं। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुच्छेद 246 के तहत संसद और राज्य दोनों को खनन से संबंधित अधिकार दिए गए हैं। यूनियन लिस्ट के एंट्री 54 में संसद को खनिजों के विकास और नियंत्रण का अधिकार केवल उस हद तक दिया गया है, जहाँ इसे जनहित में आवश्यक घोषित किया गया हो।

वहीं, स्टेट लिस्ट की एंट्री 23 राज्य सरकारों को भी खनन के नियमन और विकास का अधिकार देती है—बशर्ते वह केंद्र के अधिकार क्षेत्र में घोषित क्षेत्र से बाहर हो। इसलिए खनिज नीति में संशोधन करते समय राज्य सरकार को ग्राम पंचायतों से अनिवार्य अनुमति लेने की बाध्यता नहीं है, हालांकि स्थानीय निकायों से परामर्श करना लोकतांत्रिक रूप से वांछनीय माना जाता है।

हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1994 के किसी अध्याय या अनुसूची में खनन को पंचायत के कर्तव्यों या अधिकारों में शामिल नहीं किया गया है।

अध्याय XIII (Rules and Bye-laws) पंचायतों को स्वास्थ्य, सफाई, स्थानीय मार्गों, वृक्षारोपण आदि से संबंधित उपविधियाँ बनाने की शक्ति देता है, लेकिन खनन से संबंधित कोई वैधानिक शक्ति नहीं प्रदान करता है।

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