महाकुंभ में कैसे हो रही लोगों की गिनती, कितना सटीक है ये तरीका?
प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी को हो गई। सरकार का दावा है कि अब तक मेले में 8 करोड़ से ज्यादा लोग पहुंच चुके हैं। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि सरकार ये आंकड़े कैसे जुटा रही, और ये कितने सटीक हैं?;
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम के तट पर महाकुंभ मेला 2025 शुरू हो चुका है। प्रदेश सरकार के अनुसार 13 जनवरी से शुरू हुए इस अनुष्ठान में अब तक (20 जनवरी तक) 8 करोड़ से ज्यादा लोग शामिल हो चुके हैं। उम्मीद है कि इस बार 45 दिन तक चलने में इस आयोजन में 40 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु भाग लेंगे। लेकिन श्रद्धालुओं की गिनती होती कैसे है? ऐसी कौन सी तकनीक है जिसके अनुसार सरकार ये आंकड़े जारी कर रही है?
13 जनवरी को पहले स्नान के बाद ही मकर संक्राति के दिन राज्य सरकार ने बताया कि संगम में 3.50 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। पहले दिन 60 लाख तो दूसरे दिन तक 1.38 करोड़ लोगों के पुहंचने का दावा किया गया। यानी सिर्फ तीन दिनों में पांच करोड़ से ज्यादा लोगों के स्नान का दावा किया गया। प्रयागराज में महाकुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू हुआ है और 26 फरवरी तक चलेगा और इस दौरान तीन प्रमुख शाही स्नान होंगे। अगला शाही स्नान (अमृत स्नान) 29 जनवरी को अमावस्या को होगा और फिर 3 फरवरी को बसंत पंचमी के मौके पर होगा। इसके अलावा माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के दिन भी कुंभ स्नान किया जाएगा। श्रद्धालुओं की संख्या का लेखा-जोखा कैसे तैयार होता है, इस पर इंडिया स्पेंड ने कुंभ एसएसपी राजेश दिद्वेदी से बात की।
गिनती के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग
“महाकुंभ नगर में लगभग 40 करोड़ लोगों के आने की संभावना है, इसकी निगरानी के लिए एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र (ICCC) बनाया गया है जहां सैकड़ों पुलिसकर्मी, अधिकारी तैनात हैं। यहां से यातायात प्रबंधन को सुव्यवस्थित करने और यहां तक कि अपराध पर अंकुश लगाने के लिए स्क्रीन पर प्रत्येक अलर्ट पर नजर रखने और निर्देश जारी किया जा सकता है।” राजेश दिद्वेदी बताते हैं।
वे आगे बताते हैं कि कुंभ क्षेत्र और शहर में महत्वपूर्ण डेटा कैप्चर करने वाले हजारों कैमरों के साथ रेलवे और सड़क परिवहन विभाग से जानकारी के लिए एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की मदद ली जा रही है। एआई से न केवल आने वाले लोगों की गिनती करने में मदद मिल रही है, बल्कि यातायात प्रबंधन और अपराध की जांच में भी मदद मिल रही है। एक टीम रेलवे, सड़क और परिवहन और राजमार्ग जैसे विभिन्न विभागों और मंत्रालयों से डेटा एकत्र करने के लिए भी काम कर रही है। आईसीसीसी में इस्तेमाल किए जा रहे ए आई मॉडल का प्रति वर्ग मीटर जनसंख्या घनत्व और संबंधित एल्गोरिदम पर बार-बार परीक्षण किया गया है जो 90 से 92% की सटीकता को दर्शाता है।
भीड़ की संख्या का तस्वीरों से अंदाजा लगाना मुश्किल है। ऐसे में सटीक अनुमान के लिए एआई बेस्ड हाईटेक कैमरे लगाए गए हैं जो 360 डिग्री कैमरे हैं। पूरे मेला क्षेत्र में 2750फिक्स्ड कैमरे हैं जिसमे 80 प्रतिशत से ज्यादा कैमरे ऐ आई तकनीकी से लैस हैं । इन कैमरों के जरिए ही आने वाले लोगों की गिनती की जा रही है। ड्रोन कैमरे डेंसिटी प्रति स्क्वायर मीटर को आंकते हैं और कुल एरिया के हिसाब से संख्या की गिनती करते हैं। इसके अलावा सड़क रूट से आ रहे लोगों की तस्वीर लेकर उनमें सवार लोगों की गिनती जा रही है। किसी एरिया में क्राउड डेंसिटी क्या है जो सेंसिटिव एरियाज हैं, जो क्रिटिकल एरिया है, उन पर भीड़ का घनत्व कितना है, वो इन कैमरों के माध्यम से आंका जा रहा है। इसके अलावा एक ऐप के जरिए लोगों के पास मौजूद मोबाइल फोन के औसत आंकड़े की गिनती की जा रही है। नावों के जरिये घूमने और कैंप में ठहरने वालों लोगों की संख्या गिनी जा रही है।
इससे पहले महाकुंभ में आए श्रद्धालुओं की गिनती सांख्यिकीय तरीके से भी होती है। इस विधि का पहली बार इस्तेमाल साल 2013 के कुंभ में हुआ था। इसके अनुसार, एक व्यक्ति को गंगा में स्नान के लिए करीब 0.25 मीटर की जगह चाहिए और उसे नहाने में करीब 15 मिनट का समय लगेगा। इस गणना के मुताबिक, एक घंटे में एक घाट पर अधिकतम साढ़े बारह हजार लोग स्नान कर सकते हैं। जिस समय यह गणना की गई थी तब 35 घाट हुआ करते थे, इस बार महाकुंभ में नौ नए घाट बनाए गए हैं, जिससे कुंभ में कुल घाटों की संख्या 44 हो गई है।
एक्सपर्ट की टीम सभी 48 घाटों पर हर घंटे आने वाले लोगों की संख्या नजर रख रही है। ड्रोन कैमरे के जरिए भी एक निश्चित दायरे में भीड़ के घनत्व को मापा जा रहा है और फिर उसे इस क्राउड असेसमेंट टीम को भेजा जाता है। इसके अलावा एक डेडीकेटेड ऐप है, जो मेले में मौजूद लोगों की हाथों में मोबाइल की औसत संख्या तक ट्रैक कर रहा है।
बसों और नावों की गिनती के आधार पर लोगों का डेटा जमा किया जाता था। साथ ही मेला क्षेत्र में बने हुए साधु-संतों के शिवरों में आने वाले लोगों का आंकड़ा जुटाकर उनकी गिनती की जाती है। इस बार भी ट्रेन और बसों की संख्या को ट्रैक किया जा रहा है। राजेश बताते हैं।