इंडियास्पेंड की पड़ताल: दूध, सब्जी, फल बंद किया तो किसी ने खाने में की कटौती, थाली पर भारी रहा साल 2023
वर्ष 2023 की महंगाई आम, गरीब लोगों की थाली पर भारी रही। इंडियास्पेंड हिंदी ने जब अलग-अलग राज्यों के 35 परिवारों से बात की तो उन्होंने स्वीकार किया कि महंगाई की वजह से उन्हें मजबूरन अपने खाने में कई स्तर पर कटौती करनी पड़ी।
लखनऊ, रांची, देहरादून, रायपुर, पटना, भोपाल: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहने वालीं छाया वर्ष 2023 के मार्च तक रोजाना एक लीटर दूध लेती थीं। लेकिन सितम्बर आते-आते उन्होंने आधा लीटर दूध लेना बंद कर दिया। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में रहने वाले कमरुद्दीन को मटन या चिकन महीने में एक दो बार खाने के लिए भी सोचना पड़ता है। मध्य प्रदेश के जिला खरगौन की राजकुमारी को दाल, चावल या घर के दूसरे राशन खरीदने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। छत्तीसगढ़ के जिला दंतेवाड़ा की रहने वालीं दुर्गम बिंदी बताती हैं कि पिछले साल की तुलना में अब उनके घर में आने वाले फलों में 50 फीसदी तक कटौती हुई है। झारखण्ड के बछरागढ़ के रहने वाले रोशन ने बताया सब्जी, तेल और फलों में कटौती की है।
वर्ष 2023 में महंगाई की वजह से लगभग हर वर्ग प्रभावित रहा। बढ़ती खाद्य कीमतों की वजह से खाने की बहुत सी चीजें आम गरीब लोगों की पहुंच से बाहर हो गईं। इंडियास्पेंड हिंदी ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड और उत्तराखंड के लगभग 35 परिवारों से बात की तो पाया कि गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को बीते वर्ष एक वक्त के खाने में दूध से लेकर खाने के तेल तक में भारी कटौती करनी पड़ी।
हाल ही में आये भारत सरकार के आंकड़ों से पता चला कि खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि के कारण दिसंबर 2023 में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर तीन महीने के उच्चतम स्तर 5.77 प्रतिशत, नवम्बर माह में यही मुद्रास्फीति 5.55 प्रतिशत पर पहुंच थी। उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) ने नवंबर में मुद्रास्फीति दर 8.70 प्रतिशत दर्ज की जो अक्टूबर में 6.61 प्रतिशत और नवंबर 2022 में 4.67 प्रतिशत थी।“जो सामान पहले पांच रुपये का मिलता था वह अब सात रुपये का है। पहले हमारे घर में जितनी सब्जियां आती थीं अब हम उतनी नहीं खरीद पाते हैं। दाल और सब्जी पहले के मुताबिक कम मात्रा में बनती है। कभी-कभी हफ्ते में एक समय पर दो सब्जियां बन जाती थीं। लेकिन अब एक समय में एक सब्जी या सिर्फ दाल बनती है। बच्चों के लिए फल लेना भी कम हो गया है और दूध भी हमने आधा ही कर दिया है। समझ नहीं आता कि बच्चों को सही मात्रा में कैसे पोषण मिलेगा,” छाया बताती हैं।
इंडियास्पेंड हिंदी ने अपनी पड़ताल में पाया कि 34 में से 21 परिवारों ने खाने में बढ़ती महंगाई की वजह से अपने प्रति माह के राशन में कटौती की तो वहीं 9 परिवारों ने फल खरीदने बंद कर दिए। इनमें से 17 परिवार ऐसे भी थे जिन्होंने दूध में कटौती की तो वहीं 34 में से 23 परिवार छोटे मोटे कर्ज में डूबे हैं जो या तो त्योहार या फिर बीमारी के समय लेना पड़ा है।
“पहले दिन में चार पांच बार चाय पीते थे लें अब सुबह सा ही चाय पी रहे हैं। हमारे घर में सुबह के नास्ते में पोहा और पराठा समेत अन्य चीज़ें बनती थी लेकिन अब नास्ता भी अच्छा नहीं कर पाते हैं। हमने सब्जियों की खरीदारी में कटौती की है। पहले घर में बाजार से पांच किलो आलू आता था लेकिन हम अब दो किलो में ही काम चला रही हैं। पहले 200 रुपए की सब्जी में एक सप्ताह तक चलती थी लेकिन अब 500 रूपये की सब्जी चार दिन ही चलती है। पहले हम सुबह 1 लीटर दूध लेते थे लेकिन अब सिर्फ आधा लीटर में अपना काम चलाते हैं। महंगाई के कारण बाहर खाना बंद कर दिया है।” छाया कहती हैं।
इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज माल्कॉम आदिसेशिया के चेयर प्रोफेसर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे अरुण कुमार का कहना है ने कहा कि जब खाने की वस्तुओं की कीमत बढ़ेगी तो जाहिर सी बात है कि वह गरीबों की पहुंच से दूर होगा, और इसका ग्रामीण भारत पर देखने को ज्यादा मिलेगा। ‘खाद्य कीमतों के अलावा ग्रामीण इलाके प्रायः आपूर्ति संबंधी व्यवधानों से प्रभावित होते हैं। महामारी के कारण ग्रामीण इलाकों में लोगों का रोजगार गया है और अब मांग कम बनी हुई। इसका मतलब यह है कि बुनियादी ढांचे और की लागत ने ग्रामीण इलाकों में कीमतें बढ़ाई हैं और आगे और बढ़ सकती है।’
लखनऊ की माया कहती हैं कि इस महंगाई कारण उनका जीना दुश्वार हो गया है। उनके पति को पेट संबंधित गंभीर बीमारी हो गई है जिसकी वजह से वे पिछले 4 महीनों से काम पर नहीं गये हैं।
“हम लोग महंगाई से काफी प्रभावित हुए हैं। आटा, दाल, चावल सब्जी चीनी सभी चीजों के दाम बढ़े हुए हैं। अभी हम दुकान से उधार सामान ला रहे हैं। दुकान पर हमारा 5,000 के करीब उधार हो गया है। पहले 200 रुपए की सब्जी सप्ताहभर चलता थी जो अब दो, तीन दिन में ही खत्म हो जाती है।” माया बताती हैं।
“सुबह उठते ही मन में या ख्याल आता है कि आज क्या बनाएंगे? आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उन्होंने अभी अपने बच्चों को दूध और फल खिलाना बिल्कुल बंद कर दिया है। पहले वह दुकान से 1 लीटर दूध आता था। अब बस चाय बनाने के लिए 10 रुपए वाला दूध आता है।”
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राउरकेला में शोधार्थी और फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक विक्रांत निर्मला सिंह का कहना है कि जैसे-जैसे खाद्य वस्तुओं की कीमत बढ़ेगी, महंगाई दर भी बढ़ेगी और आम लोगों पर इसका असर भी पड़ेगा। वे कहते हैं, "महंगाई के हिसाब से लोगों की आया में इजाफा नहीं हो रहा। रोजगार की कमी भी देश में लगातार बनी हुई जिसकी वजह से ये महंगाई और ज्यादा लगती है। दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं। महंगाई बढ़ेगी और लोगों के पास पैस नहीं होंगे तो जाहिर सी बात है कि वे अपने खाने में समझौता करेंगे।"
मध्य प्रदेश के जिला श्योपुर के बांसेड़ में रहने वालीं अनीता का वजन 36 किलो हैं और सहरिया जनजाति से हैं जो एक विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (पीवी टीजी) है। वे अभी दो बच्चों की मां हैं। बेटी चार और बेटा एक साल का है। उन्हें पिछले साल दिसंबर 2022 में टीबी हुआ था। लेकिन दवा बीच में छोड़ देने की वजह से उन्हें दोबारा टीबी हो गया है।
“पति के साथ काम करने बाहर चली जाती हूं। इसलिए लगातार दवा नहीं ले पाती। मजदूरी नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या। अगर हमारे पास अच्छा खाना होता तो शायद मेरे चाल के बेटी की मौत नहीं होती। जो राशन तो मिलता है, बस वही खा पाते हैं। डॉक्टर दूध, साग, सब्जी, फल खाने के लिए कहते हैं। लेकिन इतना महंगा सामान खरीदकर हम खा ही नहीं सकते। राशन की दुकान से मिले अनाज से किसी तरह हमारा बस पेट भर पाता है।” अनीता कहती हैं।
देहरादून के रहने वाले कमरुद्दीन को भी महंगाई की वजह से खाने में कटौती करनी पड़ी है। “दूध, दाल, मक्खन, अंडा, मछली और मांस हमारी थाली से लगभग गायब हो चुका है। जो चीज पिछले साल (2022 में) 100 रुपए की थी आज वह 130 रुपए की हो गई है। खाने के अलावा इलाज भी काफी महंगा हो गया है।”
कहाँ बढ़ी कितनी महंगाई
अगर केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी किये गए आंकड़ों को देखे तो ओडिशा में सबसे अधिक मुद्रास्फीति दर्ज की गई। कम से कम सात राज्यों में मुद्रास्फीति 6% से अधिक दर्ज की गई - मुद्रास्फीति के लिए आरबीआई की सहनशीलता सीमा - ओडिशा (8.7%), गुजरात (7.1%), राजस्थान (6.95%), और हरियाणा (6.7%) का नेतृत्व किया।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी गणना के अनुसार, कर्नाटक और तेलंगाना में 6.65% की वृद्धि दर्ज की गई, इसके बाद महाराष्ट्र में 6.1% की वृद्धि दर्ज की गई, जो 22 प्रमुख राज्यों के लिए मुद्रास्फीति दरों की गणना करता है। 5.95% की मुद्रास्फीति दर के साथ पंजाब, और बिहार (5.9%), राष्ट्रीय औसत 5.69% से अधिक मूल्य वृद्धि दर्ज करने वाले अन्य स्थान थे।
दिल्ली के निवासियों को सबसे कम 2.95% मुद्रास्फीति दर का सामना करना पड़ा, इसके बाद पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य (4.15%) का स्थान था। केरल (4.3%), छत्तीसगढ़ (4.5%), उत्तराखंड (4.7%), तमिलनाडु (4.97%), और पश्चिम बंगाल (4.98%) एकमात्र अन्य राज्य थे जिनकी मुद्रास्फीति दर 5% से कम थी।
खरगौन की रहने वालीं राजकुमारी ने बताया कि उनके परिवार में चार सदस्य हैं। उनके पति मजदूरी करते हैं। उनके घर में खाना चूल्हे पर बनाता है। घर में गैस नहीं है। राशन कार्ड नहीं बना है।
“हमारे लिए महंगाई में जीवन जीने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। हमें इस महंगाई में दाल, चावल और सब्जियों समेत अन्य चीजें खरीदने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम रूखी सूखी रोटी और प्याज की चटनी खाकर गुजारा करना पड़ता है,” राजकुमारी बताती हैं।
अतिरिक्त योगदान: राहुल कुमार गौरव पटना से, सत्यम कुमार देहरादून से, आनंद दत्ता रांची से, इंदल कश्यप लखनऊ से