मध्‍य प्रदेश: हरित ऊर्जा लेकिन किसकी कीमत पर?

सकतापुर से लगभग 14 km दूर स्थित एखंड पुनर्वास गांव की निवासी गीता बाई के लिए इस 300 लाख मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन की रोकथाम का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि उनका परिवार तो ओंकारेश्वर डैम परियोजना शुरू होते ही बेरोजगार हो गया।

Update: 2024-07-22 09:50 GMT

ओंकारेश्वर डैम की नीली सतह पर लगे 5.05 लाख सोलर पैनल। दुनिया की सबसे बड़ी तैरती सौर ऊर्जा परियोजना के पहले चरण का सफलतापूर्वक परीक्षण पूरा हो चुका है। इमेज क्रेडिट - शाहरोज़ आफ़रीदी

ओंकारेश्वर: ओंकारेश्वर डैम से दो किलोमीटर दूर स्थित सक्तापुर सब-स्टेशन के निर्माणाधीन कंट्रोल रूम में खड़े गौरव बारी नए लगाए गए कंप्यूटरों के मॉनिटर पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं। वह मॉनिटर पर डिस्प्ले हो रही इलेक्ट्रिक सर्किट और उनके साथ जुड़ी संख्याओं के उतार-चढ़ाव को देखकर बहुत खुश हैं।

यह कंप्यूटर स्क्रीन 5.05 लाख सोलर पैनलों की मदद से सौर ऊर्जा का उपयोग करके पैदा की जा रही, बिजली के वोल्टेज को बता रही है। ये 5.05 लाख सोलर पैनल डैम के पानी के इर्द-गिर्द 3.3 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बड़े करीने से लगाए गए हैं। इसी के साथ ही दुनिया की सबसे बड़ी तैरती सौर ऊर्जा परियोजना के पहले चरण का सफलतापूर्वक परीक्षण पूरा होता है।

मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर डैम की नीली सतह पर लगे ये 5.05 लाख सोलर पैनल सामान्य दिनों में सूर्य की किरणों को सोखकर 278 मेगावाट या 12.5 लाख यूनिट बिजली पैदा कर सकते हैं। इस परियोजना के परिचालन से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय फर्म ‘डेलॉइट’ के प्रबंधक मनीष उरेले कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा उपलब्ध कराए गए फार्मूला के आधार पर की गई गणना के अनुसार इससे हर साल लगभग 300 लाख मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन कम हो सकता है।

ये 5 लाख से ज्‍यादा सोलर पैनल तारों से जुड़े हुए हैं जो सबसे पहले पास के फ्लोटिंग इंस्टॉलेशन तक पहुंचते हैं। यहां बिजली को डायरेक्ट करंट (DC) से अल्टरनेटिंग करंट (AC) में बदला जाता है और फिर उसे 600 मेगावाट प्लांट के दो स्थापित पावर स्टेशनों में से एक सक्तापुर सब-स्टेशन के लिए भेज दिया जाता है।

ओंकारेश्वर डैम के बैकवाटर के किनारे लगे हरे-भरे पेड़ और हरे घास के मैदान में अब बड़े-बड़े ट्रांसमिशन टावर और उनके बीच चमकते हुए नए तार भी देखे जा सकते हैं। ये टॉवर बिजली उत्पादन के लिए डैम के बीच से सब-स्टेशन तक केबल ले जाते हैं।

बारी फिलहाल सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डेटा एक्विजिशन सेंटर (SCADA) में खड़े हैं और लगातार कंप्यूटर स्क्रीन की निगरानी कर रहे हैं। यहां नए बने कमरे की दीवारों पर बड़े-बड़े मॉनीटर लगे हुए हैं, जबकि नई टेबल और कुर्सियों पर अभी भी कवर लपेटा हुआ है।

बारी बताते हैं, "ये मॉनीटर, पैनल के जरिए पैदा होने वाली बिजलीऔर अगर कुछ फॉल्ट हो, उनसबके बारे में सूचना देती हैं। इस सेंटर के जरिए न सिर्फ़ बिजली उत्पादन को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि इससे हवा की गति सहित मौसम की वास्तविक जानकारी भी मिलती रहती है। ये सब कारक बिजली उत्पादन को प्रभावित करते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में जरूरत पड़ने पर उत्पादन को बंद भी किया जा सकता है, जिसकी जानकारी हमें इन्हीं मॉनीटर से मिलती है।"

स्वच्छ ऊर्जा किसके लिए और किसकी कीमत पर?

वहीं सकतापुर से लगभग 14 km दूर स्थित एखंड पुनर्वास गांव की निवासी गीता बाई के लिए इस 300 लाख मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन की रोकथाम का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि उनका परिवार तो ओंकारेश्वर डैम परियोजना शुरू होते ही बेरोजगार हो गया।

जब ओंकारेश्वर डैम बनाया गया था, तो एखंड सहित 30 गांवों को पास के इलाकों में स्थानांतरित कर दिया गया था। सरकारी फाइलों में एखंड गांव को अब एखंड पुनर्वास के नाम से जाना जाता है।

गीता बाई अपने घर की अटारी में रखे मछली पकड़ने की जाल की ओर इशारा करते हुए कहती हैं कि 40,000 रुपए की इस जाल का अब कोई मतलब नहीं है क्योंकि अब क्षेत्र के मछुआरों को डैम के पानी में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध है।

गीता बाई अपने घर की अटारी में रखे मछली पकड़ने की जाल की ओर इशारा करते हुए।

गीता सवाल करती हैं, "हमने ये जाल सोसायटी से लोन पर खरीदे थे। जाल की कीमत 40,000 रुपए थी और अब ये किसी काम के नहीं है। मछली पकड़ने से मना किए जाने के कारण हम कर्ज भी नहीं चुका पा रहे हैं। हमारे पांच बच्चे हैं और परिवार में सात लोगों का पेट पालना है। आप ही बताइए,अब हमें क्या करना चाहिए?"

काम की तलाश में मछुआरों के समुदाय ने अधिकारियों की नजर से दूर डैम में ही मछली पकड़ने के लिए कुछ नए स्थान ढूंढ लिए हैं। मछुआरे कदवाह प्रताप ने बताया, "नए स्थानों को 50 से 60 मछुआरों के बीच बांटा गया है जो बारी-बारी से मछली पकड़ते हैं ताकि हर कोई अपनी आजीविका चला सके।"

एखंड पुनर्वास गांव में सातमाता मत्स्य समिति के अध्यक्ष सुभान सिंह बताते हैं कि इस सोलर पार्क परियोजना के कारण 312 से अधिक मछुआरों के परिवार और कुल 10,000 से अधिक लोगों का जीवन बर्बाद हो गया है।

“समुदाय के लोग अपनी आजीविका के लिए मछली पकड़ने पर निर्भर हैं। लेकिन अब हमें जलाशय में मछली पकड़ने की अनुमति नहीं है, जो हम पीढ़ियों से करते आ रहे हैं। सरकारी अधिकारियों ने हमारी मदद के लिए एक सर्वे किया था। लेकिन आज तक हमें कोई मदद नहीं मिली है। उन्होंने हमें परियोजना में नौकरी देने का वादा किया था। लेकिन वे हमें मजदूर के रूप में भी काम करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं। हमने तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, क्षेत्र के विधायक और खंडवा जिले के कलेक्टर से इस संबंध में मुलाकात भी की, लेकिन किसी ने संज्ञान नहीं लिया। हमने अब उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है।” सुभान सिंह कहते हैं।

सातमाता मत्स्य समिति के अध्यक्ष सुभान सिंह

उन्‍होंने आगे बताया कि उनके पास तीन नावें बची हैं। मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ये नावें अब ओंकारेश्वर में ‘दर्शन’ के लिए आने वाले तीर्थ यात्रियों के नौकाविहार के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं।

एखंड से लगभग एक किलोमीटर दूर मसलई गांव में पुराने बरगद के एक पेड़ के नीचे भूपेन्द्र सिंह कुछ लोगों के साथ बैठकर बात कर रहे हैं।

वह कहते हैं, "हम यहां बैठे हैं क्योंकि घर में लाइट नहीं आ रही है। हमें अपने खेतों के लिए पानी की जरूरत है। लेकिन बिजली नहीं होने के कारण सिंचाई सीमित है। जब डैम बनाया गया था तो हमारी जमीनें अधिग्रहित की गई थीं और कहा गया था कि हमें पानी और बिजली दोनों आसानी से उपलब्ध होगा। लेकिन उसके बाद हमारी मुश्किलें बढ़ने के अलावा और कुछ नहीं बदला। यही बात इस बिजली परियोजना के लिए भी सच है।"

भूपेंद्र के साथ बैठे ठाकुर सुरेंद्र सिंह ने आगे कहा, "इस क्षेत्र के किसान बिजली की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। पिछले चार दिनों से बिजली नहीं है और हमने जो सब्जियां और कपास बोया है, वे सूख रहे हैं।"

सिंह के अनुसारजब पुनासा डैम परियोजना के तहत उनकी जमीन अधिग्रहित की गई थी तो 24 घंटे बिजली आपूर्ति का आश्वासन दिया गया था। लेकिन तबसे कुछ खास नहीं बदला है।

भूपेंद्र की जमीन असेंबली साइट तक पहुंचने के लिए सड़क बनाने के लिए अधिग्रहित की गई थी। लेकिन उन्हें अभी तक किसी तरह के मुआवजे का कोई संकेत नहीं मिला है।

भूपेंद्र कहते हैं, "जब ऐसी परियोजनाएं आती हैं तो उनसे लाभ मिलना तो दूर, हमसे हमारी बुनियादी सुविधाएं भी छीन ली जाती हैं। ऐसा ही होता आया है, ऐसा ही होगा।"

भूमि अधिग्रहण का तोड़ है जलाशय पर सोलर प्रोजेक्ट

वर्ष 2019 में पहली बार ओंकारेश्वर सोलर पार्क परियोजना की परिकल्पना की गई थी। लगभग पांच साल बाद मध्य प्रदेश सरकार ने 600 मेगावाट की फ्लोटिंग सौर ऊर्जा परियोजना के पहले चरण का काम पूरा कर लिया है। इसके तहत उत्पादित होने वाली 300 मेगावाट की बिजली में से 100 मेगावाट बिजली का उपयोग भी होने लगा है।

मध्य प्रदेश सरकार के नवीकरणीय ऊर्जा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार दूसरे चरण के लिए भी टेंडर नीलामी शुरू हो गई है और 21 जुलाई को टेंडर खोला जाएगा।

पहले चरण की योजनाके तहत AMP एनर्जी इंडिया, SJVN (सतलुज जल विद्युत निगम) और NHDC (नर्मदा हाइड्रोइलेक्ट्रिकल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) सहित तीन अलग-अलग कंपनियां 100 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेंगी और इसे क्रमशः 3.21, 3.22 और 3.26 रुपए/यूनिट की दर से मध्य प्रदेश सरकार को बेचेंगी।

इस फ्लोटिंग सोलर पावर प्रोजेक्ट के दूसरे चरण के पूरा हो जाने के बाद मध्य प्रदेश के अक्षय ऊर्जा उत्पादन में बहुत बड़ी वृद्धि होगी जो कि फिलहाल वर्तमान में 6 गीगावाट है।

ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की वैश्विक चिंताओं के बीच दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा और दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला यह देश भारत इन हरित परियोजनाओं के साथ ग्रीन हाउस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

भारत का कुल बिजली उत्पादन वर्तमान में 417 गीगावाट है जिसमें से वर्तमान में 56% (237 गीगावाट) जीवाश्म ईंधन से आता है। इसमें भी अकेले कोयले का योगदान कुल जीवाश्म ईंधन उत्पादन का 49% है। शेष 44% गैर-जीवाश्म ईंधनों में जलविद्युत, सौर, पवन, बायोमास और परमाणु ऊर्जा शामिल हैं। इसमें भी अकेले सौर ऊर्जा का योगदान 16 प्रतिशत है।

वर्ष 2019 में पहली बार ओंकारेश्वर सोलर पार्क परियोजना की परिकल्पना की गई थी। लगभग पांच साल बाद मध्य प्रदेश सरकार ने 600 मेगावाट की फ्लोटिंग सौर ऊर्जा परियोजना के पहले चरण का काम पूरा कर लिया है।

अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके बिजली उत्पादन करने में भारत,दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है जिसकी सौर ऊर्जा क्षमता पिछले एक दशक में 30 गुना बढ़कर जून 2023 तक 70.10 गीगावाट तक पहुंच गई थी। लेकिन हम अभी भी अक्षय स्रोतों के माध्यम से 2030 तक 500 गीगावाट ऊर्जा प्राप्त करने के अपने लक्ष्य से बहुत दूर हैं।

मध्य प्रदेश को अक्षय ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से 12 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य दिया गया था। लेकिन अब तक उसने सिर्फ 6 गीगावाट उत्पादन प्राप्त करने में सफलता पाई है। इसमें पवन ऊर्जा से 2.7 गीगावाट, सौर ऊर्जा से 2.2 गीगावाट, पनबिजली से 0.12 गीगावाट और बायोगैस से 0.09 गीगावाट उत्पादन हुआ है।

क्षेत्रफल के मामले में राजस्थान के बाद दूसरा सबसे बड़ा राज्य होने के बावजूद मध्य प्रदेश ने अब तक सिर्फ दो ग्राउंड माउंटेड सोलर पावर प्रोजेक्ट को क्रियान्वित करने में सफलता प्राप्त की है। इसमें से एक रीवा सोलर पावर प्रोजेक्ट की क्षमता 750 मेगावाट, जबकि मंदसौर प्रोजेक्ट की क्षमता 250 मेगावाट है। पांच अन्य ग्राउंड माउंटेड सोलर पार्क प्रोजेक्ट की कुल क्षमता 1.2 गीगावाट है। लेकिन इन प्रोजेक्ट का अभी टेंडर जारी होना बाकी है।

अधिकारियों के अनुसार छतरपुर और राज्य के अन्य जगहों पर प्रस्तावित कुछ बड़े ग्राउंड माउंटेड सोलर पार्क प्रोजेक्ट राज्य के राजस्व और वन विभाग के बीच भूमि विवाद के कारण फंसे हुए हैं।

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस की दक्षिण एशिया निदेशक विभूति गर्ग ने फ्लोटिंग सोलर फोटोवोल्टिक टेक्नोलॉजी (FSPVT) की उपयोगिता पर अपने विचार देते हुए कहा, "अगले कुछ वर्षों में भारत में ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ेगी जिसे अक्षय ऊर्जा के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। हालांकि भूमि के प्रतिस्पर्धी उपयोग के कारण इसे बड़ी जमीनों पर स्थापित करने में मुश्किलें आ सकती हैं। विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा और फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट स्थापित करने से ये भूमि संबंधी मुद्दे कम हो सकते हैं और भारत को अपनी अक्षय ऊर्जा लक्ष्य पूरा करने में मदद मिल सकती है। इससे भूमि अधिग्रहण लागत कम करने में भी मदद मिलेगी।"

मध्य प्रदेश में जमीन पर स्थापित होने वाली सोलर पार्कों की पांच परियोजनाएं पहले से ही पाइपलाइन में हैं। भूमि उपलब्धता की बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने अब फ्लोटिंग सोलर फोटोवोल्टिक टेक्नोलॉजी (FSPVT) का उपयोग करके जल निकायों पर सोलर पार्क स्थापित करने की शुरुआत की है।

फ्लोटिंग सोलर तकनीक को सबसे पहले जापान के ऐची के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस इंडस्ट्रियल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में विकसित किया गया था। इसका पहला व्यावसायिक प्रयोग 2008 में कैलिफोर्निया में हुआ और2015 में यह भारत पहुंचा।

वर्तमान में भारत में 10 फ्लोटिंग सोलर प्लांट हैं, जिनमें सबसे बड़ा 100 मेगावाट का फ्लोटिंग प्रोजेक्ट तेलंगाना के रामागुंडम में है। IIT रुड़की के जल विद्युत और अक्षय ऊर्जा विभाग के प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार बताते हैं कि फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट की लागत जमीन पर स्थापित प्रोजेक्ट से 15-20 प्रतिशत अधिक होती है, लेकिन इसके अपने फायदे हैं।

मध्य प्रदेश में जमीन पर स्थापित होने वाली सोलर पार्कों की पांच परियोजनाएं पहले से ही पाइपलाइन में हैं।

कुमार ने कहा, "फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट लगाने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे भूमि अधिग्रहण की जरूरत नहीं पड़ती और सोलर पैनल की नियमित सफाई के लिए जरूरी पानी भी मौके पर ही उपलब्ध हो जाता है। इससे इसकी परिचालन लागत, जमीन पर लगे सोलर पार्कों की परिचालन लागत से कम हो जाती है।"

वहीं गर्ग ने बताया, "जल निकायों के स्वतः शीतलन के कारण फ्लोटिंग सोलर पैनलों की कार्य करने की क्षमता और दक्षता अधिक हो जाती है और इससे जलाशयों से वाष्पीकरण को कम करने में भी मदद मिलती है। फ्लोटिंग सोलर पैनल,जल विद्युत परियोजनाओं के साथ मिलकर ऊर्जा आपूर्ति के अधिक विश्वसनीय स्रोत बन सकते हैं।”

हालांकि भारत में फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट से जलीय जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव पर ज्यादा शोध नहीं हुआ है, लेकिन विदेशों में किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि जलीय जीवन पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

प्रोफेसर कुमार ने बताया, "शोध-आधारित निष्कर्षों के बादजर्मनी ने फ्लोटिंग सोलर परियोजनाओं पर 15% की सीमा तय की है। इसका मतलब है कि कोई भी फ्लोटिंग सोलर परियोजना उस जलाशय के 15% से अधिक सतह क्षेत्र पर नहीं लगाए जाएंगे।"

मध्य प्रदेश में अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की देखरेख करने वाले कार्यकारी अभियंता अवनीश शुक्ला बताते हैं, "फ्लोटिंग सोलर परियोजना इस बात को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है कि यह जल निकाय के 15 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र को कवर न करे।"

जलीय जीवन पर सोलर पार्क के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार एक जल परीक्षण प्रयोगशाला भी स्थापित कर रही है।

इस परियोजना की राज्य नोडल एजेंसी RUMSL (रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड) के साथ काम कर रहे पर्यावरणविद् आरएम शर्मा ने बताया, "पानी के नमूनों की नियमित आधार पर जांच की जाएगी और इसका एक रिकॉर्ड रखा जाएगा। प्रशिक्षित रसायन विशेषज्ञ इस काम को अंजाम देंगे और इससे प्राप्त डेटा का विश्लेषण स्थानीय पारिस्थिति की पर दीर्घकालिक प्रभाव का अध्ययन करने के लिए किया जाएगा।"

लेकिन मध्यप्रदेश का ओंकारेश्वर प्लांट, तेलंगाना के रामागुंडम सहित भारत के अन्य फ्लोटिंग सोलर प्लांट्स से अलग है। जहां अन्य परियोजनाओं में फ्लोटिंग सोलर पार्क को जल उपचार संयंत्रों और खनन तालाबों के ऊपर स्थापित किया गया है, वहीं ओंकारेश्वर का प्लांट ताजे पानी के रिजर्व पर गतिशील परिस्थितियों में (जहां वाटर लेवल घटता बढ़ता राहत है) स्थापित किया जा रहा है और इसकी अपनी चुनौतियां हैं।

निर्माण कार्य

डैम की सतह का अध्ययन करने के लिए मल्टीबीम बैथिमेट्री सर्वेक्षण होने के बाद डैम साइट तक पहुंचने के लिए एक सड़क और एक असेंबली क्षेत्र स्थापित करने का काम शुरू हुआ। इससे डैम के भीतर 600 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए सबसे अच्छी जगह का निर्धारण करने में मदद मिली।

टाटा कंपनी के साइट मैनेजर वेणु गोपाल के अनुसार, “परियोजना पर काम शुरू करने से पहले डैम के तल से मृत पौधों, डूबे हुए घरों और अन्य संरचनाओं को हटाने में लगभग छह महीने लग गए।”

जब ओंकारेश्वर डैम का निर्माण किया गया था, तब लगभग 30 गांव डूब गए थे। लोगों को वहां से दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित किया गया, लेकिन उनके घरों सहित कई अवशेष अभी भी डैम के तल पर पड़े हुए हैं।

अगर डैम के तल को साफ करना एक प्रमुख काम था तो दूसरा प्रमुख काम डैम के बैकवाटर पर असेंबली साइट्स तक जाने वाली सड़क का निर्माण करना था। पहले चरण में तीन पॉकेट्स पर काम करने वाली कंपनियों को तीन असेंबली एरिया दिए गए, जहां सबसे पहले सोलर पैनल फ्लोटर्स पर लगाए गए। इन्हें एक साथ सरणियों में लगाकरडैम के पानी में तैराया गया और फिर डेड वेट एंकर या हेलिकल एंकर का उपयोग करके डैम की सतह पर स्थापित किया गया।

भारी मशीनरी, सीमेंट और अन्य सामानों को इन असेंबली साइट्स तक पहुंचाने के लिए लगभग 20 किलोमीटर सीमेंट की सड़कें भी बनानी पड़ीं।

L&T के साइट प्रभारी लॉरेंस धनराजू के अनुसार, “साइट पर काम जून 2023 में शुरू हुआ था। सबसे पहले पानी में काम शुरू करने के लिए एक जेटी का निर्माण किया गया। अकेले जेटी के निर्माण में ही चार महीने लग गए।”

इन पूर्वानुमानित चुनौतियों से निपटने के बाद कई अप्रत्याशित चुनौतियां भी सामने आईं। सितंबर 2023 मेंअचानक बादल फटने से डैम के जल स्तर में भारी वृद्धि हुई, जिससे असेंबली क्षेत्र में रखे सभी उपकरण बह गए और फ्लोटिंग इनवर्टर क्षतिग्रस्त हो गए।

AMP एनर्जी के साइट इंचार्ज उमा शंकर ने बताया, "इससे न केवल करोड़ों का नुकसान हुआ, बल्कि परियोजना में कई महीनों की देरी भी हुई।"

टाटा एनर्जी के वेणु ने बताया, “अप्रैल 2024 मेंलगभग 53 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने वाली तेज हवाओं ने असेंबली क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचाया, जिससे कई सोलर मॉड्यूल खराब हो गए। ये मॉड्यूल निर्धारित स्थानों पर बस स्थापित होने जा रहे थे, जो असेंबली क्षेत्र से लगभग 4.5 किलोमीटर दूर था।”

मध्य प्रदेश को अक्षय ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से 12 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य दिया गया था। लेकिन अब तक उसने सिर्फ 6 गीगावाट उत्पादन प्राप्त करने में सफलता पाई है।

छह महीने से अधिक समय तक चलने वाले इस परियोजना के निर्माण कार्य के दौरान लगभग 1500 लोगों को रोजगार दिया गया। RUMSL के गौरव बारी ने कहा कि परिचालन चरण के दौरान रखरखाव के काम के लिए भी 600 से अधिक लोगों को रोजगार दिया जाएगा।

दूसरा चरण

राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव(ऊर्जा) मनु श्रीवास्तव के अनुसार, “पहले चरण के तहत AMP एनर्जी द्वारा उत्पादित लगभग 100 मेगावाट बिजली का आवंटनऔर वितरण 31 मार्च, 2024 को चालू हो गया।SJVN और NHDC से उत्पादित 50-50 मेगावाट बिजली का वितरण भी अगले दो सप्ताह में शुरू होने की संभावना है। शेष 78 मेगावाट बिजली का आवंटन चालू होने में एक और महीना लग सकता है।”

श्रीवास्तव कहते हैं कि सरकार एक नई संभावना ढूंढने पर खुश है। श्रीवास्तव ने कहा, "ओंकारेश्वर सौर परियोजना ने जल निकायों पर सौर परियोजनाएं स्थापित करने का एक नया रास्ता खोल दिया है।"

अधिकारियों के लिएइस तरह की परियोजना की सफलता उन निवेशकों का विश्वास जीतने में निहित है, जो इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करेंगे। मध्यप्रदेश सरकार अब दूसरे चरण में उत्पादित बिजली के संभावित खरीदार के रूप में स्थानीय शहरी निकायों को जोड़ने की योजना बना रही है।

दूसरे चरण के लिए बोलियां पहली बार जुलाई 2022 में लगी थीं, जिसमें हिंदुजा रिन्यूएबल्स, NTPC और SJVNको सफलता मिली थी। हालांकिये बोलियां बाद में रद्द कर दी गईं।

दूसरे चरण के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और 21 जुलाई को इसे खोला जाएगा।

श्रीवास्तव ने बताया, “परियोजना इस तरह से बनाई गई है कि सारा निवेश डेवलपर द्वारा किया जाएगा औरराज्य केवल परियोजना से बिजली खरीदेगा। डेवलपर को नियमित भुगतान मिलने का भरोसा होना चाहिए और इसके लिए एक सुरक्षित भुगतान तंत्र विकसित किया गया है। जब तक डेवलपर्स को इस बारे में भरोसा नहीं होगा, वे बोली लगाने में सहज महसूस नहीं करेंगे और दरें भी बहुत अधिक हो सकती हैं। दरें कम रखने के लिए हमें सौर परियोजनाओं की जोखिमों और अनिश्चितता को कम करना होगा,”

श्रीवास्तव ने बताया कि दूसरे चरण के माध्यम से उत्पादित बिजली को स्थानीयशहरी निकायों द्वारा उनकी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए खरीदा जाएगा। जबकि पहले चरण की बिजली को ‘डिस्कॉम’ द्वारा खरीदा गया था, जो राज्य सरकार की ही एक इकाई है।

सकारात्मक पहल मगर कार्यान्वयन पर प्रश्न

TERI (द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टिट्यूट) के असोशीएट फ़ेलो और पर्यावरणविद संदीप ठाकरे का मानना है की ऐसे हरित प्रोजेक्ट्स को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। अगर कोई कमी है तो वो कार्यान्वयन की है। इस तरह के प्रोजेक्ट्स करने से पहले पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव आकलन (ESIA) किया जाता है। इस रिपोर्ट में मछुआरों से जुड़ा विषय भी था, अगर पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव आकलन रिपोर्ट के अनुसार उन्हें क्षतिपूर्ति मिल जाती तो वे ना तो कोर्ट जाते और ना इस परियोजना के कार्यान्वयन पर कोई प्रश्न उठता।

भारत में अन्य प्रमुख फ्लोटिंग सोलर परियोजनाएं

परियोजना

राज्य

क्षमता

स्थिति

NTPC रामागुंडम

तेलंगाना

100 मेगावाट

2021में चालू

रिहंद डैम सोनभद्र

उत्तर प्रदेश

150 मेगावाट

कार्यान्वयन के अधीन

NTPC कायमकुला

केरल

92 मेगावाट

कार्यान्वयन के अधीन

SECI गेतलसूद डैम

झारखंड

100 मेगावाट

कार्यान्वयन के अधीन

NTPC सिम्हाद्री 

आंध्र प्रदेश

25 मेगावाट

2021 में चालू

NTPC*- राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (National Thermal Power Corporation)

SECI*- भारतीय सौर ऊर्जा निगम लिमिटेड (Solar Energy Corporation of India Ltd)

यह स्टोरीइंटरन्यूज अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क(EJN) के तहत की गई है।


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