पानी की पाइप लाइन ने महिलाओं का समय बचाया, पुरुष प्रधान समाज ने अन्य कामों लगा दिया

महाराष्ट्र के एक गांव की महिलाओं ने सूखे कुएं से पानी निकालने के दौरान लगने वाली चोटों के जोखिम को कम करने और इसमें लगने वाले समय को बचाने के लिए गांव में पाइप लाइन के लिए संघर्ष किया था

Update: 2022-06-18 11:13 GMT

एक अंधेरे और सूखे कुएं में पानी के लिए अपनी जान जोखिम में डालने की दिनचर्या को पीछे छोड़ते हुए, बर्देची वाडी की महिलाएं अब पानी भरने के लिए एक गांव के नल के आसपास इकट्ठा होती हैं। 

नासिक: "कम से कम अब मैं चैन से सो तो सकती हूं। न तो मुझे अगले दिन पानी भरने का मानसिक तनाव रहता है और न ही घायल होने का डर," नासिक के बर्देची वाडी में ठाकुर अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाली सुनीता पारधी खुश होते हुए बताती हैं। अभी कुछ महीने पहले तक सुनीता और गांव की अन्य महिलाओं के दिलो-दिमाग पर हमेशा चोट लगने या यहां तक कि मौत का डर बना रहता था, और यह डर बेवजह नहीं था। रोजमर्रा की जरूरत के पानी लाने के लिए रोजाना गांव के एक सूखे कुएं में उतरना उनकी मजबूरी थी।

लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है। एक और जल स्रोत तक पहुंच पाने के लिए तीन साल के संगठित संघर्ष के बाद , गैर-लाभकारी संस्थाओं और पंचायत की मदद से इन महिलाओं ने स्थानीय विधायक के फंड का उपयोग करके मार्च 2022 में सरकार को पानी की पाइप लाइन उपलब्ध कराने के लिए मनाने में कामयाबी हासिल की।

केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी जल जीवन मिशन (JJM) का लक्ष्य 2024 तक ग्रामीण भारत के हर घर में नल का पानी उपलब्ध कराना है। अगस्त 2019 से इस योजना की शुरुआत हुई थी, तब से काफी बदलाव आया है। पहले सिर्फ 17% घरों में नल का कनेक्शन था। लेकिन अब 50% घरों में नल से पानी उपलब्ध है। मिशन के डैशबोर्ड से पता चलता है कि बारदेची वाडी का प्रतिनिधित्व करने वाली टेक देवगांव ग्राम पंचायत में केवल 32% घरों में ही नल कनेक्शन है और इसमें से एक भी कनेक्शन सुनीता की बस्ती को मुहैया नहीं कराया गया था।

इसका मतलब था कि हर गर्मियों में लगभग पांच महीने तक महिलाओं और बच्चों को 60 फुट के गहरे कुएं में उतरना पड़ता और पानी के तल में रिसने के इंतजार में घंटों बिताने पड़ते। भारत में घर में जरूरत के लिए पानी भरना काफी हद तक एक महिला का काम है। विश्व स्तर पर, महिलाएं और लड़कियां प्रतिदिन 20 करोड़ घंटे पानी इकट्ठा करने में बिताती हैं और एशिया में ग्रामीण इलाकों में पानी इकट्ठा करने के लिए औसतन 21 मिनट का समय लगता है।

हमने अपनी रिपोर्ट में पाया कि पानी की पाइप लाइन ने बर्देची वाडी की महिलाओं और बच्चों का काफी समय तो बचा दिया है, लेकिन पुरुष प्रधान समाज ने उन्हें दूसरे कामों में लगा दिया। गांव में हाई स्कूल ना होने और विकास के अन्य अवसरों की कमी का मतलब है कि ये खाली घंटे घर के अन्य कामों के लिए और अधिक समय में बदल गए हैं।

लगभग 200 लोगों की इस बस्ती के लिए पानी तक पहुंच बनाने में कठिनाई सरकार के जलापूर्ति दावों का आईना भी है और भीषण गर्मी में बेहतर जल प्रबंधन की जरूरत को भी दिखाती है। खासकर इस साल मार्च और अप्रैल में पड़ी भयंकर गर्मी, जिसने कई इलाकों में जल संकट को और बढ़ा दिया।

कैसे जीती महिलाओं ने पाइपलाइन की लड़ाई

भारत में 50% से भी कम आबादी के पास सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल तक पहुंच है। 17 सालों में साल 2017 तक पानी की आपूर्ति में 14% की वृद्धि के बावजूद, लगभग 60 करोड़ भारतीय "पानी की अत्यधिक कमी" का सामना कर रहे हैं, जैसे कि बर्देची वाडी में रहने वाले ग्रामीण।

बर्देची वाडी नासिक जिले के त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र में स्थित है। पड़ोस के कई गांवों समेत, यहां हर साल पानी की भयंकर कमी हो जाती है। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को पानी की आपूर्ति करने वाले बांधों में से एक मध्य वैतरणा बांध से 3 किमी से भी कम दूरी पर होने के बावजूद, ग्रामीणों के लिए इस पानी का बेहद कम इस्तेमाल किया जा रहा है। अभी तक किसी भी पाइप लाइन से गांव में पानी नहीं आया है।

यह गांव पानी के लिए सिर्फ एक कुएं पर निर्भर था और यह कुआं भी जनवरी या फरवरी आते-आते सूख जाता। पानी की कमी का संकट पूरी गर्मियों तक ऐसे बना रहता है। हालांकि पानी के कुछ टैंकर कुएं में पानी भरने में लगे हुए थे लेकिन टैंकरों के आने तक ग्रामीणों को 'टिपवन' (कुएं के फर्श से रिसने वाले थोड़े-थोड़े पानी को इकट्ठा करना) पर निर्भर रहना पड़ता था।

कुछ महीने पहले तक, जब कुएं में पानी का स्तर कम था तो महिलाएं कुएं में पानी का स्तर मापने के लिए लगी लोहे की सलाखों को सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल करके कुएं में जाती। और आधे कुए में उतरने के बाद जब यह सलाखें खत्म हो जाती तो वह एक रस्सी का इस्तेमाल करके नीचे उतरतीं।

अब बर्देची वाडी में महिलाओं को अब 60 फुट के कुएं से नीचे नहीं उतरना पड़ता है।

पानी भरने की कवायद बस यहीं खत्म नहीं होती है। घायल होने या सांप, बिच्छू के काटे जाने या किसी जंगली जानवर के हमला किए जाने का जोखिम उठाकर, वह रात के अंधेरे में टॉर्च की रोशनी में वहां घंटों बिताती। क्योंकि सुबह तक इंतजार करने का मतलब था कुए में पानी का खत्म हो जाना। अगर वह पानी के लिए रात में नहीं जाएंगी तो गांव के और लोग पानी निकाल लेंगे और तब उन्हें मायूसी के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता। रात में पानी भरने का एक कारण दिन के अन्य कामों के लिए समय को बचाना भी था।

साल 2019 में पानी के लिए हाहाकार मचाती महिलाओं का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद, बांध के पास एक बारहमासी कुएं से इस गांव में भंडारण टैंकों तक पानी लाने के लिए एक नई पाइपलाइन को मंजूरी दी गई थी।

इस पाइपलाइन को जल जीवन मिशन के पैसे से नहीं बल्कि इगतपुरी हीरामन खोस्कर विधान सभा के सदस्य के फंड और पंचायत निधि से लगाया गया। जेजेएम कार्यक्रम को टेक देवगाओ पंचायत में शुरू होना बाकी है, हालांकि मिशन का कहना है कि महाराष्ट्र के 71% घरों में जेजेएम के तहत नल कनेक्शन हैं।

2019 का एक वीडियो, जिसमें बर्देची वाडी की महिलाओं को नीचे एक खाई में जमा पानी भरने के लिए कुएं से नीचे गिराते हुए दिखाया गया है।

त्र्यंबकेश्वर के प्रखंड विकास अधिकारी एच एल खटाले ने कहा कि जेजेएम के तहत काम गांव कार्य योजना के अनुसार किया जाता है (टेक देवगांव में भी एक है)।

खटाले ने बताया, "कार्य योजना गांवों में किए जाने वाले कार्यों के लिए प्राथमिकता का क्रम निर्धारित करती है। लेकिन जेजेएम के तहत, हमें सबसे दूरदराज के गांवों तक भी घरेलू नल कनेक्शन देना है और हम इस गांव में भी एक ऐसी योजना लागू करने वाले हैं।"

इंडियास्पेंड ने केंद्र सरकार के पेयजल और स्वच्छता विभाग से भी संपर्क किया, उनकी प्रतिक्रिया मिलने के बाद लेख को अपडेट किया जाएगा।

इंडियास्पेंड ने मई के महीने में गांव का दौरा किया था। उस दिन वहां एक या दो घंटे तक बिजली नहीं थी। जिस कारण गांव वाले पानी भरने के लिए मोटर का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे। ग्रामीणों का कहना था कि वे बिजली कटौती से परेशान नहीं है। वह इसका ध्यान रखते हुए किसी और समय पर पानी भर सकते हैं। असल समस्या तो भंडारण टैंकों की क्षमता है।

श्रमजीवी संगठन नासिक के आदिवासी क्षेत्रों और महाराष्ट्र के अन्य जिलों में काम करता है। श्रमजीवी संगठन एक कार्यकर्ता भगवान ढोके ने कहा, "पाइपलाइन से निकलने वाले अतिरिक्त पानी को कुएं में बहा दिया जाता है, जिसकी जरूरत नहीं है। क्योंकि महिलाओं को पानी लेने के लिए फिर से कुएं में उतरना होगा। इसके बजाय एक बड़ा टैंक बना दिया जाए तो उन्हें नल से पर्याप्त पानी लेने में आसानी हो जाएगी।"

खटाले ने कहा कि वह एक बड़े टैंक की ग्रामीणों की मांग पर गौर करेंगे।

'पीढ़ी दर पीढ़ी महिलाओं का संघर्ष '

मई के इस गर्म दिन में हौसाबाई पारधी आज अपने जिस एक साल के बच्चे को गोद में उठाकर झूला-झुला रही थी, कुछ महीने पहले तक उस नवजात को कुएं में अपने साथ लेकर जाती थीं। वहां अन्य महिलाएं उसके सिर पर पानी का घड़ा रखने में मदद करती और वह बच्चे को गोद में उठाए, सिर पर पानी का घड़ा रखकर रोज घर तक का सफर तय करती थीं।

भगवान ढोके ने बताया, "एक महिला ने पूरे गांव के सामने गुस्से में कह दिया था कि अगर उसे यहां पानी की कमी के बारे में पता होता, तो वह कभी शादी करने और यहां रहने के लिए तैयार नहीं होती। इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी परिवार के लिए पानी की व्यवस्था की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही है।"

शालूबाई पारधी अपने जीवन के पचासवें साल में हैं। उन्होंने कहा, "महिलाएं पीढ़ी दर पीढ़ी इसी तरह से संघर्षों का सामना करती आईं हैं।" निवृति पारधी के मुताबिक पानी भरने के काम को पुरुष अपने लिए निचले दर्जे का मानते हैं।बर्देची वाडी के ग्रामीण अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है और कृषि मानसून पर। साल में वो एक फसल उगाते हैं, आमतौर पर चावल या फिर बाजरा। अधिकांश लोगों के लिए उनकी ये फसल जीवन यापन के लिए पर्याप्त होती है। ज्यादातर पुरुष काम के सिलसिले में गांव से बाहर रहते हैं और महिलाएं खेतों को संभालती हैं। साथ ही घर की देखभाल करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर रहती है।


पास के गांव वावी हर्ष में दसवीं कक्षा तक का एक स्कूल है, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को लगभग 30 किमी या एक घंटे दूर इगतपुरी जाना पड़ता है। वहां आने-जाने के लिए बसों की संख्या भी बेहद कम है।

नौवीं कक्षा की छात्रा संगीता पारधी सवाल करती हैं, "मैं कॉलेज जाना चाहती हूं लेकिन मेरे माता-पिता मुझे नहीं भेजेंगे। उन्हें लड़की का घर से बाहर जाना सुरक्षित नहीं लगता। पानी भरने में जो समय लगता था, वह तो बच गया। लेकिन हमारे जीवन में क्या बदलाव आया?"

वह आगे कहती हैं, "हम सिर्फ खेतों में काम कर रहे हैं या फिर उसकी जगह घर के अन्य काम करने में व्यस्त हैं।"

"असच अस्तेय (ऐसा ही है)" सुनीता पारधी यह कहते हुए अपने पांच साल के बेटे के साथ आने वाली बुवाई के मौसम के लिए जमीन तैयार करने के लिए वापस अपने खेतों की ओर मुड़ गई।

(यह खबर इंडियास्पेंड में प्रकाशित की गई खबर का हिंदी अनुवाद है।)

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