तय लक्ष्यों से कोसों दूर पीएम-कुसुम योजना; फीडर सौरीकरण पर 0% काम
कुसुम योजना से 3 साल में (फरवरी 2022 तक) सिर्फ 20 मेगावाट के सोलर पावर प्लांट लग पाए। जबकि केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि 2022 के अंत तक 10 हजार मेगावाट के पावर प्लांट लगेंगे।
लखनऊ: किसानों की आय दोगुनी करने और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने की नीयत से भारत सरकार ने फरवरी 2019 में एक योजना शुरू की। योजना का नाम है - 'प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) योजना'। कुसुम योजना के तीन घटक हैं या कहें इसमें तीन तरह की योजनाएं हैं। पहला, किसानों की जमीन पर सोलर पॉवर प्लांट लगाना। दूसरा, किसानों को सब्सिडी पर सोलर पंप देना और तीसरा, बिजली से चलने वाले ट्यूबवेल के फीडर का सौरीकरण करना। योजना शुरू होने से अब तक 3 साल से ज्यादा का वक्त गुजर गया है, लेकिन यह योजना फाइलों में सिमटी नजर आती है।
लोकसभा में 17 मार्च 2022 को पेश आंकड़ों के मुताबिक, कुसुम योजना के तहत 29 राज्यों में से सिर्फ 2 राज्य (राजस्थान-हिमाचल) में सोलर पावर प्लांट लगे हैं, बाकी के 27 राज्यों में एक भी प्लांट नहीं लगा है। देश में कुसुम योजना से 3 साल में (फरवरी 2022 तक) सिर्फ 20 मेगावाट के सोलर पावर प्लांट लग पाए। जबकि केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि 2022 के अंत तक 10 हजार मेगावाट के पावर प्लांट लगेंगे।
इसी तरह ट्यूबवेल के फीडर का सौरीकरण का काम किसी भी राज्य में नहीं हुआ है। दरअसल, खेती के लिए अलग से फीडर होते हैं। इन फीडर से सिंचाई वाले ट्यूबवेल चलते हैं। कुसुम योजना के तहत इन फीडर का सौरीकरण होना है। फीडर का सौरीकरण तो किसी राज्य में नहीं हुआ, लेकिन पूरे देश में सिर्फ राजस्थान में 1,026 व्यक्तिगत पंप का सौरीकरण हुआ है।
कुसुम योजना में सिर्फ एक काम होते दिखता है, किसानों को सिंचाई के लिए सोलर पंप देने का काम। हालांकि सोलर पंप भी मांग के मुकाबले बहुत कम दिए गए हैं। देश में सोलर पंप की स्वीकृत संख्या 3,59,462 है, लेकिन इनमें से सिर्फ 82,408 पंप ही किसानों को दिए गए हैं, यानी कि स्वीकृत संख्या का करीब 23%।
इन आंकड़ों से कुसुम योजना की बदहाली साफ नजर आती है। ऐसे में सवाल उठता है कि तीन साल बीतने के बाद भी यह योजना ठीक से क्यों नहीं चल पा रही है? इसी सवाल का जवाब जानने के लिए इंडियास्पेंड ने इस योजना के लाभार्थियों से लेकर संबंधित विभाग के अधिकारियों से बात की। इसमें योजना से जुड़ी कई तहर की दिक्कतें देखने को मिली। खास तौर से किसानों की जमीन पर सोलर प्लांट लगाने और ट्यूबवेल के फीडर का सौरीकरण करने से जुड़ी दिक्कतें।
सोलर पावर प्लांट लगाने में तमाम दिक्कत
यूपी के सोनभद्र जिले के किसान धीरेंद्र प्रताप सिंह (43) ने इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन किया है। धीरेंद्र अपनी जमीन पर सोलर पावर प्लांट लगवाना चाहते हैं। हालांकि करीब दो साल से वो कागजी कार्यवाही में ही उलझे हैं। धीरेंद्र कहते हैं, "मैं साल 2020 के आखिर से ही इस योजना का लाभ लेने में जुटा हूं। मुझे 0.5 मेगावाट का सोलर पावर प्लांट लगाना है। जब आवेदन किया था तब 1 मेगावाट के सोलर प्लांट की लागत 3.5 करोड़ रुपये थी, अब करीब 4.5 करोड़ रुपये हो गई है। सरकारी बैंक इस पर लोन देने को तैयार नहीं हो रहे। इसलिए प्राइवेट से फाइनेंस कराने में जुटा हूं।"
धीरेंद्र बताते हैं कि उन्होंने उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ बिजली खरीदने का करार (पावर पर्चेज़ एग्रीमेंट) भी साइन किया है। करार के मुताबिक, जब उनका सोलर पावर प्लांट लग जाएगा तो पावर कॉर्पोरेशन 3.07 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से धीरेन्द्र से बिजली खरीदेगा। फिलहाल धीरेंद्र सोलर प्लांट की लागत का 70% हिस्सा फाइनेंस कराने में जुटे हैं। उन्हें इस बात की भी फिक्र है कि वक्त के साथ लागत बढ़ती जा रही है।
धीरेंद्र कहते हैं, "जब मैंने आवेदन किया था तब सोलर पैनल पर 5% जीएसटी था, अब 12% जीएसटी हो गया है। लोहे का दाम बढ़ गया है। बैंक कहते हैं कि वो पुराने रेट पर ही फाइनेंस करेंगे। ऐसे में किसान एक करोड़ रुपए अपने पास से कहां लाएगा। मैं तो पहले ही दूसरी जमीन बेचकर; दोस्त, रिश्तेदारों से उधार लेकर प्लांट लगाने जा रहा हूं।"कुसुम योजना के तहत किसान 0.5 से 2 मेगावाट तक के सोलर प्लांट लगा सकता है। फिलहाल 1 मेगावाट के सोलर पावर प्लांट की लागत करीब 4.5 करोड़ रुपये है। किसान के पास बिजली घर से 5 किलोमीटर के दायरे में जमीन होनी चाहिए। एक मेगावाट के प्लांट के लिए करीब 4 एकड़ जमीन लगती है।
सोलर पावर प्लांट की लागत और नियम से साफ होता है कि बड़ी संख्या में किसान इसका लाभ नहीं ले सकते। बिजली घर से 5 किलोमीटर के दायरे में जिसकी जमीन होगी, वही किसान इसका लाभार्थी हो सकता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह संख्या कितनी मामूली होगी।
देश के अन्य राज्यों की तरह यूपी में भी कुसुम योजना फाइलों से जमीन पर नहीं उतर पाई है। योजना के तहत यूपी में किसानों की जमीन पर एक भी सोलर पावर प्लांट नहीं लगा। इसी तरह एक भी ट्यूबवेल के फीडर का सौरीकरण नहीं हुआ है, लोकसभा में 17 मार्च 2022 को पेश आंकड़ों के मुताबिक।
योजना के तहत सिर्फ और सिर्फ सोलर पंप दिए गए हैं, लेकिन मांग के मुकाबले सिर्फ 34%। प्रदेश में सोलर पंप की मांग 20 हजार है जबकि दिए गए सोलर पंप की संख्या सिर्फ 6,842 है।
कुसुम योजना के तहत सोलर पावर प्लांट लगवाने का काम उत्तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण (यूपीनेडा) के द्वारा हो रहा है। यूपीनेडा के निदेशक अनुपम शुक्ला इंडियास्पेंड को बताते हैं, "हम प्रदेश के 354 बिजली घर के आस पास सोलर पावर प्लांट लगाने का काम कर रहे हैं। यह पावर प्लांट बिजली घर के 5 किलोमीटर के दायरे में होंगे। 354 बिजली घर से 106 मेगावाट सौर उर्जा का उत्पादन करना है। इसमें से 8 मेगावाट का कान्ट्रैक्ट हो गया है और बाकी के 98 मेगावाट के लिए टेंडर जारी किए गए हैं।"
यूपीनेडा ने जुलाई 2022 में 98 मेगावाट क्षमता के लिए टेंडर निकाला है। इस टेंडर में किसान, किसान समूह, पंचायत, कृषक उत्पादक संगठन (FPO) भाग ले सकते हैं। इससे पहले यूपीनेडा ने जुलाई 2021 में 106 मेगावाट क्षमता के लिए टेंडर निकाला था, तब केवल 8 मेगावाट का कॉन्ट्रैक्ट हो पाया था। इसमें झांसी में 2 मेगावाट, महोबा में 2 मेगावाट, बांदा में 3.5 मेगावाट और सोनभद्र में 0.5 मेगावाट का कॉन्ट्रैक्ट हुआ। फिलहाल यह सभी सोलर पावर प्लांट सोनभद्र के धीरेंद्र की तरह कागजी कार्यवाही में उलझे हैं, क्योंकि टेंडर जारी होने से लेकर अब तक पावर प्लांट की लागत काफी बढ़ गई है।
फीडर सौरीकरण का काम शुरू भी नहीं हुआ
कुसुम योजना के तहत सोलर पावर प्लांट को लेकर फिर भी कुछ काम होते दिखता है, लेकिन जब बात ट्यूबवेल के फीडर के सौरीकरण की हो तो यहां काम शुरू भी नहीं हुआ। यूपीनेडा अभी प्लान कर रहा है कि इस काम को कैसे अंजाम दिया जाए। इसके लिए अलग-अलग योजनाएं बनाई जा रही हैं।
यूपीनेडा के निदेशक अनुपम शुक्ला कहते हैं, "हमारा लक्ष्य है कि 2 हजार मेगावाट क्षमता के एग्रीकल्चर फीडर का सौरीकरण किया जाए। प्लान है कि प्राइवेट कंपनियां आएंगी और फीडर का सौरीकरण करेंगी। बाद में यूपी पावर कॉरपोरेशन उनसे बिजली खरीदेगा। फिलहाल इसे लेकर योजना बनाई जा रही है। सरकार को सब्सिडी से जुड़ा प्रपोजल भी भेजना है।"
अनुपम शुक्ला बताते हैं, यूपी में 2025 तक सभी एग्रीकल्चर फीडर अलग कर दिए जाएंगे। जब एग्रीकल्चर फीडर पूरी तरह से अलग हो जाएंगे तब 7 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा तक उत्पादन हो पाएगा। अभी 600 से 700 एग्रीकल्चर फीडर हैं, जिनका सौरीकरण करने की योजना है। यूपीनेडा को 2030 तक 22 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन करने का लक्ष्य है।
कुसुम योजना का लक्ष्य बड़ा, लेकिन रफ्तार धीमी
कुसुम योजना को फरवरी 2019 में शुरू किया गया। इस योजना के बड़े-बड़े लक्ष्य हैं, जैसे - किसानों की आय दोगुनी करना, कृषि क्षेत्र को डीजल मुक्त करना, किसान को जल और ऊर्जा सुरक्षा देना और प्रदूषण कम करना।
योजना को लेकर केंद्र सरकार का दावा है कि भारत में करीब 3 करोड़ कृषि पंप हैं, इसमें से करीब 80 लाख पंप डीजल से चलते हैं। इन पंप को चलाने के लिए हर साल करीब 5.52 अरब लीटर डीजल की खपत होती है, यानी करीब 1.57 लाख डीजल के टैंकर लग जाते हैं। इससे करीब 1.54 करोड़ टन के बराबर CO2 (कार्बन डाईऑक्साइड) उत्सर्जन होता है। कुसुम योजना पूरी तरह लागू होने पर कार्बन उत्सर्जन में गिरावट आएगी और हर साल करीब 3.2 करोड़ टन CO2 का उत्सर्जन कम होगा।
कुसुम योजना के तहत 2022 के अंत तक देश में 30,800 मेगावाट सौर ऊर्जा की क्षमता स्थापित करनी है। तय मानक के अनुसार, 2022 तक 10 हजार मेगावाट के सोलर पावर प्लांट लगने हैं, किसानों को 20 लाख सोलर पंप देने हैं और 15 लाख पंप का सौरीकरण करना है।
लोकसभा में पेश आंकड़े बताते हैं कि कुसुम योजना तय लक्ष्य के आसपास भी नहीं है। योजना की शुरुआत से लेकर 28 फरवरी 2022 तक देश में सिर्फ 20 मेगावाट के सोलर पावर प्लांट स्थापित हो पाए हैं। राजस्थान में 10 मेगावाट के प्लांट और हिमाचल में 10 मेगावाट के प्लांट। जबकि सरकार का लक्ष्य है कि 2022 तक 10 हजार मेगावाट के सोलर पावर प्लांट लग जाएंगे। इसी तरह देश में मात्र 1,026 ट्यूबवेल का सौरीकरण हो पाया है, वो भी केवल राजस्थान में, जबकि लक्ष्य है कि 2022 तक 15 लाख पंप का सौरीकरण होगा।
PM KUSUM | Target to be achieved by 2022 | Target achieved till Feb 28, 2022 |
Solar power plants | 10,000 MW | 20 MW |
Solar pumps | 20 lakh solar pumps | 82,408 solar pumps |
Pump solarization | 15 lakh pumps | 1,026 pumps |
कुसुम योजना के तहत फिलहाल एक ही काम है जो होता दिखता है, वो है किसानों को सिंचाई सोलर पंप देना। हालांकि यह भी लक्ष्य से काफी पीछे है। सरकार का लक्ष्य है कि 2022 तक 20 लाख पंप दिए जाएंगे, जबकि 28 फरवरी 2022 तक पूरे देश में सिर्फ 82,408 सोलर पंप दिए गए हैं।
इस खबर को लेकर हमने नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के संयुक्त सचिव ललित बोहरा, निदेशक जीवन जेठानी को मेल किया है, उनका बयान आने पर खबर को अपडेट किया जाएगा।
सोलर पंप से किसान खुश, लेकिन बहुत कम लाभार्थी
किसानों के बीच सोलर पंप की काफी मांग है। कारण है कि केंद्र और राज्य सरकार इसमें 30-30% की सब्सिडी देते हैं, यानी पूरे 60% की सब्सिडी मिलती है। जैसे, 2 हॉर्स पावर (एचपी) के पंप की कीमत करीब 1.44 लाख रुपये है, इसमें किसान को 60% सब्सिडी के बाद करीब 57 हजार रुपए (40%) में सोलर पंप मिल जाएगा। ऐसी स्थिति में बड़ी संख्या में किसान सोलर पंप पाने का प्रयास करते हैं, लेकिन कृषि विभाग की ओर से काफी कम मात्रा में सोलर पंप दिए जाते हैं।
इस साल यूपी में 2 से 7.5 एचपी तक के 10 हजार सोलर पंप के लिए ऑनलाइन बुकिंग मांगी गई। 1 से 3 जुलाई तक अलग-अलग जिलों को अलग-अलग तारीख दी गई थी। कई किसान शिकायत करते रह गए कि वेबसाइट पर बुकिंग खुलते ही सारे पंप बुक हो गए। लखीमपुर खीरी जिले के श्रीनगर गांव के किसान रमेश चंद्र मिश्रा (45) कहते हैं, "पहले आओ-पहले पाओ की नीति से सोलर पंप देने थे। मैं जब वेबसाइट पर गया तो सब पंप बुक हो गए थे। अब अगली बार प्रयास करूंगा।"
सोलर पंप की बुकिंग को लेकर यूपी के अपर कृषि निदेशक अखिलेश चंद्र शर्मा कहते हैं, "हमने इस बार 200% तक बुकिंग ली है और तीन दिन में सारी बुकिंग हो गई। अब जिलों से किसानों के फोन आ रहे हैं कि उनका नेट नहीं चला, किसी के यहां वेबसाइट डाउन थी, लेकिन अब कुछ कर नहीं सकते। हमने 10 हजार पंप की बुकिंग मांगी थी, इसका 200% बुक किया है। ऐसे में इस साल 20 हजार किसानों को पंप देने का लक्ष्य है।"
कुसुम योजना के तहत सोलर पंप बुक करने के बाद किसान को कृषि विभाग में पेमेंट (सब्सिडी हटाने के बाद बचा हुआ 40%) जमा करना होता है। इसके बाद उसे पंप मिलता है। हालांकि पेमेंट जमा करने और पंप मिलने के बीच कई महीने लग जाते हैं।
यूपी के बाराबंकी जिले के जैनाबाद गांव के रहने वाले दयाराम वर्मा (58) ने कुसुम योजना के तहत 3 एचपी का सोलर पंप लिया है। दयाराम ने 2020 अगस्त में पेमेंट जमा किया और उन्हें करीब 1 साल 3 महीने बाद अक्टूबर 2021 में सोलर पंप मिला।
दयाराम सोलर पंप से काफी खुश हैं। इसकी वजह से खेती में उनकी काफी बचत हुई है। दयाराम कहते हैं, "इस पंप से मेथा यानी पेपरमिंट की खेती कर दी। पेपरमिंट में मार्च से जून के बीच करीब 8 से 10 बार पानी चलाना पड़ता था, जिसका खर्च करीब 20 हजार रुपये होता था। यह पूरी बचत है।"
पेपरमिंट के अलावा दयाराम ने सरसों और गेहूं में पानी सोलर पंप से ही चलाया, इस खेती में भी उनका पानी का खर्च बच गया। दयाराम और इन जैसे दूसरे किसान जिन्हें सोलर पंप की सुविधा मिल पाई है, वो पंप से काफी खुश हैं।
फिलहाल कुसुम योजना का यही एक घटक है जिसका फायदा किसानों तक पहुंच रहा है। हालांकि इसकी संख्या काफी कम है। इसका अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं कि दयराम के पास सोलर पंप है, यह बात उन्हें अपने गांव और आस पास के गांव में अलग पहचान दिलाती है। क्योंकि सोलर पंप बहुत ही कम किसानों के पास हैं।
कुसुम योजना को लेकर सरकार की ओर से कहा जाता रहा है कि यह योजना हमारे किसानों को 'अन्नदाता से ऊर्जादाता' बनाएगी। हालांकि तीन साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बावजूद जमीन पर इसका उतना असर देखने को नहीं मिल रहा।
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