नए जैव विविधता प्रारूप के नैरोबी सत्र में लैंगिकता पर बनी रही नजरअंदाजी

केन्या की राजधानी नैरोबी में आयोजित चौथे वार्ता सत्र में जैव विविधता प्रारूप में लैंगिक एकीकरण को लेकर टारगेट 22 जैसे अति महत्वपूर्ण विषय पर बमुश्किल चर्चा हुई। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए सिर्फ एक संपर्क समूह की बैठक हुई।

Update: 2022-07-26 10:42 GMT

नैरोबी (केन्या): हाल ही में कुल 196 देशों के प्रतिनिधि और 165 सिविल सोसाइटी ग्रुप दुनिया में न्यू फ्रेमवर्क फॉर बायोडायविर्सिटी कंजरवेशन (नई संरचना में जैव विविधता संरक्षण) विषय पर चर्चा के लिए केन्या की राजधानी नैरोबी में इकट्ठा हुए थे।

लेकिन जाहिर तौर पर महिलाओं का संसाधनों को सहेजने और जैव विविधता संरक्षण में योगदान के सुबूतों के बावजूद इस बैठक में पर्यावरण संरक्षण को लेकर लैंगिक समानता पर बात नहीं हुई। इस बैठक का आयोजन 2020 के बाद वैश्विक जैव विविधता संरक्षण प्रारूप को अंतिम रूप देने के लिए किया गया था।

लैंगिक समानता के लिए एक ख़ास लक्ष्य (स्टैंडअलोन टारगेट), टारगेट-22 पहली बार मार्च 2022 में जिनेवा के एक सत्र में प्रस्तावित किया गया था। इसमें कोस्टा रिका, चिली, ग्वाटेमाला और तंजानिया समेत कई देशों के गैरसरकारी संगठन शामिल हुए थे। इस जैव विविधता सम्मेलन (सीबीडी) में 13 दलों ने सहमति जताई थी जिसकी संख्या नैरोबी के सत्र में 22 हो गई।

प्रेक्षकों ने बताया कि नैरोबी में सिर्फ एक सम्पर्क समूह सत्र का आयोजन किया गया था जहां सभी देश टारगेट पर चर्चा और उसका मूलपाठ तैयार करने के लिए एकत्रित हुए थे, लेकिन उसको अंतिम रूप नहीं दिया जा सका।

सिविल सोसाइटी संगठन समर्थित महिलाओं का एक समूह जो लैंगिक समानता के लिए निर्धारित लक्ष्य को सपोर्ट करता है ने प्रेस ब्रीफिंग में इस बात को माना कि सम्मेलन अब तक लैंगिक समानता के मुद्दे को केन्द्र में नहीं ला पाया है।

नैरोबी वार्ता सत्र के अपने शुरुआती संबोधन में वीमेंस कॉकस ने कहा, "अगर लैंगिक समानता को ध्यान में रखकर जैव विविधता से संबंधित योजना, नीतियां बनाई जाएंगी तो ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क के अंतर्गत निर्धारित लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति सुनिश्चित होगी।''

"यह लैंगिक समानता प्राथमिकताओं की दिशा में कार्रवाई करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि देश जैव विविधता संरक्षण के लिए अपनी योजना, निगरानी और रिपोर्टिंग प्रक्रियाओं में इस लक्ष्य पर विचार करें।"

जैव विविधता संरक्षण में लैंगिकता का महत्व

एक तरफ जहां स्थायी संसाधन प्रशासन और संरक्षण में महिलाओं की भूमिका और उनके बढ़ते योगदान के सुबूतों की कोई कमी नहीं है, वहीं दूसरी ओर जैव विविधता संरक्षण में इनकी क्रियाशीलता और भूमिका को व्यवस्थित तौर पर मैपिंग करने, उनको संग्रहित करने, उनका विश्लेषण करने, संसाधनों को हासिल करने व प्रयोग में लाने और लाभ को साझा करने वाले तंत्र सीमित हैं।

उदाहरण के लिए भारत में कृषि कामगारों की बात करें तो 65% से ज्यादा का योगदान महिलाओं का है। फिर भी छोटी जोत वाली या फिर सीमांत भूमि धारक परिवारों में जहां पुरुषों की विस्थापन दर ज्यादा है, में देखा गया है कि महिलाओं को उन जमीनों पर कानूनी हक नहीं मिल पाता। उनका नाम न तो अकेले और न ही पति के साथ संयुक्त रूप से शामिल किया जाता है। इससे इन महिलाओं को बहुत से संसाधनों को हासिल करने में दिक्कतें पेश आती हैं। मसलन, सिंचाई, ऋण या फिर विस्तार सेवा प्राप्ति में जिसका सीधा संबंध जमीनों पर मालिकाना हक से जुड़ा होता है। इसका सीधा मतलब है कि वो महिलाएं जो जमीन और जल से जबरदस्त तरीके से जुड़ी हैं उन्हें संरक्षण प्रयासों में सहभागिता के लिए सशक्त बनाया ही नहीं जा रहा है।

इससे पहले आइची बायोडायवर्सिटी टारगेट्स में 2020 के लिए लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इसमें जैव विविधता को हो रहे नुकसान पर काम करना, इसमें प्रत्यक्ष रूप से लैंगिक मुद्दों को खुले तौर पर संबोधित करने वाला एकमात्र टारगेट-14 ही था। इसके जरिए महिलाओं की जरूरतों, स्वदेशी लोगों, स्थानीय समुदायों और गरीब तथा वंचितों को ध्यान में रखा जाना था जो पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली और उसको सुरक्षित रखने में मददगार थे। इस पर रणनीतिक योजना के भीतर कोई अन्य प्रावधान शामिल नहीं था। कोई भी नहीं जिसके जरिए नीतियों में, कार्यक्रमों के डिजाइनों में और इन्हें लागू करने में लैंगिक सहभागिता सुनिश्चित की जा सके।

बायोलॉजिकल डायवर्सिटी सम्मेलन के 2015-2020 जेंडर प्लान ऑफ एक्शन में लिंग परिप्रेक्ष्य को एकीकृत करने के लिए उसे राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीतियों और कार्य योजनाओं (NBSAPs) में समाहित करना शामिल था। यहां भी उद्देश्य जैव विविधता संरक्षण में लैंगिक संतुलन संबंधी कार्य को ही संभव बनाना था।

वीमेन फॉर डायवर्सिटी की निदेशक और महिला अधिकार तथा पर्यावरण अधिकारों की समर्थक व सीबीडी के वीमेन एंड जेंडर कॉकस की सह संयोजक मृणालिनी राय कहती हैं, "आइची में टारगेट 14 ने महिलाओं की भूमिका को पहचाना, लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। दिक्कत ये है कि हम लक्ष्य से इतर कुछ देखना ही नहीं चाहते। सो आइची में स्वदेशी लोगों पर केन्द्रित टारगेट 14 और 18 में महिलाओं की भूमिका को भी जोड़ा गया। लेकिन इस बात के आंकलन करने के लिए कोई संकेतक नहीं था कि देश महिलाओं को कैसे जोड़े। उदाहरण के लिए भूमि अधिकार जिसमें लक्ष्यों की रिपोर्टिंग भी शामिल है।"

इसलिए जेनेवा में पोस्ट 2020 ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क में नए लैंगिक संतुलन लक्ष्य को विभिन्न देशों और समर्थक समूहों द्वारा प्रस्तावित किया गया। इसका उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों को जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग के साथ-साथ जैव विविधता नीति और निर्णय लेने के सभी स्तरों पर सटीक जानकारी, प्रभावी भागीदारी और लाभ सुनिश्चित कराना है।

राय कहती हैं, "हमारी प्रमुख मांग महिलाओं को भूमि अधिकार दिलाने की है।" इंडियास्पेंड ने 2018 में रिपोर्ट किया था कि भारत में परिचालन जोत के केवल 12.8% हिस्से पर ही महिलाओं का मालिकाना हक है जो चीन से कम है वहां यह दर 17% है यानी सम्पूर्ण भारत की परिचालन जोत का ये केवल 10वां भाग है।

कुछ दलों का मत है कि चूंकि जेंडर प्लान ऑफ एक्शन (जीपीए) मौजूद है वो फ्रेमवर्क का पूरक है सो लैंगिक संतुलन से संबंधित अलग टारगेट की आवश्यकता नहीं है। नारीवादी और लैंगिक समानता के पैरोकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते। वह मानते हैं कि फ्रेमवर्क में लैंगिक समानता का समावेश जरूरी है। इससे जीपीए यानी जेंडर प्लान ऑफ एक्शन को भी नई जिंदगी मिलेगी।

सीबीडी के 15वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप15) में नैरोबी वर्किंग ग्रुप के सह अध्यक्ष बेसिल वैन हावरे ने अपने एक प्रेस संबोधन में कहा- जीबीएफ में लैंगिक मुद्दा एक अहम मुद्दा है। आप यकीनन इसे हर टारगेट में डाल सकते हैं और इसे शामिल करना ही चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि संरचना में शामिल करने का सर्वोत्तम तरीका क्या होगा?

नैरोबी वार्ता में लैंगिक मुद्दे पर नाममात्र की प्रगति

नैरोबी वार्ता सत्र में, सम्पर्क समूह IV जिसे नए टारगेट पर बहस की जिम्मेदारी दी गई थी उसने टारगेट 22 को सिर्फ एक बार पढ़ा।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण पर मानवाधिकार अधिकारी, बेंजामिन स्कैचटर ने कहा, "फिलहाल जो टेक्स्ट है उसमें कई ब्रैकेट्स हैं। यूएन भाषा में एक चौकोर कोष्ठक का मतलब होता है, मूलपाठ पर सहमति नहीं बनी है और इनसे मुक्ति पाने का मतलब होगा कुछ विवादास्पद शब्दों और अंशों पर सहमत होना।"

पहले टारगेट 22 को लेकर जो ड्राफ्ट प्रस्तावित था उसमें लिखा था, "जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग से मिलने वाले लाभ की महिलाओं और लड़कियों तक समान रूप से पहुंच बने यह सुनिश्चित करना और साथ ही जैव विविधता से संबंधित नीति और निर्णय लेने के सभी स्तरों पर उनको सटीक जानकारी मुहैया कराना और प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करना।"

वहीं, इस सत्र में नॉर्वे ने नया टेक्स्ट पेश कर दिया जिसमें लिखा है, "वैश्विक जैव विविधता ढांचे के कार्यान्वयन और सम्मेलन के तीन उद्देश्यों की प्राप्ति में लैंगिक समानता सुनिश्चित करना जिसमें महिलाओं और लड़कियों की अर्थपूर्ण और जानकारीपरक भागीदारी, भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर मालिकाना हक के साथ नीति और निर्णय लेने की क्षमता को पहचानना शामिल हो।"

नॉर्वे टेक्स्ट को सेंट्रल और लैटिन अमरीकी देशों का समर्थन मिला तथा मजबूत व सार्थक भाषा के पक्षधर समूहों ने इसकी सराहना की।

चूंकि सम्मेलन में शामिल बाकी 174 देशों से इसे समर्थन नहीं मिला, सो टेक्स्ट को लेकर अंतिम निर्णय अधर में लटका हुआ है। कुछ दल टारगेट में स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के साथ ही महिलाओं की जैव विविधता संरक्षण में भूमिका और योगदान को शामिल करना चाहते हैं।

हालांकि, महिलाओं को टारगेट वार्ता में फ्रेम करना और अन्य जेन्डर्स को शामिल न करना अन्य देशों द्वारा अपनाया नहीं गया। अन्य देशों ने नॉर्वे के टारगेट वाले टेक्स्ट में "जेंडर" शब्द को स्वीकार करने से इनकार कर दिया क्योंकि उनके राष्ट्रीय कानून (LGBTQIA) जेंडर वाले व्यक्तियों को मान्यता नहीं देते हैं।

वीमेन कॉकस की सदस्य और पुणे स्थित पर्यावरण कार्रवाई समूह कल्पवृक्ष की समर्थक शोधकर्ता श्रुति अजीत कहती हैं, "अब जबकि वार्ता जारी है, हम आशा करते हैं कि पार्टियां उन तीन मुख्य प्राथमिकताओं को बनाए रखने में सक्षम होंगी जिनके आधार पर हमारे पास टारगेट 22 है जो कुछ यूं है- औपचारिक निर्णय लेने वाले निकायों में महिलाओं को मान्यता और जानकारीपरक और समान भागीदारी सुनिश्चित करना; समान भूमि धारक बनने का अधिकार और जैव विविधता के संरक्षण तथा सतत उपयोग के क्षेत्र में समान पहुंच और लाभ सुनिश्चित करना।"

आगे का रास्ता

साल 2020 के बाद के ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क पर अंतिम निर्णय 5 से 17 दिसंबर के बीच मॉन्ट्रियल में COP15 बैठक के लिए स्थगित कर दिया जाएगा, क्योंकि जैव विविधता संरक्षण के लिए विकसित और विकासशील देशों के बीच वित्त, इक्विटी और लाभ-साझा करने संबंधी कई मुद्दों पर विवाद है जिन्हें अभी हल किया जाना बाकी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक कई पहलुओं को जिनमें अलग-अलग समूहों के अधिकारों जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं की नई संरचना में व्याख्या नहीं होगी तब तक जैव विविधता संकट से निपटना मुश्किल होगा।

श्रुति अजीत कहती हैं, "अब जबकि कई दलों का समर्थन मिलने लगा है और लैंगिक समानता लक्ष्य की जरूरत को उन्होंने मान्यता देनी शुरू कर दी है तो हम आशान्वित हैं कि टारगेट 22 को सीओपी में अपनाया जाएगा जिससे वैश्विक जैव विविधता संरचना जेंडर रिस्पॉन्सिव बनेगा।"

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