कम रिक्तियां, देरी से नियुक्ति: नौकरी तलाशने में पूर्व सैनिक विफल क्यों?
पूर्व सैनिकों का कहना है कि भले ही उनमें अनुशासन और समय की पाबंदी जैसे गुण हैं फिर भी कई ऐसे स्किल्स की कमी होती है जिससे सार्वजनिक जीवन और नौकरी में खुद को खपाने में दिक्कतें आती हैं।
मुम्बई/रोहतक: बावन साल की उम्र में कैप्टन जगवीर मलिक सेना से रिटायर हुए। उन्होंने 2011 में जूनियर व्याख्याता पद के लिए आवेदन डाला। फिर हरियाणा शिक्षा विभाग द्वारा परीक्षा आयोजित कराये जाने का दो साल तक इंतजार किया। फिर अगले दो साल साक्षात्कार के इंतजार में बीत गए। फिर इंटरव्यू के 6 महीने बाद भी जब पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित पदों के लिए नियुक्ति पत्र नहीं मिला तो शिक्षा विभाग के निदेशक से मिले और उनसे इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कहा और अंततः आवेदन के 6 साल बाद जब नियुक्ति पत्र मिला तो कैप्टन मलिक की सेवानिवृत्ति की उम्र में महज तीन महीने बच गए थे। हरियाणा में शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की उम्र 58 साल है।
इंडियास्पेंड से बातचीत में 64 साल के कैप्टन मलिक कहते हैं - "तब मैं क्या सर्विस करता, सो मैंने वो नौकरी ठुकरा दी।"
जगवीर मलिक उन 60,000 सैन्य कर्मियों में से एक हैं जो 32 साल की सेवा के बाद हर साल सेना से रिटायर होते हैं। रिटायरमेंट की न्यूनतम उम्र 42 साल है (ग्रुप-1 के अर्द्धकुशल सिपाही पद वाले या फिर 17 साल सेवा देने के बाद, जो भी पहले पूरा हो जाए)। इसका सीधा अर्थ ये हुआ कि इनके पास 5 से 25 साल के बीच का समय सक्रियता से नौकरी करने का होता है। ये सैन्यकर्मी ग्रुप सी और डी सरकारी नौकरी में 10% कोटा के हकदार होते हैं, ये लिपिक और आम नौकरियों के लिए आवेदन करते हैं। इंडियास्पेंड से बातचीत में कैप्टन मलिक कहते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन तो मिलती है, लेकिन इतनी नहीं कि परिवार ठीक से पल सके।
14 जून 2022 को सेना के लिए नई भर्ती प्रक्रिया अग्निपथ भर्ती स्कीम की घोषणा की गई है। इस योजना के तहत भर्ती हुए सैनिक अग्निवीर कहे जायेंगे। योजना के मुताबिक अग्निवीर केवल 4 साल के लिए सेना में भर्ती होंगे। इनमें से 25% को 15 साल के लिए जूनियर कमीशंड ऑफिसर (जेसीओ) पद हेतु स्थायी नौकरी पर रखा जाएगा, जबकि बाकी 75% अग्निवीरों को आम नागरिक के तौर पर ही जीवन यापन करना होगा। चार साल के बाद उन्हें कुल 11.70 लाख रुपए जरूर मिलेंगे लेकिन बिना पेंशन और ग्रैच्यूटी के। सरकार का कहना है कि केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल और असम रायफल्स में भी कुछ पद अग्निवीरों के लिए रखे जाएंगे।
लेकिन पूर्व सैनिकों का कहना है कि अग्निपथ स्कीम में चार साल की नौकरी के दौरान मिलने वाली टेक्निकल या अन्य ट्रेनिंग सैनिकों के लिए रिटायरमेंट के बाद की नौकरी के लिए पर्याप्त नहीं होगी। आंकड़े बताते हैं कि केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स (पीएसयू) वगैरह में आरक्षण के बावजूद भी सभी पूर्व सैनिकों को नौकरी नहीं मिल पाती है। सेना से रिटायर होने के बाद बचत के तौर मिली राशि से ये लोग आगे की पढ़ाई भी करते हैं और स्नातक डिग्री से लेकर किसी खास क्षेत्र के लिए जरूरी कुशलता को भी प्राप्त करते हैं। इससे उन्हें अन्य प्रतियोगियों की अपेक्षा नौकरी हासिल करने में आसानी होती है।
अफसरशाही की हीलाहवाली मतलब नौकरी के अवसरों को खो देना
ऐसा नहीं है कि कैप्टन जगवीर मलिक को पब्लिक सेक्टर में भर्ती की प्रक्रियागत खामियों की वजह से समय से नियुक्ति नहीं मिल सकी। ऐसे उदाहरण और भी कई हैं।
सूबेदार मेजर पद से रिटायर हुए चंद्रभान (57) भी उनमें से एक हैं। इन्होंने 2014 में हरियाणा सरकार के अंतर्गत लिपिक पद के लिए आवेदन दिया। भर्ती प्रक्रिया के सभी चक्र पूरे किए, लेकिन नियुक्ति रद्द हो गई क्योंकि सूबे में चुनाव के बाद कांग्रेस के भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की जगह मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार सत्ता में आ गई। जब दूसरी बार भर्ती की घोषणा हुई तो वो 50 साल के थे और नौकरी की पात्रता खो चुके थे।
इनके जैसे ही राज कुमार (40) हरियाणा पुलिस में कॉन्स्टेबल पद के लिए संघर्षरत हैं। बताते हैं- इस पद के लिए उन्होंने 2020 में ही आवेदन कर दिया था। कभी परीक्षा के पेपर लीक हो जाते हैं तो कई बार प्रश्न पत्र इतना कठिन आता है कि भर्ती प्रक्रिया रद्द हो जाती है और भर्तियां हो नहीं पाती हैं। राज कुमार की बेसब्री का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगले 5 साल में वो इस नौकरी के लिए अपात्र हो जाएंगे।
सार्वजनिक जीवन में काम नहीं आते सेना में सीखे गुर
जूनियर कमीशंड ऑफिसर बनने की न्यूनतम योग्यता 10वीं पास होती है। ऐसा ही अग्निवीर के लिए तय किया गया है।
राज कुमार कहते हैं कि वो किसी भी सिविलियन के मुकाबले ज्यादा अनुशासित हैं। उन्होंने सेना में 17 साल बिताए हैं। अलबत्ता सेना से रिटायरमेंट के बाद वो जिन नौकरियों के लिए आवेदन कर रहे होते हैं उन्हें उन नौकरियों के पैटर्न और सिलेबस को समझने में मदद की दरकार होती है।
इंडियास्पेंड से बातचीत में राज कुमार बताते हैं, "किसी शख्स को जब नौकरी मिलती है तो वो पूरी जिम्मेदारी के साथ उसे निभाता है, अच्छा काम करने की पूरी कोशिश करता है, लेकिन समस्या ये है कि आर्मी में जीवन बिताते वक्त हम आम समाज से दूर रहते हैं और जब लौटते हैं तो सार्वजनिक जीवन की कई चीजों को समझने और उसे हैंडल करने में दिक्कतें पेश आती हैं।"
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल इम्प्लॉयमेंट में अर्थशास्त्री रोजा अब्राहम कहती हैं, "ये बेमेल स्किल है और यह बहुत विशिष्ट स्किल्ड लोगों का एक समूह तैयार करेगा इन स्किल्ड लोगों की कोई डिमांड भी होगी या नहीं इसे लेकर फिलहाल कोई स्पष्टता नहीं है। इस हस्तक्षेप से सैनिकों को अपने साथियों के मुकाबले कुछ फायदा तो मिलेगा लेकिन समान लाभ प्राप्त करने के अन्य तरीके भी हैं।"
नीति अनुसंधान केंद्र के सीनियर फेलो सुशांत सिंह ने इंडियास्पेंड को बताया, "अपनी उस नौकरी में उन्होंने रेडियो बनाना सीखा, किसी वाहन या टैंक अथवा हथियारों का रखरखाव आदि सीखा होता है, लेकिन ये स्किल बमुश्किल सार्वजनिक जीवन में काम आते हैं।"
सुशांत आगे बताते हैं, "ये लोग अनुशासन जैसी कुछ सॉफ्ट स्किल जरूर सीख लेते हैं और इसे ही सरकार बेचने का प्रयास कर रही है। हालांकि इसको हम इस तरह से भी देख सकते हैं कि उतना समय उसने शैक्षिक कार्यों में नहीं लगाया और इस वजह से उसे सिविल जॉब पाने में दिक्कत होती है। वैसे भी जो लोग सैनिक के पद पर नियुक्ति पाते हैं उनमें स्किल की कमी होती है, इस तरह उनके पास संभावनाएं सीमित ही होती हैं।"
पब्लिक सेक्टर में भर्तियों की धीमी रफ्तार से तंग आकर कई सेवानिवृत सैनिक निजी क्षेत्रों में सुरक्षा गार्ड के तौर पर तैनात हो जाते हैं। कोई विकल्प नहीं बचा तो चंद्रभान, जो बतौर सूबेदार मेजर आर्मी से रिटायर हुए थे, ने सुरक्षा गार्ड के लिए आवेदन डाल दिया, लेकिन वो कहते हैं कि काम के घंटों के हिसाब से हर महीने 8,000 रुपये के वेतन पर नौकरी बहुत घाटे का सौदा है। इसमें अतिरिक्त समय खपाने का कोई मुआवजा भी शामिल नहीं होता है। चंद्रभान कहते हैं, "सरकार को अच्छे से पता है कि सैनिकों का शोषण हो रहा है।"
अग्निवीरों को निजी क्षेत्र की नौकरियों में मिलेगा थोड़ा फायदा
पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2020-21 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 15 से 29 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी दर 12.9% थी।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के सीईओ महेश व्यास के मुताबिक 11.7 लाख रुपए की बचत के साथ अग्निवीर बाकी लोगों के मुकाबले ठीक-ठाक स्थिति में होंगे। ये उनके मुकाबले जिनके पास सैन्य अनुभव नहीं है उनसे बेहतर स्थिति में होंगे। जब ये सेवानिवृत्त होकर सार्वजनिक जीवन में आएंगे और नौकरी के बाजार में खड़े होंगे तो इनके मुकाबले में वही होंगे जिन्होंने 10वीं या 12वीं पास की होगी, जो स्नातक नहीं होंगे। अग्निवीर शारीरिक तौर पर सुदृढ़ होंगे और शारीरिक श्रम करने में सक्षम होंगे। लिहाजा ऐसी कई नौकरियां होंगी जो अग्निवीरों की फिटनेस को प्राथमिकता देंगी।
व्यास कहते हैं कि 22 और 23 साल की उम्र ऐसा भी नहीं होती कि आप कॉलेज न जा सकें। सो, ये लोग अपने पैसों का प्रयोग डिग्री हासिल करने में लगा सकते हैं। मैं फिर कहता हूं जब ये किसी भी नौकरी में जाएंगे तो इनकी अपने साथियों के मुकाबले स्थिति बेहतर होगी जिनके पास इनके जैसा सैन्य अनुभव नहीं होगा।
लेकिन, फिर भी सरकार को अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखकर नौकरी का सृजन करना होगा। एक निश्चित राशि देना स्वागत योग्य है, लेकिन पब्लिक सेक्टर में अस्थायी नौकरी देने से अच्छा था कि पब्लिक सेक्टर की ही रिक्त पड़े पदों को भरा जाता। महामारी के बाद लड़खड़ाते अनौपचारिक क्षेत्र को पुनर्जीवित करना और निजी क्षेत्र के रोजगार को प्रोत्साहित करने पर फोकस किया जाना जरूरी था। रोजा अब्राहम के मुताबिक, "पैसा गहरे फ्रैक्चर के लिए अस्थायी बचाव का रास्ता भर है।"
अग्निपथ को लेकर अभ्यर्थियों के हंगामे के बाद कई उद्योगपतियों ने ट्विटर पर आकर कहा कि वो सेवानिवृत्त सैनिकों को अपने संस्थानों में नौकरी पर रखेंगे। इंडियास्पेंड ने आरपीजी ग्रुप, बायोकॉन और महिन्द्रा एंड महिन्द्रा के सीईओ के ट्वीट के आधार पर चिट्ठी लिखी ये जानने के लिए कि अब तक इन्होंने कितने पूर्व सैनिकों को अपने यहां काम पर रखा है। जब इनके जवाब आएंगे तो हम स्टोरी को अपडेट करेंगे।
सार्वजनिक क्षेत्र में पद के मुकाबले पूर्व सैनिक ज्यादा
पूर्व फौजियों की शिकायत है कि उनके लिए नौकरियां बहुत कम आरक्षित हैं। आंकड़े बताते हैं कि इस कमी के बावजूद भी जो पद पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित होते हैं उन्हें वो भी नहीं मिल पाते। आरक्षण के नियमानुसार, ग्रुप ए, बी, सी और डी में पूर्व सैनिकों के लिए कुल 4,13,688 पद उपलब्ध रहने चाहिए।
हालांकि, पुनर्वास निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार, बैंकों, केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में इन नौकरियों में से एक चौथाई (413,688 में से 80,135) ही पूर्व सैनिकों के खातों में जाती हैं। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, जिसने सेवानिवृत्त अग्निवीरों के लिए 10% आरक्षण की घोषणा की है, ने जून 2021 तक पूर्व सैनिकों को ग्रुप सी में 10% में से केवल 0.47% को काम पर रखा। देश में 170 पीएसयू में से 98 के आंकड़ों के आधार पर कह सकते हैं कि केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों ने ग्रुप सी की रिक्तियों का 1.15% और पूर्व सैनिकों के साथ ग्रुप डी रिक्तियों का 0.3% स्टाफ ही रखा।
ये आंकड़े बताते हैं कि 2026 में 34,500 रिटायर अग्निवीरों के लिए अतिरिक्त पदों की आवश्यकता होगी। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ऐलान किया है कि अग्निवीरों को असम राइफल्स और केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल में प्राथमिकता दी जाएगी, लेकिन ये स्पष्ट नहीं किया कि वे पूर्व सैनिकों के समान कोटे के लिए पात्र होंगे या नहीं।
इंडियास्पेंड ने गृह मंत्रालय से भी कई सवाल पूछे हैं। इन नौकरियों के लिए आवेदन करने के लिए अग्निवीरों की योग्यता पर स्पष्टीकरण मांगा। पूछा है कि सेवा के अंत में उनके पास कितनी बचत होगी, वर्तमान में खाली पूर्व सैनिकों के पदों का कारण जानना चाहा और क्या अग्निवीर के पास सेवानिवृत्त सैनिकों की तुलना में नौकरी मिलने की संभावना ज्यादा होगी। गृह मंत्रालय का जवाब जब आएगा हम आपसे साझा जरूर करेंगे, लेकिन इस बारे में चंद्रभान कहते हैं, "सार्वजनिक क्षेत्र में कुछ नहीं बदलेगा। जब उन्होंने पहले ही सेना से रिटायर लोगों को नौकरी नहीं दी तो भला नए लोगों को कहां से देंगे।"