गोवा: 100% माॅलिक्यूलर टेस्‍ट से मिली मदद, जल्‍द शुरू हो रहा टीबी मरीजों का इलाज

100% NAAT जांच शुरू करने के बाद गोवा के पेरिफेरल हेल्‍थ सेंटर्स अब 62% मामलों का पता लगा रहे हैं जो पहले आधे से भी कम था।

Update: 2024-11-22 11:47 GMT

गोवा के पोंडा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ट्रूनेट मशीनें। 100% माॅलिक्यूलर टेस्‍ट के साथ गोवा टीबी के मामलों का जल्दी पता लगा रहा है।

गोवा: पिछले दो साल से गोवा में टीबी का पता लगाने के लिए 100% माॅलिक्यूलर टेस्‍ट हो रहा है। माॅलिक्यूलर टेस्‍ट लार माइक्रोस्कोपी से ज्‍यादा सटीक है जो दशकों से टीबी नियंत्रण कार्यक्रम का मुख्य आधार रहा है। इसने गोवा में टीबी रोग‍ियों का जल्‍द पता लगाने और उनका इलाज सुनिश्चित करने में काफी मदद की है।

लार माइक्रोस्कोपी का मतलब है माइक्रोस्कोप के नीचे रॉड जैसे टीबी बैक्टीरिया की तलाश करना। यह विधि तेज और सस्ती है। लेकिन इसकी संवेदनशीलता बहुत कम (40-60%) है क्योंकि इसमें अधिक संख्या में बैक्टीरिया का पता लगाने की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है कि लगभग आधे मामलों का पता नहीं चल पाता है। बच्चों और एचआईवी और एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी के रोगियों में टीबी के लिए इसकी संवेदनशीलता भी कम है।

दूसरी ओर न्यूक्लिक एसिड एम्पलीफिकेशन टेस्ट (NAAT) तेज जांच प्रक्र‍िया है जो टीबी बैक्टीरिया की आनुवंशिक सामग्री की पहचान कर सकते हैं और 90% से अधिक संवेदनशील और सटीक हैं। ये जांच टीबी की प्रमुख दवाओं में से एक रिफैम्पिसिन के प्रतिरोध का भी पता लगा सकते हैं। NAAT टेस्‍ट के लिए भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के पास अमेरिका स्थित सेफिड से जीनएक्सपर्ट या गोवा स्थित मोलबायो डायग्नोस्टिक्स से ट्रूनेट है।

गोवा राज्य टीबी अधिकारी मनीष गौनेकर ने बताया कि गोवा में NAAT परीक्षण शुरू होने से पहले वे मेडिकल कॉलेज में अधिकांश टीबी मामलों का निदान करते थे। NAAT टेस्‍ट के उपयोग से पेरिफेरल सेंटर्स पर पहचान में सुधार हुआ है जो 2019 में सभी मामलों के 50% से कम से 2023 में 62% तक पहुँच गया है।


गोवा ने 2020 में माॅलिक्यूलर टेस्‍ट को बढ़ावा देना शुरू किया और 2024 इंडिया टीबी रिपोर्ट के अनुसार 100% NAAT परीक्षण वाला एकमात्र राज्य है। लद्दाख (93%) और मेघालय (81%) दूसरे स्थान पर हैं।

गोवा में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में चार जीनएक्सपर्ट सिस्टम और 17 ट्रूनेट सिस्टम हैं। ट्रूनेट पोर्टेबल, बैटरी से चलने वाले प्लेटफॉर्म पर चलता है और इसे अनियमित बिजली आपूर्ति वाले कठिन इलाकों में स्थित परिधीय (पेरिफेरल) स्वास्थ्य केंद्रों में ले जाया जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक वर्ष 2027 तक टीबी को खत्‍म करने का लक्ष्‍य लेकर चल रहे हैं। इसके लिए उन्‍होंने सभी तक तेज जांच की पहुंच को जरूरी बताया है। भारत टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार केवल 21% संभावित टीबी टेस्‍ट का उपयोग एनएटी में किया गया था।


कम समय में इलाज

शोधकर्ताओं ने टीबी देखभाल कैस्केड का मॉडल तैयार किया है ताकि अंतराल का अनुमान लगाया जा सके जैसा कि इंडियास्पेंड ने मई 2023 में रिपोर्ट किया था। टीबी से पीड़ित जिन रोगियों ने टीबी का टेस्‍ट नहीं करवाया, उनकी संख्या अंतराल 1 है, जिन रोगियों का इलाज नहीं हुआ, वह अंतराल 2 हैं, जिन्होंने इलाज के लिए पंजीकरण नहीं कराया, उनका अंतराल 3 हैं, जो सफलतापूर्वक ठीक नहीं हुए, वह अंतराल 4 हैं और जो उपचार के बाद भी फिर से बीमार हो गए या मर गए, उनका अंतराल 5 हैं।

टीबी में देखभाल के कैस्केड में भारत का सबसे महत्वपूर्ण अंतर रोग का निदान ही है, जैसा कि हमने रिपोर्ट किया था। राष्ट्रीय टीबी प्रसार अध्ययन 2019-21 के अनुसार लक्षण वाली आबादी का अधिकांश हिस्सा - लगभग 64% - स्वास्थ्य सेवाओं की तलाश नहीं करता है। इसका कारण या तो वे लक्षणों को अनदेखा करते हैं या वे लक्षणों को टीबी के रूप में नहीं पहचानते हैं या वे देखभाल लेने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि जो रोगी देखभाल चाहते हैं, उनका जल्द से जल्द टेस्‍ट और इलाज किया जाना चाहिए ताकि वे टीबी देखभाल के दायरे से बाहर न हो जाएं।

वर्ष 2020 से पहले अगर गोवा के किसी मरीज में लक्षण दिखते थे तो उन्हें सबसे पहले बलगम की माइक्रोस्कोपी करानी पड़ती थी। अगर यह निगेटिव होता था - जो कि लगभग 50% मामलों में होता है, भले ही मरीज को टीबी हो - तो उन्हें जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज जैसे उच्च केंद्र में जाना पड़ता था जिससे कम से कम डेढ़ से दो महीने का समय बर्बाद होता था, गौनेकर ने कहा।

पोंडा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्वास्थ्य अधिकारी स्मिता पारसेकर बताती हैं, "हमारे मरीज ज्‍यादातर प्रवासी मजदूर या बुज़ुर्ग हैं।" पोंडा, पणजी में गोवा मेडिकल कॉलेज से लगभग 32 किमी दूर है।

"टीबी की जाँच करवाने के लिए उन्हें बड़े अस्पतालों में बहुत समय बर्बाद करना पड़ता था, जहाँ उन्हें पूरा दिन अस्पताल में बिताना पड़ता था और यहाँ तक कि फॉलोअप के लिए भी आना पड़ता था।" गौनेकर ने आगे कहा, "इस समय तक बैक्टीरिया बढ़ जाते थे और मरीज ज्‍यादा संक्रामक हो जाता था।" "माइक्रोस्कोपी दूसरी या तीसरी बार में ही इसका पता लगा पाती थी। अब जो हो रहा है, वह यह है कि संक्रमण का पता प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा केंद्र में ही शुरू में लग जाता है।"

राष्ट्रीय टीबी प्रसार सर्वे में 33% मामलों का निदान विशेष रूप से NAAT परीक्षण के आधार पर किया गया था। विशेष लार माइक्रोस्कोपी से केवल 7.9% मामले सामने आए। सर्वे माॅलिक्यूलर टेस्‍ट कवरेज को प्राथमिकता देने की सिफारिश करता है।

फॉलोअप में आसानी

त्वरित जांच पद्धति की उपलब्धता से टीबी मरीजों की संख्‍या का सही आंकलन और उनकी संख्‍या को एकत्र करने में मदद कर रहा, इससे टीबी अधिकारियों को विश्लेषण करने में आसानी हो रही है। गोवा में टीबी मृत्यु दर अधिक है - 2022 में लगभग 8.3% जबकि अखिल भारतीय मृत्यु दर 3.9% है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 22 अक्टूबर को रिपोर्ट किया था। 2023 में यह बढ़कर 9.6% हो गई।

दक्षिण गोवा के टीबी अधिकारी गोविंद देसाई कहते हैं, "चूंकि हम टीबी से होने वाली मौतों का ऑडिट करते हैं, इसलिए हमें एहसास हुआ है कि लोग भर्ती होने के पाँच दिनों के भीतर मर रहे हैं। क्योंकि हम उनका जल्दी इलाज कर रहे हैं, इसलिए हम उन्हें टीबी से होने वाली मौतों के रूप में दर्ज कर सकते हैं।"

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बेहतर जांच पद्धति की उपलब्धता के कारण निजी डॉक्टर भी अपने मरीजों को टीबी जांच के लिए वहां भेज रहे हैं। "मेरे इलाके यानी पोंडा में पीएचसी के आसपास करीब 3-4 गांव हैं। यहां कई निजी डॉक्टर टीबी के लक्षणों वाले अपने मरीजों को पीएचसी में रेफर कर रहे हैं। यहां तक ​​कि मरीजों का फॉलोअप भी तेजी से हो रहा है। पारसेकर ने कहा।


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