तराई के गांवों में ख़ौफ, आखिर इंसानों पर इतने हमलावर कैसे हो गये भेड़िये?
बहराइच में कई जान ले चुके छह में से चार भेड़ियों को तो पकड़ा जा चुका है। लेकिन ग्रामीण अभी भी डर हुए हैं। इन सबके बीच बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर भेड़िया इंसानों के प्रति अचानक इतना हमलावर कैसे हो गये? जानकार इसके लिए कई पहलुओं को जिम्मेदार बता रहे हैं।
बहराइच/लखनऊ। “सावधान, सावधान, सावधान। आप सबको सचेत किया जाता है कि आपके क्षेत्र में एक खूंखार जंगली जानवर घूम रहा है जो बच्चों और बड़ों को अपना शिकार बना रहा। ऐसे में शाम होते ही आप अपने घरों में लौट जाएं और सावधान रहें। बच्चों का खास ध्यान रखें।”
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर दूर जिला बहराइच के महसी तहसील के 30 से ज्यादा गांवों में पिछले एक महीने से ग्रामीणों को स्पीकर के जरिये ये चेतावनी बार-बार दी जा रही है।
भारत-नेपाल सीमा से सटे तराई में बसे इन गांवों में लोग दहशत में हैं। इस दहशत की वजह है जंगली भेड़िया। आधिकारिक बयानों के अनुसार इस क्षेत्र में मार्च से अब तक जानवर के हमलों से 8 बच्चों और एक महिला की मौत हो चुकी है। मार्च-अप्रैल में दो की मौत हुई थी, जिसमें से एक का शव नहीं मिल पाया।
17 जुलाई से अब तक सात हमले हो चुके जिसमें एक वृद्ध महिला और 6 बच्चों की मौत हो चुकी है। 20 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। फारेस्ट विभाग ने भेड़िए के हमले से सिर्फ 5 मौत की पुष्टि की है। मुख्य वन संरक्षक मध्य जोन रेनु सिंह ने बताया कि जिन 5 की पुष्टि हुई, उनमें से 5 को 5-5 लाख रुपए का मुवावजा दिया जा चुका है जबकि दो शवो को विसरा जांच के लिए देहरादून भेजा गया है।
आतंक मचा रहे इन छह भेड़ियों को पकड़ने के लिए 11 टीमें बनाई गई हैं। इन टीमों का नेतृत्व कर रहे बाराबंकी के प्रभागीय वनाधिकारी आकाश दीप बधावन ने बताया कि 6 भेड़ियों का एक झुण्ड था जो इन घटनाओं को अंजाम दे रहा था जिसमें से 4 को पकड़ लिया गया है। 4 में से दो को लखनऊ जू और एक को गोरखपुर जू भेजा गया है। एक कि मौत हो गई है। बाकी दो बचे हैं जिनको पकड़ने का प्रयास जारी है।
भेड़ियों के लोकेशन को ट्रेस करने के लिए 5 ड्रोन चलाए जा रहे हैं और 2 ड्रोन अभी आने वाले हैं। गांवों मे लोग दहशत में हैं और अपने बच्चों को बचाने के लिए टोलियां बनाकर पहरा दे रहे हैं। लोंगों की सुरक्षा के लिए भी दो कंपनी पीएसी और चार थाने की पुलिस लगी हुई है।
कई गांवों में तो मां अपने बच्चों को रस्सियों से बाँधकर अपने पास सुला रही हैं और इन नरभक्षी भेड़ियों को गांव से दूर रखने के लिए रात में पटाखों को भी जलाया जा रहा है।
बच्चों को निशाना बना रहा भेड़िया
“मेरा बेटा मच्छरदानी में सो रहा था। बगल की खाट पर उसका बड़ा भाई भी था। तभी वह शोर मचाने लगा। कहने लगा मेरे भाई को कहां ले जा रहे हो। हम लोग जगे तो देखा कि भेड़िया मेरे बेटे को उठाकर ले जा रहा था। हम दौड़े तो वह बच्चे को वहीं छोड़कर भाग गया।” बहराइच के गांव नैकूपुरवा में रहने वालीं उत्कर्ष की मां बड़कन बताती हैं कि कैसे उनका बेटा मौत के मुंह से बाहर निकल आया।
लेकिन दीवान पुरवा के अयांश की किस्मत उत्कर्ष जैसी नहीं थी। “हमारे दो बच्चे आंगन में मच्छरदानी लगाकर सो रहे थे। भेड़िया दबे पांव आया और हम जान भी नहीं पाए। कुछ देर बाद जब हमने देखा कि मेरा बेटा नहीं है तो हम लोग ढूंढने निकले। कुछ दूर खेत में हमारे लाल का शव मिला।”
अयांश का मां और परिजन आज भी उस रात की भयावहता से कांप उठती हैं।
सिसैय्या चुरामणि निवासी सूरज ने बताया कि जब से भेड़िये का आतंक बढ़ा है, तब से दिन हो और रात, हमें घर से निकलने में डर लगता है। हम लोग कोशिश करते हैं कि अकेले न निकलें और रात को तो हम लोग झुण्ड बना कर पहरा देते हैं। जागते रहो, जागते रहो का नारा लगाते रहते हैं। हमारे इलाके में बहुत से परिजन डर के मारे बच्चों को स्कूल तक नहीं जाने दे रहे हैं।
बहराइच में भेड़िये की तलाश करती वन विभाग की टीम।
फोटो: फॉरेस्ट डिवीजन विभाग, बहराइच
बहराइच के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) अजीत प्रताप सिंह का कहना है हम ग्रामीणों से कह रहे हैं कि बच्चों को बाहर न सुलाएं। उन्हें अंधेरा होने के बाद बाहर जाने से रोकें।
वे यह भी बताते हैं कि इस इलाके घरों में दरवाजे बहुत कम हैं। ऐसे भेड़िये घर में घुस जाते हैं। चार भेड़ियों के पकड़े जाने के बाद से स्थिति अब हद तक नियंत्रण में है। कई बार सियार, या अन्य छोटे जानवर जो आसानी से आबादी के आस पास दिख जाते है उन्हें लोग भेड़िया समझ बैठते है जिसकी वजह से भी दहशत बढ़ी है।
रेंज ऑफिसर बहराइच, मोहम्मद साकिब बताते हैं, “जिस जगह ये घटनाएं हो रही हैं, ये घाघरा का कछार क्षेत्र है। यहां पानी की उपलब्धता ठीक-ठाक है। इसलिए जंगली जानवर इधर ज्यादा आ रहे हैं। गन्ने के पौधे बड़े हो गये हैं। ग्रासलैंड भी है। ऊपर से बहुत ज्यादा गर्मी हो रही या बारिश। रेसक्यू में इसलिए भी देरी हुई।”
आखिर भेड़िया नरभक्षी कैसे हो गया?
अजीत प्रताप सिंह कहते हैं, “आम तौर पर भेड़िया इंसानों पर हमला नहीं करता। ये कैसे हो रहा, यह कह पाना मुश्किल है। लेकिन एक संभावना जो बन रही, वह यह है कि हो सकता है कि उसने गलती से इंसानों पर हमला किया हो और बाद में उसे इसकी आदत पड़ गई।”
वे यह भी बताते हैं कि हाल के वर्षों में ऐसी कोई घटना नहीं हुई जिससे पता चले कि भेड़ियों ने इंसानों पर हमला किया हो। लगभग 20 साल पहले गोंडा, बहराइच और बलरामपुर, में भेड़ियों के हमलों से लगभग 32 बच्चों की जान चली गई थी। उसके बाद से एक मात्र यही घटना सामने आई है।
लखनऊ विश्व विद्यालय की प्रोफेसर व वन्यजीव विशेषज्ञ अमिता कनौजिया का मानना है कि बाढ़ के प्रकोप से भेड़िए के हैबिटेड (रहने की जगह) कम पड़ने के कारण वह नरभक्षी हो गये हैं, क्योंकि उनको आसानी से भोजन नहीं मिल पा रहा।
“भेड़िए की यह प्रजाति इंडियन ग्रे वोल्फ, तराई में पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है। कुछ दिन पूर्व एक रिपोर्ट के जरिए पता चला था कि इनकी संख्या लखीमपुर और पीलीभीत एरिया में 100 से अधिक हैं और लखीमपुर का काफी हिस्सा बहराइच से जुड़ता है तो इनकी यहां भी अच्छी तादाद होगी।” अमिता आगे बताती हैं।
वन विभाग की टीमों का नेतृत्व कर रहे बाराबंकी के प्रभागीय वनाधिकारी आकाशदीप बधावन कहते हैं कि किसी न किसी ऐक्शन की वजह से रिएक्शन होता है।
“अभी जो हमने पग मार्क इकट्ठा किए हैं, उनमें एक भेड़िये के पैर में कोई दिक्कत है जिसकी वजह से वह चल नहीं पा रहा और शिकार भी नहीं कर पा रहा। इसलिए वह आसान शिकार ढूढ़ रहा है। ऐसे में उसने आसान शिकार के रूप में एक बार इन्सानी बच्चे का शिकार कर लिया तो जिसकी वजह से वह नरभक्षी हो गया और उसे आसान शिकार की आदत पड़ जाती है। चूंकि भेड़िया अपने झुण्ड में एक सामाजिक प्राणी है इसलिए वह अपने साथ और भेड़ियों को जोड़ लेता है। लगभग ऐसी ही स्थित इस समय महसी इलाके की है जहां एक लंगड़े भेड़िए की आदत बिगड़ने के कारण भेड़िए का एक झुण्ड इंसानी बच्चों के लिए काल बना हुआ है।” बधावन आगे बताते हैं।
बधावन यह भी कहते हैं मौके पर जो दिखा, उसे देखकर तो यही लगा कि भेड़ियों का व्यवहार असामान्य है। ये छोटे जानवरों को शिकार बनाते हैं। लेकिन अब ये इंसानों पर हमला कर रहे हैं तो यह शोध का विषय है।
भेड़ियों के पैरों के निशान।
फोटो: फॉरेस्ट डिवीजन विभाग, बहराइच
हालांकि प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव संजय श्रीवास्तव का विचार थोड़ा इससे अलग है। वे कहते हैं, “इस समय बारिश का मौसम है जिसकी वजह से जंगलों में पानी भर गया है। जंगली जानवर खाने की खोज में जंगल से बाहर आ रहे हैं। ऐसे में जंगल के आसपास उन्हें जो मिल रहा, वे उसे अपना शिकार बना रहे हैं।
साप्ताहिक पत्रिका नोर्देन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार वैसे तो ग्रे भेड़िये लंबे समय से मिशिगन को अपना घर कहते आए हैं। लेकिन 1800 और 1900 के दशक में उन्मूलन प्रयासों के कारण राज्य में उनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया। (भेड़ियों को वर्तमान में संघीय लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम के तहत संरक्षित किया गया है।) 1991 तक यह पुष्टि नहीं हुई थी कि ऊपरी प्रायद्वीप में एक बार फिर से झुंड प्रजनन कर रहा है।
तब से भेड़ियों की आबादी में काफी वृद्धि हुई है। वर्तमान डेटा के अनुसार मिशिगन प्राकृतिक संसाधन विभाग का अनुमान है कि उत्तर प्रदेश में 631 भेड़िये हैं, जिनमें से 49 भेड़िये 136 झुंडों में विभाजित हैं। (प्रत्येक झुंड में चार से पांच भेड़िये होते हैं।)
भेड़िये उन प्राकृतिक वातावरणों के लिए एक अच्छी तरह से प्रलेखित वरदान हैं जिनमें वे रहते हैं, यही कारण है कि उन्हें जानबूझकर येलोस्टोन और आइल रॉयल जैसे राष्ट्रीय उद्यानों के साथ-साथ कोलोराडो, एरिज़ोना, न्यू मैक्सिको और कई अन्य राज्यों में फिर से पेश किया गया है।
रिपोर्ट में लिखा है कि भेड़िये शीर्ष शिकारी होते हैं और वे सफेद पूंछ वाले हिरण, ऊदबिलाव और खरगोश का शिकार करते हैं। एक सच यह भी है कि उनके अधिकांश शिकार असफल होते हैं। उनके सफल शिकार में आमतौर पर बुजुर्ग, बीमार, अशक्त, कमज़ोर और कुपोषित लोगों को मारना शामिल होता है।
अमरिका के मिशिगन स्थित डिपार्टमेंट ऑफ नेचुरल रिसोर्सेस के वन्यजीव जीवविज्ञानी ब्रायन रॉएल नॉर्देन एक्सप्रेस में बताते हैं कि भेड़िए और अवारा कुत्ते के बीच अक्सर मुठभेड़ की खबरें आती हैं। लेकिन इंसानों पर हमले के मामले बहुत ही कम हैं।
मिशिगन प्राकृतिक संसाधन विभाग (डीएनआर) में 22 वर्षों से कार्यरत अनुभवी वन्यजीव जीवविज्ञानी क्रिस्टी सितार बताती हैं कि उत्तर प्रदेश में इस तरह कम हमलों की एक वजह उनकी जनसंख्या का आकार है। भेड़िये प्रकृति के सबसे बेहतरीन लंबी दूरी के जॉगर हैं। एक भेड़िया अपने जीवन के हर दिन 10-12 घंटे इलाके में दौड़ता है और हर झुंड का इलाका बहुत बड़ा होता है।
सीतार आगे बताती है कि वर्ष 2005 और 2017 के दो अध्ययनों से एक ही निष्कर्ष निकला कि यूपी की 16,378 वर्ग मील भूमि पर भेड़िया आवास है।
भारत में भेड़ियों सहित लुप्तप्राय प्रजातियों के आवासों की रक्षा के लिए काम करने वाली संस्था वाइल्डलाइफ एसओएस की एक रिपोर्ट मुताबिक प्राकृतिक बदलाव की वजह से मौसम और ऋतु पर असर हो रहा है, जिसकी वजह से वन्य जीवों पर भी इसका प्रभाव ब्रीडिंग सीजन और माइग्रेशन पर देखने को मिल रहा है। इसलिए जंगली जानवरों के साथ मुठभेड़ बढ़ रही है।
फिलहाल वन विभाग की टीम दिन-रात एक कर नरभक्षी भेड़िया की तलाश में लगी हुई है तो वहीं दूसरी और गांव में दहशत जस की तस बनी हुई है जिसकी वजह से लोग अपने घरों से जरूरी कामों के लिए भी बाहर नहीं जा रहे हैं। दिन रात गाँव की सीमाओं पर पहरा दे रहे हैं।
हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। कृपया respond@indiaspend.org पर लिखें। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।