1901 के बाद फरवरी में पड़ी इतनी गर्मी, गेहूं, सरसों की पैदावार पर कितना असर?
भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार फरवरी 2023 वर्ष 1901 के बाद सबसे गर्म रहा। ऐसे में किसान और जानकारों का मानना है कि रबी सीजन की गेहूं और सरसों जैसी फसलों के उत्पादन पर इसका व्यापक असर पड़ सकता है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 250 किलोमीटर दूर जिला भदोही के सुरियावां में रहने वाले किसान प्रमोद कुमार शुक्ला गेहूं की फसल देखकर परेशान हैं। उन्होंने इस साल 50 बीघा खेत (12.50 एकड़) में गेहूं लगाया है। लेकिन फसल की बदलती रंगत ने उनके चेहरे का रंग बदल दिया है।
“कम से कम 35 साल से गेहूं की खेती कर रहा हूं। धान और गेहूं ही होता है हमारे क्षेत्र में। लेकिन इससे पहले फरवरी में कभी इतनी गर्मी नहीं देखी थी। दाने बिना पके ही सूख रहे हैं। बालियों का रंग झुलसा सा दिख रहा। पिछले साल मार्च में तापमान बहुत ज्यादा था जिसने हमें नुकसान पहुंचाया था। और अब इस साल भी हालात वैसे ही लग रहे।” 55 साल के प्रमोद कहते हैं।
भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार फरवरी 2023 में अधिकतम तापमान 29.66 डिग्री सेल्सियस (ºC), मिनिमम 16.37ºC और औसत तापमान 23.01ºC रहा जबकि 1981-2010 की अवधि के अनुसार ये तापमान क्रमश: 27.80 ºC, 15.49 ºC और 21.65 ºC था। विभाग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पूरे भारत में फरवरी 2023 के दौरान औसत अधिकतम तापमान 1901 के बाद से सबसे अधिक 29.66 ºC रहा और इसने 29.48 ºC के पहले के उच्चतम रिकॉर्ड को तोड़ दिया जो फरवरी 2016 में था।
मौसम विभाग ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में यह भी अनुमान लगाया है कि मार्च 2023 से मई 2023 के बीच पूर्वोत्तर, पूर्व और मध्य भारत में अधिकतम तामपान सामान्य से अधिक रहेगा। जबकि दक्षिण प्रायद्वीपीय को छोड़कर देश के अन्य हिस्सों में न्यूनतम तापमान भी सामान्य से ज्यादा रहने की आशंका जताई गई है।प्रमोद कुमार शुक्ला ने इंडियास्पेंड को बताया कि 2021 में प्रति एकड़ लगभग 27 क्विंटल गेहूं निकला था। 2022 में ये घटकर 24 क्विंटल हो गया था। उन्हें आशंका है कि इस साल पैदावार और घटेगी।
“बालियों में दाने भर ही नहीं पाए हैं। मैंने 25 नवंबर के बाद बुवाई की थी। ऐसे में मेरे क्षेत्र में उन किसानों की फसल कुछ ठीक लग रही है जिन्होंने अगेती किस्म की बुवाई की थी। 25 नवंबर के बाद लगी फसल की बालियों में दाने हल्के लगे हैं। समय से पहले की गर्मी ने हमें चिंतित कर दिया है। उत्पादन में कमी आ सकती है।”
भदोही से लगभग 170 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के हसनपुर में दो एकड़ में गेहूं लगाने वाले 47 वर्षीय किसान रघुनाथ रावत भी प्रमोद की तरह चिंतित हैं।
फरवरी महीने की 22 तारीख को भारत मौसम विज्ञान विभाग ने एक स्पेशल बुलेटिन में अगले पांच दिन के मौसम को लेकर चेतावनी के लहजे में कहा था कि तेलंगाना, ओडिशा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान 35 से 37 डिग्री सेल्सियस तक रह सकता है। यह भी कहा कि उत्तर पश्चिम, पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत में तापमान सामान्य से 3 से 5 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा रह सकता है।
इसके बाद 9 मार्च को विभाग ने अगले बुलेटिन में यह भी कहा कि 9 से 15 मार्च तक उत्तर भारत के राज्यों (उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाण, पंजाब और मध्य प्रदेश जो कि गेहूं उत्पदान के मामले में अग्रणी राज्य हैं) में अधिकतम 27.4 से 34.9 जबकि न्यूनतम तापमान 13 से 17.7 डिग्री सेल्सियस तक रह सकता है जो गेहूं और जौ जैसी फसलों के लिए अनुकूल है। हालांकि यह चेतावनी भी दी गई कि कई जगह बारिश भी हो सकती है, ऐसे में किसानों को विशेष सावधान बरतने को कहा गया।
इसके असर को लेकर मौसम विभाग ने कहा कि दिन के इस उच्च तापमान से गेहूं की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। गेहूं की फसल प्रजनन वृद्धि या फूल आने के करीब पहुंच रही है जो ज्यादा गर्मी सहन नहीं कर पाती है। फूल और परिपक्वता के समय उच्च तापमान से उपज में कमी आती है। सब्जी की फसलों और बागवानी पर भी कुछ ऐसा ही असर पड़ सकता है।
करनाल स्थित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) के प्रधान कृषि वैज्ञानिक अनुज कुमार (Quality and Basic Science) बताते हैं कि किसान गेहूं की तीन किस्मों की खेती करते हैं। अगेती यानी समय से पहले, समय पर, और पछेती। हर किस्म का दाना पकने में अलग-अलग समय लेता है। सामान्य तौर पर 140-145 दिनों में फसल तैयार होती। 100 दिन की फसल में बाली आने लगती है।
वे आगे बताते हैं, “25 नवबंर से पहले बोई गई फसल मार्च के महीने में तैयार हो जाती है, जबकि 25 नवंबर के बाद बोई गई फसल अप्रैल तक पक जाती है। आखिरी के एक महीने में गेहूं की बालियों में दूध भरने लगता है। इस समय सही तापमान की जरूरत पड़ती है। ज्यादा तापमान के कारण बालियां जल्दी पक जाती हैं जिसकी वजह से दाने पतले हो जाते हैं। ऐसे में दानों की संख्या तो ठीक रहेगी। लेकिन वजन कम हो जायेगा।”
भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार गेहूं उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं।
लागत के साथ चिंता भी बढ़ी
मध्य प्रदेश के जिला उज्जैन के तराना में रहने वाले किसान जाविद पटेल ज्यादा तापमान की वजह से बढ़ी लागत का गणित समझाते हुए बताते हैं, “मार्च के पहले सप्ताह में ही आज (3 मार्च को) मैं पांचवीं बार पानी दे रहा, जबकि फसल पकने में अभी लगभग एक महीने का समय है। मतलब अभी दो से तीन बार पानी और देना पड़ेगा। जबकि दो-तीन साल पहले तक चार से पांच सिंचाई में फसल पककर घर आ जाती थी।”
हरियाणा के जिला सिरसा के गांव बागुवाली में इस साल सरसों की फसल वैसी नहीं रही जैसी उम्मीद थी। गांव के कुछ किसानों ने सरसों की कटाई कर ली है तो कुछ अभी तैयारी कर रहे हैं। फरवरी और मार्च महीने में ज्यादा तापमान ने सरसों की फसल को भी नुकसान पहुंचाया है।
“गर्मी की वजह से पौधे कमजोर हो गये। दानों का वजन हल्का हो गया। ऐसे में इससे तेल कम निकलेगा।” गांव के 62 वर्षीय किसान बहादुर सिंह इंडियास्पेंड को फोन पर बताते हैं।
“बदलते मौसम का असर साफ दिख रहा है। पहले बेमौसम बारिश हुई और अब ज्यादा गर्मी। पौधे यह सब सहन नहीं कर पा रहे हैं।” वे आगे बताते हैं।
लखनऊ कृषि विज्ञान केंद्र में वरिष्ठ वैज्ञानिक और क्रॉप पैटर्न के जानकार डॉ. अखिलेश कुमार दुबे का कहना है कि फरवरी महीने के शुरुआती सप्ताह में ज्यादा तापमान ने सरसों पर प्रभाव डाला है। “ फरवरी के पहले और दूसरे सप्ताह में तापमान सरसों के लिए जरूरी तापमान 25 से 30 डिग्री से ज्यादा रहा। ऐसे में उसके फूलों पर असर पड़ा है। कई जगह फूल मुरझा गये तो कहीं आकार छोटे हो गये। लेकिन अभी रात का मौसम ठीक है। ऐसे में अब यहां से ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि फसल की कटाई भी शुरू हो गई। अगर तापमान और बढ़ता है तो पछेती फसल पर जरूर असर देखने को मिल सकता है।”
“सरसों की फसल पर असर कम देखने को मिल सकता है। वजह है कि 25 अक्टूबर के बाद तापमान ठीक हुआ है। दिन का मौसम भले ही गर्म है। लेकिन रात का तापमान सही है। अगर दिन में भी तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्सियस तक रहता है तो सरसों की फसल को दिक्कत नहीं होगी। पैदावार पर असर पड़ेगा भी तो उन क्षेत्रों में जहां बुआई देर से हुई है। समय पर या पहले लगी फसल पर असर नहीं पड़ेगा।” सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर के निदेशक प्रमोद कुमार राय ने इंडियास्पेंड हिंदी को बताया।
हालांकि कृषि वैज्ञानिक अनुज कुमार का कहना है कि अभी कुछ भी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगा।
“ये बात बिल्कुल सही है कि ज्यादा तापमान से गेहूं की फसलों को नुकसान पहुंचता है। लेकिन यहां देखने वाली बात यह भी कि अगर ज्यादा तापमान एक सप्ताह से ज्यादा तक रहता है तो नुकसान हो सकता है। गेहूं की पैदावार पर असर पड़ सकता है। लेकिन चूंकि रात का तापमान ठीक है तो नुकसान की आशंका कम है। हम कई वर्षों से बदलते मौसम को देख रहे हैं। ऐसे में हम काफी समय से ऐसी किस्मों पर जोर दे रहे हैं कि जो ऐसे प्रतिकूल मौसम से लड़ने में सक्षम है। देश के बहुत हिस्सों में ऐसी ही किस्म लगाई जा रही।”
“भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) गेहूं की एक नई किस्म एचडी-3385 लेकर आई है जो ज्यादा गर्मी सह सकती है। लेकिन जिन किसानों ने दूसरी किस्म की गेहूं लगाई है, उनकी फसलों पर ज्यादा तापमान का असर देखने को मिल सकता है। लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि कोई भी किस्म बहुत ज्यादा समय तक गर्मी सहन नहीं कर सकती।” वे आगे बताते हैं।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से दो मार्च 2023 को बताया कि गेहूं की फसल की स्थिति की निगरानी के लिए कृषि और किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) की गठित समिति की एक बैठक हाल ही में आईसीएआर- भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान करनाल में आयोजित हुई। इसमें शामिल वैज्ञानिकों ने कहा कि ज्यादातर बड़े गेहूं उत्पादक राज्यों में गर्मी से लड़ने वाली किस्मों की खेती हुई है। ऐसे में बढ़ते तामपान का असर नहीं होगा।
इसके अलावा, हरियाणा और पंजाब में लगभग 75 प्रतिशत क्षेत्र जल्दी और समय पर बुवाई की स्थिति में है और इसलिए, जल्दी बुवाई वाले फसल क्षेत्र मार्च के महीने में गर्मी की स्थिति से प्रभावित नहीं होंगे। बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)/राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) के साथ केंद्र और राज्य सरकारों की सभी विस्तार एजेंसियों को नियमित रूप से किसानों के खेतों का दौरा करना चाहिए और जहां भी गर्मी के प्रभाव की स्थिति होती है, वहां किसानों को समय पर परामर्श देना चाहिए।
फसली सीजन 2021-22 के दौरान गेहूं उत्पादन में कमी आई थी। 20 दिसंबर 2022 को लोकसभा में सरकार से पूछा गया था कि क्या कुछ हिस्सों में लू और कुछ हिस्सों में ज्यादा बारिश की वजह से गेहूं उत्पादन में कर्मी आई है। इस सवाल के जवाब में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने बताया कि जून-जुलाई (2021-22) के चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार गेहूं उत्पादन 106.84 मिलियन टन अनुमानित रहा जो 2020-21 की अपेक्षा 2.75 मिलियन टन (2.5%) कम रहा। इससे पहले के सीजन में कुल उत्पादन 109.59 मिलियन टन था।
केंद्रीय बारानी कृषि अनुसंधान संस्थान हैदराबाद- आईसीएआर ने वर्ष 2022 मार्च-अप्रैल में बढ़े तापमान का फसलों पर पड़े असर का आंकलन किया जिसका उल्लेख "हीट वेव 2022" की रिपोर्ट में है। रिपोर्ट के अनुसार मार्च-अप्रैल 2022 के बीच पंजाब में ज्यादा तापमान की वजह से गेहूं की फसलों को नुकसान पहुंचा। गेहूं के दाने बिना पके ही पीले पड़ गये जिसकी वजह से उत्पादन 25 फीसदी तक कम हो गया। मूंग और मक्के का उत्पादन भी कम हो गया। हरियाणा में लू के कारण गेहूं और चने का उत्पादन 10 से 15% तक घट गया। उत्तर प्रदेश के कई जिलों में देर से बोई गई गेहूं और सरसों की फसलें प्रभावित हुई थीं।
किसानों के सामने विकल्प क्या हैं?
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. दीपल राय कहते हैं किसानों को बदलते मौसम का सामना करने के लिए अच्छी किस्मों के चयन के अलावा फसल का चक्र भी बदलना होगा।
“बढ़ते तापमान का फसलों पर प्रतिकूल असर तो पड़ेगा ही, किसानों की लागत भी बढ़ रही है। ऐसे में किसानों को फसली चक्र में मौसम के अनुसार बदलाव करने होंगे। गेहूं के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान सही माना जाता है। लेकिन अभी तापमान देखें तो पारा 30 से ऊपर चल रहा। तेज हवाओं ने और मुश्किल बढ़ा दी है। इतना ज्यादा तापमान दानों को सुखा देगा। ऐसे में जरूरी है किसान खेत को नम तो रखें ही, वैज्ञानिक से सलाह लेकर सही समय पर सिंचाई करें।”
“किसानों को जरूरत पड़ने पर अपने खेतों को पानी से नम रखने की जरूरत है और साथ ही इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि जब गर्म हवा चल रही हो तो वे सिंचाई ना करें।” डॉ. दीपल राय आगे कहते हैं।
वे यह भी कहते हैं कि पिछले कई वर्षों से ऐसी स्थिति बन रही है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वे नवंबर तक हर हाल में गेहूं की बुवाई कर लें। लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 700 किलोमीटर दूर जिला सहारनपुर के किसान रजनीश कुमार इस पर असहमति व्यक्त करते हुए कहते हैं, “ये कहना आसान है, लेकिन करना मुश्किल। मानसून की बारिश में देरी हो रही है। ऐसे में धान का खेत खाली होने पर ही उसमें गेहूं लगेगा। बारिश समय पर हो तो दिक्कतें कम हो सकती हैं। पिछले साल हम मानसून का इंतजार करते रहे। जून, जुलाई बिना बारिश के ही निकल गया था। धान की फसल में देरी का असर गेहूं की बुवाई पर पड़ा।”
धान उत्पादन के मामले में देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के किसानों पर पिछले साल दोहरी मार पड़ी। पहले जब जरूरत थी, तब बारिश नहीं हुई और जब किसी तरह से फसल पककर खड़ी हुई तो बारिश इतनी हुई कि खड़ी फसल बर्बाद हो गई।
मई और जून का महीना धान की बुवाई के लिए सबसे सही समय माना जाता है। बुवाई के तीसरे सप्ताह से ही पानी की जरूरत पड़ने लगती है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार 1 जून से 24 अगस्त 2022 के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 294 मिलीमीटर बारिश हुई थी जो सामान्य से 41% कम थी। इसी दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश में 314.9 मिमी बारिश हुई थी जो सामान्य से 46% कम रही।
प्रमोद कुमार राय भी फसली चक्र में बदलाव की वकालत करते हुए कहते हैं, “हमारे यहां सरसों की बुवाई सितंबर से अक्टूबर तक चलती है। करीब 60 से 70 दिनों में फूल पक जाती है। फसल फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। बदलते मौसम की वजह से हम 15 से 20 दिन पीछे चल रहे हैं। यानी हमें बुवाई और पहले करनी होगी। इसके अलावा हम किसानों को जागरूक कर रहे हैं कि वे 40 से 50 दिनों में तैयार होनी किस्मों की बुवाई करें।”
उत्तर प्रदेश के जिला मिर्जापुर के लालगंज में रहने वाले द्वारिका मौर्या (63) दो बीघा खेत में फूलों की खेती करते हैं। गर्मी को लेकर चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, “नवरात्र शुरू होने में कुछ दिन ही बचे हैं। लेकिन गेंदा के फूल अभी से मुरझाने लगे हैं। एक सप्ताह बाद बाजार में फूलों की मांग बढ़ जायेगी। लेकिन मुरझाये फूल लेगा कौन। एक महीने बाद लगन (शादी-विवाह) का सीजन शुरू हो जायेगा। इस गर्मी में तब तक फूलों को बचा पाना मुश्किल है। पहले गर्मियों में 15 से 25 दिन बाद सिंचाई करनी पड़ती थी। लेकिन अब तो 4-5 दिन में ही पानी देना पड़ रहा।”