2024 : मुश्किलों से भरा रहा रेलवे का सफर, सुरक्षा पर उठे सवाल
साल 2024 में भारतीय रेलवे का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा। 12 में से आठ महीने किसी न किसी हादसे में जान और माल दोनों का नुकसान हुआ। पटरी से उतरना, टकराव और मानवीय त्रुटियों तक, इन घटनाओं में कई की जान गई और कई घायल हुए। रेल सेवाएं भी बाधित रहीं। इसके चलते रेल सुरक्षा और बुनियादी ढांचे पर गंभीर सवाल भी खड़े हुए।
नई दिल्ली: भारतीय रेलवे दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी व्यावसायिक इकाई और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे सेवा है। कोयला, डीजल और इलेक्ट्रिक रेल इंजन के बाद अब भारत हाई स्पीड ट्रेनों की राह पर है लेकिन रेल सुरक्षा और बुनियादी ढांचे को लेकर लगातार सवालों में भी है। रेलवे के लिए साल 2024 काफी मुश्किलों से भरा रहा। 12 में से आठ महीने देश ने किसी न किसी ट्रेन हादसे की खबर सुनी जिसमें कई यात्रियों ने अपनी जान गंवा दी तो कई गंभीर रूप से घायल भी हुए। इन हादसों से ट्रेनों को बचाने के लिए सरकार डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम पर काम कर रही है जिसे कवच नाम दिया गया।
यह कवच सवालों के कटघरे में तब आया जब 17 जून 2024 को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन से होते हुए सियालदह की ओर जा रही थी और पीछे से एक मालगाड़ी ने टक्कर मार दी। ऐसा इसलिए क्योंकि मालगाड़ी के लोको पायलट ने सिग्नल तोड़ दिया था। इस घटना में नौ लोगों की मौत हुई। इसे लेकर यह सवाल उठा कि दोनों ट्रेनों की टक्कर रोकने में कवच सिस्टम कामयाब क्यों नहीं हुआ? यह एक तरह की डिवाइस है जो ट्रेन के इंजन के अलावा रेलवे के रूट पर भी लगाई जाती है। इसके दो ट्रेनों के एक ही ट्रैक पर एक-दूसरे के करीब आने पर ट्रेन सिग्नल, इंडिकेटर और अलार्म के जरिए ट्रेन के पायलट को इसकी सूचना मिल जाती है। कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे में ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दिया।
केंद्र सरकार के मुताबिक, यात्री ट्रेनों पर कवच का पहला फील्ड परीक्षण फरवरी 2016 में शुरू किया। इससे प्राप्त अनुभव और स्वतंत्र सुरक्षा एजेंसी द्वारा कराए गए सुरक्षा मूल्यांकन के बाद सरकार ने 2018-19 में कवच लगाने के लिए तीन कंपनियों को अनुमति दी। इसके बाद कवच को जुलाई 2020 में राष्ट्रीय एटीपी प्रणाली के रूप में अपनाया गया। साल 2022 में पहली बार सिकंदराबाद स्टेशन पर कवच लगाया गया। 16 जुलाई 2024 तक रेलवे ने दक्षिण मध्य रेलवे पर 1465 किलोमीटर मार्ग पर कवच का 3.2 संस्करण तैनात कर लिया और सॉफ्टवेयर में कुछ नए अपडेट के साथ कवच 4.0 की घोषणा की गई।
65000 में से केवल 1500 किलोमीटर पर लगा कवच
सेंट्रल रेलवे बोर्ड की सीईओ और चेयरमैन जया वर्मा सिन्हा ने इंडियास्पेंड को जानकारी दी है कि अब तक कवच सिस्टम 1500 किलोमीटर रेल मार्ग पर स्थापित किया गया है। आगामी दिनों में इसे तीन हजार किलोमीटर तक लगाना है। अभी तक छह हजार किलोमीटर पर इस सिस्टम को लगाने के लिए टेंडर जारी हुए हैं जिसमें दक्षिण सेंट्रल रेलवे के 1465 किलोमीटर और 139 इंजनों में कवच लग चुका है। बहरहाल भारत में रेलवे का कुल मार्ग नेटवर्क 65 हजार किलोमीटर है। इसमें से 1465 किलोमीटर मार्ग को कवच से कवर किया गया जो तीन फीसदी से भी कम है। यह सब के लिए सरकार को 2018 से 2024 के बीच यानी छह साल में लगे।
रेलवे बोर्ड के सूत्रों ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, "सरकार ने कवच की मार्केटिंग जबरदस्त तौर पर की है। शुरुआत से ही रेल मंत्री और भारत सरकार इस सिस्टम को अब तक का सबसे बेहतरीन मॉडल बता रहे हैं लेकिन जिस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए इसे बनाया गया, वैसा हादसा 2023 में ओडिशा में हुआ जिसमें 296 लोगों की मौत हुई। वहीं 2024 में कंचनजंघा सहित कई घटनाएं पूरे देश के सामने आईं।"
ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा ने कहा, "अपने काम दिखाने के लिए सरकार हाई स्पीड ट्रेनों का दावा भर रही है जबकि एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हर साल रेलवे के 500 कर्मचारी ट्रैक पर जान गंवा रहे हैं। साल 2023 के आखिरी छह महीने और 2024 में चार कर्मचारियों की मौत रेल हादसों में हुई है। बीते 10 वर्ष में 638 ट्रेन दुर्घटनाएं हुई हैं जिनमें 719 यात्रियों और 29 रेल कर्मचारियों की जान चली गई।"
इसलिए रेलवे का बुरा साल रहा 2024
भारतीय रेलवे के लिए साल 2024 शुरुआत से ही बुरा अनुभव कराने लगा। फरवरी 2024 में जहां एक तरफ केंद्र सरकार लोकसभा चुनाव से पहले अपने अंतरिम बजट में एक लाख करोड़ रुपये देकर रेल मंत्रालय के जरिए यात्रियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने का दावा कर रही थी वहीं कुछ रोज बाद 28 फरवरी को साल की पहली घटना झारखंड के काला झरिया क्षेत्र में हुई, जब ट्रेन की चपेट में आने से दो लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। इसके बाद 12 जून 2024 को दार्जिलिंग जिले के कर्सियांग के पास हिमालयन रेलवे पर एक 16 वर्षीय लड़के की ट्रेन से कटकर मौत हो गई। ठीक तीन दिन बाद 15 जून 2024 को केरल के एक 62 साल के यात्री की मौत हो गई। यह घटना चलती ट्रेन में हुई जब स्लीपर कोच में ऊपर की सीट नीचे आकर गिर गई। इसके दो दिन बाद पूरे देश ने 17 जून 2024 को कंचनजंगा एक्सप्रेस का भीषण हादसा देखा जिसमें नौ लोगों की मौत और करीब 60 से ज्यादा यात्री घायल हुए।
18 जुलाई 2024 को उत्तर प्रदेश में डिब्रूगढ़-चंडीगढ़ एक्सप्रेस के बारह डिब्बे पटरी से उतर गए और चार यात्रियों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि 32 लहूलुहान अवस्था में पाए गए। इसके बाद 30 जुलाई 2024 को जमशेदपुर के पास हावड़ा-मुंबई सीएसएमटी मेल के 18 डिब्बे पटरी से उतरे और दो लोगों की जान चली गई। 17 अगस्त 2024 को साबरमती एक्सप्रेस के 22 डिब्बे कानपुर के पास एक चट्टान से टकराने के बाद पटरी से उतर गए। फिर 11 अक्टूबर 2024 को चेन्नई के पास कावरैपेट्टाई रेलवे स्टेशन पर लूप लाइन पर खड़ी एक मालगाड़ी से टकराने के बाद बागमती एक्सप्रेस के 13 डिब्बे पटरी से उतरे और आग लग गई। इस घटना में 19 लोग घायल हो गए।
हादसों का यह सिलसिला आगे भी जारी रहा और 25 अक्टूबर 2024 को विवेक एक्सप्रेस का लोकोमोटिव कपलर टूटने के कारण तमिलनाडु के काटपाडी जंक्शन रेलवे स्टेशन के पास चलते समय अपने डिब्बों से अलग हो गया। इसके अगले दिन 26 अक्टूबर 2024 को तमिलनाडु में रामेश्वरम और मदुरै के बीच चलने वाली एक यात्री ट्रेन के ढीले ब्रेक शू की चपेट में आने से 69 वर्षीय एक व्यक्ति की मौत हो गई। 27 अक्टूबर को एक डेमू ट्रेन, महू-रतलाम फास्ट पैसेंजर, में मध्य प्रदेश के रुणीजा और नौगांव स्टेशनों के बीच आग लग गई। इसके अगले दिन 28 अक्टूबर 2024 को हरियाणा के सांपला के पास जींद से दिल्ली जा रही एक ट्रेन में यात्रियों द्वारा ले जाए जा रहे अवैध पटाखों में आग लगने से चार यात्री घायल हो गए।
इसके बाद नवंबर माह में भी ऐसी घटनाएं कम नहीं हुईं और 2 नवंबर 2024 को केरल के शोरनूर के पास भरतपुझा नदी पर एक पुल की सफाई करते समय केरल एक्सप्रेस की चपेट में आने से दो महिलाओं सहित तमिलनाडु के चार सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई। 9 नवंबर 2024 को बरौनी जंक्शन पर लखनऊ-बरौनी एक्सप्रेस लोकोमोटिव को अलग करते समय लोकोमोटिव और पावर कार के बीच फंसने से एक 35 वर्षीय रेलवे कर्मचारी की कुचलकर मौत हो गई। लोको पायलट ने आगे बढ़ने की बजाय गलती से गाड़ी पलट दी। 13 नवंबर 2024 को तेलंगाना के पेद्दापल्ली जिले में एक मालगाड़ी पटरी से उतर गई, जिसके कारण 39 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा और 61 अन्य का मार्ग बदलना पड़ा।
पहले से कम हो रहे हादसे : सरकार
रेल हादसों को लेकर केंद्र सरकार और रेलवे बोर्ड ने बीते एक दशक की तुलना करते हुए या यूं कहे कि पुरानी और अभी की सरकार के साथ तुलना करते हुए आंकड़े सार्वजनिक किए हैं। इसके मुताबिक, साल 2004 से 2014 के दौरान भारत में 1711 रेल दुर्घटनाएं हुई हैं। हर साल का औसत देखें तो करीब 171 घटनाएं सालाना दर्ज की गई हैं जबकि 2014 से 2024 तक 678 रेल हादसे हुए हैं जिसका सालाना औसत करीब 68 है। इस तरह मोदी सरकार में रेल हादसों में करीब 60 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय रेल अक्सर जीरो टॉलरेंस टुवार्ड्स एक्सीडेंट यानी रेलवे में एक भी एक्सीडेंट को बर्दाश्त नहीं किया जाने की बात भी करता है।
सरकार के इन आंकड़ों की दूसरी तस्वीर यह भी है कि वर्ष 2016-17 में 195 यात्रियों और तीन रेलवे कर्मचारियों की मौत हुई जबकि 346 यात्रियों और चार कर्मचारियों के घायल हुए। यह 2014 से 2024 के बीच दूसरी सबसे बड़ी दुर्घटना थी। इसके अलावा 2023-24 वित्तीय वर्ष में 40 ट्रेन दुर्घटनाओं में कुल 313 यात्रियों और चार रेलवे कर्मचारियों की मौत हो गई। पिछले पांच वर्षों में उत्तर रेलवे ने 25 घटनाओं के साथ सबसे अधिक दुर्घटनाएं दर्ज की हैं, इसके बाद मध्य रेलवे (22) और उत्तर मध्य रेलवे (21) का स्थान है।
प्रतिदिन 2.3 करोड़ यात्रियों की सेवा करने वाली रेलवे को लेकर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने ट्रैक नवीनीकरण के लिए साल 2020-21 में 103,395 करोड़ रुपये के घाटे का खुलासा भी किया है। 58,459 करोड़ रुपये के आवंटन के बावजूद साल 2020-21 के अंत तक केवल 671 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जो आवश्यक राशि का केवल 0.7% है। सीएजी ने हर साल एक लाख से अधिक सिग्नल विफलताओं और कई ट्रैक और रोलिंग स्टॉक मुद्दों पर भी अपनी रिपोर्ट में चिंता जताई है।
2024 में एक लाख करोड़ सुरक्षा पर खर्च
20 दिसंबर 2024 को केंद्र सरकार ने संसद में जानकारी दी है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में रेलवे को सुरक्षा के लिए एक लाख करोड़ रुपये देना मंजूर किया है। इस बड़ी राशि में 21,386 करोड़ रुपये का इस्तेमाल स्थायी रखरखाव पर खर्च होंगे। वहीं पावर रखरखाव और रोलिंग स्टॉक पर 31494, मशीनों के रखरखाव पर 11864, मार्ग सुरक्षा पर 9980, ट्रैक नवीनीकरण पर 17652, पुलों की मरम्मत पर 2137, सिग्नल एवं टेलीकॉम वर्क्स पर 4,647 और रेलवे की विविध एजेंसी की सुरक्षा संबंधी कार्यशालाएं इत्यादि पर 9615 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इस तरह सरकार ने कुल 1,08,776 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं जो वित्तीय वर्ष 2013-2014 में मिले 39,463 करोड़ रुपये से करीब तीन गुना है।
रेल मंत्रालय ने यह भी बताया है कि किसी दुर्घटना या अप्रिय घटना के तुरंत बाद दुर्घटना पीड़ितों को अनुग्रह राशि का भुगतान किया जाता है। ट्रेन में मृतकों और घायलों के निकट संबंधियों को रेलवे ने (2021-22 से 2023-24) में 38.26 करोड़ रुपये का भुगतान किया जिसमें मृतकों के परिजनों को 30.80 करोड़ रुपये दिए गए जबकि घायलों को 7.46 करोड़ रुपये दिए गए।
कोंकण रेलवे के पूर्व प्रोजेक्ट मैनेजर सतीश कुमार रॉय ने कहना है कि भारत में रेल सुरक्षा का मुद्दा पिछले कई सालों से चल रहा है। 1999 में जब अवध-असम एक्सप्रेस और ब्रह्मपुत्र मेल आपस में टकराईं तो 300 लोगों की मौत हुई। इसके बाद एंटी कोलेजन डिवाइस को लेकर स्वदेशी तकनीक पर काम शुरू हुआ। कवच की तुलना में यह काफी सस्ती है लेकिन 10 साल तक इसका ट्रायल सफल होने के बाद भी सरकार ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की। सरकार करोड़ों रुपये का बजट सुरक्षा के नाम पर विदेशी तकनीकों को लेकर खर्च कर रही है लेकिन स्वदेशी तकनीक पर विचार तक नहीं किया।