#बजट2025: केंद्र सरकार के सामाजिक क्षेत्र के खर्च में चार प्रमुख रुझान

कुल व्यय में से सामाजिक क्षेत्र पर होने वाला खर्च घट गया है। स्वास्थ्य पर खर्च लगभग वही रहा है और कुछ अहम क्षेत्रों में भी वृद्धि ज्यादा नहीं रही है। सरकार की तरफ से चलाई जा रही केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के लिए भी आवंटन वास्तविक रूप से कम ही रहा है।;

Update: 2025-02-02 06:59 GMT

नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया केंद्रीय बजट ऐसे समय में आया है, जब भारत आर्थिक विकास को समावेशी सामाजिक विकास के साथ संतुलित करने की चुनौती का सामना कर रहा है। हालांकि बहस अक्सर राजकोषीय घाटे के लक्ष्य, पूंजी निवेश और कर सुधारों पर केंद्रित होती है, लेकिन सामाजिक क्षेत्र भी समान प्रगति सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और सामाजिक सुरक्षा में निवेश न केवल कल्याण के लिए, बल्कि मानव पूंजी के निर्माण, असमानता को कम करने और दीर्घकालिक आर्थिक लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2024 के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में कुल सामान्य सरकारी व्यय का 26% सामाजिक क्षेत्र पर खर्च किया गया। हालांकि ज्यादातर सामाजिक कार्यक्रम राज्य सरकारें चलाती हैं, लेकिन केंद्र सरकार महत्वपूर्ण सामाजिक व सार्वजनिक सेवाएं मुहैया कराने और देश के सभी राज्यों में न्यूनतम निवेश सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है।

पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने सामाजिक क्षेत्र पर खर्च को किस तरह से प्राथमिकता दी है? इसका जवाब पाने के लिए हमने सामाजिक क्षेत्र में केंद्र सरकार के वित्तपोषण के चार प्रमुख रुझानों का विश्लेषण किया।

यहां 'सामाजिक क्षेत्र' शब्द का अर्थ शिक्षा, स्वास्थ्य, जल और स्वच्छता, पोषण, सामाजिक सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों से है। इसमें कौशल विकास, खेल और संस्कृति, आदिवासी और अल्पसंख्यक मामले और शहरी गरीबी उन्मूलन भी शामिल हैं।

केंद्र सरकार के सामाजिक क्षेत्र पर व्यय की गणना ऊपर बताए गए क्षेत्रों से जुड़े 16 मंत्रालयों के व्यय को जोड़कर की गई है। इन मंत्रालयों में शिक्षा, युवा मामले और खेल, संस्कृति, स्वास्थ्य, आयुष, आवास और शहरी कार्य, जल शक्ति, सूचना और प्रसारण, ग्रामीण विकास, सामाजिक न्याय और अधिकारिता, आदिवासी मामले, अल्पसंख्यक मामले, श्रम और रोजगार, कौशल विकास और उद्यमिता, महिला और बाल विकास, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण शामिल हैं।

विश्लेषण के लिए हमने पिछले 12 वर्षों को देखा है और उन्हें मोटे तौर पर तीन चरणों में विभाजित किया है:

1. 2014-15 से 2019-20: कोविड-19 महामारी से पहले का समय

2. 2019-20 से 2024-25: आर्थिक मंदी, महामारी और रिकवरी के प्रयासों का दौर

3. 2024-25 से 2025-26: महामारी के बाद की रिकवरी का समय।

कुल व्यय में घटती हिस्सेदारी

बजट 2025 में केंद्र सरकार का कुल व्यय 7% बढ़ा है। 2024-25 में 47.16 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में यह 50.65 लाख करोड़ रुपये हो गया है। लेकिन, इस बढ़ोतरी का सामाजिक क्षेत्र के आवंटन में समान अनुपात में इजाफा नहीं हुआ। (2024-25 के आंकड़े संशोधित अनुमानों पर आधारित हैं)।

पिछले दस सालों में, केंद्र सरकार के कुल खर्च में सामाजिक क्षेत्र के व्यय का हिस्सा स्थिर बना हुआ है। 2014-15 से 2019-20 के बीच यह हिस्सा औसतन कुल खर्च का 21% और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 2.8% रहा। 2019-20 से 2024-25 तक भी यही ट्रेंड रहा, हालांकि महामारी से जुड़े खर्चों की वजह से थोड़ा उतार-चढ़ाव आता रहा।

2020-21 में, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के विस्तार से सामाजिक क्षेत्र का खर्च, कुल व्यय का 30% और GDP के 5.3% के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंचा गया था। लेकिन उसके बाद से यह हिस्सा लगातार कम होता गया और 2023-24 में 19% (GDP का 2.8%) तक पहुंच गया, जो 2014-15 के स्तर से थोड़ा कम था।

2024-25 में सामाजिक क्षेत्र का हिस्सा 17% तक पहुंच गया, जो पिछले दशक में सबसे कम है और 2025-26 में यह 19% रहने का अनुमान है।

2024-25 में, पिछले दस वर्षों में सामाजिक क्षेत्र पर सबसे कम खर्च किया गया

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चिकित्सा और स्वास्थ्य खर्च स्थिर रहा; बुनियादी ढांचा निर्माण को प्राथमिकता दी गई

विभिन्न मंत्रालयों और क्षेत्रों में फंडिंग में बदलाव को समझने के लिए खर्च के रुझानों का दो तरीकों से विश्लेषण किया गया: विभिन्न मंत्रालयों का सापेक्ष हिस्सा और समय के साथ विकास दर।

पहले चरण में, खाद्य सब्सिडी और नागरिक आपूर्ति ने सामाजिक क्षेत्र के खर्च में औसतन 27% हिस्सा लिया, इसके बाद ग्रामीण विकास (22%) और शिक्षा (18%) का स्थान था।

दूसरे चरण में, कोविड-19 और उसके बाद की रिकवरी यानी 2019-20 से 2024-25 के बीच, कुछ खर्चों में बदलाव देखा गया।

खाद्य सब्सिडी और नागरिक आपूर्ति ने फिर से सामाजिक क्षेत्र के कुल व्यय में सबसे बड़ा हिस्सा (35%) रखा। लेकिन महामारी के चरम पर होने के बावजूद, चिकित्सा और स्वास्थ्य पर खर्च का हिस्सा घटकर औसतन सिर्फ 10% रह गया। इसी तरह, शिक्षा और ग्रामीण विकास के हिस्से भी घटकर क्रमशः 12% और 20% रह गए।

जल जीवन मिशन और प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से सरकार के बुनियादी ढांचे पर ध्यान देने के साथ, सामाजिक क्षेत्र के कुल व्यय में आवास, शहरी विकास, जल और स्वच्छता का हिस्सा बढ़ गया है। 2014-15 से 2019-20 तक यह औसतन 12% था, लेकिन 2019-20 से 2024-25 के बीच बढ़कर 15% हो गया।

2025-26 के लिए, खाद्य सब्सिडी और नागरिक आपूर्ति का अनुमानित हिस्सा 23% है, जो पिछले साल की तुलना में 4 प्रतिशत कम है, फिर भी यह सबसे बड़ा हिस्सा बना हुआ है। ग्रामीण विकास की अनुमानित हिस्सेदारी 20% है, जो पिछले साल से 2 प्रतिशत कम है। दूसरी ओर, आवास, शहरी विकास, जल और स्वच्छता पर अनुमानित व्यय 21% है, जो पिछले साल की तुलना में 6 प्रतिशत अधिक है।

सामाजिक क्षेत्र के व्यय में खाद्य सब्सिडी और नागरिक आपूर्ति की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा

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कुछ अहम क्षेत्रों में व्यय की वृद्धि दर धीमी

अगर हम सिर्फ किसी खास क्षेत्र पर व्यय के शेयर (जैसे सामाजिक क्षेत्र का कुल सरकारी व्यय में हिस्सा) को देखें, तो यह समझ पाना मुश्किल हो सकता है कि वास्तव में उस पर खर्च बढ़ रहा है या घट रहा है। वास्तविक प्राथमिकता को समझने का दूसरा तरीका औसत वार्षिक वृद्धि दरों को देखना है।

पिछले दस वर्षों में, सामाजिक क्षेत्र पर व्यय की वृद्धि दर धीमी रही है, जो नीतिगत प्राथमिकताओं में बदलाव को दर्शाती है। जहां 2014-15 से 2019-20 के बीच सामाजिक क्षेत्र के कुल व्यय में औसत वार्षिक वृद्धि दर 8% थी, वहीं 2019-20 से 2024-25 के बीच यह घटकर 4% हो गई। यह धीमी गति बताती है कि सरकार विभिन्न क्षेत्रों पर अपने खर्च की प्राथमिकताओं को बदल रही है - जहां कुछ क्षेत्रों में व्यय में वृद्धि देखी जा रही है, जबकि अन्य कुछ क्षेत्रों में खर्च में कमी देखी जा रही है।

2025-26 के लिए बजट अनुमान में और अधिक बदलाव की संभावना जताई गई है, जिसमें 2024-25 की तुलना में 20% की वृद्धि अपेक्षित है, हालांकि सामाजिक क्षेत्र के आवंटन में वृद्धि के बजाय चालू वित्त वर्ष में व्यय में कमी आएगी।

सामाजिक क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, आदि) पर होने वाले खर्च की वृद्धि दर समय के साथ बदलती रही है। 2014-15 से 2019-20 के बीच, सामाजिक क्षेत्र के अधिकांश क्षेत्रों में खर्च की वृद्धि दर, पूरे सामाजिक क्षेत्र के खर्च की औसत वृद्धि दर से अधिक थी। लेकिन शिक्षा, कला और संस्कृति (6%) और खाद्य सब्सिडी और नागरिक आपूर्ति (-3%) जैसे कुछ क्षेत्रों में खर्च कम हुआ।

इसके विपरीत, श्रम, रोजगार, और कौशल विकास (26%) और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जातियां और अल्पसंख्यकों के कल्याण (11%) जैसे क्षेत्रों में खर्च की वृद्धि दरें सबसे ज्यादा थीं। यह दर्शाता है कि उस समय सरकार की नीतियां लक्षित कल्याण और रोजगार से जुड़े हस्तक्षेपों पर जोर दे रही थीं।

2014-15 से 2019-20 के बीच, सामाजिक क्षेत्र के खर्च के पैटर्न में बदलाव आया। शिक्षा, कला, और संस्कृति को छोड़कर, जहां 8% तक मामूली तेजी देखी गई, सामाजिक क्षेत्र के अधिकांश घटकों में खर्च की वृद्धि दर स्पष्ट रूप से धीमी हो गई।

विशेष रूप से, चिकित्सा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण जैसे क्षेत्रों में व्यय की वृद्धि दर जबरदस्त रूप से घट गई। कोविड-19 काल में, इन क्षेत्रों में व्यय की वृद्धि दर 16% से घटकर 5% हो गई, जो उस समय की मुद्रास्फीति दरों से भी कम थी।

इसी प्रकार, ‘अन्य’ श्रेणी (जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों का कल्याण, श्रम, रोजगार और कौशल विकास, सूचना और प्रसारण, तथा सामाजिक सुरक्षा और कल्याण, और पोषण शामिल हैं) में दोनों चरणों के बीच 11% से 3% तक की महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई।

वर्तमान बजट में एक बार फिर आवास, शहरी विकास तथा जल एवं स्वच्छता पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिसकी वृद्धि दर 70% अनुमानित है। दरअसल इस वित्तीय वर्ष में इन क्षेत्रों में बजट का उपयोग धीमी गति से हुआ है, इसलिए इस साल सरकार इन्हें प्राथमिकता दे रही है।

स्वास्थ्य के लिए आवंटन मुद्रास्फीति दरों की तुलना में धीमी गति से बढ़ा

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मुख्य योजना आवंटन वास्तविक रूप से कम रहे

केंद्र सरकार सामाजिक क्षेत्र के वित्तपोषण का एक बड़ा हिस्सा केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) के जरिए करती है। पिछले कुछ सालों में, CSS खर्च का 90% से ज्यादा हिस्सा सामाजिक क्षेत्र की ओर था। 2015-16 से ही CSS का डेटा उपलब्ध है।

पिछले कुछ सालों में, शिक्षा, स्वास्थ्य, जल और स्वच्छता, महिला और बाल, और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालयों ने सीएसएस व्यय का 80% से अधिक हिस्सा लिया है।

हमने इन मंत्रालयों के अंतर्गत आने वाली 9 योजनाओं के आवंटन का समय के साथ विश्लेषण किया है। हमने यह दो तरीकों से किया: (a) सामान्य संदर्भ में यानी उस समय कुल रुपये के संदर्भ में मापा गया; और (b) वास्तविक संदर्भ में (जहां राशि/मुद्रास्फीति में हुए बदलाव को ध्यान में रखा गया)।

पहले चरण में, सामान्य संदर्भ में, पीएम पोषण को छोड़कर हर योजना के लिए बजट बढ़ा है। दरअसल, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के लिए सामान्य वृद्धि 25%, मनरेगा के लिए 17% और पीएम आवास योजना-ग्रामीण के लिए 14% थी। इन योजनाओं में, भारत मिशन-ग्रामीण आवंटन लगभग तीन गुना बढ़ गया, जबकि पीएम ग्राम सड़क योजना आवंटन दोगुने से अधिक हो गया।

हालांकि, नौ योजनाओं में से चार के लिए वास्तविक आवंटन कम हुआ, जिसमें समग्र शिक्षा, जल जीवन मिशन (JJM), पीएम पोषण और राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम शामिल थे।

2019-20 और 2024-25 के बीच की अवधि को देखते हुए, JJM को छोड़कर अन्य सभी योजनाओं में आवंटन में कमी देखी गई।

मोटे तौर पर, जिन योजनाओं में वास्तविक रूप से बड़ी कमी देखी गई, वे शिक्षा (समग्र शिक्षा और पीएम पोषण), स्वास्थ्य (NHM), रोजगार (मनरेगा), सामाजिक सुरक्षा (NSAP), ग्रामीण विकास (PMGSY) और प्रत्यक्ष पात्रता (SBGM) से संबंधित हैं। 2025-26 में, मनरेगा, SBG-Mऔर NSAP के लिए आवंटन स्थिर रहा।


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