बेलगाम बिक्री से बढ़ा पोटाश गन का खतरा, डॉक्टर हैरान
पटाखों पर प्रतिबंध लगने के बाद दिल्ली में ग्रीन पटाखों पर बहस शुरू हुई लेकिन ज्यादा से ज्यादा लोग इसे अपना पाते, उससे पहले लोगों ने देसी जुगाड़ यानी पोटाश गन को खोज लिया। यह सस्ती और आसानी से उपलब्ध है लेकिन इसके परिणाम कितने घातक हैं? यह देखकर दिल्ली एम्स के डॉक्टर भी हैरान-परेशान हैं।;
नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली के हरिनगर सी ब्लॉक निवासी सुखबीर सिंह (34) एक टायर शॉप के मालिक हैं। इस दिवाली उनकी एक गलती ने आजीवन उनसे आंखों की रोशनी छीन ली। घर के बाहर बच्चों के साथ सुखबीर पोटाश गन चला रहे थे और उसी वक्त एक तेज धमाका होता है और सुखबीर जमीन पर आ गिरे। लहूलुहान सुखबीर को परिजन एक से दूसरे और फिर तीन अस्पतालों के बाद दिल्ली एम्स लेकर पहुंचे जहां डॉक्टरों ने धमाके से दोनों आंखें नष्ट होने की जानकारी दी।
31 अक्टूबर 2024 की उस रात ऐसा ही एक और धमाका दिल्ली से नजदीक पलवल जिले के मलाई गांव में हुआ। यहां संजीव नामक एक युवक पोटाश गन के लिए गंधक और पोटाश का मिश्रण कर रहा था और उसी वक्त हादसा हुआ जिसमें उसके हाथ की कलाई कट कर जमीन पर आ गिरी। उस रात दिल्ली एम्स की इमरजेंसी में संजीव अपने परिजनों के साथ पहुंचा जहां डॉक्टरों ने एक आंख और हथेली को न बचा पाने की खबर सुनाई।
इन दोनों घटनाओं पर जब इंडियास्पेंड ने दिल्ली एम्स में पड़ताल शुरू की तो आंकड़े वाकई चौंकाने वाले सामने आए। 31 अक्टूबर की उस रात एम्स की इमरजेंसी ड्यूटी देने वाले डॉक्टरों से जब जानकारी ली गई तो पता चला कि उस रात सिर्फ यही दो मामले नहीं आए। रात 10 से सुबह पांच बजे के बीच 10 लोग गंभीर रूप से घायल हालत में पहुंचे जो दिल्ली के अलावा नोएडा, गाजियाबाद, सोनीपत, पलवल, मेवात, ग्रेटर नोएडा और हापुड़ तक से रैफर होकर आए।
आपको बताते चलें कि हर वर्ष भारत में दिवाली के समय काफी लोग पटाखों से झुलस जाते हैं, देश की राजधानी दिल्ली में बीती दिवाली पर विभिन्न अस्पतालों में 208 गंभीर तरह से झुलसे हुए लोग भर्ती हुए थे।हर दूसरे या तीसरे दिन इमरजेंसी वार्ड में ड्यूटी देने वाले इन डॉक्टरों का कहना है कि उन्होंने अभी तक इस तरह के लहूलुहान और विकृत मामले पहले कभी नहीं देखे। यह लोग इस तरह की हालत में पहुंचे कि डॉक्टरों के पास ज्यादा कुछ करने के लिए बचा नहीं था। शरीर के जिस जिस भाग को पोटाश गन ने चपेट में लिया, वह पूरा अंग हमेशा के लिए खत्म हो गया। पहली बार उन्होंने किसी मामले में 100 फीसदी आंखों की रोशनी खत्म होने की स्थिति भी देखी।
इंडियास्पेंड से साझा जानकारी में दिल्ली एम्स के डॉक्टर ब्रजेश लहरी ने बताया कि बीती दिवाली की रात इमरजेंसी पहुंचे 10 में से छह लोगों को बायलेटरल ब्लाइंडनेस हुई है जिसका मतलब द्विपक्षीय अंधापन है यानी इन लोगों ने हमेशा के लिए अपनी दोनों आंखें गंवा दी। वहीं चार लोगों को अन लेटरल ब्लाइंडनेस हुई जिसे एक तरफा अंधापन भी कहते हैं। इसके अलावा दो लोगों की कलाई नष्ट हुई है। सभी 10 मामलों में पूरा चेहरा और बॉडी बर्न का शिकार हुआ है।पटाखों पर बैन, इसलिए देसी जुगाड़ पर भरोसा
दरअसल इस साल दिवाली से पहले दिल्ली में वायु प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के लिए दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) ने 1 जनवरी 2025 तक पटाखों को बैन लगाया। इसके चलते 14 अक्टूबर 2024 से एक जनवरी 2025 तक दिल्ली और एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध लगा गया। यह नियम पटाखों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और उपयोग पर लागू होता है। हालांकि इस फैसले की वजह से प्रभावित शहरों पर पटाखों की कालाबाजारी भी खूब हुई। जबकि कई लोगों ने एनसीआर से बाहर जाकर पटाखों को महंगे दामों पर खरीदा। इसी बीच पटाखों के विकल्प के तौर पर पोटाश गन ने ली जिसकी रील्स से सोशल मीडिया भरा हुआ है।
आमतौर पर एक लोहे की रॉड से निर्मित इस पोटाश गन का इस्तेमाल पक्षियों को उड़ाने, ध्वनि बंदूक, जंगली जानवरों को डराने के लिए किया जाता है। इसलिए बाजार में इसे कृषि पोटाश गन के नाम से बेचा जाता है। यह आयरन पोटाश पाइप हल्का वजन और संभालने में आसान होता है। गंधक और पोटाश का मिश्रित पाउडर इसमें डाला जाता है जिससे काफी तेज पटाखे की आवाज़ होती है लेकिन इसमें इस्तेमाल पाइप की क्या गुणवत्ता है? इसे बनाने के लिए क्या नियम होने चाहिए? खरीदी के समय इसकी गुणवत्ता की पहचान कैसे की जानी चाहिए? इन सब के बारे में न सरकार के नियम हैं और न ही सार्वजनिक मंच पर इसकी जानकारी उपलब्ध है।
“मैंने पहली बार देखी ऐसी चोट”
नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉ. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र (आरपी सेंटर) के विट्रो रेटिना और ग्लूकोमा विशेषज्ञ डॉ.ब्रजेश लहरी ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, "मैंने अब तक के करियर में इस तरह की चोटें पहले कभी नहीं देखीं और न ही इनके बारे में कुछ ज्यादा सुना है। कुछ सप्ताह पहले दिवाली की रात ड्यूटी के समय मैंने उन सभी दर्दनाक मामलों को व्यक्तिगत तौर पर अनुभव किया जिनमें से कोई एक या कोई दोनों आंख गंवा चुका है। उन तस्वीरों को मैं शब्दों से भी बयां नहीं कर सकता क्योंकि सामान्य तौर पर कोई भी व्यक्ति उन लोगों को दूर, अभी उनकी तस्वीर तक नहीं देख सकता है।"
फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फेमा) के दिल्ली जोन सदस्य डॉ. लहरी ने कहा, "पटाखों या फिर दिए से जलने वाले मामले अक्सर दिवाली की रात या उसके अगले दिन इमरजेंसी में देखे जाते हैं। हर साल ऐसे छिटपुट केस आते हैं लेकिन पोटाश गन का ऐसा भयावह रूप कभी सामने नहीं आया। पहली बार एक साथ इतने मामले हम सभी ने महसूस किए हैं जिनके बारे में सोचने पर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अगर सामान्य शब्दों में कहूं तो पोटाश गन ऐसा जोखिम है जिसके दर्द की कल्पना परे है। अगर बच गए तो आजीवन विकलांग बनकर रह जाएंगे। मुझे लगता है कि 100 फीसदी अंधापन वाली यह घटनाएं सामान्य नहीं हो सकतीं। आम जनता से इसे दूर रखने के लिए जल्द से जल्द हमारी एजेंसियों को ठोस कदम उठाने चाहिए।"
नई दिल्ली स्थित लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल (एलएनजेपी) की डॉ. रीतू सक्सेना ने इंडियास्पेंड से कहा, "ये बहुत खतरनाक हथियार है। इसका विस्फोट आतिशबाजी की तुलना में कई गुना ज्यादा और भयावह है। ये घरेलू उपकरण है जो अक्सर पाइप या डिब्बे से तैयार किए जाते हैं और सल्फर व पोटाश जैसी विस्फोटक सामग्री से भरे होते हैं। उन्होंने भी पिछले तीन साल में करीब चार ऐसे मामलों को देखा है जिन्हें घायल स्थिति में अस्पताल लाया गया। कॉर्निया जलन, अंतः नेत्रीय विदेशी वस्तु (IOFB), रेटिना डिटेचमेंट और यहां तक कि स्थायी दृष्टि हानि भी शामिल है। कई पीड़ित बच्चे और किशोर हैं, जो अक्सर इन खतरनाक उपकरणों को संभालते समय जागरूकता की कमी के कारण घायल हो रहे हैं। इस उभरते खतरे से निपटने के लिए न सिर्फ लोगों में जागरूकता बल्कि ठोस सुरक्षा उपायों को भी तत्काल सख्ती से लागू करना जरूरी है।"
देश का पहला पोस्टमार्टम, शरीर पर 39 चोट मिलीं
पोटाश गन की वजह से हरियाणा के रोहतक में वर्ष 2022 में एक 30 साल के युवक की मौत हुई थी । इसे घायल स्थिति में पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज रोहतक की इमरजेंसी वार्ड लाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित किया। परिजनों की सलाह पर डॉक्टरों ने पोटाश गन के इस भयावह मामले पर शोध करने का फैसला लिया और पहली बार देश में पोटाश गन को लेकर पोस्टमार्टम किया गया। इस दौरान फॉरेंसिक टीम को मृतक के शरीर पर एक या दो नहीं बल्कि कुल 39 गंभीर चोटें मिलीं। उसके शरीर में जगह जगह छोटे पत्थर भी मिले। शरीर के पिछले हिस्से में नीला-बैंगनी रंग का कालापन मौजूद था। चेहरे पर स्टिपलिंग प्रभाव से मिलते-जुलते कई बिंदु युक्त घर्षण मौजूद थे।
पंडित बीडी शर्मा पीजीआईएमएस रोहतक के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के डॉ. राहुल कौशिक ने सेज मेडिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया कि उसके दोनों हाथों के डिस्टल फालैंग्स (उंगलियों या पैर की उंगलियों के सिरों पर स्थित आखिरी हड्डियां) दर्दनाक रूप से कटे हुए पाए गए। सिर, चेहरे, छाती और पैरों के अग्रभाग पर स्टिपलिंग प्रभाव मौजूद थे। यह ठीक वैसे ही हैं जैसे गोली चलने के दौरान त्वचा में बारूद के घुसने के निशान होते हैं। धमाके के कुछ ही घंटों के भीतर उसकी मौत हो गई। यहां तक कि शरीर पर विभिन्न प्रकार की यांत्रिक चोटें और आंतरिक अंगों की चोट मिलीं। इसके अलावा घर्षण, खरोंच, घाव, फ्रैक्चर, जलने की चोट के साथ साथ उसके फेफड़ों तक में चोट के ऐसे पैटर्न मिले हैं। इस तरह का भयावह मामला पहले कभी नहीं देखा गया। न ही इस पर बहुत अधिक चिकित्सा साहित्य मौजूद है क्योंकि यह घटनाएं पिछले कुछ समय से सामने आ रही हैं।
ऑनलाइन पर सेल, विस्फोटक पाउडर साथ में फ्री
इस घातक और जानलेवा देशी पोटाश गन की बिक्री ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर चल रही है। कई ई कॉमर्स कंपनियां गन के साथ विस्फोटक पाउडर तक फ्री में देने का ऑफर कर रही हैं। वहीं क्रेडिट कार्ड यूजर्स को ईएमआई का ऑप्शन भी मिल रहा है। ई कॉमर्स कंपनी अमेजन इसे 800 से लेकर 1299 रुपये तक में उपलब्ध करा रहा है। वहीं फ्लिपकार्ट पर यह 400 रुपये से लेकर 999 रुपये तक में मिल रहा है। यहां सल्फर और पोटाश का पाउडर भी मौजूद है। हालांकि यह कंपनियां इस उत्पाद को एग्रीकल्चर फायरक्रैकर सर्जिकल प्लायर नाम से बेच रही हैं। किसी किसी वेबसाइट पर विस्फोटक पाउडर 200 से 399 रुपये प्रति किलो मिल रहा है।
जोधपुर एम्स के डॉक्टरों ने एक अध्ययन में बताया कि बाजार में उपलब्ध सल्फर पाउडर में विभिन्न मात्रा में सल्फ्यूरिक एसिड होता है। पोटेशियम क्लोरेट सल्फ्यूरिक एसिड के साथ प्रतिक्रिया करता है और पोटेशियम सल्फेट (2 KClO3 + H2SO4 →2 HClO3 + K2SO4) बनाता है, जो एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील विस्फोटक है। इनके मुताबिक वैज्ञानिक उद्देश्यों को छोड़कर पोटेशियम या किसी अन्य क्लोरेट के साथ मिश्रित सल्फर से बने किसी भी विस्फोटक का निर्माण और आयात करने के साथ साथ माचिस की तीली तक का उत्पादन भारतीय विस्फोटक अधिनियम, 1884 के तहत निषेध है। आमतौर पर दोनों रसायनों (सल्फर और पोटाश) का उपयोग खेती में उर्वरक के रूप में किया जाता है जिसके चलते यह पूरे भारत में बहुत कम कीमत पर बाजार में आसानी से उपलब्ध है, फिर चाहे वह ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म ही क्यों न हो?
फॉरेंसिक विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय विस्फोटक अधिनियम के विस्फोटक नियमों की सुरक्षा दूरी श्रेणियों के आधार पर, रिपोर्ट किए गए मामले श्रेणी एक्स के अंतर्गत आते हैं, वे विस्फोटक जिनमें आग लगने या हल्का विस्फोट होने का जोखिम या दोनों हैं, लेकिन जिनका प्रभाव स्थानीय होगा।
डॉ.ब्रजेश लहरी का कहना है कि इस जानलेवा पटाखे का इस्तेमाल इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि सोशल मीडिया खासतौर पर यूट्यूब प्लेटफॉर्म पर काफी संख्या में इसकी रील्स प्रसारित हो रही हैं। इस पटाखे में क्या होता है? इसे कैसे इस्तेमाल किया जाता है? कैसे पाउडर डाला जाता है, इन सभी को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जाता है और किसी भी वीडियो में इसके जानलेवा इफेक्ट के बारे में नहीं बताया जाता। ठीक ऐसी ही स्थिति ई कॉमर्स कंपनियों की है जो इसे अपने प्लेटफॉर्म पर बेच रही हैं लेकिन इससे जुड़ी सावधानियों के बारे में कहीं जिक्र तक नहीं है।