हरियाणा: बढ़ती लागत, घटता मुनाफा और कर्ज का दलदल, क्या यही है धरने की असल वजह?
बदलते मौसम की वजह से नुकसान और बढ़ती लागत से घटता मुनाफा, शायद यही वजह कि हरियाणा और पंजाब के किसान लंबे समय से आंदोलनरत हैं। किसानों का आरोप है कि मुनाफा न होने की वजह से वे कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं, जिसकी वजह से नई पीढ़ी खेती-किसानी से मुंह मोड़ रही। पढ़िए पूरी रिपोर्ट;
करनाल। सितंबर महीने के आखिर में हुई बरसात से अंबाला जिले के गांव संभालखा के किसान 45 वर्षीय किसान प्रमोद चौहान की 30 एकड़ धान की फसल को काफी नुकसान हुआ है। उन्हें उम्मीद थी कि इस बार कम से कम 18 लाख रुपए की धान हो जाएगी। इसमें से प्रमोद चौहान को सात लाख रुपए क्रेडिट कार्ड का कर्ज लौटाना था, बाकी आढ़ती का करीब 10 लाख रुपए कर्ज है, जो वापस करना था। लेकिन न तो धान का उत्पाउन उम्मीद के मुताबिक हुआ, न ही धान का मार्केट में न्यूनतम समर्थन मूल्य मिला।
प्रमोद कुमार को उम्मीद थी कि धान 30 क्विंटल प्रति एकड़ होनी चाहिए। नुकसान न होता तो 900 क्विंटल धान होनी चाहिए थी। हरियाणा में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,300 रुपए प्रति क्विंटल है। सब ठीक रहता तो उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से 20 लाख 70 हजार रुपए फसल बेचने पर मिलते। लेकिन धान उत्पादन बरसात से नुकसान की वजह से कम होकर 780 क्विंटल रह गया। खराब धान का रेट भी 2,100 रुपए प्रति क्विंटल यानी 16 लाख 38 हजार। नतीजा यह है कि इस बार भी प्रमोद चौहान किसान क्रेडिट कार्ड व आढ़ती का कर्ज नहीं चुका पाएंगे।
ये कहानी अकेले प्रमोद की नहीं है। किसान लगातार शिकायत कर रहे हैं कि मौसम की मार और मंडी में उपज की सही रेट न मिलने की वजह से उन्हें खेती में लगातार नुकसान हो रहा है। सही रेट न मिलने की वजह से वे बैंक का कर्ज भी नहीं चुका पा रहे हैं। ऐसे में वे आंदोलन करने को मजबूर हैं।
हरियाणा और पंजाब के किसान शंभू बॉर्डर पर 10 माह से धरने पर बैठे हैं। इनकी मांग है कि सरकार खेती से होने वाली आय को बढ़ाने की दिशा में उचित कदम उठाए। किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की भी मांग कर रहे हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य किसी भी फसल के लिये वह न्यूनतम मूल्य है, जिसे सरकार किसानों के लिए लाभकारी मानती है और इसलिए इसके माध्यम से किसानों का समर्थन करती है। कृषि लागत और मूल्य आयोग द्वारा सरकार को 22 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तथा गन्ने के लिए उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) की सिफारिश की जाती है।
पंजाब के जिला के गांव बाबरपुर के किसान हरपाल सिंह (53) बताते हैं,”जब तक सरकार एमएसपी का निर्धारण स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार नहीं करती, तब तक न तो वे कर्ज के दलदल से बाहर आ पाएंगे, न ही खेती से मुनाफा होगा। दूसरी मांग है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी भी दी जाए।”
वे यह भी कहते हैं कि खेती की लागत तेजी से बढ़ रही है। मौसम की मार के साथ ही मंडियों में धान की बिक्री एमएसपी पर नहीं होती। इसके चलते वह कर्ज वापस करना तो दूर की बात है, नौबत और ज्यादा कर्ज लेने की आ जाती है।
प्रोफेसर एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग (NCF) का गठन किया गया था। एनसीएफ ने 2004 और 2006 के बीच पांच रिपोर्टें पेश कीं, जिनमें भारत में खेती किसानी की तस्वीर बदलने की बात कही गई। इन रिपोर्ट को स्वामीनाथन रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है। फाइनल और आखिरी रिपोर्ट में उन्होंने किसानों की फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का सुझाव भी दिया। इसे C2+50% फॉर्मूला भी कहा जाता है। रिपोर्ट में किसानों को उनकी फसल की औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक एमएसपी देना का सुझाव दिया था।
हालांकि उनके सुझावों को अब तक लागू नहीं किया जा सका है। रिपोर्ट के चार साल बाद 2010 में तत्कालीन सरकार ने एक सवाल के जवाब में बताया कि सरकार ने एमएस स्वामीनाथन की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया है क्योंकि एमएसपी की सिफारिश कृषि लागत और मूल्य आयोग द्वारा की जाती है और वे इसे लेकर आशंकित है। ऐसे में लागत पर कम से कम 50% की वृद्धि निर्धारित करने से बाजार में विकृति आ सकती है। देशभर के किसान स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं।
लागत और मुनाफा की गणित समझिए
प्राइस पॉलिसी फॉर खरीफ क्राप्स 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार धान की औसतन उत्पादन लागत 1,533 रुपए प्रति क्विंटल आंकी गई है। इसे आधार बना कर एमएसपी 2,300 रुपए प्रति क्विंटल दिया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर औसतन धान उत्पादन एक हेक्टेयर से 43.73 क्विंटल धान उत्पादन हुआ।
उत्पादन लागत ए 2 के तहत 1,189 रुपए प्रति क्विंटल खर्च आएगा। एफएल मजदूरी 344 रुपए प्रति क्विंटल जोड़ ली जाए तो धान की उत्पादन लागत 1,533 रुपए प्रति क्विंटल हो गई। इसमें 50 प्रतिशत मार्जिन देने से 2,300 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी दे दिया गया। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के एमएसपी के अनुसार प्रति हेक्टेयर धान से किसान को एक लाख 579 रुपए दाम मिले, जबकि उसका खर्च 67 हजार 38 रुपए हुआ। इस तरह से देखा जाए किसान को कुल 33 हजार 540 रुपए ही बचेंगे।
हरियाणा केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि कृषि जनगणना के अनुसार 2015-16, देश में 10,02,51,309 सीमांत और 2,58,09,332 छोटे किसान हैं। (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार 1 हेक्टेयर तक भूमि वाले किसानों को सीमांत किसान माना जाता है। 1 हेक्टेयर से अधिक और 2 हेक्टेयर तक भूमि वाले किसानों को लघु या स्माल किसान माना जाता है।) हरियाणा में 3,13,937 छोटे और 8,02,396 सीमांत किसान हैं। पंजाब में 2,07,436 छोटे किसान और 1,54,412 सीमांत किसान हैं।
लेकिन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र लाठर कहते हैं कि एक हेक्टेयर के किसान को किसान क्रेडिट कार्ड पर ही ढाई लाख रुपए तक का कर्ज मिल जाएगा। अब प्राइस पॉलिसी फॉर खरीफ क्राप्स कमिशन फॉर एग्री कल्चर कॉस्ट एंड प्रोसेस के मुताबिक 33 हजार 540 रुपए ही कमा पाएगा। ऐसे में अगर वह कर्ज लेता है उसे चुकाएगा कैसे?
डॉ. लाठर ने बताया कि यही वजह है कि किसान स्वामी नाथन फार्मूले के मुताबिक एमएसपी निर्धारण करने की मांग कर रहे हैं। क्योंकि इस फार्मूले में सी2 लागत के साथ 50 प्रतिशत खर्च जोड़कर एमएसपी तय करने का फार्मूला दिया था।
डॉक्टर लाठर बताते हैं कि इस फार्मूले के अनुसार ए2 , ए2+एफएल और सी2 में बांटा गया है। ए2 लागत में फसल की पैदावार करने के सभी नकदी खर्च शामिल है। इसमें खाद, बीज, पानी, कीटनाशक व मजदूरी आदि सभी लागत जोड़ी जाती है।
स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को उनकी फसल की लागत का 50% ज्यादा देने की सिफारिश की थी। इसे फसल में लगने वाली लागत को तीन हिस्सों- A2, A2+FL और C2 में बांटा गया था। A2 की लागत में फसल की पैदावार में हुए सभी तरह के नकदी खर्च शामिल होते हैं। इसमें बीज, खाद और केमिकल से लेकर मजदूरी, ईंधन और सिंचाई में लगने वाली लागत भी शामिल होती है। A2+FL में फसल की पैदावार में लगने वाली कुल लागत के साथ-साथ परिवार के सदस्यों की मेहनत की अनुमानित लागत को भी जोड़ा जाता है। जबकि, C2 में पैदावार में लगने वाली नकदी और गैर-नकदी के साथ-साथ जमीन पर लगने वाले लीज रेंट और खेती से जुड़ी दूसरी चीजों पर लगने वाले ब्याज को भी शामिल किया जाता है। स्वामीनाथन आयोग ने C2 की लागत में ही डेढ़ गुना यानी 50 फीसदी और जोड़कर ही फसल पर एमएसपी देने की सिफारिश की थी।
अब यदि धान एमएसपी इस फार्मूले से निर्धारित किया जाए तो यह प्रति क्विंटल 3,012 रुपए प्रति क्विंटल बैठता है। यानी सीधे-सीधे कह सकते हैं कि धान के इस बार के एमएसपी से किसान को सीधे सीधे 710 रुपए प्रति क्विंटल का नुकसान हुआ है।
ए2 एक्चुअल पेड आउट कॉस्ट- 1189, एफएल फैमिली लेबर मजदूरी- 344 रुपए, कुल मिलाकर 1,533 हुआ।
पचास प्रतिशत मार्जन 2,300 रुपए प्रति क्विंटल, एमएसपी किसानों को दिया गया है। लेकिन यदि इसमें सी2 की कॉस्ट और 50 प्रतिशत मार्जिन जोड़ दिया जाए तो एमएसपी 3,012 रुपए प्रति क्विंटल बैठता है।
पिछले कई सालों से खेती को लाभकारी बनाने की कवायद चल रही है। इसी कड़ी में 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि 2022 तक कृषि आय दोगुनी कर दी जाएगी। 2018 में भी तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि कृषि सरकार की “सर्वोच्च प्राथमिकता” है और कुछ जगहों पर किसानों को “उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है”। किसानों की आय दोगुनी करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति गठित की गई थी, जिसने अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं, लेकिन वादे के अनुसार कृषि आय दोगुनी नहीं हुई।
पंजाब, हरियाणा के किसानों पर सबसे ज्यादा कर्ज
“पहले प्रति एकड़ रोपाई का खर्च एक हजार से 1,200 रुपए था, अब वह सात से आठ हजार रुपए प्रति एकड़ आता है। पहले जो कीटनाशक व खाद दो से ढाई सौ रुपए खर्च पति एकड़ आता था, वह प्रति एकड़ दो हजार रुपए आ रहा है। अब धान की खेती नो प्रॉफिट नो लॉस पर है। किसानों के बच्चे खेती छोड़ कर विदेश जा रहे हैं। किसानों पर कर्ज बढ़ रहा है। खेती का मुनाफा तेजी से कम हो रहा है।” शंभू बॉर्डर पर धरने पर बैठे किसान हरपाल सिंह (53) बताते हैं।
“फसलों की उत्पादन लागत बढ़ रही है। मौसम की वजह से फसल खराब हो जाती है। नमी रह जाती है कि मंडी दाम और कम हो जाता है। ऐसे में किसान कर्ज उतारेगा भी तो कैसे। किसान मानसिक तौर से परेशान है।” वे आगे बताते हैं।
“खेती के उपकरण पर किसानों का खर्च बढ़ रहा है। ट्रैक्टर ढाई तीन लाख में आ जाता था, आज 10 से 12 लाख रुपए में मिलता है। पराली के निपटारे के लिए किसानों को हर साल उपकरण खरीदने पड़ रहे हैं। इसकी कीमत दो लाख 80 हजार रुपए तक है। अनुदान मिलने के बाद भी एक लाख 80 रुपए किसानों को देने पड़ते हैं। अनुदान का लाभ डीलर्र व निर्माता को मिल रहा है।” जगराज नाराज होते हुए कहते हैं।
एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा देश में किसानों के कर्ज के मामले में दूसरे नंबर पर है, जहां 22.86 लाख किसानों पर 5,004 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है। इस मामले में पंजाब सबसे आगे जहां के 21.98 लाख किसानों (और उनके परिवारों) पर 55,428 करोड़ रुपए का कर्ज है। भारत में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) धारकों पर औसत कर्ज 1.20 लाख रुपए है।
हमने जब प्रमोद से पूछा कि उन्हें इतना कर्ज कैसे मिल जाता है, तो उन्होंने जवाब दिया, "मैं हर साल साहूकार से कर्ज लेकर किसान क्रेडिट कार्ड का कर्ज चुकाता था और इस वजह से बैंक अपने आप ही उनके क्रेडिट कार्ड की सीमा बढ़ा देता था और इसका नतीजा यह हुआ कि 2010 में जो कर्ज 3 लाख रुपए का था, वह अब बढ़कर 7 लाख रुपए हो गया है।"
संसद में दिए गए एक जवाब के अनुसार, 30 सितंबर, 2023 तक हरियाणा में केसीसी की बकाया राशि 23,01,357 सक्रिय केसीसी खातों के मुकाबले 51,053.84 करोड़ रुपए थी। किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना अगस्त 1998 में किसानों को उनकी कृषि ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अल्पकालिक ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। यह योजना सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों के माध्यम से संचालित होती है, जिससे व्यापक पहुंच सुनिश्चित होती है। इसकी ऋण संरचना दो-आयामी है: फसल से संबंधित खर्चों के लिए अल्पकालिक सीमा और लंबी अवधि के कृषि निवेशों के लिए सावधि ऋण।
हरियाणा राज्य बजट सत्र 2023 के दौरान तत्कालीन विपक्षी विधायक वरुण चौधरी ने किसानों के कर्ज की स्थिति का सवाल उठाया था। सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने तब वरुण को जवाब देते हुए कहा था कि मार्च 2017 में 13,58,473 लाख किसानों पर कुल कर्ज 9652.08 करोड़ रुपए था, जो 2022 में बढ़कर 10,399.34 करोड़ रुपए हो गया है।
कुछ समय पहले ही भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बिना किसी जमानत के कृषि ऋण की सीमा 1.6 लाख रुपए से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दी है। कृषि मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि संशोधित सीमा 1 जनवरी 2025 से प्रभावी होगी और इससे देश भर के लाखों किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद है। उत्तर भारतीय राज्य हरियाणा में वर्तमान में 22,86,953 सक्रिय केसीसी हैं जिन पर 50,045 करोड़ रुपए बकाया हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा गैर राजनीतिक के किसान नेता हरविंद्र सिंह मसानी के अनुसार मौजूदा एमएसपी फार्मूले पर लागत तक नहीं निकल पा रही। गन्ने की उत्पादन लागत 480 रुपए आती है, जबकि मिल में गन्ने के रेट मिल 410 रुपए प्रति क्विंटल है। मिल तक ले जाने का खर्च अलग है। इस तरह से 85 रुपए प्रति क्विंटल नुकसान हो रहा है।
“2002 में बैंकों की कर्ज देने की योजनाओं ने कारपोरेट सेक्टर को बढ़ावा दिया। किसान क्रेडिट कार्ड में पहले तो जमीन में यह देखा जाएगा कि इसमें क्या पैदा होता है। एक साल में किसान की आमदनी कितनी थी। इसे आधार बना कर क्रेडिट कार्ड की प्रति एकड़ लिमिट तय थी। निजी क्षेत्र के बैंक किसान क्रेडिट कार्ड पर पहले 70 हजार रुपए प्रति एकड़ का कर्ज देते थे जिसे बढ़ाकर अब चार लाख रुपए तक कर दिया गया है। अब खेती से मुनाफा तो हो नहीं रहा। फिर किसान कर्ज उतारेगा कैसे।” हरविंद्र सवाल करते हैं।
डॉक्टर लाठर ने बताया कि किसान को कर्ज से मुक्ति दिलाने का एकमात्र उपाय ही स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के आधार पर एमएसपी देना है। जब तक सरकार इस फार्मूले को नहीं अपनाती, तब तक किसान कर्ज के बोझ से बाहर निकलने वाला नहीं है और किसान मुनाफे में नहीं आ पाएंगे।
किसानों के कर्ज के मामलों पर किसानों की कानूनी मदद कर रहे पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के एडवोकेट अरविंद मान निटू ने बताया कि किसान देश की राजनीति को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों ने जो आंदोलन किया, इसके बाद सभी राजनीतिक दलों के एजेंडे में किसान आ गए हैं। अभी भी पंजाब के किसान शंभू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं। इस तरह के आंदोलन की बड़ी वजह किसानों का कर्ज है। क्योंकि किसान को फसलों को वाजिब दाम नहीं मिलता। खेती पर खर्च बढ़ रहा है। लेकिन मुनाफा नहीं बढ़ रहा है।
एडवोकेट अरविंद मान निटू के अनुसार ने बताया कि एक से तीन लाख रुपए तक के कर्ज पर किसानों को तीन प्रतिशत का अनुदान मिलता है। लेकिन यह तभी मिल पाता है, जब किसान समय पर कर्ज वापस करें। होता यह है कि बड़ी संख्या में किसान समय पर क्रेडिट कार्ड का कर्ज वापस नहीं कर पाते। इस तरह से उन्हें जो अनुदान का लाभ मिलना था, इससे भी किसान वंचित रह जाता है।
अरविंद के अनुसार 70 प्रतिशत किसान ऐसा कर ही नहीं पाते। इस वजह से उन्हें ब्याज की छूट का लाभ नहीं मिल पाता।
इसके दूसरी ओर मान लिजिए किसान ने तीन लाख का कर्ज लिया है, अब वह कर्ज चुका नहीं पा रहा है, वह किसी दूसरी जगह से कर्ज लेकर बैंक का कर्ज उतार देता है। अब बैंक उसे तीन लाख 25 हजार का कर्ज दे देंगा। अरविंद आगे बताते हैं।
प्रदेश के सीएम नायब सिंह सैनी ने बताया कि हमारी सरकार ने हरियाणा ग्रामीण विकास बैंक के डिफाल्टर किसानों के लिए प्रदेश सरकार ने एकमुश्त निपटारा योजना (वन टाइम सेटलमेंट, ओटीएस ) शुरू की थी। 2022 से 30.6.2023 तक चली इस योजना के तहत प्रदेश के 9 हजार 103 किसानों ने इस योजना का लाभ उठाया। बैंकों को करीब 305 करोड़ रुपए कर्ज के वापस मिले। जो 32 करोड़ रुपए का ब्याज था, इसमें 16 करोड़ रुपए सरकार ने वहन किए। बाकी का ब्याज बैंक ने माफ कर दिया।
“किसान तभी कर्ज मुक्त होगा, जब उसकी आमदनी बढे़ेगी। हम इस दिशा में काम कर रहे हैं। हरियाणा देश का पहला राज्य है जहां 24 फसलों को एमएसपी पर खरीदा जा रहा है। इससे किसान अब गेहूं धान के फसल चक्र को छोड़ कर फसल विविधीकरण की ओर भी आकर्षित होंगे जो उनकी आमदनी बढ़ाने वाला कदम साबित होगा। किसानों को कर्ज मुक्त करने के लिए सरकार पशुपालन और मछली पालन को भी बढ़ावा दे रही है।” उन्होंने आगे कहा।
हरियाणा में भारत के कुल खाद्यान्न भंडारण का लगभग 16 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें 9.3 मिलियन टन गेहूं और 4.2 मिलियन टन चावल शामिल है। हरियाणा के कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने इंडियास्पेंड से बातचीत में किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने पर सरकार के फोकस पर जोर दिया। "हमारी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि किसान आर्थिक रूप से सुरक्षित हों। हमारे राज्य के किसान कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं और यह पिछली कांग्रेस सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण है। हम किसानों के कल्याण के लिए लगातार काम कर रहे हैं। आने वाले दिनों में आप देखेंगे कि हरियाणा के किसान कर्ज मुक्त हो रहे हैं और आर्थिक प्रगति कर रहे हैं। जब किसान समृद्ध होते हैं, तो राज्य समृद्ध होता है," उन्होंने कहा।
"हम किसानों को कर्ज मुक्त बनाने के लिए उनकी सिफारिशों के आधार पर रणनीति तैयार करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने की योजना बना रहे हैं।" राणा ने आगे कहा।