‘अब लालटेन-टॉर्च की जरूरत नहीं’: सौर ऊर्जा से रोशन होते भारत के अस्पताल लेकिन रफ्तार बहुत धीमी

भारत के अस्पतालों में बिजली खर्च हर साल लाखों टन कार्बन का उत्सर्जन कर रहा है। जलवायु परिवर्तन के इस संकट में सरकार इन अस्पतालों को हरित ऊर्जा से जोड़ने की पहल शुरू कर चुकी है जो ग्राउंड पर बदलाव भी ला रही है, फिर भी सरकार की रफ्तार सुस्त है।

Update: 2025-09-01 05:35 GMT

कासगंज जिला अस्पताल के परिसर में आपातकालीन वार्ड की छत पर लगा सोलर पैनल, स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

नई दिल्ली: कुछ समय पहले तक यहां हालात ऐसे नहीं थे। आसपास के पूरे क्षेत्र में बिजली आपूर्ति व्यव​स्थित नहीं है। कभी रात में तो कभी दिन में आठ घंटे बिजली आती है। जब भी पास के ट्रांसफार्मर में परेशानी आती है तो समझो, दो-तीन दिन तक बिजली की आपूर्ति बा​धित रहती है। ऐसे में हमारे पास टॉर्च और लालटेन का सहारा ही था। हम मरीजों को यहां से जिला अस्पताल रैफर कर देते थे। यह कहना है उत्तर प्रदेश के वंचित जिलों में से एक कासगंज के सोरों ​स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के इंचार्ज डॉ. मुकेश कुमार का।

कुमार कहते है, ‘‘अब हमारी छत पर सोलर पैनल लगा हुआ है। इसलिए हमें टॉर्च और लालटेन की जरूरत नहीं पड़ती है। न ही हमें मरीजों को रैफर करना पड़ता है। यहां प्रसूति रोग से लेकर छोटी सर्जरी तक की जा रही हैं। हमें अब बिजली का तनाव बिलकुल नहीं है। कंप्यूटर से लेकर ऑपरेशन ​थियेटर और अस्पताल परिसर की लाइटें हर समय रोशन रहती हैं।”

यूपी के सोरों सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मरीज की पर्ची बनाती स्वास्थ्य कर्मचारी, स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

कासगंज के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. राजीव अग्रवाल ने इंडियास्पेंड से कहा, ‘‘अस्पताल खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा से काफी सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है जिसके चलते सभी जिलों के ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को सौर ऊर्जा से जोड़ने का कार्य चल रहा है। इसके अलावा कासगंज जिला अस्पताल में सभी इमारतों पर सोलर पैनल लगाए जा रहे हैं जिनका 80 फीसदी कार्य पूरा हो चुका है।’’

कासगंज जिला अस्पताल की छत पर लग रहा नौ किलोवॉट से भी अधिक क्षमता का सोलर पैनल, स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

देश की राजधानी दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर दूर कासगंज की यह तस्वीर एक अपवाद भी है क्योंकि उत्तर प्रदेश में 100 फीसदी हरित अस्पताल वाला कोई जिला नहीं बना है। हमने सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (MOHFW) से प्राप्त अलग अलग आदेश की प्रति, बैठक और रिपोर्ट की जांच में पाया कि साल 2023 से मार्च 2025 के बीच छह बार केंद्र ने राज्यों को हरित अस्पतालों पर ध्यान देने के लिए कहा। बावजूद इसके, हरित अस्पतालों की इस पहल को महानगरों से दूर गांवों तक ले जाने में सरकार की रफ्तार बहुत धीमी है।

हमारी यह रिपोर्ट बताती है कि भारत का स्वास्थ्य तंत्र बीमारियों से लड़ने के साथ हरित अस्पतालों के जरिए जलवायु संकट को थामने का प्रयास तो कर रहा है लेकिन इसे उतनी गंभीरता से भी नहीं लिया जा रहा, जितना कागजों पर दिखाई दे रहा है।

टीका खराब होने का डर नहीं, 24 घंटे टीबी जांच भी

सोरों सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत संजीव शर्मा ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, "बिजली आपूर्ति ने हमारी क्षमताओं को काफी बढ़ा दिया है। अब हमें टीका (वैक्सीन) के खराब होने का डर नहीं रहता क्योंकि सोलर पैनल से हम रात में आसानी से अपना फ्रिज चला लेते हैं। इसके साथ साथ हमने अब यहां टीबी के नमूनों की जांच भी बढ़ा दी है। पहले बिजली आने के बाद ही उन्हें ट्रूनेट मशीन का इस्तेमाल करना पड़ता था जबकि अब 24 घंटे बिजली रहती है और अब एक दिन में कम से कम 20 से 25 नमूनों की जांच करते हैं।"

सोरों सामुदायिक केंद्र में टीबी नमूनों की जांच करते संजीव शर्मा, स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

इसी केंद्र में मुख्य नर्सिंग कर्मचारी रीना देवी ने बताया, "हमें सबसे ज्यादा संकट सूरज ढलने के बाद होता था। रात में अगर इमरजेंसी केस आता है और यहां बिजली नहीं होती है तब हमारे पास मरहम पट्टी करने के लिए भी रोशनी नहीं होती। मुझे हमेशा अपने साथ टॉर्च या टेबल पर लालटेन रखना पड़ता था, यह सोचकर कि कहीं बिजली न चली जाए। अंधेरे की वजह से बाकी नर्स भी रात की ड्यूटी लेने से घबराती थीं लेकिन छत पर सोलर पैनल लगने के बाद कई तरह की जटिलताओं का समाधान मिल गया है।"

उन्होंने प्रसूति को लेकर कहा कि अंधेरे की वजह से वह कोई जो​खिम लेना नहीं चाहती थी इसलिए करीब 20 किलोमीटर दूर जिला अस्पताल रैफर करती थीं लेकिन अब महीने में करीब आठ से 10 डिलीवरी वह अस्पताल में कर रही हैं जिनमें से दो या तीन रात में भी होती हैं।

चिकित्सा रिकॉर्ड की जांच करती नर्स रीना देवी, स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

अस्पतालों के बिजली खर्च में 77 लाख टन कार्बन उत्सर्जन

भारत के पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने इंडियास्पेंड से कहा, ‘‘भारत के अस्पतालों को हरित ऊर्जा से जोड़ने का प्रयास काफी लंबे समय से चल रहा है। हम जानते हैं कि भारत सहित पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रही है। इसमें हमारे अस्पताल भी अहम भूमिका निभा रहे हैं क्योंकि साल 2024 में हमारी रिपोर्ट में यह पु​ष्टि हुई कि पूरे देश की सालाना बिजली आपूर्ति में से नौ फीसदी भारत के अस्पतालों पर खर्च हो रही है जिसके लिए सालाना 77 लाख टन कार्बन उत्सर्जन भी हो रहा है।’’

उन्होंने बताया कि बतौर स्वास्थ्य महानिदेशक नवंबर 2024 में सभी सरकारी अस्पतालों की छतों पर सोलर पैनल स्थापित करने के लिए राज्यों को पत्र लिखा जिसमें दिसंबर 2024 की डेडलाइन को भी दोहराया गया था। हालांकि इसके बाद उनका रिटायरमेंट हो गया। इसलिए आगे की जानकारी उनके संज्ञान में नहीं है।

उत्तर प्रदेश के कासगंज में सोलर ऊर्जा संचालित नवनिर्मित वेयर हाउस उद्घाटन के इंतजार में, स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

इस मामले में नई दिल्ली ​स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आकाश श्रीवास्तव ने बताया कि अस्पतालों में बिजली खर्च को लेकर एनसीडीसी ने 50 पन्नों की रिपोर्ट केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपी जिसमें भारत के 87 फीसदी अस्पताल ग्रिड बिजली पर निर्भर पाए गए। इस रिपोर्ट में राष्ट्रीय सर्वे का भी हवाला दिया गया जिसे देश के 18 राज्यों के 623 सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में किया गया। उसके आंकड़े बताते हैं, दो लाख सरकारी और प्राइवेट अस्पताल हर घंटे 97 लाख मेगावॉट बिजली खर्च कर रहे हैं जिसे बनाने में सालाना 77 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन हो रहा है। यह एक तरह से जलवायु संकट की आग में घी डालने जैसा है।

इस सर्वे में यह भी पता चला कि 623 अस्पतालों में सिर्फ 2% ही सौर ऊर्जा पर काम कर रहे हैं। बाकी अब भी पूरी तरह ग्रिड बिजली पर निर्भर हैं। इन अस्पतालों में सबसे ज्यादा करीब 65% बिजली का खर्च रोशनी, एसी, पानी ठंडा या गर्म और वेंटिलेशन पर खर्च हो रही है जिसके लिए अस्पताल प्रबंधन को लाखों रुपये के बिलों का भुगतान भी करना पड़ रहा है जबकि उनके अस्पताल की यह मांग छतों पर सोलर पैनल लगाकर भी पूरी की जा सकती है।

कासगंज जिला अस्पताल की मुख्य इमारत,स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

जलवायु परिवर्तन और भारत की स्वास्थ्य सेवा

पिछले कुछ वक्त में भारत के अधिकांश हिस्सों में आई घातक गर्मी की लहरें, जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चरम मौसम के भारतीयों पर पड़ने वाले प्रभावों की कई घटनाएं सबूत हैं। भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बहुआयामी हैं और जन स्वास्थ्य एक ऐसा क्षेत्र होगा जहां इसका प्रभाव सबसे अधिक महसूस किया जाएगा और समुदायों को इससे निपटने में मदद करने का अवसर प्रदान करेगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण 2030 से 2050 के बीच 2,50,000 अतिरिक्त लोगों की मृत्यु होने की आशंका है। उनका अनुमान है कि ये मौतें कुपोषण, मलेरिया, दस्त और तापजन्य तनाव सहित विभिन्न कारणों से होंगी। हेल्थकेयर विदाउट हार्म की अंतरराष्ट्रीय जलवायु एवं स्वास्थ्य प्रचारक श्वेता नारायण का मानना ​​है कि गुणवत्तापूर्ण एवं सुलभ स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य सेवा केंद्रों को किस प्रकार संचालित किया जाए, इसमें हस्तक्षेप आवश्यक है।

अस्पताल की छत पर सोलर पैनल साफ करता कर्मचारी, स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

IKEA Foundation के साथ मिलकर भारतीय अस्पतालों के लिए "Energy for Health" अभियान शुरू करने वाले सेल्को फाउंडेशन की एसोसिएट डायरेक्टर रचिता मिश्रा कहती हैं, "जब स्थानीय स्वास्थ्य प्रणालियां बिजली की कमी के कारण काम नहीं करतीं तो उन गिने-चुने केंद्रों पर स्वास्थ्य सेवा का बोझ और बढ़ जाता है जो काम कर रहे हैं। इस क्षेत्र के कई हितधारकों से हमने सीखा कि अंतिम छोर तक स्वास्थ्य सुविधाएं, गर्भावस्था के दौरान गहन देखभाल और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध अधिक नैदानिक ​​सुविधाएं बेहद जरूरी हैं। इसका मतलब है कि मौजूदा ऊर्जा ढांचे पर और बोझ बढ़ जाएगा जो पहले से ही बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। इसलिए हम ऐसे हस्तक्षेप करना चाहते थे जो इसे प्रभावी ढंग से बदल सकें।"

उनका मानना है कि भारत में 70 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है जहां अंतिम छोर तक स्वास्थ्य केंद्र आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने और जमीनी स्तर पर लचीलापन लाने में अहम भूमिका निभाते हैं। अंतिम छोर तक समय पर और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रभावी समाधान विकसित करने में सौर ऊर्जा की पहुंच महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

मेघायल के सौर ऊर्जा चालित स्वास्थ्य केंद्रों के बाहर लगे बोर्ड, स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

बिजली आपूर्ति भी बा​धित, खर्च भी अस्पतालों पर खूब

थिंकटैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर ने साल 2020 में जारी अध्ययन में बताया, लगभग 97% भारतीय घरों में बिजली पहुंच चुकी है। हालांकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक बिजली की पहुंच कम है। इससे ठीक एक साल पहले 2019 में जारी इसी थिंकटैंक की रिपोर्ट में कहा गया कि 2012-13 में 91% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बिजली कनेक्शन तो थे लेकिन लगभग आधे केंद्रों में बिजली की आपूर्ति अनियमित थी।

यह आंकड़े भारत सरकार की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट से काफी मेल खाते हैं। साल 2021-2022 में जारी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट बताती है कि भारत में 24935 ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से 3.7% और 157935 ग्रामीण उप-स्वास्थ्य केंद्रों में 11.4% को बिजली आपूर्ति नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय संगठन पॉवर फॉर ऑल ने भारत में ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों के सौर ऊर्जाकरण पर एक फैक्टशीट जारी की जिसके मुताबिक ग्रामीण भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) और उप-स्वास्थ्य केंद्र (SHC) टीकाकरण, प्रसव और नवजात शिशु देखभाल जैसी अंतिम छोर तक चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, जो नियमित बिजली आपूर्ति के बिना प्रदान नहीं की जा सकतीं। 2020 तक, ग्रामीण भारत में लगभग 25,000 PHC और 155,000 SHC हैं। इनमें से, भारत में 4.3% PHC और 28.4% SHC के पास बिजली की सुविधा नहीं है। इसके अलावा, राष्ट्रीय औसत से नीचे के स्वास्थ्य संकेतकों वाले राज्यों में, केवल 30-50% स्वास्थ्य सुविधाओं में ही बिजली है जबकि औसत से ऊपर के राज्यों में यह 60-100% है।

पॉवर फॉर ऑल के मुताबिक, विभिन्न राज्यों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) तक बिजली की पहुँच में काफ़ी अंतर है, जो झारखंड में 77.7% से लेकर आंध्र प्रदेश, केरल और मध्य प्रदेश में 100% तक है जबकि छत्तीसगढ़ में 90% स्वास्थ्य क्लीनिकों में परिचालन समय के दौरान बिजली कटौती होती है।

एक सवाल पर डॉ. आकाश श्रीवास्तव ने बताया, एक सामान्य PHC को रोजाना औसतन 45.8 किलोवॉट-घंटा बिजली चाहिए होती है। 5kWp क्षमता वाला सोलर सिस्टम इसका 70% तक पूरा कर सकता है। अस्पतालों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा पर इसलिए ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि ये सिर्फ इलाज नहीं ब​ल्कि जलवायु संकट के मोर्चे पर भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। इससे न सिर्फ इन्हें बिजली खर्च कम होगा ब​ल्कि देश को कार्बन उत्सर्जन घटाने में भी मदद मिलेगी।

सोरों सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

कासगंज की केस स्टडी पर उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के साथ साथ छत्तीसगढ़, मिजोरम, मेघालय, सिक्किम और कर्नाटक भी अस्पतालों में सौर ऊर्जा अपना रहे है। हाल ही में मेघालय ने सभी सामुदायिक केंद्रों को सौर ऊर्जा से जोड़ा है जबकि मिजोरम में 60% और त्रिपुरा के 90% सौर ऊर्जा से संचालित हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल, केरला, ओडिशा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु व महाराष्ट्र भी इसी दिशा में काम कर रहे हैं। हालांकि फिर भी देश में कुल बिजली उत्पादन में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी महज 5.2% है जबकि कोयला का हिस्सादारी 74% से अधिक है।

हमने फ्रिज भी बना लिया, ऑर्डर अभी तक नहीं

नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान (एनआईएचएफडब्ल्यू) के निदेशक डॉ. धीरज शाह बताते हैं, जलवायु परिवर्तन को लेकर हमने कुछ ही समय पहले ऐसे फ्रिज तैयार किए हैं जो न सिर्फ सौर ऊर्जा से संचालित हो सकते हैं ब​ल्कि अत्य​धिक तापमान में भी बेहतर कार्य कर सकते हैं। इस नवाचार की जानकारी अलग अलग माध्यमों से कई बार साझा हुई है। हालांकि राज्यों से अब तक इसे लेकर कोई सवाल या प्रतिक्रिया नहीं मिली है। उन्होंने कहा कि किसी भी स्वास्थ्य केंद्र में दवाएं, टीका या अन्य सभी तरह की वस्तुओं को ठंडे तापमान में रखने के लिए सौर ऊर्जा चालित फ्रिज बेहतर विकल्प हो सकते हैं।

सौर ऊर्जा से चलने वाले फ्रिज, जिन्हें खरीदने का अभी तक राज्यों से ऑर्डर नहीं मिले, स्त्रोत परीक्षित निर्भय

उन्होंने बताया कि इस खोज से पहले देश के मेडिकल कॉलेजों को लेकर एक सर्वे कराया गया जिसकी रिपोर्ट उन्होंने इंडियास्पेंड से साझा तो नहीं की लेकिन बताया कि भारत में कुल मेडिकल कॉलेजों की 710 है जो सालाना बिजली के लिए 1.5 से दो करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं जबकि यह कॉलेज अपनी 30% बिजली की जरूरत सौर ऊर्जा से पूरी कर सकते हैं। इससे मेडिकल कॉलेजों और उनके अस्पतालों को सालाना करीब 500 करोड़ रुपये तक की बचत हो सकती है।

एनर्जी फॉर हेल्थ: मेघायल से लेकर कर्नाटक तक

शिलांग के नजदीक लैतकोर स्वास्थ्य केंद्र और छत पर लगा सोलर पैनल, स्त्रोत परीक्षित निर्भय

मेघायल के सचिव एस. रामकुमार बताते हैं कि उनके पूरे राज्य में 116 स्वास्थ्य केंद्र हैं जिनमें से लगभग सभी हरित अस्पताल के रूप में पहचान बना चुके हैं। बीते चार साल में केंद्र, राज्य और गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर स्वास्थ्य केंद्रों पर सोलर पैनल स्थापित किए गए हैं। साथ ही वहां के कर्मचारियों को भी बैटरी के रखरखाव संबंधी प्र​शिक्षण दिलाया गया है। मेघालय की भौगोलिक ​स्थिति बाकी राज्यों से काफी अलग है। इसलिए उपकरणों की जानकारी कर्मचारियों को देना भी बहुत जरूरी है।

मेघालय के लैतकोर पीएचसी की मेडिकल ऑफिसर डॉ. रिस्किला खरमिह ने इंडियास्पेंड से कहा, "हमें अक्सर मानसून के समय बिजली आपूर्ति को लेकर काफी परेशानी होती थी। कई बार गर्मियों के समय भी बिजली कटती थी लेकिन अब छत पर सोलर पैनल लगा हुआ है। यह एक छोटा सा सेंटर है जो करीब दो हजार आबादी पर बना हुआ है। यहां तीन कमरे हैं जिसमें प्रसूति से लेकर अन्य सभी तरह की जांच की सुविधा है। टीबी की जांच भी हम इसी सेंटर पर करते हैं। जब बिजली चली जाती थी तो हम रात को यहां नहीं रुकते थे। शाम को पांच बजे सेंटर बंद हो जाता था। इसके चलते मरीजों को ​शिलांग तक यात्रा करनी पड़ती थी लेकिन अब यहां 24 घंटे यह सेंटर चालू रहता है।"

लैतकोर स्वास्थ्य केंद्र पर जानकारी देतीं स्वास्थ्य कर्मचारी, स्त्रोत परी​क्षित निर्भय

मेघालय की तरह कर्नाटक में भी स्वास्थ्य केंद्रों को सौर ऊर्जा से लैस किया जा रहा है। यहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उप-स्वास्थ्य केंद्रों सहित 12,000 स्वास्थ्य केंद्र हैं। इनमें से करीब 2500 केंद्रों पर सोलर पैनल स्थापित हो चुके हैं। बेंगलुरु स्थित सामाजिक उद्यम सेल्को फाउंडेशन की निदेशक हुदा जाफर के मुताबिक, कर्नाटक में सेल्को फाउंडेशन के साथ मिलकर नवंबर 2024 में सौर्य पहल शुरू की गई जिसका उद्देश्य 5,000 स्वास्थ्य केंद्रों को ऊर्जा प्रदान करना है। 2024 तक सेल्को ने पूरे भारत में 8,000 स्वास्थ्य केंद्रों में बिजली व्यवस्था स्थापित करने में मदद की है। इस साल 2025 के आ​खिर तक इसे बढ़ाकर 10,000 और 2027 तक 25,000 से ज्यादा केंद्र सौर ऊर्जा संचालित बनाने का लक्ष्य रखा है।

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