क्यों लड़खड़ा रहा है भारत का सौर प्रशिक्षण कार्यक्रम
हमारी रिपोर्ट से पता चला है कि लखनऊ में 10 में से सात ट्रेनिंग सेंटर काम नहीं कर रहे हैं और जो लोग ट्रेनिंग करने के बाद नौकरी कर रहे हैं, उनकी कमाई में पहले के मुकाबले कोई खास अंतर नहीं आया है।
लखनऊ: कागजों पर तो भारत का सौर ऊर्जा क्षेत्र रोजगार और टिकाऊ विकास का उज्जवल भविष्य दिखाता है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की 2022-23 की सालाना रिपोर्ट में 748 गीगावाट की सौर क्षमता का अनुमान लगाया गया है, जो बड़े अवसरों की ओर इशारा करता है। लेकिन हकीकत यह है कि 31 दिसंबर, 2023 तक भारत की सौर क्षमता सिर्फ 73.32 गीगावाट ही रही है।
साल 2015 में, भारत की सौर ऊर्जा क्षमता का पूरा फायदा उठाने के लिए कुशल कामगार तैयार करने के लिए सरकार ने 'सूर्यमित्र' योजना शुरू की थी। अब जब सरकार 'प्रधानमंत्री सूर्य घर' जैसी पहलों (जिनका मकसद बिजली के बिल कम करना और रोजगार बढ़ाना है) के जरिये अपने लक्ष्यों को आगे बढ़ा रही है, ऐसे में सूर्यमित्र योजना इन लक्ष्यों में कितनी कारगर साबित हो रही है, चलिए इसकी पड़ताल करते हैं।
प्रधानमंत्री सूर्य घर की घोषणा के एक महीने के अंदर ही एक करोड़ से ज्यादा घरों ने रूफटॉप सोलर सौर ऊर्जा लगवाने में मदद मांगी है। इससे साफ है कि सौर ऊर्जा उद्योग में कुशल लोगों की बहुत ज्यादा कमी है।
सूर्यमित्र कौशल विकास कार्यक्रम युवाओं को सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना, संचालन और रखरखाव जैसे अहम कामों के लिए तैयार करता है और साथ ही इस क्षेत्र में उद्यमिता को भी बढ़ावा देता है। मौजूदा बेरोजगारी की चिंताजनक स्थिति को देखते हुए (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक, जून 2024 में बेरोजगारी दर 9.2% तक पहुंच गई) सूर्यमित्र जैसी पहलें स्थायी रोजगार को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई हैं।
2015 में शुरू हुई इस योजना के तहत, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) का लक्ष्य 2018 तक 50,000 सूर्यमित्रों को प्रशिक्षित करना था। तत्कालीन MNRE मंत्री आर.के. सिंह ने जुलाई 2022 में राज्यसभा में बताया था कि यह लक्ष्य पूरा हो गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले दो वर्षों में अकेले 139 पंजीकृत केंद्रों में 6040 से ज्यादा सूर्यमित्रों ने अपनी ट्रेनिंग पूरी की है।
सूर्यमित्रों के प्रसिक्षण और रोजगार के अवसरों के बारे में और जानकारी पाने के लिए हमने लखनऊ के ट्रेनिंग सेंटर्स का दौरा किया और वहां प्रशिक्षणार्थियों और उद्योग जगत के लोगों से बात की। उत्तर प्रदेश की योजना 17 नगर निकायों को सौर शहरों के रूप में विकसित करने की है। इसके चलते लखनऊ अपने 10 सूर्यमित्र ट्रेनिंग सेंटर के साथ एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है।
ट्रेनिंग सेंटर नजर नहीं आए
सूर्यमित्र कार्यक्रम तीन महीनों में 600 घंटे की ट्रेनिंग देता है, जिसमें प्रतिभागियों को रहने और खाने की सुविधा भी दी जाती है। ये सुविधाएं प्रशिक्षण साझेदारों द्वारा संचालित मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण केंद्रों (TCs) पर उपलब्ध हैं। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के अंतर्गत आने वाले 'ग्रीन जॉब्स के लिए कौशल परिषद' प्रमाणपत्र दिया जाता है। इन ट्रेनिंग सेंटर्स को कई कड़े नियमों का पालन करना होता है, इसमें बुनियादी ढांचे के मानक, कार्यस्थल पर प्रशिक्षण के लिए उद्योग के साथ गठजोड़, लैब और क्लासरूम जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
हमने पाया कि लखनऊ में सूर्यमित्र ट्रेनिंग के लिए नामित 10 ट्रेनिंग सेंटर (TCs) में से सात गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) द्वारा चलाए जा रहे हैं। जुलाई 2024 के पहले हफ्ते में इस संवाददाता ने दौरा किया, तो राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (NISE) की वेबसाइट पर दिखाए गए सभी सात केंद्र बंद पाए गए। वेबसाइट की जानकारी के अनुसार, इनमें से तीन केंद्र चौक इलाके में होने चाहिए थे, लेकिन स्थानीय लोगों को इनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। चौक के एक स्थानीय दुकानदार मुनावर ने कहा, “ये मोहल्ले आपस में जुड़े हुए हैं, यहां किसी प्रशिक्षण संस्थान के होने की संभावना नहीं है। और हमने तो इनके बारे में कुछ नहीं सुना है।"
ठाकुरगंज में, हमने जय हिंद मॉन्टेसरी स्कूल का दौरा किया। यह स्कूल 'शफीक बानो चैरिटेबल सोसाइटी' नामक एक ट्रेनिंग पार्टनर द्वारा सूर्यमित्र ट्रेनिंग के लिए उप अनुबंधित किया गया है। स्कूल में रहने की जगह और उचित प्रयोगशाला जैसी जरूरी सुविधाओं की कमी थी। इस स्कूल में सूर्यमित्रों का आखिरी प्रशिक्षण सत्र फरवरी से मई 2023 तक चला था। लेकिन प्रशिक्षण प्राप्त करने वालों की जानकारी और उनके रोजगार की स्थिति के लिए यहां कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं था।
शफीक बानो चैरिटेबल सोसाइटी के एस. अनवर अब्बास ने कौशल विकास केंद्रों के सामने आने वाली चुनौतियों की बात कही और सरकारी भुगतान में देरी को एक बड़ी समस्या बताया। अब्बास ने कहा, "हमारा आखिरी बैच मई 2023 में खत्म हुआ और हमें अभी तक भुगतान नहीं मिला है। इस देरी की वजह से हमारे लिए काम करना बहुत मुश्किल हो जाता है और हमें उपअनुबंध की व्यवस्था की जरूरत पड़ती है।"
कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, मंत्रालय इन केंद्रों पर 30 छात्रों के लिए 600 घंटे के कोर्स चलाने के लिए 8.8 लाख रुपये देता है, साथ ही रहने और खाने की सुविधा के लिए 8.5 लाख रुपये अलग से दिए जाते हैं। ये कोर्स छात्रों के लिए पूरी तरह मुफ्त हैं, उन्हें कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है।
जरूरी सुविधाओं की कमी वाले प्रशिक्षण केंद्रों और भुगतान न मिलने की समस्याओं पर टिप्पणी के लिए इंडियास्पेंड ने मंत्रालय से संपर्क किया है। जवाब मिलने पर हम इस खबर को अपडेट कर देंगे।
शॉर्ट-टर्म ट्रेनिंग के बाद नौकरी की तलाश
लखनऊ में दो सरकारी प्रशिक्षण केंद्र हैं। एक केंद्र उत्तर प्रदेश नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (UPNEDA) द्वारा संचालित है, जिसे केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर स्थापित किया है। लखनऊ के चिनहट में 1991-92 में स्थापित केंद्र वैकल्पिक ऊर्जा क्षेत्रों में कुशल कार्यबल की मांग को पूरा करने के लिए अनुसंधान, विकास और प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है। यहां एक ऑडिटोरियम, लेक्चर रूम, एक गेस्ट हाउस और एक होस्टल भी है। साथ ही यह केंद्र सूर्यमित्र कार्यक्रम के लिए ट्रेनिंग भी देता है।
लैब और सौर पैनलों सहित अच्छे बुनियादी ढांचे के बावजूद, UPNEDA केंद्र NISE के निर्देशों से अलग है क्योंकि यह अल्पकालिक ट्रेनिंग देता है: नियमित 600 घंटों के बजाय, UPNEDA में 45 दिनों में सिर्फ 300 घंटे की ट्रेनिंग दी जाती है।
जून 2024 के अंत में जब इस संवाददाता ने UPNEDA प्रशिक्षण केंद्र का दौरा किया, तो वहां दो नए सूर्यमित्र ट्रेनिंग बैच शुरू किए थे और अतिरिक्त बैचों के लिए भी जगह थी। प्रशिक्षक नम्रता सिंह के अनुसार, केंद्र ने 2023 में 300 घंटे के सूर्यमित्र कार्यक्रम के नौ बैच चलाए थे। सिंह ने बताया, "हमारे पास लगभग 12 क्लासरूम हैं, साथ ही लैब और ऑडिटोरियम भी है ताकि प्रशिक्षुओं को पर्याप्त संसाधन मिल सकें।"
सरकारी केंद्रों में पर्याप्त सुविधाएं होने पर भी NGOs को प्रशिक्षण का काम सौंपने के कारण जानने के लिए इंडियास्पेंड ने कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय से संपर्क किया है। जवाब मिलने पर हम इस खबर को अपडेट कर देंगे।
UPNEDA केंद्र के कर्मचारियों ने भी बताया कि उन्हें लखनऊ में सूर्यमित्र के लिए किसी भी निजी प्रशिक्षण केंद्र के संचालन के बारे में जानकारी नहीं है।
इसके अलावा, UPNEDA के सेंटर में प्लेसमेंट और जॉब ट्रेनिंग के लिए उद्योगों के साथ गठजोड़ की कमी है। इसकी वजह से सूर्यमित्रों को रोजगार दिलाने में मदद के लिए राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के रोजगार मेले पर निर्भर रहना पड़ता है। UPNEDA की प्रशिक्षक नम्रता सिंह ने बताया, "कोर्स पूरा करने के बाद, छात्रों को आमतौर पर केवल 10,000-12,000 रुपये महीना मिलता है। कुछ को सरकारी सोलर प्लांट में कॉन्ट्रेक्ट पर काम मिल जाता है, लेकिन ये सभी पद अस्थायी होते हैं और सिर्फ किसी खास प्रोजेक्ट के लिए कुछ समय तक के लिए ही होते हैं।"
UPNEDA ट्रेनिंग सेंटर के मौजूदा बैच में ज्यादातर छात्र ललितपुर और झांसी के हैं। मार्च 2024 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ललितपुर में संयुक्त उद्यम कंपनी TUSCO लिमिटेड के 600 मेगावाट सौर ऊर्जा परियोजना का शिलान्यास किया था। झांसी की 23 वर्षीय छात्रा अंजलि श्रीवास्तव ने बताया कि कई प्रतिभागियों को औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITIs) से डिप्लोमा करने के बाद ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था। सरकार द्वारा बिजली संयंत्र स्थापना के लिए जिने लोगों की पुश्तैनी जमीन का अधिग्रहण किया गया था, ये सुविधा उन्हें ही मिली थी।
श्रीवास्तव ने बताया, "ललितपुर में हमारे दादा की पुश्तैनी जमीन थी। TUSCO लिमिटेड ने हमें कम मुआवजा दिया लेकिन सूर्यमित्र ट्रेनिंग पूरी करने के बाद परिवार के एक सदस्य को कंपनी में नौकरी देने का वादा किया गया था। इसलिए मेरा भाई और मैं, यहां नौकरी पाने की उम्मीद में टिके हैं।" श्रीवास्तव के मुताबिक, कंपनी ने जब तक प्रोजेक्ट चलेगा, तब तक 22,000-25,000 रुपये महीने की तनख्वाह देने का भरोसा दिया है।
UPNEDA के सूर्यमित्र सेंटर के कई छात्रों ने बताया कि वे पहले से ही इलेक्ट्रिकल तकनीशियन के तौर पर काम कर रहे थे और 15,000-18,000 रुपये महीना कमा रहे थे। इसलिए, इस कार्यक्रम से उनकी आय में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई और न ही उन्हें स्थायी नौकरी मिली है।
सिर्फ सूर्यमित्र ट्रेनिंग के लिए फंडिंग
सरकार द्वारा चलाया जा रहा एक अऩ्य सूर्यमित्र प्रशिक्षण केन्द्र लखनऊ यूनिवर्सिटी में स्थित है, जहां नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा संस्थान के जरिए नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की कमी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
इस पहल की शुरुआत 2007 में स्नातकोत्तर कार्यक्रम से हुई थी, जिसमें 2013 में बुनियादी ढांचे और प्रयोगशाला विकास के लिए 50 लाख रुपये आवंटित किए गए थे। इस प्रयास को 2015 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के एक आदेश से और मजबूती मिली, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा में तीन साल के वोकेशनल स्टडी (Bachelor of Vocational Studies) के एक कार्यक्रम शुरू करने का निर्देश दिया गया था।
एक साल बाद, संस्थान ने सूर्यमित्र ट्रेनिंग भी शुरू कर दी। 2021 तक, संस्थान ने लखनऊ विश्वविद्यालय के तहत स्वायत्तता दर्जा पा लिया और अब यह स्नातक, स्नातकोत्तर और सूर्यमित्र ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रहा है।
शुरुआती निवेश के बावजूद, इस संस्थान का बुनियादी ढांचा जर्जर हो गया है। प्रयोगशालाएं उपेक्षित पड़ी हैं, धूल से पटी हुई हैं और उपकरण इधर-उधर बिखरे पड़े हैं। दूसरे केंद्रों की तरह, हमारे दौरे के समय यहां सूर्यमित्र ट्रेनिंग सेंटर भी बंद पाया गया था।
ये संस्थान स्थायी फैकल्टी के बिना चल रहा है और तीनों ही कोर्सों के लिए गेस्ट लेक्चरर पर निर्भर है। एक कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि वित्तीय समस्याएं हैं: "हमें अब सिर्फ सूर्यमित्र ट्रेनिंग के लिए ही पैसा मिलता है। हमारे स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रम बेहद कम बजट में चल रहे हैं।"
फैकल्टी को दिए जाने वाला वेतन भी एक समस्या है। डॉक्टरेट कर चुके और लंबा अनुभव रखने वाले प्रोफेसरों को प्रति मॉड्यूल मात्र 2,000 रुपये मिलते हैं, जिससे उनकी मासिक आय महज 8,000-10,000 रुपये ही हो पाती है।
सूर्यमित्र ट्रेनिंग की प्रभावशीलता पर बात करते हुए, एक कर्मचारी ने इसकी कम अवधि और छात्रों द्वारा प्राप्त व्यावहारिक कौशल की गुणवत्ता पर चिंता जताई। संस्थान के कर्मचारी ने कहा कि सूर्यमित्र कार्यक्रम का 45-दिवसीय कोर्स स्नातकों को कार्यबल के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं करता है, जिससे बुनियादी कौशल में कमी रह जाती है। वह आगे कहते हैं, "प्रशिक्षण के बाद, सूर्यमित्रों को बहुत कम वेतन मिलता है, कई सालों के अनुभव के बाद भी उनकी तनख्वाह 25,000 रुपये से ज्यादा नहीं होती और उन्हें केवल अस्थायी कॉन्ट्रेक्ट पर ही काम मिलता है।"
इस बारे में जानकारी के लिए इंडियास्पेंड ने लखनऊ यूनिवर्सिटी के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा संस्थान की निदेशक ज्योत्सना सिंह से संपर्क किया है। जवाब मिलने पर इस खबर को अपडेट किया जाएगा।
लोकल सोलर ऑपरेटरों ने अभी तक सूर्यमित्रों को नौकरी नहीं दी
NISE के अनुसार, 2015 से 2024 तक उत्तर प्रदेश में लगभग 5,800 सूर्यमित्रों को प्रशिक्षण दिया गया है, जिनमें से 2,115 सूर्यमित्रों को कंपनियों में नौकरी मिली है।
लखनऊ में रूफटॉप सौर पैनल लगवाने का चलन भी पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ा है। 2019 से UPNEDA द्वारा सौर पैनल लगाने के लिए चुने गए विक्रेता ‘ओम सोलर सॉल्यूशंस’ के ऋतुराज सिंह बताते हैं कि उनके कारोबार में काफी बढ़ोतरी हुई है और उन्होंने कई लोगों को नौकरी भी दी है। उनकी कंपनी ने पिछले छह सालों में शहर के 400 घरों में पैनल लगाए हैं।
ऋतुराज सिंह बताते हैं कि उनके कर्मचारियों में ज्यादातर नवीकरणीय ऊर्जा में स्नातकोत्तर डिग्री धारक हैं और इनमें से भी लखनऊ यूनिवर्सिटी के स्नातकों को तरजीह दी गई है। इस साल, वे पहली बार सूर्यमित्र ट्रेनिंग सेंटर से आए उम्मीदवारों का आकलन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कंपनी सूर्यमित्रों को पर्याप्त रूप से काम के लिए तैयार करने के लिए दो से तीन महीने की अतिरिक्त ट्रेनिंग देगी।
(यह रिपोर्ट अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के समर्थन से तैयार की गई है।)