यूपी: गांव में खांसी-बुखार से मर रहे लोग; ना कोविड जांच, ना ही इलाज
उत्तर प्रदेश के गावों में कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं लेकिन ऐसे में इन ग्रामीणों के पास न तो कोई स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध हैं ना ही इन क्षेत्रों में ठीक तरीके से जांच की जा रही है।
लखनऊ। "मेरी उम्र 45 साल है, मैंने अपनी पूरी जिंदगी में 15 से 20 दिनों में गांव में इतनी मौतें नहीं देखी। तीन लोगों की कोरोना से मौत हुई है, लेकिन बाकी तो खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ से मर गए," उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के सुल्तानपुर खेड़ा गांव के रहने वाले दिनेश सिंह कहते हैं।
करीब 2 हजार की आबादी वाले सुल्तानपुर खेड़ा गांव में अप्रैल की शुरुआत से लेकर मई के पहले हफ्ते तक, यानी लगभग 35 दिनों के अंदर, 18 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, गांव में करीब 29 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं। इतनी बड़ी संख्या में मौतों और लोगों के संक्रमित होने के बाद प्रशासन ने गांव को कंटेनमेंट जोन घोषित करते हुए यहां बाहरी लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी है।
यह हाल केवल सुल्तानपुर खेड़ा गांव का नहीं है। उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के गांव से ऐसी खबरें आ रही हैं। लोगों को खांसी, बुखार जैसी तकलीफ है, लेकिन भय और सुविधाओं की कमी की वजह से जांच नहीं करा रहे। साथ ही अज्ञानता और जानकारी के अभाव में इलाज भी झोलाछाप डॉक्टरों से कराया जा रहा है।
हालांकि सरकार का दावा है कि गांवों में रैपिड रिस्पॉन्स टीम के माध्यम से लोगों की जांच हो रही है और उन्हें मेडिकल किट दी जा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार के अपर मुख्य सचिव सूचना नवनीत सहगल ने 11 मई की प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया, "राज्य के 97 हजार राजस्व गांवों में लक्षणयुक्त लोगों की पहचान कर उनका कोविड टेस्ट किया जा रहा है और मेडिकल किट दी जा रही है।" सहगल के मुताबिक, लोगों की एंटीजन जांच हो रही है और संक्रमित पाए जाने पर पंचायत भवन, स्कूल, सरकारी इमारतों में आइसोलेट कर उपचार किया जा रहा है।
गांव से आ रही खबरें और राज्य सरकार का गांवों पर अलग से ध्यान देना बताता है कि कोरोना अब उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में पैर पसार रहा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की 77.73% आबादी गांव में रहती है, यानी 15.5 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण आबादी है।
पंचायत चुनावों से बढे मामले
उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अप्रैल के महीने में ही पंचायत चुनाव हुए हैं। यह वह वक्त था जब राज्य में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे थे। ऐसे में पंचायत चुनाव की वजह से ग्रामीण इलाकों तक कोरोना का संक्रमण पहुंच गया और अब लोगों के खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ से मौत की खबरें आ रही हैं। पंचायत चुनाव कितना घातक साबित हुआ इसका अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं कि चुनाव ड्यूटी में लगे करीब 1600 कर्मचारी कोरोना से जान गंवा चुके हैं, उत्तर प्रदेश शिक्षक संघ के मुताबिक।
देवरिया जिले के कनकपुरा गांव के रहने वाले अवनीश कुमार (22) के बड़े भाई अरविंद कुमार की ड्यूटी भी पंचायत चुनाव में लगी थी। चुनाव कराने के बाद अरविंद कोरोना पॉजिटिव हो गए, तबीयत कुछ खराब हुई, लेकिन फिर इससे उबर गए। हालांकि संक्रमण घर तक पहुंच गया था।
"भइया के संक्रमित होने के बाद वो ठीक हो गए, लेकिन मेरी माताजी की तबीयत खराब रहने लगी। उन्हें तेज बुखार और खांसी ने जकड़ लिया था। गांव से करीब 21 किमी. की दूरी पर जिला अस्पताल पड़ता है, हम जांच कराने वहां गए, लेकिन लंबी लाइन थी और जांच नहीं हो पाई। उन्हें लेकर वापस आए और उसी रात उनकी मौत हो गई, वो सांस नहीं ले पा रही थीं," अवनीश कहते हैं।
अवनीश की मां प्रभावति देवी की उम्र 54 साल थी। एक मई को उनकी मौत हुई और इसके आठ दिन बाद 9 मई को अवनीश की ताई भी चल बसीं। अवनीश के मुताबिक, उन्हें भी खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण थे, उनकी उम्र 60 साल थी।
अवनीश बताते हैं, "गांव में पिछले 20 दिन में 8 लोगों की असमय मौत हुई है। किसी की भी कोरोना जांच नहीं हुई, लेकिन लक्षण खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ के थे। इसके अलावा गांव के हर घर में किसी न किसी को बुखार और खांसी की दिक्कत है। गांव के ज्यादातर लोग झोलाछाप डॉक्टर से ही दवाएं ले रहे हैं और अस्पताल तक नहीं जाते, क्योंकि उन्हें डर है कि जांच के बाद उन्हें कोविड अस्पताल भेज देंगे, जहां से लोग वापस नहीं आते।"
कोविड अस्पताल से डर जांच न करवाने की वजह
गांव में लोगों के बीच कई तरह की भ्रांतियां भी देखने को मिल रही हैं। लोगों को डर है कि अगर जांच कराई और पॉजिटिव आए तो उन्हें अस्पताल जाना ही होगा। अस्पताल के बुरे हालातों को देख सुन लोग जांच से बचते हैं।
ग्रामीण इलाकों में यह बात फैली है कि जो भी अस्पताल गया वह वापस नहीं आया है। ऐसे में लोग बीमारियां छिपाने का काम भी कर रहे हैं। गांव में इलाज करने वाले एक झोलाछाप डॉक्टर ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया, "मैं पिछले 20 साल से यह काम कर रहा हूं। इतने वर्षों में ऐसा वायरल नहीं देखा। हर घर में लोग बीमार हैं, लेकिन कोई जांच नहीं करा रहा। जांच की सलाह देने पर केवल बुखार होने की बात कहकर टाल देते हैं। मुझ पर इतना भार बढ़ा है कि पहले एक गांव में 2 घंटे लगते थे, अब 5 से 6 घंटे लग जा रहे हैं।"
लोगों में कोरोना जांच को लेकर कितना भय है इसका अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं कि रायबरेली के कठवारा गांव में जब जांच टीम पहुंची तो लोग घरों में ताला डालकर अंदर छिप गए। ऐसे में रायबरेली की एसडीएम अंशिका दीक्षित को पब्लिक अनाउंसमेंट करना पड़ा कि अगर लोग जांच नहीं कराएंगे तो उनपर कार्रवाई की जाएगी। साथ ही राशन कार्ड से उनका नाम हटा दिया जाएगा।
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के सौरम गांव की प्रधान सीमा जायसवाल ने तो बाकायदा जिलाधिकारी को खत लिखकर बताया कि उनके गांव में 16 लोगों की मौत हो चुकी है। कोरोना का प्रसार हो रहा है, ऐसे में गांव के लोगों की जांच कराई जाए। इस खत के सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद गांव में जांच टीम भेजी गई और लोगों का एंटीजन टेस्ट हुआ। दो दिन जांच करने पर चार लोग पॉजिटिव पाए गए, इन्हें घर में ही आइसोलेट किया गया है। गांव में किसी की भी आरटी-पीसीआर जांच नहीं हुई।
प्रधान सीमा जायसवाल के पति मनोज जायसवाल (43) बताते हैं, "हफ्ते-10 दिन में गांव में 16 लोगों की मौत हो चुकी है। इसकी वजह से डर का माहौल है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? लोगों को तेज बुखार आ रहा है, खांसी हो रही है और तबीयत अचानक बिगड़ने के बाद मौत हो जा रही है। यही कारण है कि हमने जिलाधिकारी को पत्र लिखा कि गांव के लोगों की जांच कराई जाए।"
सुल्तानपुर खेड़ा गांव में भी जब आठ लोगों की मौत हो गई तब जाकर स्वास्थ्य टीम जांच करने पहुंची। 1 मई को करीब 70 लोगों की जांच हुई, जिसमें से 14 लोग पॉजिटिव आए। इसके बाद इन्हें बस होम आइसोलेशन में रहने को कहकर टीम वापस चली आई। बाद में कुछ और लोगों की मौत हुई तो 9 मई को स्वास्थ्य टीम गांव पहुंची और 443 लोगों की जांच हुई। इसमें से करीब 15 लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई और बहुत से लोगों की रिपोर्ट आना बाकी है।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 11 मई को जारी आंकड़ों के मुताबिक, 24 घंटे में करीब 2.33 लाख सैंपल की जांच की गई, इसमें से करीब 1.10 लाख जांच आरटी-पीसीआर के माध्यम से हुई। हालांकि इसमें से कितनी जांच ग्रामीण क्षेत्रों में हुई इसका अलग से कोई आंकड़ा नहीं है। राज्य में जिला स्तर और फिर राज्य स्तर पर कोरोना के आंकड़े जारी होते हैं
उत्तर प्रदेश में कोरोना के मरीजों को बेहतर इलाज मिले इसे लेकर एक जनहित याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर की गई है। 11 मई को कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में टेस्टिंग का आंकड़ा मांगा है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि यूपी सरकार की ओर से दिए गए हलफनामे से यह साफ होता है कि राज्य में टेस्टिंग धीमे-धीमे कम होती गई है।
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