साल 2021 और कोविड-19 से जुडी कहानियां

Update: 2021-12-31 13:42 GMT

बैंगलोर: साल 2021 की शुरुआत 2020 की कोरोना की पहली लहर को पीछे छोड़ कर भारत में कोविड टीकाकरण की खबर के साथ शुरू हुई। लेकिन टीकाकरण शुरू होने के साथ ही कोरोना की दूसरी लहर ने डेल्टा वैरिएंट के साथ पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया और साल 2021 की सबसे ज़्यादा ख़बरें कोरोना की दूसरी लहर और टीकाकरण से ही जुडी रहीं।

इस साल और भी कई मुद्दे जैसे किसानों की समस्याएं, जलवायु परिवर्तन और बेरोज़गारी भी ख़बरों में रहे लेकिन यहां हम बात करेंगे कोरोना और उससे जुडी ख़बरों जो इंडियास्पेंड ने साल 2021 में की:

शुरुआती टीकाकरण और लोगों की झिझक

देश में कोविड टीकाकरण की शुरुआत 16 जनवरी, 2021 को देशभर में लगभग एक लाख 65 हज़ार से ज़्यादा लाभार्थियों का टीकाकरण, देश भर में 3,006 टीकाकरण केंद्रों में किया गया। ये 1,65,714 का आँकड़ा पहले दिन की लक्षित संख्या 3 लाख से काफ़ी कम था। साधिका तिवारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि क्यों बहुत से फ्रंटलाइन वर्कर्स टीकाकरण के लिए अपने नाम का पंजीकरण करवाने के बाद भी कोविड का टीका लगवाने से झिझक रहे हैं।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से की गयी टीकाकरण से जुडी एक और इनवेस्टिगेटिव और ग्राउंड रिपोर्ट में अनु भुयन ने ये बताया कि कैसे कोवैक्सीन ट्रायल में हिस्सा लेने वाले आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र के लोगों को 750 रुपये का लालच दिया गया था और उन्हें यह समझ नहीं आया कि वे एक ट्रायल में शामिल हो रहे हैं। इस ट्रायल के बाद एक व्यक्ति की मृत्यु हुई है और हिस्सा लेने वाले बहुत से लोग बीमार हो रहे हैं।

टीकरण के शुरुआती दो चरणों के लिए हर टीकाकरण केंद्र पर ख़ास इंतेज़ाम किये गए थे जो हमारी इस वीडियो स्टोरी में दिखाया गया था।

आने वाले कुछ महीनों में टीकाकरण की रफ़्तार काफी काम होती गयी और मई के महीने तक भारत की कुल जनसंख्या का सिर्फ 13% भाग का ही टीकाकरण हो पाया था। नीलेश मिश्र ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कैसे तैयारियों में कमी, कम सप्लाई और नीतियों की खामियों की वजह से देश में टीकाकरण की रफ़्तार कम हो रही थी।

भयावह दूसरी लहर

कोविड के डेल्टा वैरिएंट के साथ पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर फ़ैल गयी। अस्पतालों में जगह, बेड और दवाइयों की काफी कमी रही। रणविजय सिंह ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कैसे पूरे देश की तरह उत्तर प्रदेश में लोग कोविड की जांच, बेड और ऑक्‍सीजन के ल‍िए भटकते पर मजबूर थे।

वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी कोविड का कहर बढ़ रहा था लेकिन इन क्षेत्रों में न तो लोगों की जांच हो रही थी और न ही इलाज, रणविजय सिंह ने अपनी रिपोर्ट बताया।

जहां दूसरी लहर का कहर पूरे देश में दिख रहा था वहीं सरकारी आंकड़ों में मौतों की संख्या काफी कम बताई जा रही थी। सौरभ शर्मा की रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे शवदाह गृहों और कब्रिस्तानों में आने वाले शवों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है और डाटा कलेक्शन और कम टेस्टिंग की वजह से सरकारी आंकड़ों में ये मौतें दर्ज नहीं हो रही हैं।

हमारी ग्राउंड रिपोर्ट की सीरीज के वीडियोज़ में भी देश के कई हिस्सों जैसे लखनऊ, रांची, वड़ोदरा, सूरत और राजकोट से की गयी रिपोर्ट में भी ऐसी ही बातें पायी गयीं।

गुजरात के राजकोट से चेतन अग्रावत की रिपोर्ट में देखा गया कि कैसे मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए लोग सरकारी दफ्तरों के बाहर लम्बी कतारों में लगे हैं लेकिन सरकारी आंकड़ों में मौतों की संख्या सिर्फ इकाई के अंकों में हैं।

कोविड जाँच पर उठते सवाल

दूसरी लहर में बढ़ते कोविड मामलों के साथ इसकी जांच की गुणवत्ता और प्रक्रिया पर भी सवाल उठने लगे। लोगों में कोरोना के कई गंभीर लक्षणों का पता लगने के बावजूद अस्पताल सिर्फ इस बात पर मरीज को भर्ती करने से मना कर दे रहे थे कि आरटी-पीसीआर टेस्ट में कोविड-19 की रिपोर्ट नेगेटिव है। इस पूरे मामले को समझने के लिए इंडियास्पेंड ने मरीज, डॉक्टर और विशेषज्ञों से बातचीत कर पता लगाया की वायरल लोड का इससे बहुत बड़ा सम्बन्ध है।

कई राज्यों में देखा गया कि जैसे जैसे कोरोना के मामले बढ़ते गए राज्यों ने अपनी जांच की संख्या घटा दी, जो कि बाद में जाकर काफी घातक सिद्ध हुआ। पुष्यमित्र ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि बिहार सरकार कैसे अपने द्वारा जांच के लिए तय 1 लाख सैंपलों के मानक से कम टेस्ट कर रही थी।

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चूंकि सरकारी जांच केंद्रों पर टेस्टिंग नहीं हो पा रही थी इस ही कारण से कई प्राइवेट क्लिनिक और लोग बाजार में खुल्लेआम बिकने वाले एंटीजन किट के सहारे टेस्टिंग कर रहे थे, ऐसा हमारी बिहार से की गयी रिपोर्ट में बताया गया।

पंचायत चुनाव, कुम्भ सुपरस्प्रेडर इवेंट

उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनाव पूरे प्रदेश के लिए एक सुपरस्प्रेडर इवेंट साबित हुए। इन चुनावों में जिन शिक्षकों की ड्यूटी लगायी गयी थी उनमें से 700 से ज़्यादा शिक्षकों की मौत चुनाव ख़त्म होने तक हो चुकी थी, रणविजय सिंह ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में बताया।

इन चुनावों के ठीक बाद साधिका तिवारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया शिक्षकों की ड्यूटी एक बार फिर कोविड की निगरानी समिति में लगाई गई जिसके लिए अध्यापकों को संक्रमण से बचने के लिए पीपीई किट, ट्रेनिंग, आवागमन की व्यवस्था या इनके इंतेज़ाम के लिए अतिरिक्त धनराशि कुछ भी उपलब्ध नहीं करवाया गया।

इस ही तरह भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था की नींव माने जाने वाली आशा, आंगनवाड़ी और एएनएम कार्यकर्ताओं पर की गयी रिपोर्ट में भी बताया गया कि कोरोना काल में उनका काम बहुत बढ़ गया है और उन्हें इसके बदले में ना तो कोई अतिरिक्त भुगतान किया गया है और ना ही कोविड संक्रमण की अवस्था में उन्हें कोई स्वास्थ्य बीमा या कोई सरकारी सुविधा दी गयी।

उत्तराखंड के हरिद्वार में आयोजित किया गया महाकुम्भ भी एक सुपरस्प्रेडर इवेंट साबित हुआ। शैलेष श्रीवास्तव और सौरभ शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में बताया की किस तरह कुम्भ के दौरान हरिद्वार में 400% तक कोरोना के एक्टिव मामले बढ़ें।

ब्लैक फंगस और स्टेरॉयड

बढ़ते कोरोना मामलों के साथ देश में ब्लैक फंगस के मामले भी बढ़ने लगे। इंड‍ियास्‍पेंड ने 'संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज' के न्‍यूरो ईएनटी स्‍पेशलिस्‍ट डॉ. अमित केसरी से जाना कि ब्लैक फंगस के मामले अचानक से क्‍यों बढ़ने लगे, इस इंफेक्‍शन के शुरुआती लक्षण क्या हैं, इसका इलाज कितना मुश्किल है और यह इंफेक्‍शन किस तरह से फैलता है।

ब्लैक फंगस के साथ ही स्टेरॉयड के इस्तेमाल पर भी काफी बातें उठने लगीं। फेफड़ों के विशेषज्ञ डॉ रजनी भट्ट और डॉ लांसलोट पिंटो ने इंडियास्पेंड को कोविड19 के उपचार में स्टेरॉइड्स के प्रभाव, इसकी अवधि और इसका ब्लैक फंगस इन्फेक्शन के साथ सम्बन्ध के बारे में बताया।

ओमीक्रॉन की शुरुआत और टेस्टिंग

नवंबर में विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) ने कोविड19 वायरस के नए वेरिएंट को संज्ञान में लिया, यह वेरिएंट सबसे पहले बोत्सवाना में पाया गया था और इसे ओमीक्रॉन (Omicron) कोड नाम दिया गया है। ये वैरिएंट कितना खतरनाक है और कितनी तेज़ी से फैलता है इसके बारे में डॉ अविरल वत्स ने इंडियास्पेंड को बताया।

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पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के. श्रीनाथ रेड्डी ने एक इंटरव्यू में बताया कि मास्क, शारीरिक दूरी, स्वच्छता और भीड़ से दूरी बनाकर आप कोरोना से बच सकते हैं, लेकिन हमें इस बात का अध्ययन करना होगा कि हमारा पब्लिक हेल्थ मॉडल वेरिएंट के व्यवहार से किस तरह से निपटता है।


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